युद्ध कला - (The Art of War) भाग 9 Praveen kumrawat द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

युद्ध कला - (The Art of War) भाग 9

7. चतुराई के द्वारा प्रबंधन

सून त्जु के अनुसार— युद्ध में सेनापति अपने राजा के आदेशों का पालन करता है। अतः उन दोनों के बीच विचारों की सहमति होना बहुत ही जरूरी है। सेनापति को चाहिए कि पड़ाव डालने से पूर्व अपनी सेना के सभी भागों को एक जगह एकत्र करके उनमें सामंजस्य एवं मित्रता स्थापित करे।

जब तक राज्य में एकसूत्रता नहीं होगी तब तक कोई युद्ध अभियान सफलतापूर्वक प्रारंभ नहीं किया जा सकता, तथा सेना में सामंजस्य के अभाव में युद्ध की तैयारी करना व्यर्थ होगा।

इसके बाद आता है चतुराई से काम लेना, जो सबसे अधिक कठिन कार्य है क्योंकि इसी के द्वारा शत्रु की चालों को निष्फल किया जाता है तथा दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदला जाता है।

शत्रु को ऐसा प्रतीत होना चाहिए कि आप उससे बहुत दूर हैं, फिर लम्बी दूरी को तेजी के साथ तय करके शत्रु पर समय से पूर्व ही धावा बोल दें। दुश्मन की आंखों में धूल झोंकें ताकि गलतफहमी में पड़कर वह दुर्भाग्य को स्वयं गले लगा ले। यद्यपि दुर्गम रास्तों को असाधारण गति से पार करना सुविधाजनक नहीं होगा, हो सकता है आपको प्राकृतिक विपदाओं का सामना भी करना पड़े परंतु आपने अगर इन विषमताओं से पार पा लिया तो दुश्मन के लिए आपको पराजित करना असंभव हो जाएगा। एल्प्स की घाटी में हुए दो ऐतिहासिक युद्ध इस बात के जीते जागते उदाहरण हैं— एक जिसमें हनीबॉल ने इटली को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था, तथा इसके दो हजार साल बाद हुआ दूसरा वह संग्राम जिसमें नेपोलियन ने मेरेंगो पर विजय प्राप्त की थी।

अतः दुश्मन को उसके मार्ग से भटकाकर, लम्बे तथा घुमावदार रास्ते से होते हुए देर से शुरू करके भी सबसे पहले लक्ष्य पर पहुंचना दर्शाता है कि आप विचलन कला के महारथी हैं।

‘टू मू’ 270 ईसा पूर्व घटित चाओ शी के उस मार्च का वर्णन करता है जिसमें उसने ‘ओ-यू’ नामक शहर को ‘ची-इन’ की सेना के कब्जे से छुड़ाने के लिए युद्ध किया था। चाओ के शासक ने सर्वप्रथम लीन-पो से इस बारे में उसकी राय मांगी तो लीन पो ने कहा ओ-यू शहर यहां से बहुत दूर है तथा वहां तक पहुंचने का रास्ता अत्यंत दुर्गम तथा ऊबड़-खाबड़ है। फिर राजा ने चाओ शी से इस विषय पर बातचीत की तो उसने भी लीन पो की राय से सहमति जताई। परंतु उसने कहा युद्ध के दौरान हमारी हालत ऐसी होगी जैसे एक बिल के भीतर आपस में लड़ते हुए दो चूहों की होती है किन्तु अंत में वही जीतेगा जो मौके का फायदा पहले उठा लेगा। इतना कहकर चाओ शी ने अपनी सेना के साथ राजधानी से कूच किया। लेकिन अभी वह तीस कोस ही चला होगा कि अचानक वह ठहर गया और उसने खाई खोदकर किलेबंदी करनी आरंभ कर दी। पूरे अट्ठाइस दिनों तक वह किलेबंदी को मजबूत करने में लगा रहा, साथ ही उसने इस बात का भी ध्यान रखा कि गुप्तचर (जासूस) इस बात की सूचना दुश्मन तक पहुंचाते रहें। इस घटना की खबर सुनकर ची-इन का सेनापति अत्यंत प्रसन्न हुआ, उसने यह निष्कर्ष निकाला कि विरोधियों द्वारा घेरा हुआ शहर हैन राज्य का हिस्सा है, चाओ राज्य से इसका कोई लेना-देना नहीं है। जैसे ही जासूस वहां से वापस गए चाओ शी ने असाधारण रफ्तार से आगे बढ़ना आरंभ कर दिया। दो दिन तथा एक रात का सफर तय करके वह अपनी मंजिल पर जा पहुंचा और इससे पहले कि दुश्मन को इस बात की भनक लगती चाओ शी उत्तरी पहाड़ी पर अपना अधिकार जमा चुका था। परिणामस्वरूप ची-इन की सेना को हार का सामना करना पड़ा और ओ यू शहर से नियंत्रण हटाकर उन्हें वापस लौटना पड़ा।

सेना का युक्तिपूर्ण प्रबंधन एक ओर जितना लाभकारी है वहीं दूसरी ओर अनुशासनहीनता उतनी ही अधिक हानिकारक भी है। यदि आप किसी अवसर का लाभ उठाने के लिए रसद तथा शस्त्रों से लैस अपनी पूरी सेना को कूच करने का आदेश देते हैं तो संभव है वहां देरी से पहुंचने के कारण अवसर आपके हाथ से निकल जाए, विपरीत इसके चुनिंदा सैनिकों की टुकड़ी (जो मात्र जरूरत भर सामान के साथ द्रुत गति से आगे बढ़ सके) को लेकर कूच करके समय रहते अवसर को काबू में किया जा सकता है।
मौके का फायदा उठाने के उद्देश्य से आप यदि अपने सैनिकों को कमर कसकर रात-दिन बिना रुके (सामान्य से दो गुनी रफ्तार से) सौ कोस चलने का आदेश देते हैं तो ऐसे में आपकी सेना के तीनों विभागों के नायक दुश्मन द्वारा पकड़ लिए जाएंगे। क्षमता से अधिक रफ्तार से दौड़ने के कारण ताकतवर सैनिक तो आगे निकल जाएंगे बाकी सभी पिछड़ जाएंगे, परिणामस्वरूप पूरी सेना का मात्र दसवां हिस्सा ही निर्धारित (गंतव्य) स्थान तक पहुंच पाएगा।

अर्थात् आपकी सेना के पास रास्ते के लिए पर्याप्त सामग्री हो अथवा न हो भूलकर भी योजना का लाभ उठाने के चक्कर में तेज रफ्तार के साथ सौ कोस के लिए कूच न करें। असाधारण रफ्तार से आगे बढ़ने की युक्ति को केवल थोड़ी दूरी की गतिविधियों तक ही सीमित रखें। स्टोनवाल जैक्सन के अनुसार, "जबरदस्ती मार्च के दौरान आने वाली बाधाएं, युद्ध के खतरों से कहीं अधिक दुःखदायी होती हैं।" जैक्सन अपने सैनिकों पर अनावश्यक रूप से दबाव नहीं डालता था। शत्रु को चौंकाने अथवा चकमा देने या फिर पराजय की स्थिति में पीछे हटने के लिए ही वह अपनी सेना को सभी नियमों को ताक पर रखकर तेजी से भागने का आदेश देता था।

दुश्मन की चाल को नाकाम करने के चक्कर में आप यदि तेजी से पचास कोस चलते हैं तो आप अपनी सेना के पहले हिस्से के नायक को गंवा देंगे और आपकी आधी सेना ही निर्धारित लक्ष्य तक पहुंच पाएगी, तथा तीस कोस चलने पर सेना का मात्र दो-तिहाई हिस्सा ही वहां पहुंच सकेगा।
जिस सेना के पास युद्ध सामग्री एवं रसद (खाद्य सामग्री) का अभाव होता है युद्ध में वह हार का सामना करती है, अतः मुख्यालय से सामग्री एवं रसद की निरंतर आपूर्ति अत्यावश्यक है।
जब तक पड़ोसी राज्य के व्यवहार से भली-भांति परिचित न हो। उन पर भरोसा न करें।
आक्रमण करने से पूर्व उस देश की भौगोलिक अवस्थाओं जैसे पहाड़, चट्टान, जंगल, दलदल आदि में निहित खतरों की जानकारी ले लेनी आवश्यक है।
अधिकतम लाभ की अपेक्षा से स्थानीय पथ-प्रदर्शक (गाइड) की सहायता लेना भी लाभकारी होता है।
युद्ध में सफलता पाने के लिए शत्रु को धोखा/चकमा देने की कला में प्रवीणता हासिल करें तथा लाभ की दशा में ही आगे बढ़ें।
सेना को एकजुट रखना है या फिर अलग-अलग टुकड़ियों में बांटकर, इस बात का फैसला निर्मित परिस्थिति के अनुसार करें। आपकी चाल आंधी के जैसी तथा एकता घने जंगल के समान हो। छापेमारी या लूटमार में अग्नि एवं दृढ़ता में पर्वत के समान बनें।

अतः दुश्मन जब आपको फंसाने अथवा स्थिति से डिगाने की कोशिश करे तो मजबूती के साथ डटे रहें।

आपकी योजनाएं रात्रि के अंधकार के समान गुप्त एवं आक्रमण बिजली की गति से भी तेज होने चाहिए।

तूफान आने पर जिस प्रकार आप अपने कान एवं बिजली कड़कने पर आंखें तुरंत बंद नहीं कर पाते हैं (क्योंकि दोनों ही असाधारण गति से आते हैं) उसी गति से दुश्मन पर धावा बोलें ताकि उसे बचाव का मौका तक न मिले।

युद्ध के पश्चात् दुश्मन से लूटे गए सामान को अपने सैनिकों में बांट दें, किसी नए परिक्षेत्र पर कब्जा जमाने के बाद उसके अधिकार भी सैनिकों को सौंप दें। कोई भी अगला कदम उठाने से पूर्व भली-भांति चिंतन-मनन करें फिर सावधानी पूर्वक आगे बढ़ें।
जो परिस्थितियों के अनुरूप स्वयं को परिवर्तित करने की कला को जानता है, युद्ध में वही विजयी होगा तथा इसी को चतुराई के द्वारा प्रबंधन करना कहा जाता है।
सैन्य प्रबंधन की एक पुस्तक के अनुसार— युद्ध के मैदान में बोले गए शब्द अधिक दूर तक सुनाई नहीं देते हैं अतः ढोल, नगाड़े, बिगुल तथा घंटों का इस्तेमाल किया जाता है, न ही ज्यादा दूर तक दिखाई देता है इसलिए ध्वजों की आवश्यकता होती है। घंटों, ढोलों, ध्वजों तथा पताकाओं की सहायता से सैनिकों के आंख-कान एक निश्चित स्थान पर केंद्रित किए जा सकते हैं।
जब सेना एक जुट होकर आगे बढ़ती है तो ऐसे में साहसी योद्धा का अधिक आगे बढ़ना तथा कायर का पीछे हटना असंभव होता है। बड़ी सेना को नियंत्रण में रखने का यही मूल मंत्र है।

इस संदर्भ में 'टू मू', 'वू ची' की एक कहानी सुनाता है। यह घटना लगभग 200 ई.पू. की है जब 'वू ची' 'ची-इन' राज्य के विरुद्ध युद्ध कर रहा था। युद्ध आरंभ होने से पहले ही उसका एक सैनिक जो बहुत ही बहादुर था, दुश्मन के खेमे में घुस गया और दो लोगों के सिर काटकर ले आया। वू ची को जब इस बात का पता चला तो उसने तुरंत उस सैनिक को मौत की सजा सुना दी। इस पर एक अधिकारी ने हिम्मत करके कहा, “वह बहुत ही अच्छा योद्धा था, अतः उसे मृत्युदण्ड नहीं देना चाहिए था।” वू ची ने उत्तर दिया, “मुझे भी विश्वास है कि वह एक अच्छा सिपाही था, परंतु मैंने उसे सजा इसलिए दी क्योंकि उसने बिना मेरे आदेश के यह कदम उठाया था।”

अतः जो आदेश के विरुद्ध आगे बढ़ते अथवा पीछे हटते हैं दोनों समान रूप से दोषी होते हैं।

अपने सैनिकों तक संकेत पहुंचाने के लिए रात में ढोल-नगाड़ों एवं मशालों का तथा दिन में बैनर और पताकाओं का प्रयोग करना सर्वोत्तम रहता है।
जब संपूर्ण सेना में क्रोध / उत्साह की लहर दौड़ रही हो तो उसे नियंत्रित करना असंभव होता है। युद्ध के मैदान में उतरते समय दुश्मन की फौज सर्वाधिक उत्साहित होती है, ऐसे में उन पर तुरंत धावा बोलकर अपनी शक्ति को व्यर्थ नष्ट न करें। विपरीत इसके पहले उनके क्रोध एवं उत्साह के ठण्डे होने की प्रतीक्षा करें और फिर आक्रमण करें। ऐसा करके दुश्मन को आसानी से नष्ट किया जा सकता है।

ली चुआन, साओ कुई (जो लू के सम्राट चुआंग का संरक्षक था) की एक रोचक घटना का वर्णन करता है जब ची ने लू पर हमला बोल दिया तो सम्राट चुआंग पहले नगाड़े की आवाज सुनते ही दुश्मन की ओर लपका। इस पर साओ कुई ने कहा "कृपया थोड़ी प्रतीक्षा करें।"
और युद्ध की ललकार के साथ जब नगाड़ा तीसरी बार बजा तब साओ ने हमले के लिए हरी झण्डी दिखाई। इस लड़ाई में ची राज्य की सेना बुरी तरह पराजित हुई। बाद में जब सम्राट चुआंग ने साओ से इसका कारण पूछा तो उसने जवाब दिया “युद्ध में सैनिकों का जोश (उत्साह) ही सबसे बड़ा हथियार होता है। तथा नगाड़े की प्रथम आवाज के समय यह अपने शिखर पर होता है, किन्तु दूसरे और तीसरे नगाड़े की आवाज के साथ-साथ यह जोश समाप्त होता चला जाता है। हमने उन पर हमला तब किया जब उनका जोश ठण्डा पड़ चुका था किन्तु उस समय हमारा उत्साह चरम पर था, जिसके चलते हमारी विजय हुई।”

समय रहते सूझ-बूझ के साथ तुरंत निर्णय लेने की क्षमता किसी सेनाध्यक्ष का सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुण होता है। इसी के द्वारा वह अपनी सेना में अनुशासन ला सकता है तथा सैनिकों में साहस एवं उत्साह का संचार करके उन्हें प्रेरित भी कर सकता है।

महान जनरल 'ला चिंग' (571-649 ई.) के अनुसार युद्ध में मात्र किलेबंदी तथा आक्रमण करना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि आपको शत्रु के मानसिक संतुलन पर प्रहार करना भी सीखना चाहिए।
एक सैनिक का जोश सुबह के समय सबसे अधिक होता है। चाहे उसने नाश्ता कर लिया हो। परंतु ट्रेबिया के युद्ध में रोम के सैनिकों को (उनमें जोश जगाए रखने के लिए) भूखा रखा जाता था, जबकि हॉनीबोल के सैनिक आराम से जलपान करके युद्ध करते थे।

दोपहर होते-होते सैनिकों का जोश कम होना शुरू हो जाता है, और शाम होते-होते उनकी इच्छा शिविर की ओर लौटने की होती है। अतः एक चतुर सेनापति उस समय युद्ध को टालता है जब उसकी सेना का उत्साह निम्न स्तर पर हो, तथा आक्रमण करता है जब दुश्मन की सेना का जोश ठण्डा हो और वे शिविर की ओर लौटने की तैयारी में हों। इसी को मनः स्थिति के अध्ययन की कला कहा जाता है।
धैर्य एवं अनुशासन के साथ दुश्मन की सेना में अव्यवस्था फैलने एवं हलचल मचने की प्रतीक्षा करें। इसी को कहते हैं स्वयं पर नियंत्रण बनाए रखना।
मंजिल के करीब होना जब दुश्मन लक्ष्य से काफी दूर हो, आराम से बैठकर उस (शत्रु) की प्रतीक्षा करना जब दुश्मन लक्ष्य पर पहुचने के लिए संघर्ष कर रहा हो, भरे पेट होना जबकि शत्रु भूखा हो, इसे कहा जाता है अपनी शक्ति को सहेज कर रखना अथवा ऊर्जा का व्यवस्थापन।
उस सेना पर हमला नहीं करना चाहिए जो पूर्ण रूप से सतर्क एवं व्यवस्थित हो, जो शांत एवं पूर्ण आत्मविश्वास के साथ खड़ी हो—इसे परिस्थिति के अध्ययन की कला कहा जाता है।
ऊंचाई पर बैठे अथवा पहाड़ से नीचे उतरते हुए शत्रु पर भूल कर भी वार न करें यह सेना का सिद्धांत है। उस दुश्मन का पीछा न करें जो भागने का दिखावा कर रहा हो, तथा उस शत्रु पर आक्रमण न करें जिसका जोश चरम सीमा पर हो। शत्रु की चाल में फंसने से स्वयं को बचाएं।
घर वापस लौट रही सेना पर हमला न करें। विशेषज्ञों की राय के मुताबिक घर लौटने के लिए व्याकुल सैनिक अपने मार्ग में आने वाली हर बाधा को दूर करने के लिए जान की बाजी तक लगा देता है। उससे निपटना तथा उसे परास्त करना बेहद कठिन होता है।

साओ-साओ की बहादुरी का एक किस्सा काफी प्रचलित है— 198 ई. में साओ ने जंग के मैदान में चेंग सिऊ को घेर रखा था, तब लिऊ पियाओ ने चेंगसिक की मदद के लिए अतिरिक्त सेना भेजी। अंततः साओ को अपनी सेना वहां से हटाने का निर्णय लेना पड़ा, परंतु उसने स्वयं को दो दुश्मनों के बीच घिरा हुआ पाया। दोनों दुश्मनों ने साओ के लौटने के सभी मार्ग अवरुद्ध कर रखे थे। इस अवस्था से निराश साओ ने रात तक रुकने का फैसला किया और एक सुरंग बनाकर उसमें अपनी सेना को छिपा दिया। मुंह अंधेरे अपना सामान लेकर साओ जब लौटने लगा तो चेंगसिऊ ने पीछे से उस पर धावा बोल दिया। क्रोधित साओ पीछे मुड़ा और उसने चेंगसिऊ की सेना पर सामने से तथा गुफा में छिपी हुई उसकी सेना ने उन पर पीछे से हमला कर दिया। चेंगसिक की सारी सेना मारी गई। बाद में साओ साओ ने कहा उन्होंने मेरी सेना को तब रोकना चाहा जब हम वापस लौट रहे थे। उन्होंने आक्रमण के लिए हमें विवश कर दिया था, परंतु मैं जानता था कि इस अवस्था से कैसे पार पाया जाता है।

जब आपने किसी सेना को घेर रखा हो तो उनके भागने के लिए एक रास्ता अवश्य छोड़ें ताकि दुश्मन पूरे जोश के साथ युद्ध में भाग न ले पाए।

इसका यह अर्थ नहीं कि दुश्मन को भागने का मौका दिया जाए। इसका उद्देश्य तो शत्रु को यह विश्वास दिलाना है कि उसके लिए सुरक्षा का एक मार्ग खुला है। ऐसा करके आप अपने दुश्मन को अत्यधिक निराश अथवा उत्साह के साथ युद्ध करने से रोक देते हैं। तू-मू के अनुसार इसके बाद आप शत्रु की सेना को कुचल सकते हैं।

रणभूमि में जब कोई चारों तरफ से घिर जाता है तो वह अपना सारा जोर खुद को बचाने में लगा देता है। अतः दीन-हीन, हताश-निराश दुश्मन के साथ ज्यादा जोर जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए।

होशी, फू-येनचिंग के जीवन की एक घटना के माध्यम से इसका अर्थ समझाता है। खितांस की विशाल सेना ने 945 ई. में फू-येनचिंग को रेगिस्तान में घेर लिया। पानी की कमी के चलते छोटी चीनी सेना जल्द ही मुसीबत में आ गई। खोदे गए कुएं सूखने लगे तथा सैनिक नर कंकाल जैसे दिखाई देने लगे। सैनिकों की संख्या तेजी से कम होने लगी। अंत में फू येन ने क्रोध से झल्लाकर कहा— हम हार चुके हैं, परंतु दुश्मन के हाथों बंदी बनाए जाने से अच्छा है हम अपने देश के लिए लड़ते हुए शहीद हो जाएं। तभी उत्तर पूर्व से एक बड़ा बवंडर आगे बढ़ता हुआ नजर आया, जिसके चलते चारों तरफ अंधेरा छाने लगा। ली शोऊ नाम के एक सैन्य अधिकारी ने कहा “संख्या में वे लोग हमसे अधिक हैं, किन्तु बवंडर के कारण उन्हें हमारी संख्या का अनुमान नहीं लग पाएगा, अतः जीतेगा वही जो पूरे जोश के साथ लड़ेगा।” परिणामस्वरूप फू येनचिंग ने अपनी घुड़सवार सेना की टुकड़ी के साथ दुश्मन पर धावा बोल दिया, तथा उन्हें बुरी तरह खदेड़ दिया।