युद्ध कला - (The Art of War) भाग 8 Praveen kumrawat द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

युद्ध कला - (The Art of War) भाग 8

6. कमजोर एवं मजबूत अवसर

सून त्जु के अनुसार— जो रणभूमि में पहले पहुंचता है उसमें युद्ध के लिए भरपूर उत्साह कूट-कूट कर भरा होता है, विपरीत इसके जो देर से आता है वह जल्दबाजी एवं भागादौड़ी में ही थक जाता है। इसलिए एक चतुर योद्धा वह होता है जो शत्रु पर अपने फैसले थोपता है तथा स्वयं के साथ दुश्मन को ऐसा करने का कभी मौका नहीं देता।
वह दुश्मन को प्रलोभन देकर उसे खुद के नजदीक आने के लिए मजबूर कर देता है तथा नजदीक आने पर हमला करके उसे अपने निकट आने से रोक देता है।

पहले जाल बिछाकर वह दुश्मन को लुभाएगा तथा बाद में दुश्मन के कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण ठिकानों पर हमला करेगा जिन्हेंबचाना दुश्मन की प्राथमिकता होगी।

यदि दुश्मन सुविधाजनक स्थिति में है तो वह उसके लिए असुविधा उत्पन्न करेगा। यदि दुश्मन के पास पर्याप्त रसद ( खाद्य सामग्री ) है तो वह दुश्मन के लिए भुखमरी के हालात पैदा करेगा। यदि दुश्मन अपने कैम्प में है तो एक चतुर योद्धा उसे बाहर निकलने पर मजबूर कर देगा।
ऐसी जगहों पर पहुंचें जहां से खुद को बचाने के लिए दुश्मन को भागना पड़े। अचानक वहां जा पहुंचें जहां आपके होने की उम्मीद तक न हो।

शून्य में से प्रकट हो जाएं, कमजोर ठिकानों को नष्ट कर दें,सुरक्षित स्थानों से बचकर चलें, उन जगहों पर धावा बोलें जहां आक्रमण की उम्मीद भी न हो।

एक सेना उस इलाके में लम्बी दूरियां बिना बाधा और तनाव के तय कर सकती है जहां दुश्मन उपस्थित न हो। आक्रमण करके तभी सफल होंगे यदि आप ऐसी जगह धावा बोलेंगे जहां दुश्मन कमजोर हो। अपनी सेना की सुरक्षा की खातिर उन स्थानों पर मोर्चा संभाले जहां पर हमला करना संभव न हो।

आक्रमण करने में निपुण योद्धा आकाश की ऊंचाई से प्रकाश की तरह प्रकट होता है, वह दुश्मन को स्वयं की रक्षा करने का अवसर नहीं देता, वह दुश्मन के असुरक्षित ठिकानों पर वार करता है, वह स्वयं को पाताल की गहराइयों में छिपाकर रखता है, उसे ढूंढ निकालना दुश्मन के लिए टेढ़ी खीर होता है क्योंकि प्रतिरक्षात्मक तरीकों से युद्ध करने में वह निपुण होता है।

आक्रमण की कला में वह सेनानायक निपुण होता है जिसका प्रतिद्वंद्वी यह नहीं जानता कि किस जगह का बचाव करना है तथा प्रतिरक्षात्मक कला में वह सेनानायक निपुण होता है जिसका विरोधी यह नहीं जानता कि आक्रमण कहां करना है।
हे गूढता एवं गोपनीयता की दिव्यकला आपके माध्यम से ही हम अदृश्य एवं इतने गुपचुप बन सकते हैं कि कोई हमारी आहट तक नहीं सुन पाता। तुम्हारे चलते ही दुश्मन की किस्मत हमारी मुट्ठी में होती है।
यदि आप दुश्मन की कमजोरियों के बारे में जानते हैं तो आप निःसंकोच एवं अप्रतिरोध आगे बढ़ सकते हैं। आप रुक-रुक कर आगे बढ़ते हुए भी सुरक्षित रह सकते हैं परंतु इसके लिए आपकी रफ्तार दुश्मन की रफ्तार से काफी अधिक होनी चाहिए।
आप यदि युद्ध करना चाहते हैं तो दुश्मन को युद्ध के लिए बाध्य करें इसके लिए ऐसी जगह पर धावा बोल दें जिसे बचाना दुश्मन की प्राथमिकता हो। वह चाहे किले के अंदर छिपा हो या खाई पार किसी सुरक्षित स्थान पर, ऐसा करने से दुश्मन बाहर आने पर मजबूर हो‌ जाएगा।

यदि हमला हम पर हुआ है तो हमें दुश्मन का समस्त संचार व्यवस्थाओं को भंग करना होगा तथा उन रास्तों पर कब्जा जमाना होगा जिनसे गुजरकर दुश्मन वापस जाएगा, हम आक्रमणकारी हैं तो हमारा हमला सीधे सम्राट पर होना चाहिए।

हम यदि युद्ध से बचना चाहते हैं तो दुश्मन को हमारे ठिकानों की जानकारी होने पर भी युद्ध को रोका जा सकता है। सिर्फ हमें दुश्मन के रास्ते में ऐसी अस्पष्ट अथवा अनापेक्षित चीज डालनी होगी जिससे दुश्मन दुविधा की स्थिति में आ जाए।

येंगपिंग शहर (जिस पर उस वक्त 'चूको लिआंग' का कब्जा था) पर जब 'सुमा' आक्रमण करने वाला था तो चूको ने एकाएक अपने रंग-ढंग बदल डाले— युद्ध के लिए बजने वाले ढोल नगाड़े अचानक बंद कर दिए गए, शहर का मुख्य द्वार खोल दिया गया, बाहर से देखने पर अंदर कुछ लोग झाडू लगाते और पानी छिड़कते हुए नज़र आए। इस अनापेक्षित परिवर्तन का सूमा पर वही असर हुआ जो चूको चाहता था। क्योंकि सूमा को खबर मिली थी कि चूको उस पर घात लगा कर हमला करने वाला है परंतु चूको की चाल के चलते जब उसे ऐसा नजर नहीं आया तो उसने अपनी सेना को वापस बुला लिया और बिना युद्ध किए ही वापस लौट गया।

दुश्मन की तैयारी (तरतीब) की जानकारी हासिल करके और स्वयं की गोपनीय बनाए रखकर अपनी सैन्य शक्तियों को संगठित रखें जबकि दुश्मन को उसकी सेना के विभाजन के लिए बाध्य करें।

यदि दुश्मन की कार्यप्रणाली स्पष्ट रूप से नज़र आती है तो आक्रमण के लिए हम अपनी सेना को एकजुट कर सकते हैं और अपनी तैयारियों को गुप्त रखते हुए दुश्मन को उसकी फौज का विभाजन करने के लिए विवश कर सकते हैं, जो उसे स्वयं पर चारों तरफ से होने वाले आक्रमण से बचने के लिए अनिवार्य रूप से करना होगा।

हम एक संयुक्त इकाई के रूप में कार्य कर सकते हैं जिसके विरोध में शत्रु को टुकड़ियों में बंटना पड़ेगा, ऐसे में उनकी विभाजित हुई टुकड़ियों पर टूटने के लिए हमारी एकजुट सेना ही पर्याप्त होगी। तथा बड़े दल-बल के साथ मुठभेड़ की अवस्था में दुश्मन भारी दबाव की स्थिति में होगा।
दुश्मन के किस ठिकाने पर हम हमला करने वाले हैं इस बात की जानकारी उसे नहीं होनी चाहिए। इसका लाभ यह होगा कि बचाव के लिए दुश्मन को अनेक ठिकानों पर स्वयं को मजबूत बनाना होगा जिसके चलते उसकी सेना अनेक दिशाओ में बंटी हुई होगी, परिणाम स्वरूप हमें भी दुश्मन का मुकाबला करने में कठिनाई नहीं होगी क्योंकि तुलनात्मक रूप से उनकी संख्या हमसे बहुत ही कम होगी।

सेनापति ग्रांट हर बार क्यों जीतता है इस बारे में शेरीदन ने बताया— उसके शत्रु को हमेशा इस बात का भय सताता रहता था कि ग्रांट इस बार न जाने कौन सा कदम उठाने जा रहा है। परंतु ग्रांट अधिकतर अपनी योजनाओं के विषय में ही सोचा करता था।

दुश्मन यदि अपनी सेना के अग्रभाग को मजबूत करने का प्रयास करेगा तो उसका पिछला हिस्सा कमजोर हो जाएगा, यदि वह पिछले हिस्से को मजबूत बनाने का प्रयास करेगा तो उसका अगला हिस्सा कमजोर रह जाएगा, दाहिने भाग को मजबूत करने पर बांया एवं बाएं भाग को मजबूत करने पर दायां भाग कमजोर रह जाएगा, तथा यदि वह सभी जगह स्वयं को मजबूत करने के लिए अतिरिक्त सेना भेजेगा तो सभी जगह कमजोर हो जाएगी।

रक्षात्मक युद्ध प्रणाली में हमें मुख्य दल से बार-बार अनेक सैनिक टुकड़ियां भेजनी पड़ सकती हैं। कम अनुभव वाला सेनापति अपने सभी ठिकानों की रक्षा करने का प्रयास करता है जबकि युद्ध कला में निपुण सेनापति निर्णायक आक्रमण को जीतने में अपनी पूरी ताकत झोंक देता है फिर चाहे युद्ध के दौरान उसे छोटी-मोटी हार का सामना ही क्यों न करना पड़े।

हमले की संभावना से सदैव सतर्क बने रहने की दशा में अधिक सैनिकों की आवश्यकता होती है। यदि हम संख्या में अधिक हैं तो यह ‍ दुश्मन को हमारे विरुद्ध तैयारी करने के लिए बाध्य कर देगा।

अतः एक अच्छा सेनापति वह है जो दुश्मन को पहले बिखर जाने के लिए विवश कर दे और फिर बारी-बारी से उन बिखरी हुई टुकड़ियों पर धावा बोलकर उन्हें नष्ट कर दे।

युद्ध का समय एवं स्थान पहले ही से पता होने पर सेना के प्रयासों को दूर से ही नियंत्रित किया जा सकता है। परंतु युद्ध के समय एवं स्थान की जानकारी न होने की अवस्था में सेना की बायीं टुकड़ी दायीं की और दायीं टुकड़ी बायीं की मदद करने में असमर्थ होगी, इसी प्रकार आगे की टुकड़ी पीछे की और पीछे की टुकड़ी आगे की टुकड़ी को राहत पहुंचाने में समर्थ नहीं होगी। ऐसा कर पाना और भी अधिक कठिन होगा यदि सेना की दूरस्थ टुकड़ियों के बीच कई सौ मील तथा निकटवर्ती टुकड़ियों के बीच मीलों का फासला हो।

हमारी पूर्व तैयारी ऐसी हो जिसमें हमारी सेना अनेक टुकड़ियों में विभाजित होकर कूच करे तथा पूर्वनिर्धारित समय एवं स्थान पर पुनः एकजुट हो जाए। यदि हम बिना किसी पूर्व योजना के अव्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ते हैं तो दुश्मन हमारी फौज को आसानी से पराजित कर सकता है। युद्ध के समय हमारा मुकाबला दुश्मन से कब और कहां होने वाला है यह पता न होने की अवस्था में हमारी पूर्व तैयारियां धरी की धरी रह सकती हैं क्योंकि ऐसे में हम असुरक्षित हो जाएंगे तथा जब हमारा सामना अचानक दुश्मन की सेना से होगा तो हमारी कोई भी टुकड़ी (अगली, पिछली, दायीं या बायीं) एक दूसरे को किसी भी प्रकार का समर्थन अथवा सहयोग देने की अवस्था में नहीं होंगे क्योंकि उनके बीच कई कोस का फासला होगा।

शत्रु की सेना में अधिक संख्या में सैनिक होने के बावजूद हम युद्ध करने से रोक सकते हैं। दुश्मन की योजनाओं तथा उसकी सफलता की संभावनाओं का पता लगाएं। उत्तेजित करके पता लगाने का प्रयास करें कि वह कितना सक्रिय है। उसे अपने रहस्य प्रकट करने के लिए मजबूर करें ताकि उसकी कमजोरियों का पता लगाया जा सके।

चेंग यू के अनुसार— जब दुश्मन को इस तरह परेशान किया जाता है तो उसके हाव-भाव से पता लगाया जा सकता है कि उसकी प्रकृति उग्र है अथवा शांत। वह चूको लिआंग का उदाहरण देकर बताता है कि उसने सूमा को तोहफे में महिलाओं के वस्त्र भेजकर तिरस्कार के द्वारा उत्तेजित करने का प्रयास किया था।

ध्यानपूर्वक अपनी और दुश्मन की सेना का तुलनात्मक अध्ययन करें तथा पता लगाने का प्रयास करें कि शक्ति का भार किस तरफ कम अथवा ज्यादा है।
अपनी योजनाओं को गुप्त रखना सुनियोजित प्रबंधन की कुंजी है। इसके द्वारा आप न सिर्फ चतुर से चतुर गुप्तचरों से बच पाएंगे बल्कि कपटी लोगों के कुचक्र एवं षड्यंत्रों से भी दूर रहेंगे।
युद्ध में दुश्मन की युक्तियों को भेदकर विजय प्राप्त करने की विधि से अधिकतर लोग अनभिज्ञ होते हैं। क्योंकि जीत के लिए आवश्यक युक्तियों (दांव-पेचों) के बारे में प्रायः सभी लोग जानते हैं परंतु उन जटिल रणनीतियों (व्यूह रचना आदि) जिन्हें विकसित करके विजय प्राप्त की जाती है, को विरले ही जान-समझ पाते हैं।
पहले इस्तेमाल की जा चुकी युक्ति (रणनीति) का प्रयोग भूलकर भी दोबारा न करें। हर बार अलग प्रकार की युक्ति का इस्तेमाल करने का प्रयास करें।

विजय प्राप्त करने का मूलमंत्र एक ही है परंतु युक्तियां (दांव-पेंच) अनेक। युद्ध के नियम अत्यंत साधारण होते हैं जिन्हें सप्ताह भर में सीखा जा सकता है। किन्तु इन सिद्धांतों के अध्ययन मात्र से कोई भी व्यक्ति नेपोलियन की तरह कुशल योद्धा नहीं बन सकता, ठीक उसी प्रकार जैसे व्याकरण का अध्ययन करने मात्र से हर व्यक्ति गिबन नहीं बन जाता है।

सेना की युक्तियों की तुलना पानी से करना गलत न होगा, जिस प्रकार पानी अधिक प्रतिरोध वाले मार्ग को छोड़कर कम प्रतिरोध वाले मार्ग की ओर आगे बढ़ जाता है उसी प्रकार युद्ध में भी शक्तिशाली से बचा जाता है तथा कमजोर पर धावा बोला जाता है। पानी निराकार होता है, वह जिस जगह बहता है उसी जगह के अनुरूप आकार धारण कर लेता है, इसी प्रकार कुशल सेना दुश्मन की योजनाओं के अनुसार स्वयं को ढालकर उनका समाधान निकालते हुए विजयश्री को प्राप्त करती है।
जिस प्रकार पानी का कोई निश्चित आकार नहीं होता उसी प्रकार युद्ध के नियम कानून भी सुनिश्चित नहीं होते हैं। सभी पंच तत्त्व कभी भी समान रूप से प्रबल नहीं होते, चारों ऋतुएं एक दूसरे के बाद आती हैं और चली जाती हैं, दिनों के अनुसार चंद्रमा का आकार भी घटता एवं बढ़ता रहता है, उसी प्रकार जो अपनी युक्तियों को विरोधी की चाल के अनुसार बदलकर विजय प्राप्त करना जानता है उसी को सच्चा योद्धा कहा जा सकता है।