युद्ध कला - (The Art of War) भाग 4 Praveen kumrawat द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • साथिया - 110

    हल्दी की रस्म के बाद मनु ने नील को कॉल लगाया। "सुनो ना यार व...

  • उजाले की ओर –संस्मरण

    स्नेहिल सुभोर प्रिय मित्रो कैसे हैं आप सब? ज़िंदगी इक सफ़र ह...

  • My Wife is Student ? - 9

    वो दोनो स्वाति के जाते ही आपस में जोड़ जोर से हसने लगती हैं!...

  • चलो मुस्कुरा दो अब

    1.अपनी अच्छाई पे तुम भरोसा रखना,बंद मत करना खुद को,किसी कमरे...

  • Aapke Aa Jaane Se - 2

    Episode 2अब तक साहिल दिल्ली से अपनी पढ़ाई खतम करके वापिस कोल...

श्रेणी
शेयर करे

युद्ध कला - (The Art of War) भाग 4

2. युद्ध की तैयारी

युद्ध से पहले हमें उसकी लागत का पता लगा लेना चाहिए। सून त्जु के अनुसार युद्ध संचालन में जहां द्रुत गति से दौड़ने वाले एक हजार रथ हों, सुरक्षा कवच पहने हुए एक लाख सैनिक हों, जिनके पास एक हजार कोस चलने तक की रसद हो, साथ ही छावनी तथा सरहद पर खर्च करने के लिए पर्याप्त धन हो, जिसके द्वारा आने-जाने वाले अतिथियों की आव भगत भी हो सके, छोटी-छोटी आवश्यक वस्तुएं जैसे गोंद, रंग-रोगन तथा रथों एवं सुरक्षा कवचों पर किया जाने वाला खर्च सब मिलाकर प्रतिदिन एक हजार चांदी के सिक्कों के बराबर आएगा। यह कीमत है एक लाख सैनिकों की सेना खड़ी करने की है।
जब लड़ाई असली हो और जीत पाने में देरी हो रही हो, तो हथियार अपनी धार खो बैठते हैं और सैनिकों का जोश ठण्डा पड़ जाता है। यह किसी किले को घेर कर अपनी ऊर्जा नष्ट करने के समान है। लम्बे चलने वाले युद्ध में राज्य के सभी संसाधन उस युद्ध का बोझ उठाने की क्षमता खो देते हैं। याद रखें जब हथियारों की धार मंद पड़ जाए, सैनिक अपना जोश खोने लगें, खजाना खाली हो जाए, ऐसे में आस-पास के राज्य आपकी अवस्था का लाभ उठाने की ताक में रहेंगे। ऐसी स्थिति के परिणामस्वरूप उत्पन्न नतीजों से चतुर से चतुर व्यक्ति तक का बच निकलना असंभव है।
अतः युद्ध में मुर्खतापूर्ण जल्दबाजी तो सुनने में आई है परंतु लम्बे समय तक युद्ध करते रहने का कोई औचित्य नहीं है। तथा संपूर्ण मानवता के इतिहास में एक भी ऐसा उदाहरण नहीं मिलेगा कि लम्बे युद्ध के चलते किसी राष्ट्र को तनिक भी लाभ मिला हो।
युद्ध में गति के महत्त्व को वही समझ सकता है जो लम्बी लड़ाई के दुष्परिणामों से परिचित हो।
कहने का अर्थ है युद्ध को शीघ्रता से समाप्त करके तुरंत लाभ प्राप्त करें। जो लम्बे अंतराल वाले युद्ध के गलत परिणामों को जानता हो वही युद्ध को लाभदायक तरीके से लड़ना जानेगा।

युद्ध में प्रवीण सैनिक रसद की कभी दोबारा मांग नहीं करता और न ही उसके आपूर्ति वाहन को दो से अधिक बार भरा जाता है। एक बार युद्ध की घोषणा हो जाने के बाद वह अपना बहुमूल्य समय आपूर्ति की प्रतीक्षा में बरबाद नहीं करता, न ही वह सेना को ताजा राशन पाने के लिए पीछे मोड़ता है। वह तो बिना अपना समय गंवाए दुश्मन की सीमा में प्रवेश कर जाता है क्योंकि उसके लिए समय के सदुपयोग का मतलब, हमेशा अपने दुश्मन से एक कदम आगे होना है। अभेद रणनीतियाँ बनाने में निपुण जूलियस सीजर तथा नेपोलियन बोनापार्ट तक ने समय के सदुपयोग पर विशेष जोर दिया है।
अपनी युद्ध सामग्री साथ लेकर चलें, परंतु नज़र दुश्मन के साधनों पर जमाए रहें। ऐसा करने से सेना के पास पर्याप्त खाद्य सामग्री सदैव बनी रहेगी।
काफी दूर तक सेना का भरण पोषण करने से राज्य की अर्थव्यवस्था गड़बड़ा जाती है तथा इसकी वसूली जनता से करने पर लोगों में तंगहाली आ जाती है। दूसरे शब्दों में सेना का खर्च राज्य में महंगाई बढ़ने का कारण बनता है, तथा बढ़ी हुई कीमतों के चलते लोगों की जमा पूंजी तो बरबाद होती ही है साथ ही उन्हें भारी भरकम कर (टैक्स) भी चुकाना पड़ता है। अंततः लोग अत्यधिक कठोर परिश्रम करने पर विवश हो जाते हैं। द्रव्य एवं ऊर्जा की इस हानि के कारण प्रजा को अत्यंत वेदना एवं पीड़ा का सामना करना पड़ता है।
ऐसे में टूटे रथ, थके व घायल घोड़ों, रक्षा कवच, नकाब, लोहे की टोपियों, तीर-कमान, भाले, ढाल एवं बैलगाड़ियों आदि का कुल खर्च राज्य के आधे खर्च के बराबर हो जाएगा।

नागरिक और सेना किसी भी राष्ट्र की अमूल्य धरोहर होते हैं। इनके महत्त्व को समझना तथा उन्हें सुरक्षा एवं भोजन की गारंटी देना सत्ता में बैठे लोगों का प्रथम कर्त्तव्य है।

बुद्धिमान सेनाध्यक्ष इस बात का विशेष ध्यान रखता है कि मौका मिलते ही दुश्मन के साधनों को उपयोग में लाया जाए क्योंकि खाद्य सामग्री से भरी दुश्मन की एक गाड़ी अपनी बीस गाड़ियों के बराबर होती है। यही नियम दुश्मन की अन्य चीजों पर समान रूप से लागू होता है।
दुश्मन को मारने के लिए हमें हमारे सैनिकों में आक्रोश को जाग्रत करना चाहिए। दुश्मन की पराजय में उन्हें अपनी विजय नज़र आनी चाहिए। दुश्मन को पराजित करने के लिए उन्हें आवश्यक रूप से पुरस्कृत किया जाना चाहिए। जब्त की गई दुश्मन की संपत्ति में से उन्हें ईनाम भी देना चाहिए, ताकि युद्ध में उनकी रुचि बनी रहे तथा हर सैनिक दुश्मन को हराने में अपना तन-मन लगा दे।
अतः जब शत्रु के दस या अधिक रथ जीत लिए जाएं तो उन सैनिकों को पुरस्कृत किया जाए जिन्होंने इन पर पहले कब्ज़ा किया हो। दुश्मन के रथों पर से उनके झण्डे उतारकर उन पर अपनी पताका अविलम्ब फहरा दें। साथ ही इन जीते गए रथों को अपने रथों के संग मिलाकर इनका उपयोग युद्ध में करना चाहिए तथा बंदी बनाए गए सैनिकों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। इसी को पराजित शत्रु का प्रयोग करके अपना बल एवं सामर्थ्य बढ़ाना कहा जाता है।
युद्ध को गंभीरता से लें। युद्ध में आपका मकसद विजय प्राप्ति होना चाहिए न कि लम्बी लड़ाई। एक सेनाध्यक्ष राष्ट्र के भाग्य का विधाता होता है। इसी व्यक्ति के निर्णय पर निर्भर करता है कि देश में शांति एवं सुरक्षा रहेगी अथवा देश पर खतरे के बादल मंडराएंगे।