The Art of War - 11 books and stories free download online pdf in Hindi

युद्ध कला - (The Art of War) भाग 11

9. कूच की तैयारी

अब हम सेना के पड़ाव डालने तथा शत्रु पर निगरानी रखने के विषय पर बातें करेंगे। डेरा डालना पड़े तो पहाड़ों को तेजी से पार करें तथा घाटी के नजदीक वाले स्थानों को चुनें।

यह बात हन के समय की है। ‘वू-टू चिआंग’ डाकुओं के दल का सरदार था, तथा ‘मा-युआन’ को उसके दल का खात्मा करने के लिए भेजा गया था। वू-टू पहाड़ियों में जा छिपा, अतः युआन ने उसका पीछा करने का प्रयास नहीं किया। परंतु उसने उन सभी स्थानों पर कब्जा जमा लिया जहां से खाद्य सामग्री की आपूर्ति की जा सकती थी। रसद के अभाव में शीघ्र ही चिआंग की हालत खराब हो गई और उसे आत्मसमर्पण करना पड़ा, क्योंकि वह घाटी के निकट रहने के फायदों के बारे में नहीं जानता था।

सूर्यमुखी तथा ऊंचे स्थानों अथवा पहाड़ के ऊपरी हिस्सों पर डेरा डालें, न कि ढलान पर। युद्ध के लिए भूलकर भी ऊंचाई की ओर न जाएं।
नदी पार करते ही उस स्थान से दूर चले जाएं। शत्रु जब नदी पार कर रहा हो तो उससे लड़ने के लिए नदी की धारा के मध्य में न जाएं, पहले उसकी आधी सेना को नदी पार करने दें फिर धावा बोलें।

ली युआन 100 ई. पू. की एक घटना के बारे में बताता है। हैन सिन की सेना ‘वी’ नामक नदी के एक किनारे पर थी और दूसरी ओर भी लूंग चू की सेना। रात में हैन सिन ने दस हजार बोरों में रेत भरकर ऊंचाई पर एक बांध बनवा दिया। और अपनी आधी सेना के साथ नदी पार करके लूंग चू की सेना पर धावा बोल दिया। परंतु थोड़ी ही देर में यह दिखावा करते कि हमला विफल रहा वह नदी पार करके वास लौट इस अप्रत्याशित सफलता से खुश होकर लूंग चू ने कहा, "मुझे पता था कि हैन सिन कायर है। " उसने हैनसिन का पीछा किया और नदी पार करने लगा। हैन सिन ने तुरंत बोरों से बने बांध को तोड़ने का आदेश दे डाला, जिसके चलते लूंग चू की सेना बाढ़ में बह गई। हैनसिन पूरी शक्ति के साथ लूंग चू की बाकी बची सेना पर टूट पड़ा। इस हमले में लूग चू मारा गया तथा उसकी सेना भी इधर-उधर भाग गई।

अतः यदि आप युद्ध के लिए बेचैन (व्याकुल) हैं तो भी किसी नदी के आस-पास अपने शत्रु पर हमला न करें। स्वयं को सदैव शत्रु से अधिक ऊंचाई पर तथा सूर्य के सम्मुख रखें। हमले के लिए भूलकर भी नदी के बहाव के विपरीत न जाएं।

पानी हमेशा ऊंचाई से नीचाई की ओर बहता है अतः हमें निचले स्थानों पर डेरा नहीं डालना चाहिए क्योंकि जल द्वार खोलकर शत्रु किसी भी समय हमें बाढ़ में डुबो सकता है। हमारी सेना का पड़ाव दुश्मन के पड़ाव से नीचे होगा तो धारा प्रवाह का लाभ सदैव दुश्मन को मिलेगा, हमें नहीं।

खारे दलदल में पहुंचने पर वहां से अविलम्ब निकलने का प्रयास करें क्योंकि वहां मीठे एवं ताजे पानी का अभाव होता है। दलदल नीचे गहरे तथा समतल होते हैं, अतः वहां हमले की संभावनाएं भी
अधिक होती हैं। परंतु ऐसी जगह अगर युद्ध करना पड़ जाए तो ध्यान रखें आपके आस-पास घास फूस तथा पानी और पीछे पेड़-पौधे तथा झाड़ियां अवश्य हों।

ली चुआन के अनुसार पेड़ पौधे वाले स्थान युद्ध के लिए अधिक उपयोगी एवं विश्वसनीय होते हैं। तथा तू यू के अनुसार पेड़-पौधे तथा झाड़ियां सेना की पीछे से रक्षा करने में भरपूर मदद करते हैं।
शुष्क एवं समतल प्रदेशों में सरल पहुंच वाली अवस्था स्थापित करें। ध्यान रखें उठती हुई जमीन आपके दाहिनी तथा पिछली ओर हो ताकि खतरा सामने की ओर हो और पीछे सुरक्षा।
सभी सेनाएं ऊंची तथा अधिक रोशनी वाली जगह पसंद करती हैं। निचले स्थान एक ओर जहां युद्ध की दृष्टि से असुविधाजनक होते हैं वहीं नम होने के कारण स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होते हैं। अतः जो नायक अपने सैनिकों के प्रति सचेत होते हैं वे सख्त जमीन पर डेरा डालने का आदेश देते हैं तथा अपनी सेना को रोगों से मुक्त रखकर अपनी जीत को मजबूत बनाते हैं।
छोटी पहाड़ी अथवा नदी के किनारे ऐसी जगह डेरा डालें जहां सूर्य की भरपूर रौशनी आती हो, पहाड़ी का ढलान आपके पीछे दाहिनी तरफ होना चाहिए। यह आपके सैनिकों के लिए न सिर्फ अच्छा रहेगा बल्कि आप उस क्षेत्र से प्राकृतिक लाभ भी उठा पाएंगे।
मूसलाधार बारिश के तुरंत बाद नदी पार न करें बल्कि उसके उफान के थमने तक प्रतीक्षा करें। जिस राज्य में खड़ी चट्टानें हों, जिनके बीच तीव्र गति से पानी बह रहा हो, गहरे गड्ढे तथा खाइयां हों, घने जंगल, दलदल तथा दर्रे हों, ऐसे स्थान को अविलम्ब छोड़ देना चाहिए। किन्तु ऐसी जगह शत्रु से सामना होने पर स्वयं को सुरक्षित रखते हुए उसे वहां खदेड़ने का प्रयास अवश्य करें।
यदि आपके कैम्प के निकट पहाड़ी क्षेत्र हो, ऐसे तालाब अथवा पोखर हों जिनेक चारों तरफ काफी मात्रा में घास फूस हो, घास-फूस से ढके गड्ढे अथवा घने जंगल हों, तो ऐसे स्थानों का भली-भांति
निरीक्षण कर लेना चाहिए क्योंकि ऐसी जगह शत्रु घात लगाकर बैठ सकता है अथवा वहां गुप्तचर भी छिपे हो सकते हैं।
जब शत्रु आपके बहुत निकट हो और शांत हो तो इसका यह अर्थ है कि उसे अपनी अवस्था (स्थिति) की ताकत पर पूरा विश्वास है।
यदि दूर रहकर वह आपको युद्ध करने के लिए विवश (बाध्य) करता है तो इसका अर्थ यह है कि वह युद्ध करने के लिए व्याकुल है। यदि उसने अपना डेरा ऐसे स्थान पर डाल रखा है जहां पर
आसानी से पहुंच सकते हैं तो इसका अर्थ है कि उसने आपको फंसाने के लिए जाल बिछाया हुआ है।
जंगल के पेड़ों में हलचल होने का अर्थ है कि दुश्मन आगे बढ़ रहा है।

प्रत्येक सेना दुश्मन पर नजर रखने के लिए ऊंचे स्थानों पर स्काउट (देखभाल करने वाले सिपाही) तैनात करती है। यदि स्काउट को जंगल के पेड़ों में जबरदस्त हलचल होती दिखाई देती है तो वह जान जाता है कि कूच करने के लिए दुश्मन द्वारा रास्ता तैयार किया जा रहा है।

घनी घास में अत्यधिक हलचल अथवा गतिविधियों के होने का अर्थ है कि दुश्मन हमें संदेह में डालना चाहता है।
पक्षियों का अचानक उड़ना इस बात का सूचक है कि शत्रु वहां छिपा बैठा है तथा अचानक हमला करने वाला है।

एक सीधी रेखा में उड़ते हुए पंछी अचानक अगर ऊपर की ओर उड़ान भरनी शुरू कर दें तो इसका अर्थ है दुश्मन वहां घात लगाए बैठा है।

जब धूल ऊंची उठे तो समझो कि दुश्मन के रथ आगे बढ़ रहे हैं, जब धूल ऊंची न हो और फैली हुई हो तो इसका अर्थ है पैदल सैनिक आगे बढ़ रहे हैं, धूल जब अलग-अलग दिशाओं में फैली हो तो इसका अर्थ है कि दुश्मन ने अपने सैनिकों के दल बनाकर उन्हें लकड़ियां लाने के लिए भेजा है, तथा यदि धूल के बादल (गुबार) एक सीमित जगह में उड़ें तो इसका मतलब है सेना डेरा डालने की तैयारी में है।

जब आप दुश्मन की सीमा में आगे बढ़ते हैं तो आपको उसकी हर गतिविधि पर नजर जमाए रखनी होगी। वह चाहे वहां धूल का उड़ना हो, पछियों का उड़ना हो, या फिर शस्त्र आदि का चमकना।

विनम्र स्वभाव तथा बढ़ती हुई तैयारियां दर्शाते हैं कि दुश्मन बढ़ने वाला है, आक्रामक भाषा (तीखी बोली) तथा तेजी से आगे बढ़ना दिखाते हैं कि वह पीछे हट जाएगा।

चेंग यू, ची राज्य के योद्धा 'टीन टैन' की एक घटना का वर्णन करता है— 279 ईसा पूर्व चीमो की रक्षा के लिए टीन टैन को येन की सेना (जिसका सेनापति 'ची-चीह' था) से युद्ध करना पड़ा था। टीन टैन ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “मुझे इस बात का डर है कि येन वाले अपने बंदियों के नाक-कान काटकर कहीं उन्हें हमारे विरुद्ध युद्ध करने के लिए न लगा दें।” दुश्मन को जब इस बात का पता चला तो उसने ऐसा ही किया। इस पर चीमो वासी भड़क गए, और यह सोचकर कि यदि हम दुश्मन के हाथ लग गए तो हमारा भी यही हाल होगा, वे जी जान से युद्ध की तैयारी में लग गए। टीन ने फिर कहा, "मुझे इस बात का डर है कि ये लोग शहर के बाहर स्थित हमारे पुरखों की कब्र खोदकर कहीं हमारे पूर्वजों का अपमान न करें।" दुश्मन के सैनिकों को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने सभी कब्रें खोदकर उनके अंदर स्थित शवों को जला दिया। चीमो वासी इस कुकृत्य को चुपचाप देखते रहे और येन की सेना से बदला लेने के लिए तड़ उठे, उनका क्रोध सब्र की सभी सीमाओं को पार कर चुका था। टीन टैन जानता था कि उसके सैनिक अब हर प्रकार के मुकाबले के लिए तैयार हैं परंतु उसने फिर भी तलवार नहीं उठाई। उसने खाने का सामान सैनिकों में बांट दिया और ताकतवर जवानों को दुश्मन की नज़र से दूर रहने का आदेश दिया, किले के आस-पास वृद्ध एवं कमजोर पुरुष व महिलाओं को तैनात किया गया। इसके बाद आत्मसमर्पण की शर्तें तय करने के लिए दुश्मन के खेमे में दूत भेजे गए, जिससे येन की सेना में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। टीन टैन ने बीस हजार चांदी के सिक्के येन के सेनापति के पास भिजवाए और प्रार्थना की कि शहर पर कब्जे के दौरान उसके सिपाही उनके घरों में न तो लूटपाट करें और न ही महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करें। ची चीह ने प्रसन्न होकर उसकी यह बात मान ली, किन्तु इस घटना के बाद ची चीह की सेना सुस्त, लापरवाह तथा बेफिक्र हो गई। उधर टीन टैन ने एक हजार बैल मंगवाए और उन पर लाल कपड़ा बंधवा दिया, साथ ही रंग लगाकर उन्हें ड्रेगन की तरह सजाया गया, उनके सींगों पर तेज धार वाले चाकू बांधे गए और पूंछ पर तेल में डूबा कपड़ा लपेटा गया। जब रात हुई तो बैलों की पूंछ में आग लगा दी गई। दर्द से बेहाल मवेशी दुश्मन के खेमे में जा घुसे, उनके पीछे पांच हजार चुनिंदा सैनिकों को युद्ध के लिए भेजा गया। बैलो ने खेमे में अफरा-तफरी मचा दी। रात में बैलों के शरीर पर बनी रंगीन धारियां अत्यंत भयावह नजर आ रही थीं। जो भी निकट आया बैलों के सींगों पर बंधे चाकुओं द्वारा बुरी तरह घायल हो गया। इसी बीच मुंह पर कपड़ा बांधे पांच हजार सैनिक दुश्मन पर टूट पड़े। उसी क्षण शहर में भयंकर आवाजें आने लगीं, जो लोग शहर में थे उन्होंने ढोल तथा बर्तनों को पीटकर ऐसा कोलाहल पैदा किया कि धरती और आकाश दोनों कांप गए। फलस्वरूप येन की सेना भाग खड़ी हुई, चीमो के सैनिकों ने बड़े ही उत्साह एवं वीरता के साथ उनका पीछा किया। इस युद्ध में ची-चीह भी मारा गया। इस युद्ध के बाद ची राज्य को उसके सत्तर गांव वापस मिल गए।

जब छोटे रथ पहले आकर युद्ध भूमि में अपना स्थान ग्रहण कर लें तो समझ लें कि शत्रु युद्ध की तैयारी कर रहा है।
संधि पत्र के बिना शांति प्रस्ताव षड्यंत्र को दर्शाता है। युद्ध क्षेत्र में जब अत्यधिक भागा दौड़ी शुरू हो जाए और सैनिक कतारों में खड़े होने आरंभ हो जाएं तो सावधान हो जाएं। जब कुछ लोग आगे बढ़ें और
कुछ पीछे हटें तो यह धोखे का संकेत है।
जब सैनिक अपने भालों का सहारा लेकर खड़े होने शुरू हो जाएं तो समझो कि वे भूखे हैं। जिन्हें पानी लाने भेजा गया है यदि पहले वे खुद पानी पीने लगें तो यह सेना के प्यासे होने का संकेत है। मौका मिलने पर भी यदि दुश्मन उसका फायदा नहीं उठाता तो इसका यह अर्थ है कि वह थका हुआ है।
यदि किसी स्थान पर पंछी इकट्ठे बैठे हुए हों तो इसका यह अर्थ है कि वह जगह किसी के कब्जे में नहीं है, और दुश्मन चुपचाप वहां से अपना सामान समेटकर वापस चला गया है।

रात्रि में रुदन (विलाप) निराशा का संकेत है।
डर के कारण मनुष्य व्याकुल हो जाता है इसलिए वह चिल्लाना आरंभ कर देता है ताकि उसका हौसला बना रहे।

शिविर में शोर शराबा, अव्यवस्था अथवा उपद्रव हो रहा हो तो इसका अर्थ है — सेनापति का नियंत्रण ढीला है। यदि बैनर, झण्डे तथा पताकाएं अस्त व्यस्त हों तो यह बगावत (राजद्रोह) के निकट होने का सूचक है। अधिकारी का नाराज होना सिपाहियों के सुस्त तथा कामचोर होने का संकेत है।

जब सेना अपने घोड़ों को दाना खिलाए और मवेशियों को मार कर खाए, भोजन पकाने वाले पात्र (बर्तन) आग पर न चढ़ाए, तो यह युद्ध के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि वे अंत तक युद्ध करने का निश्चय कर चुके हैं।

लिआंग के विद्रोही 'वांग कू' ने 'चेन सेंग' के शहर को घेर रखा था। तब 'हुआंग फू संग' (जो मुख्य सेनापति था) 'तुंग चो' को उसे पराजित करने के लिए भेजा गया। तुंग चो की इच्छा थी कि वांग कू के विरुद्ध त्वरित कार्यवाही की जाए, परंतु 'हुआंग फू' ने उसके सुझाव पर कोई ध्यान नहीं दिया। विद्रोही थक हार कर जब अपने हथियार फेंकने लगा तो हुआंग फू उन पर आक्रमण के लिए लपका, उस पर तुंग चो ने कहा “हथियार डाल चुके सैनिकों पर हमला करना युद्ध के नियमों के खिलाफ है।” हुआंग फू ने जवाब दिया, “किन्तु यह सिद्धांत यहां लागू नहीं होता, क्योंकि मैं जिस पर आक्रमण करने जा रहा हूँ वह एक थकी हुई और निकम्मी सेना है।” हुआंग फू ने तुंग चो के सहयोग के बिना वह युद्ध जीत लिया। इस युद्ध में वांग कू मारा गया।

जब सैनिक छोटे-छोटे समूहों में कानाफूसी करते हुए नजर आएं तो यह प्रदर्शित करता है कि अधिकारियों एवं सैनिकों के बीच अच्छे संबंध नहीं हैं।
आवश्यकता से अधिक पुरस्कार दिया जाना दर्शाता है कि संसाधन समाप्ति के कगार पर हैं, क्योंकि संसाधनों की समाप्ति पर विद्रोह (बगावत) के आसार बढ़ जाते हैं इसीलिए सैनिकों को खुश करने के लिए उन्हें अधिक पुरस्कार दिए जाते हैं। इसी तरह आवश्यकता से अधिक दण्ड के परिणाम स्वरूप अविश्वास एवं अनुशासनहीनता का जन्म होता है तथा अनुशासन की स्थापना के लिए अत्यधिक कठोरता की आवश्यकता होती है।
जोश के साथ शुरुआत करना और दुश्मन के सैनिकों की तादाद (संख्या) देखकर भयभीत हो जाना, खुफिया (गोपनीय) जानकारी के अभाव को दर्शाता है।
दूत जब शुभकामनाएं लेकर आए और खुशामद करे तो यह शत्रु द्वारा संधि की इच्छा को दर्शाता है, जिसका कारण या तो यह है कि उनकी लड़ने की क्षमता समाप्त हो चुकी है या फिर इसका कोई अन्य कारण भी हो सकता है।
यदि दुश्मन की सेना गुस्से में आपकी ओर बढ़े और अचानक रुक जाए, तथा बिना युद्ध किए काफी देर तक यथावत् खड़ी रहे तो ऐसे में आपको अधिक सतर्क एवं सावधान रहने की आवश्यकता है।
यदि हमारे सैनिकों की संख्या दुश्मन से कम हो तो भूलकर भी सीधा हमला न करें। ऐसी स्थिति में अपनी मौजूदा ताकतों पर ध्यान दें, शत्रु पर कड़ी नज़र रखें तथा लड़ाई का अतिरिक्त सामान इकट्ठा करें। वह जो पूर्ण सतर्कता एवं विवेक से काम नहीं लेता दुश्मन द्वारा पकड़ लिया जाता है।
विश्वास में लेने से पूर्व ही सैनिकों को दंडित किए जाने पर वे कभी भी आपके प्रति वफादार एवं आज्ञाकारी नहीं बनेंगे। अगर वे आपकी आज्ञा का पालन नहीं करते हैं तो आपके किसी काम के नहीं होंगे। यदि वे आपके साथ इतने घुल-मिल गए हैं कि गलतियाँ करने पर भी उन्हें दंडित नहीं किया जाता है तो भी व्यर्थ है। अतः सर्वप्रथम अपने सैनिकों की भावनाओं की कद्र करें, फिर कठोर अनुशासन के द्वारा उन्हें नियंत्रण में रखें। जीत का यही मूलमंत्र है।

'येन जू' (493 ई. पू.) ने 'सू-मा जेंग नू' के बारे में कहा, “अपनी लोक व्यवहार कुशलता के चलते दुश्मन तक उसका सम्मान करते थे।” अतः एक आदर्श सेनानायक वह होता है। जिसमें समाज को एकजुट करने की क्षमता होती है। उसके व्यवहार में कठोरता एवं विनम्रता दोनों गुणों का समान रूप से समावेश होता है।

प्रशिक्षण के दौरान सैनिकों को अनुशासन में रखकर अभ्यास कराया जाए तो पूरी सेना अनुशासन प्रिय एवं अनुशासित होगी, किन्तु यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो सेना में अनुशासन का अभाव होगा।
यदि एक सेनापति अपने सैनिकों में विश्वास रखते हुए यह चाहता है कि उसके प्रत्येक आदेश का पालन हो, तो इससे उन्हें (सेनापति तथा सैनिक दोनों को) पारस्परिक लाभ मिलता है।

शांति के समय में एक सेनापति को अपने सैनिकों में पूर्ण विश्वास प्रदर्शित करना चाहिए, साथ ही अपने पद की गरिमा भी बनाए रखनी चाहिए ताकि युद्ध के समय उसके आदेशों का सही प्रकार से पालन हो तथा अनुशासन भी कायम रहे। छोटी-मोटी त्रुटियों को नजर अंदाज किया जाना चाहिए तथा छोटी-मोटी शंकाओं पर डगमगाना नहीं चाहिए, आवश्यकता से अधिक प्रसन्न न हों, समय एवं परिस्थिति के अनुसार स्वयं को परिवर्तित करें— सेना में विश्वास जगाने का यही सबसे सही तरीका है।

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