युद्ध कला - (The Art of War) भाग 10 Praveen kumrawat द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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युद्ध कला - (The Art of War) भाग 10

8. अन्य रणनीतियाँ

सुन त्ज़ू के अनुसार मुश्किल जगह पर कभी पड़ाव (डेरा) न डालें। जहां की प्रमुख सड़कें (राज मार्ग ) एक दूसरे को काटती हों उनसे मित्रता कर लें। खतरनाक एवं सुनसान जगहों पर अधिक देर तक न ठहरें। शत्रु द्वारा घेर लिए जाने पर युक्ति (तरकीब) से काम लें तथा मुसीबत में घिरने पर युद्ध करें।

कुछ ऐसे रास्ते हैं जिन पर भूल कर भी न चलें...
ली चुआन के शब्दों में वे सड़कें जो पर्वतों के बीच में संकरे रास्तों की ओर ले जाती हों, जहां दुश्मन के छिपे होने तथा घात लगा कर हमला करने की आशंका हो, पर न जाएं। ऐसी सेनाओं पर आक्रमण न करें... विशेषकर तब जब आपकी सेना के जवानों में दुश्मन से लोहा लेने का सामर्थ्य न हो। ऐसे में स्वयं को आक्रमण करने से रोकें, परंतु ऐसा न करने पर आपके सैनिक अनावश्यक दबाव की स्थिति में होंगे।

ऐसे शहरों की घेराबंदी न करें...
'साओ कुंग' जब 'सुचोऊ' के राज्य पर आक्रमण कर रहा था, तो उसने हुआ पी नामक शहर (जो रास्ते में ही पड़ता था) को छोड़ दिया और आगे बढ़ गया, तथा देश के मध्य भाग तक पहुंच गया। उसकी इस रणनीति के चलते वह लगभग पंद्रह जिला मुख्यालयों पर कब्जा जमाने में सफल रहा।
अतः ऐसे शहर पर हमला नहीं करना चाहिए, जीत के बाद जिस पर कब्जा नहीं जमाए रखा जा सकता हो अथवा छोड़ देने पर कोई परेशानी भी उत्पन्न न हो। सनयिंग को जब पीयंग पर हमला करने के लिए उकसाया गया तो उसने कहा यह शहर बहुत ही छोटा है, साथ ही इस पर मजबूत किलेबंदी की गई। है। अतः यदि इसे जीत भी लिया जाए तो हमारे लिए यह कोई बड़ी उपलब्धि न होगी, तथा यदि हम हार गए तो लोगों की हंसी का पात्र बनेंगे, इसलिए उचित यही होगा कि इतनी शक्ति हम किसी अन्य राज्य अथवा प्रांत को जीतने में लगाएं।

ऐसी जगहों के लिए युद्ध के आदेश का पालन न करें...
यदि आपको किसी ऐसे प्रदेश में डेरा डालने/शिविर लगाने के आदेश दिए गए हों जो पूरी तरह अलग-थलग हो अथवा जहाँ टिके रहना अत्यंत जटिल एवं कठिन हो, ऐसे आदेशों की अवमानना की जानी चाहिए।)

सेनानायक जो विभिन्न प्रकार की युक्तियों (दांव-पेंचो) के प्रयोग से होने वाले फायदों को जानता हो, वह अपनी सेना को सही प्रकार से संचालित कर सकता है।
तथा जो इसे नहीं समझता, उसे दुश्मन के ठिकानों अथवा योजनाओं की चाहे कितनी ही जानकारी क्यों न हो, वह अपने ज्ञान का वास्तविक (व्यवहारिक) लाभ नहीं उठा पाएगा।
अतः युद्ध का अध्ययन करने वाला विद्यार्थी आवश्यकता पड़ने पर समय रहते यदि अपनी योजनाओं को बदलने में निपुण नहीं है तो चाहे वह कितना भी योग्य क्यों न हो अपने सैनिकों के श्रेष्ठ उपयोग में असफल रहेगा।
एक चतुर सेना नायक योजनाएं तैयार करते समय लाभ तथा हानि दोनों की संभावनाओं को ध्यान में रखता है। यदि लाभ की योजना, हानि की संभावनाओं को ध्यान में रखकर तैयार की गई हो तो यह न सिर्फ कठिन समय में हमें मजबूती प्रदान करता है बल्कि रुक कर हमें दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने का साहस एवं अवसर भी प्रदान करता है।

यदि हम शत्रु पर विजय प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें लाभ पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ यह भी ध्यान रखना होगा कि शत्रु भी हमें बराबर का नुकसान पहुंचा सकता है। इस प्रकार की संभावनाएं अपनी गणना में शामिल करके हम अपनी योजनाओं को और अधिक मजबूत बना सकते हैं।

उदाहरण के लिए यदि हम दुश्मन द्वारा घिरे हुए हैं, ऐसे में युद्ध के मैदान से भाग कर हम अपने शत्रु को उत्साहित ही करेंगे। हो सकता है वह हमारा पीछा करे और हमारी सेना को रौंद डाले। इससे कहीं ज्यादा उचित होगा कि हम अपने सैनिकों को प्रोत्साहित करके उन्हें जवाबी हमले के लिए तैयार करें। अतः बुद्धिमान लोग लाभकारी तथा हानिकारक दोनों परिस्थितियों का समाकलन करके मुसीबत से बाहर आने का रास्ता खोज निकालते हैं तथा विजय को प्राप्त करते हैं, किंतु खतरे की संभावनाओं से आंखें मूंद लेने पर ऐसा कर पाना असंभव हो जाता है।

विरोधी पक्ष को नुकसान पहुंचाकर उसकी शक्ति को क्षीण करें, उसके लिए परेशानी पैदा करें तथा उसे निरंतर व्यस्त रखें। प्रलोभन देकर उसे उस ओर आने के लिए बाध्य करें।

चिया लिन दुश्मन को चोट पहुंचाने की अनेक विधियाँ बताता है— दुश्मन के श्रेष्ठ, बुद्धिमान एवं चतुर लोगो को उससे दूर कर दो ताकि उनके पास सलाह लेने-देने वाले लोग न रहें। दुश्मन के राज्य में विश्वासघाती तथा राजद्रोही लोग पैदा कर दो जिससे वहां की सरकारी नीतियाँ विफल हो जाएं। षड्यंत्र के द्वारा वहां के लोगों को हिंसा, उपद्रव एवं धोखाधड़ी के लिए तैयार करो। राजा तथा उसके मंत्रियों के बीच मतभेद पैदा करो। हर प्रकार से दुश्मन की क्षमता को कम करो तथा उनका खजाना तबाह करो। उन्हें ऐसे तोहफे (उपहार) भेंट करो ताकि राष्ट्र द्रोही बन जाएं। मनमोहक एवं आकर्षक स्त्रियों के उपयोग से उनकी मनःस्थिति को विचलित कर दो।

युद्ध कला हमें सिखाती है कि शत्रु हम पर कभी आक्रमण नहीं करेगा, ऐसा सोच कर निश्चिंत न बैठें बल्कि अपनी तैयारी पूरी रखें और स्वयं को अजेय बना लें।
पांच खतरनाक गलतियाँ हैं जो एक सेनानायक को प्रभावित कर सकती हैं:
1) लापरवाही— जो विनाश की ओर ले जाती है।
2) कायरता— जिसके चलते वह दुश्मन द्वारा बंदी बनाया जा सकता है।

सुन त्ज़ू जानता था कि युद्ध में खतरा मोल लिए बिना जीत पाना असंभव होता है। 404 ई. में 'लिऊ यू' ने विद्रोही 'हुआन सुआन' का 'यांग सी' तक पीछा किया और 'चेंग हंग' के समुद्री द्वीप में उनके बीच भयंकर युद्ध हुआ। पकड़े जाने के डर से हुआन सुआन ने अपने युद्ध पोतों के साथ एक छोटी नाव भी तैयार करा ली ताकि आवश्यकता पड़ने पर वह वहां से भाग सके। इसका सीधा प्रभाव उसके सैनिकों के मनोबल पर हुआ, उनमें युद्ध करने की भावना पूरी तरह नष्ट हो गई। जब दुश्मन (जो पूरे जोश में था) ने उन पर धावा बोला तो हुआन सुआन की सेना को वहाँ से जान बचाकर भागना पड़ा। वे दो दिन तथा दो रातों तक बिना रुके भागते रहे और बुरी तरह पराजित हुए।

3) उग्र स्वभाव— जो दुश्मन द्वारा अपने लाभ के लिए भड़काया जा सकता है।

357 ई. में जब 'हुआंग मी', 'टेंग चिआंग' तथा अन्य विरोधियों द्वारा 'याओ सियांग' पर आक्रमण किया गया तो उसने शहर के दरवाजे बंद कर लिए और लड़ने से इंकार कर दिया। तब टेंग चियांग ने कहा हमारा शत्रु गुस्सैल मिजाज का है, अतः हमें उसे उकसाते रहना होगा और शहर के द्वार पर निरंतर वार करते रहना होगा ताकि वह गुस्से में बाहर आए और हमसे युद्ध करे। टेंग की तरकीब काम आई, जब खिन्न होकर 'याओ सिआंग' शहर के बाहर आया तो युद्ध के बहाने दूर ले जाकर उसे मार दिया गया।

4) लज्जा— यश एवं सम्मान (पुरस्कार) की अपेक्षा रखने वाले व्यक्ति को लोगों की उपेक्षा अथवा तिरस्कार से कभी नहीं घबराना चाहिए।
(5) अत्यधिक व्यग्रता अथवा उत्कंठा— आवश्यकता से अधिक परवाह करने की भावना, भय एवं चिंता को जन्म देती है, परिणाम स्वरूप ऐसा मनुष्य परेशानियों में फंस जाता है।

यहां सुन त्ज़ू का यह अर्थ नहीं कि सेनापति को अपने सैनिकों के हित के प्रति असावधान अथवा लापरवाह हो जाना चाहिए, सुन त्ज़ू केवल इस बात पर जोर देना चाहता है कि अपने सैनिकों की तात्कालिक सुख सुविधाओं पर अधिकाधिक ध्यान देना भविष्य में उनकी प्रतिभा के दमन का कारण बन सकता है। वर्तमान में ऐसा करना सुविधाजनक लग सकता है परंतु हो सकता है योग्यता के अभाव में भविष्य में पराजय के कारण सैनिकों को अधिक कष्ट एवं वेदना का सामना करना पड़े।

सहानुभूति अथवा करुणा के वशीभूत होकर कोई सेनापति युद्ध में कब्जाए गए शहर को छोड़ने अथवा किसी उद्देश्य विशेष से नियुक्त सैनिक टुकड़ी को आवश्यकता से अधिक सैन्य सहायता भेजने की गलती कर सकता है।

उपरोक्त पांच कारक हैं जो युद्ध संचालन में गंभीर समस्याएं उत्पन्न करके विफलता का कारण बनते हैं। जब कोई युद्ध कलासेना हार जाती है अथवा उसका नायक मार दिया जाता है तो उसका कारण निश्चित रूप से इन पांच त्रुटियों में पाया जाएगा। अतः युद्ध कला का अध्ययन करते समय इन पाँच त्रुटियों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए।