आंसु पश्चाताप के - भाग 8 Deepak Singh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आंसु पश्चाताप के - भाग 8

आंसु पश्चाताप के, भाग 8


नहीं पापा मैं उनकी परछाई तक नहीं देखूगी ,
ज्योती मेरे लिये नहीं मेरी माँ के लिये तरस खाओ ,
जब तुम मेरे लिए कुछ नहीं हो तो तुम्हारी माँ क्या खाक है , ठीक है ज्योती मैं जा रहा हूँ , अगर माँ को कुछ हो गया तो दोबारा कभी मैं तुम्हारे पास लौट कर नहीं आऊँगा ,
मत आना मैं भी तुम्हारा इंतजार नहीं करूंगी मेरे लिए तुम नहीं के बराबर हो , ना तो उस घर से मेरा कोई रिश्ता है और ना ही उस घर के लोगों से समझे ।
प्रकाश तेज कदमों से घर से बाहर निकला और अपनी गाड़ी स्टार्ट कर हॉस्पिटल की तरफ चल दिया ।

कुछ देर बाद वह हॉस्पीटल पहुंचा और जैसे ही वह उस वार्ड में प्रवेश किया उसके पांव तले जमीन खिसक गई, उसकी माँ के बेड के पास डाँक्टर समेत कई लोग शान्त खड़े थे ।
सामने प्रकाश पर नजर पड़ते ही कल्पना फफक कर रोने लगी ।
प्रकाश भी अपनी माँ के नीर्जीव शरीर को देखकर रोने लगा ।
सारी प्रकार मैंने बहुत कोशिश किया लेकिन भगवान को शायद यही मंजूर था ।
डाँक्टर समेत कई लोगों ने उसका धीरज बढ़ाया तत्पश्चात वो धीरे धीरे रोना बंद किया ।
हास्पीटल की फार्मेलिटी कंप्लीट होने के बाद प्रकाश अपने कुछ हमदर्दीयों के साथ अपनी माँ के निर्जीव शरीर को अंतिम संस्कार के लिये श्मशान घाट में ले गया । जहाँ मंत्र उच्चारण के बीच उसे चिता पर रखकर अग्नि के हवाले किया गया ।

तत्पश्चात वह कल्पना के साथ शोकाकुल अवस्था में अपने घर वापस आया ।

धीरे - धीरे समय बीतता गया दिन गुजरते गये महीने बीत गये साल गुजर गये , परन्तु प्रकाश गम के बोझ से उबर नहीं पाया ।

गमगीन प्रकाश को उसकी माँ के मरने का गम कुछ ऐसे तोड़ा कि वह हंसना भूल गया , हमेशा मायूस रहने लगा ।
अपना गम मिटाने के लिए कभी - कभी शराब भी पीने लगा ।

एक रोज प्रकाश मयखाने में पहुचां . . .
जग्गू दादा - हाँ मालिक ,
किसके बाप का मालिक यार सबका मालिक जो ऊपर वाला है ।
मेरे लिए एक बोतल लाओ ,
प्रकाश भैया यह जगह आपके लिए उचित नहीं है ,
उचित अनुचित की बात मत करो , मैं जो मांग रहा हूँ चुपचाप दे दो ।
जग्गू चुपचाप उसके टेबल पर एक अंग्रेजी शराब की बोतल रखकर चला गया ।
शराब की बोतल का सील तोड़कर एक गिलास में उड़ेल कर प्रकाश अपने होठों से लगाया और गटागट गले के नीचे उतार लिया ।
बगल में बैठे 4 , 5 शराबी उसे देखकर ठहाका लगाने लगे , बेचारा गम का मारा है ,
हाँ यार इसको इसकी बीवी छोड़कर चली गई ।
यह तुम क्या कर रहे हो ?
औरत का क्या कसूर , जब इसका दूसरे से लगाव हो गया तो वह बेचारी क्या करती ?
अब तुम ही लोग सोचो एक म्यान में दो तलवार एक साथ कैसे रह सकती हैं ? " हा हा - हा हा . . .

प्रकाश के मस्तिक में अजीब सा नशा छाने लगा । उनकी बातें सुनकर उनको आक्रामक दृष्टि से देखने लगा ,
तुम लोग क्यों हंस रहे हो ?
पी यार पी सबको पता है तू कितना मर्द है . . .
" हा हा - हा हा, वह जोर जोर से ठहाका लगाकर हंसने लगे ,
उनकी हंसी की आवाज प्रकाश के कानों को बेधती चली गई . . .
तत्पश्चात प्रकाश बोला देखो तुम लोग मेरा दिमाग खराब मत करो ।
दिमाग तो तुम्हारा पहले से ही खराब है अगर तुम्हारा दिमाग खराब नहीं होता तो तुम अपनी बीवी को छोड़कर दूसरी औरत का चक्कर क्यों लगाता ।
अरे यार यह दूसरी औरत कौन है ?
अरे वही राणा की विधवा औरत . . . जिसका यह फायदा उठाता है ।
वैसी औरत पर तो किसी का भी दिल आ सकता है ।
अरे बदतमीजो बोलने की भी एक हद होती है परन्तु तुम तो उस हद को पार कर दिये । इतना कहने के बाद प्रकाश उठकर उस मवाली के सर पर शराब की बोतल से वार किया , जिससे उसका सर फट गया ।
इतने में उसके साथी प्रकाश से उलझने लगे लेकिन वहाँ मौजूद लोगों ने बीच बचाव कर उन लोगों को अलग किया ।

कुछ समय बाद प्रकाश लड़खड़ाते हुवे कल्पना के दरवाजे पर पहुंचा और दरवाजा खटखटाया . . .
दरवाजा खुलते ही प्रकाश को नशे की हालत में देखकर कल्पना अवाक हो गई , भैया आप . . .
प्रकाश बिना कुछ बोले लड़खड़ाते हुए ड्राइंग रूम में प्रवेश किया और सोफे पर निठाल होकर गिर पड़ा और सोफे पर ही गहरी निद्रा में सो गया ।

जब उसकी आंख खुली तो कल्पना उसके लिए नींबू पानी लेकर आई ।
भईया नींबू पानी पी लो , आप की थकान दूर हो जायेगी ।
ठीक है कल्पना तुम रख दो मैं पी लूंगा ।
अब आप शराब भी पीने लगे ।
हाँ कल्पना तुम तो सब कुछ जानती हो कभी - कभी गम भुलाने के लिए पी लेता हूँ ।
बीष से भी भयंकर होती है शराब यह शरीर और आत्मा दोनों का नाश करती है ।
आज के बाद आप कभी शराब को हाथ नहीं लगाओगे ,
वह सकरात्मक भाव में उसके बातों को स्वीकार कर लिया ।

समय अपनी गति से आगे बढ़ने लगा । ज्योती का लड़का राहुल बड़ी तीब्र दिमाग का निकला ।
ननिहाल में नाना नानी के देख रेख में उसका पालन - पोषण बड़े प्यार और स्नेह के साथ होने लगा , उसके पास किसी चीज की कमी नहीं थी ।
ज्योती अपना मन बहलाने के लिए एक स्कूल में पढ़ाने लगी , वह जिस स्कूल में पढ़ाती थी उस स्कूल में अपने बच्चे को साथ ले जाती थी ।
समय एक ऐसा मरहम है जो हर जख्म को भर देता है । प्रकाश के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ , वह अपना समय अच्छी तरह व्यतीत करने लगा दिन पर दिन कल्पना की लड़की बड़ी होने लगी , वह प्रकाश को मामा कह कर पुकारती थी , वह अपनी माँ की तरह खूबसूरत और पढ़ने में तेज दिमाग की निकली ।

अफसोस जब वक्त बेरहम होता है तो किसी के प्रति रहम नहीं दिखाता जो भी उसके चपेट में आता है उसको उसी के आगोश में अपना जीवन बिताना पड़ता है ।
अभी प्रकाश अपनी माँ के गम से उभरा भी नहीं था कि अचानक कल्पना को एक रोज तेज बुखार हुआ बुखार इतना तेज था कि वह असहाय पीड़ा से कराह उठी उसे हॉस्पिटल की शरण लेनी पड़ी , वह बुखार कल्पना के लिये जानलेवा बन गया उसे मस्तिक बुखार था , यह जानकर प्रकाश विचलित हो गया , उसे बचाने के लिए वह अपने आप को अर्पित करने को तैयार था ,
डॉक्टर के बहुत कोशिश करने के बाद भी वह जीवित नहीं रही और इस दुनिया को छोड़ कर चली गई ,
निकी अपनी माँ के मृत शरीर से लिपट कर रोने लगी ।
प्रकाश भी अपने आंसुओं को संभालने में असमर्थ हो रहा था लेकिन किसी तरह निकी को संभाला और कल्पना के निर्जीव शरीर को अपने कुछ सहयोगियों के साथ श्मशान घाट ले गया , जहाँ चिता पर रखकर मंत्रोच्चारण के बीच कल्पना के मृत शरीर को मुखाग्नि दी गई , देखते ही देखते कल्पना का निर्जीव शरीर अग्नि में जल कर राख में तब्दील हो गया , तत्पश्चात प्रकाश उस राख को नदी के जल में प्रवाहित कर अपने घर वापस लौटा ।

कुछ दिनों बाद . . . खुद तो वह गम के सागर में गोते लगाने लगा लेकिन निकी को देखकर स्वयंम् को बड़ी मुश्किल से संभालता था क्योंकि वह निकी को हरदम खुश देखना चाहता था , घर में एक बूढी नौकरानी थी जो खाना बनाने के साथ - साथ उनका ध्यान भी रखती थी , वह उसे अम्मा कह कर पुकारते थे । निकी स्कूल चली जाती और प्रकाश अपने काम पर चला जाता लेकिन घर का सारा काम अमा संभाल लेती थी ।

एक दिन प्रकाश गम के सागर में डूब कर जग्गू के मयखाने में पहुंच गया ।
जग्गू भाई मुझे एक बोतल दे दो ,
जगु उसे एक बोतल पकड़ा दिया ।
वह बोतल का चार्ज देकर बोतल अपने साथ लेकर घर आया और ड्राइंग रूम में बैठ गया ।
इतने में वहाँ अमा आई ,
क्यों बेटा मैं तुम्हारे लिए खाना लगा दूँ ,
नहीं अम्मा अभी आप मेरे लिये एक प्लेट में नमकीन और सलाद लाओ ।
वह बोतल का कार्क तोड़ने वाला था , की बीष से भयंकर होती है शराब यह आत्मा और शरीर दोनों का नाश कर देती है , उसे ऐसा लगा जैसे कल्पना प्रत्यक्ष रुप में उसके सामने खड़ी होकर मना कर रही हो ।
नहीं कल्पना नहीं और इन्हीं शब्दों के साथ वह शराब की बोतल को फर्श पर पटक दिया , चनाक की आवाज के साथ बोतल टूट कर टुकड़ों टुकड़ों में बिखर गई और रूम के अन्दर फर्श पर शराब फैल गई - दुर्गन्ध से पूरा ड्राइंग रूम डूब गया ।
इतने में अम्मा प्रकाश के लिये एक प्लेट में सलाद और नमकीन लेकर आई , परन्तु वहाँ का दृश्य देखकर हैरान हो गई , कुछ पल खामोश रहने के बाद वह अपनी चुप्पी तोड़ती हुई बोली ,
बेटा कितना सुंदर बोतल था कैसे टूट गया और यह कैसी दुर्गन्ध आ रही है ?
अम्मा यह दुर्गन्ध इस सुन्दर बोतल के अन्दर बंद थी जो बोतल से बाहर निकलते ही अपनी दुर्गन्ध से पुरे रूम को भर दि - इसे शराब कहते हैं ।
नहीं बेटा तुम कभी शराब मत पीना शराब आदमी को बर्बाद कर देती है , कुछ लोग तो इसे शौक से पीते हैं लेकिन माफ करना बेटा शराब पीना एक घृणित कार्य है , यह कब तुम्हे अपना आदी बना लेगी यह तुम खुद नहीं जानते , हाँ अमा मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया दोबारा कभी ऐसी गलती नहीं करूंगा , इतना कहने के बाद वह बिखरे कांच के टुकड़ों को अपने हाथों से उठाने लगा ।
नहीं बेटा तुम हाथ मत लगाओ मैं साफ कर दूंगी , अमा कांच के टुकड़ों को साफ कर कूड़ेदान में डाल दी तथा फर्श पर फैली शराब को कपड़ों से साफ कर दी ।
अमा तुमसे एक सलाह लेनी है । कैसी सलाह ?
अगर हम निकी के इस घर को किराये पर देकर इसको अपने साथ अपने घर पर ले चलें और हम तीनों वही रहेंगे तो कैसा रहेगा ?
हाँ बेटा तुमने बहुत अच्छा सोचा है आखिर निकी का तुम्हारे शिवाय अब कौन है ?
हाँ अमा अब तो निकी मेरी बेटी भांजी सब कुछ है और मैं तो यही चाहता हूँ , कि निकी अच्छे से पढ़ले ताकि आगे चलकर किसी अच्छे पद पर आसीन होगी ।
हाँ मामा मैं डॉक्टर बनूंगी और लोगों का इलाज करके उनकी सेवा करूंगी ।
मेरी भांजी अवश्य डाक्टर बनेगी - क्यों अमा ?
और क्या अगर मन लगाकर पढ़ोगी तो अवश्य डाक्टर बनोगी ।
लेकिन मामा आप घर उसी को किराये पर देना जिसके पास बच्चे कम हो . . .
" हा हा - हा हा , अरे पगली तुम्हें बच्चों से क्या लेना है ?
मामा ज्यादा बच्चे रहेंगे तो घर को नुकसान करेगें ?