आंसु पश्चाताप के - भाग 15 - अंतिम भाग Deepak Singh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आंसु पश्चाताप के - भाग 15 - अंतिम भाग

जब वक्त बेरहम होता है तो जो भी उसकी चपेट में आता है , वह उसे नहीं छोड़ता , ठीक वैसे ही प्रकाश के साथ हुआ ।

प्रकाश अपनी बाइक से अपने पुत्र राहुल से मिलने जा रहा था , रास्ते में सामने से आ रही एक तेज रफ्तार कार ने प्रकाश की बाइक को टक्कर मार दी धडाम . . . . की आवाज के साथ वह सड़क पर लंबा पड़ गया ।
पलक झपकते ही वहाँ लोगों का जमावड़ा लग गया और ट्रैफिक जाम हो गया . . .
चन्द समय बाद वहाँ पुलिस पहुंची और उसे लहूलुहान अचेत अवस्था में लेकर हास्पीटल गये , हास्पीटल के इमरजेंसी वार्ड में पहुंचते ही डॉक्टरों ने उसका उपचार शुरू किया ।

इधर निकी बड़ी बेसब्री से अपने मामा प्रकाश का इन्तजार कर रही थी , चन्द समय बाद निकी के मोबाइल पर फोन आया ....
निकी अपने कानों से मोबाइल स्पर्श करके बोली ...
हैलो कौन ?
आप निकी बोल रही हो,
जी हाँ ,
जी मैं इंस्पेक्टर पान्डेय बोल रहा हूँ ,
जी इंस्पेक्टर साहब क्या बात है ,
कुछ समय पहले एक मोटरसाइकिल सवार प्रकाश का शहर से बाहर मेन रोड पर एक्सीडेंट हुआ है उनके फोन में आपका नंबर मिला ...
इंस्पेक्टर साहब प्लीज आप उनकी मदद करिये वो मेरे मामा है ,
आप थोड़ा जल्दी आइये उनकी हालत नाजुक है , आप जितनी जल्दी हो सके यहाँ पहुंचे ...

ओके सर मैं आ रही हूँ . . .

कुछ ही पलों में निकी हास्पीटल के लिए निकली ...
इतने में वहां राहुल आया और निकी को इस तरह घबराये देखकर बोला,
क्या बात है निकी तुम इतनी घबराई क्यों हो ?
राहुल मामा ... का ...
क्या हुआ उनको ?
वह सुसकती हुई बोली एक्सीडेंट . . .
घबराओ मत मैं तुम्हारे साथ चल रहा हूँ ।
इतना बोलकर निकी के साथ राहुल भी चल दिया ....


जब वे दोनों अस्पताल के आपातकालीन कक्ष में प्रकाश के बेड के नजदीक पहुंचे तो प्रकाश जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा था . . .

वार्ड के बाहर प्रकाश के चहेते लोगों की भीड़ एकत्र थी , प्रकाश को अवचेतन अवस्था में देखकर निकी बिलखने लगी ,
नहीं बेटी नहीं रोना नहीं ... एक अधेड़ उम्र का कम्पाउंडर उसे चुप कराते हुए रूम से बाहर ले गया और वोला देखों बेटी रोने से कुछ नहीं होगा . . . जब निकी रोना बन्द की तो वह निकी से पहल किया ,
बेटी तुम प्रकाश की क्या लगती हो ?
अंकल मैं उनके दोस्त की लड़की हूँ ,
इसलिये पूछ रहा हूँ , कहीं तुम राणा की बेटी तो नहीं हो ,
हाँ अंकल जी मैं उन्हीं की बेटी हूँ ,
मेरा नाम निकी है ,
मैं सब कुछ समझ गया बेटी तुम्हें बताने की कोई जरूरत नहीं शायद तुम्हारी माँ का नाम कल्पना है ।
जी हाँ मगर मेरी माँ का नाम कल्पना था लेकिन अब मेरी माँ भी इस दुनिया में नहीं है ...
यह तुम क्या कह रही हो ?
हाँ अकल मेरी आज से १२ - १३ साल पहले ही मस्तिक बुखार में चल बसी . . .
ओहो ... बेटी यह सुनकर मुझे बहुत दुःख हुआ ... इतना कहने के बाद वह दुसरे वार्ड में चला गया ।

कम्पाउन्डर के मुह से यह सुनकर राहुल हैरान हो गया , और कम्पाउंडर को बुलाकर अकेले में पुछा अंकल आप प्रकाश जी के बारे में सब कुछ जानते है ,
हाँ बेटा . . .
अंकल जी राणा कल्पना इन सब के बारे में आपको कैसे पता है ?
बेटा तुम सब कुछ जानना चाहते हो तो सुनो आज से लगभग २५ बर्ष पहले की घटना है , जब मैं यहाँ पर नया नया नौकरी ज्वाइन किया था उस समय इसी हॉस्पिटल में राणा रोड एक्सीडेंट में लहूलुहान प्रकाश की तरह आया था , उसके साथ उसकी पत्नी कल्पना थी और उसके कुछ सहयोगी भी थे . . . बाद में प्रकाश भी पहुंचा , प्रकाश और राणा दोनों जिगरी दोस्त थे सिर्फ शरीर उनका दो था मगर मन एक था , जब राणा की हालत काफी सीरियस हो गई वह मरणासन्न अवस्था में पहुंच गया तो वह कल्पना की तरफ संकेत करके प्रकाश से बचन मांगा था कि दोस्त मेरे मरने के बाद तुम कल्पना और निकी का साथ नहीं छोड़ोगे , मैं तुम्हारे ऊपर इन दोनों को छोड़कर जा रहा हूँ , वह अपना हाथ बढ़ाकर प्रकाश का हाथ अपने सीने पर रख लिया और इस बेरहम दुनिया को छोड़कर चला गया . . .
आंसुओं से भरे प्रकाश जी ने उससे वादा किया कि इनका साथ कभी नहीं छोडूंगा और उस वादा को प्रकाश जी ने पूरा भी किया ... कल्पना और प्रकाश जी का रिश्ता भाई बहन का था लेकिन इनकी पत्नी इनको चरित्रहीन समझकर इनको छोड़कर मायके में रहने लगी , आज वह भी अपने दोस्त की तरह इसी अस्पताल में लहूलुहान अचेत अवस्था में पड़े है , आज अगर इनको कुछ हो गया तो इनकी चिता को आग देने वाला भी कोई अपना नहीं है ।

यह सुनकर राहुल की आंखें आंसुओ से भर गई . . . और वह निकी के पास गया , निकी तुम पापा के पास रहो , मैं अभी माँ को लेकर आ रहा हूँ . . .

राहुल तुरन्त बाहर आया और एक टैक्सी में बैठकर अपने घर पहुंचा . . .

मम्मी मम्मी - क्या हुआ बेटा ?
आपको अभी मेरे साथ हास्पीटल चलना है ,
क्यों हास्पीटल , किस लिए चलना है ,
प्लीज मम्मी बात करने का समय नहीं है अभी इस वक्त हमें हास्पीटल पहुंचना है ,
वह अपनी माँ ज्योती को अपने साथ लेकर टैक्सी में बैठ गया और हास्पीटल के लिए चल दिया ।
राहुल मैं जानना चाहती हूँ , हम हास्पीटल क्यों जा रहे है ?
माँ मैं तुम्हें पापा के पास लेकर जा रहा हूँ ,
यह तुम क्या कर रहे हो ? मुझे उसके पास नहीं जाना है ,
नहीं मम्मी तुम सिर्फ एक बहम का शिकार होकर पापा को ठुकरा दी ,
राहुल यह तुम क्या बक रहे हो ? तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, जो तुम मुझे लेकर जा रहे हो ?
नही माँ अस्पताल के एक बूढ़े कम्पाउन्डर से मैं उस हकीकत को जान चुका हूँ , जिस हकीकत से आज तक आप अनभिगय हो ,
कैसी हकीकत ? कौन सी हकीकत ?
मम्मी कल्पना पापा के दोस्त राणा की पत्नी थी , पापा अपने दोस्त राणा को मरते समय वादा किये थे , कि वह कल्पना का साथ हमेशा देंगे कल्पना और पापा के बीच भाई और बहन का सम्बन्ध था लेकिन आप कल्पना को बदचलन और पापा को चरित्रहीन समझती थी , उनके दिल को हमेशा दुखाती रही मम्मी तुमको शक की बीमारी थी और इस बीमारी का इलाज किसी भी डाँक्टर के पास नहीं है ।

इधर प्रकाश बेचैन हो गया मानो उसका अन्तिम समय करीब आ गया हो उसकी सांसे थमने लगी उसके दिल का दर्द उसके आंखो में दिखने लगा शायाद अन्त समय में वह अपने वेटे राहुल को देखने की इच्छा हो .... इतने में उसकी अंतिम सांस भी बंद हो गई , प्रकाश अपने हर बन्धन से मुक्त हो गया और इस बेरहम दुनिया को छोड़कर हमेशा के लिये चला गया ....

निकी चीख चीख कर रोने लगी , प्रकाश के चाहने वालों में शोक की लहर दौड़ गई , वहाँ मौजूद लोग निकी को चुप कराने लगे . . .

टैक्सी से उतरकर राहुल अपनी माँ के साथ हास्पीटल के उस रूम में प्रवेश किया तो उसके पांव तले जमीन खिसक गई , निकी के साथ वह भी दहाड़ मारकर रोने लगा . . .

सफेद चादर में लिपटे प्रकाश के निर्जीव मुखमंडल पर जब ज्योती की नजर पड़ी तो वह अपने आंसुओं को रोक नहीं पाई और आंसुओं की लड़ियां उसके गालों पर टूट टूट कर बिखरने लगे , ज्योती के पास अपने मृत पति के लिए कुछ नहीं बचे थे , अब उसके पास प्रकाश के लिए कुछ थे तो सीर्फ और सीर्फ " आँसु पश्चात्ताप के ,

समाप्त


प्रिय पाठको मेरी लेखनी मेरी जीविका और आपका मनोरंज ही नहीं बल्कि समाज में घटित घटनाओं को उपन्यास का रूप देता हूँ , मुझे पूरा विश्वास है कि आप प्रकाश और ज्योती को महसूस कर रहे होंगे , प्रकाश के दिल के दर्द को महसूस कर रहे होंगे और ज्योती के दिल में प्रकाश के प्रति नफरत को महुसुस कर रहे होंगे...
अंत में आँसु पश्चताप के देखने के बाद ऐसा लगता है कि समाज विकल्प हीन हो रहा है , लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिये मेरा भी आपका भी समाज के प्रति दायित्व बनता है , इस तरह गलतफहमी में टूटते बिखरते परिवारों को एक करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है ।

आपको अपना बहुमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद, आपके प्रेम और स्नेह मे ही हमारी सफलता हैं, आपका सुझाव समीक्षा आमंत्रित है। आपको मेरी रचना अच्छी लगी तो आप अपना सुझाव अवश्य दे , अगर आप मुझे कुछ आर्थिक सहायता देना चाहते है तो आप मेरे UPI I'd से कर सकते है।
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लेखक दीपक सिंह
गाजीपुर - उत्तर प्रदेश
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