आंसु पश्चाताप के - भाग 14 Deepak Singh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

आंसु पश्चाताप के - भाग 14

कार्यक्रम खत्म होने के बाद प्रकाश अपने घर वापस आया , वह काफी थकान महसूस कर रहा था , वह कपड़े चेंज करने के बाद सो गया , कुछ समय बाद वह सवप्न के संसार में खो गया उसे स्वप्न में राहुल दिखने लगा ।
वह स्वप्न में राहुल को देखकर खुश हुआ लेकिन जब राहुल की नजर प्रकाश से मिली तो वह भावुक होकर अपना मुंह दूसरी तरफ मोड़ लिया ।
प्रकाश को इस तरह मुंह मोड़ते देखकर राहुल उसके पास आया और बोला आप मुझे देखकर अपना मुंह क्यों फेर लिये ।
प्रकाश अपनी नजरें झुकाकर बोला नहीं राहुल ऐसी कोई बात नहीं है ,
पापा जाने अनजाने में उस दिन मुझसे जो भी गलती हुई उसके लिए आप हमें माफ कर दो ,
नहीं बेटा इसमें बुरा मानने वाली कोई बात नहीं है शायद मेरी कमजोरी और मेरी लाचारी ने तुम्हें पिता और मुझे पुत्र प्रेम से मरहुम रखा ...
इतना कहने के बाद प्रकाश की आंखें आंसुओं से भर गई और वह भाऊक हो गया भावुकताके आँसु उसके गालो पर टपकने लगे ,
प्रकाश को भाउक देखकर राहुल भी भाऊक हो गया , वह अपने भावुकता के आँसुओं को रोकने में असमर्थ होने लगा ,
वर्षों बाद पिता पुत्र के मिलन में यह तो होना स्वाभाविक था , प्रकाश को भावुकता में भी परम सुख की प्राप्ति होने लगी , वह आनंद से भर गया क्योंकि उसे संतान की प्राप्ति वर्षों पहले हुई पर संतान से प्रेम की प्राप्ति कभी नहीं हुई ...

कुछ पल बाद प्रकाश का सपना टूट गया वह बहुत खुश था शायद सपनों में ही वह अपने पुत्र से काफी देर तक बातें किया . . .

इधर राहुल की आंखों में नींद नहीं थी क्योंकि वह अपने जिंदगी को लेकर असमंजस में था एक तरफ निकी से बेपनाह प्रेम तो दूसरी तरफ उसके पारिवारिक रिश्तों . . .

राहुल घंटों तक इसी सोच में डूबा रहा लेकिन उसे कुछ भी निष्कर्ष दिखाई नहीं दे रहा था बड़ी मुश्किल से उसकी आंखों में नींद आई ।

धीरे-धीरे रात के काले सन्नाटे को भोर का उजाला निकलने लगा पेड़ों पर बैठे पंक्षी चह चहाने लगे मंदिरों में घंटियां बजने लगी ।
लोग रोज की भांति अपने नित्य क्रिया से निवृत्त होकर अपने दैनिक दिनचर्या में लग गये ।

इधर प्रकाश की आंखें खुली वह नित्य क्रिया से निवृत्त होकर अपने रोज की दैनिक दिनचर्या में लग गया ।

इधर निकी का फोन घनघनाने लगा वह अपने कानों से स्पर्श करके बोली
हैलो - हाँ निकी मैं प्रकाश बोल रहा हूँ ।
नमस्ते मामा ,
खुश रहो, और कैसे हो निकी ?
ठीक हूँ मामा , आप बताइये आप कैसे हैं ?
मैं भी ठीक हूँ , मैंने तुम्से कल कहा था कि आज मैं तुम्हारे यहाँ आऊंगा और मैं स्वयंम् राहुल से बात करूंगा . . .
देखो मामा जो भी हो सोच समझ कर करना . . .
देखो निकी इसमें सोचना क्या है राहुल मेरा बेटा है उसका हाथ तुम्हारे लिये मांगना गलत नहीं है . . . प्रेम तो राहुल भी तुमसे करता है , हमे लग रहा पहले राहुल से बात करना ही उचित है और रही बात गुस्सा होने की तो अगर राहुल गुस्सा भी होगा तो हमें कोई फर्क नहीं पड़ता ... क्योकी वर्षों तक कोई भी पुत्र अगर अपने पिता के प्रेम से मरहूम रहा और अचानक बर्षों बाद वो मिलेगा तो सर्वप्रथम वह गिला शिकवा से ही आरम्भ करेगा ।

ठीक है मामा आप जैसा उचित समझें ?
निकी अब तुम उचित अनुचित मत सोचो , आज मैं शाम को तुम दोनों से मिलूंगा ,
ठिक है मामा ,
अब मैं फोन रख रहा हूँ,
ओके वाय, वाय मामा . . .

प्रकाश से बात करने के बाद निकी प्रसन्न हो गई , उसे ऐसा लगने लगा कि अब सब कुछ पहले जैसा सामान्य होगा और उसका प्रेम उसे मिलेगा ।

राहुल और निकी जिस कॉलेज में पढ़ते थे वह कॉलेज प्रकाश के घर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर था ।

इधर प्रकाश के मन में तरह तरह के ख्याल आ रहे थे कि वर्षों बाद आज वह अपने पुत्र से मिलेगा , बात करेगा . . .

शाम को निकी प्रकाश का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही थी वह आयेगा और राहुल से बात करेगा और उनका रिश्ता पहले जैसा सामान्य हो जायेगा , लेकिन जब निकी के मन में राहुल के पिछले जन्मदिन का ख्याल आया तो उसका मन उदास हो गया कहीं ऐसा ना हो फिर से राहुल उनका अनादर करें , वह इसी सोच में डूब गई ।

धीरे-धीरे दोपहर का समय समाप्त हुआ और शाम ढलने लगी ।

प्रकाश अपनी बाइक से अपने दिल में लाख अरमान लिये अपने पुत्र राहुल से मिलने कॉलेज के लिए निकला ...