युद्ध कला - (The Art of War) भाग 5 Praveen kumrawat द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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युद्ध कला - (The Art of War) भाग 5

3. छल पूर्वक आक्रमण

युद्ध करना और उसे जीतना कोई बड़ा काम नहीं है, बड़ा काम है बिना लड़े शत्रु के सारे अवरोध समाप्त कर देना। दुश्मन का सारा इलाका बिना तोड़-फोड़ सही सलामत अपने कब्जे में ले लेना व्यावहारिक युद्ध कला का सर्वोत्तम उदाहरण है। इसी क्रम में दुश्मन की पूरी सेना, पलटन, कम्पनी, बटालियन आदि को बर्बाद किए बिना पकड़ना उसे नष्ट करने से अधिक बेहतर है। इसके लिए जरूरी है दुश्मन की योजनाओं को समझना— कार्यान्वित होने से पहले ही उन्हें निष्फल कर देना, दुश्मन की सेना को एकत्र होने से बचाना। दुश्मन को उसके मित्रों से अलग-थलग रखना तथा युद्ध के मैदान में शत्रु पर धावा बोल देना।
किसी किले की घेराबंदी युद्ध में सबसे कठिन कार्य है। अतः जहां तक संभव हो किले को न घेरा जाए। इस काम के लिए कारतूसों से बचाने वाले चोगे, गतिमान शरणास्थल और हथियार आदि जुटाने में तीन महीने लग जाएंगे, तथा किले के बाहर मिट्टी और पत्थर जुटाकर टीले बनाने में तीन महीने और लग जाएंगे। इतनी लम्बी अवधि के बाद युद्ध के लिए अधीर जनरल जब अपने सैनिकों को आक्रमण करने का आदेश देगा तो उसकी एक तिहाई सेना मारी जाएगी और किला फिर भी फतह न होगा। किले की घेराबंदी के इतने अधिक विनाशकारी परिणाम होते हैं।
एक बुद्धिमान सेनानायक दुश्मन को बिना युद्ध किए पराजित करके अपने कब्जे में ले लेता है। वह उनके शहरों को बिना घेरे ही जीत लेता है। बिना लम्बी लड़ाई के वह उन्हें धराशाई कर देता है। अपनी सेना को एकजुट रखते हुए, बिना कोई नुकसान पहुंचाए वह दुश्मन के राज्यों पर विजय प्राप्त करता है।

युद्ध का नियम : यदि हमारी सेना दुश्मन की सेना से दस गुना
बड़ी है तो उसे घेरना, यदि पांच गुना बड़ी है तो हमला करना, यदि दो गुना बड़ी है तो अपनी सेना को दो हिस्सों में बांटना एक भाग दुश्मन पर सामने से तथा दूसरा पीछे से आक्रमण करेगा। यदि दुश्मन सामने से जवाब देता है तो उसे पीछे से रौंद डालें, और यदि वह पीछे से किए गए हमले का जवाब देता है तो उसे सामने से नष्ट करें। कहने का अर्थ यह है कि सेना के एक हिस्से का नियमित रूप से प्रयोग करें तथा दूसरे हिस्से का आपात स्थिति में।
यदि दोनों सेनाएं एक दूसरे के टक्कर की हैं तो धावा बोलना चाहिए, यदि वे संख्या में कम हैं तो हम उन्हें नजरअंदाज कर सकते हैं, परंतु शत्रु के मुकाबले अगर हमारी तादाद बहुत कम है और हर मोर्चे पर हम उनसे कमजोर हैं तो युद्ध भूमि छोड़ देना हमारे लिए सर्वोत्तम विकल्प होगा। लड़ाई की शुरुआत छोटी टुकड़ी से करें तथा समापन बड़ी सेना के साथ।
सेनापति राष्ट्र की ढाल होता है, यदि ढाल मजबूत है तो राज्य (शासन) व्यवस्था भी मजबूत होगी, परंतु यदि कमजोर है तो राज्य भी असुरक्षित एवं कमज़ोर होगा। शासक अथवा शासन व्यवस्था तीन प्रकार से सेना को नष्ट कर सकती है
आंख मूंद कर सेना को आगे बढ़ने या पीछे हटने का आदेश देकर। इसे कहते हैं सेना को पंगु बना देना।

किसी भी राज्य को बाहर से तथा सेना को अंदर से नियंत्रित नहीं किया जाना चाहिए। जब सेना दुश्मन के बहुत नजदीक हो तो सेनापति को सेना से थोड़ी दूरी पर होना चाहिए ताकि स्थिति, परिस्थिति एवं अवस्थाओं का मूल्यांकन सही प्रकार से करके सेना को उचित निर्देश दिए जा सकें।

सेना को उसी तरह चलाना जिस तरह से प्रशासन को चलाया जाता है। यह अनुचित है क्योंकि प्रशासन एवं सेना दोनों के हालात एवं तौर-तरीके अलग-अलग होते हैं। इससे सेना में अशांति पैदा हो जाएगी।

सैनिक कार्य क्षेत्र एवं प्रशासनिक कार्य क्षेत्र एक दूसरे से पूर्णतः भिन्न हैं। मानवता एवं न्याय वे सिद्धांत हैं जिनसे राज्य का प्रशासन चलाया जाता है। परंतु ये सिद्धांत सेना में काम नहीं आते हैं, वहां मौकापरस्ती तथा लचीलापन जरूरी होता है।

शासक द्वारा अपनी सेना पर दुर्भाग्य थोपने का तीसरा तरीका है सेना में अधिकारियों की योग्यता को नज़रअंदाज करके गलत स्थानों पर उनकी नियुक्तियाँ करना, जिसके चलते उनकी योग्यता का इस्तेमाल सही जगह नहीं हो पाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शासक सेना में परिस्थिति के अनुसार स्वयं को परिवर्तित कर लेने के सिद्धांत से परिचित नहीं होता, इससे जवानों का विश्वास तो टूटता ही है साथ ही उनका हौसला भी कमजोर पड़ जाता है।

सुमाचेन (100 ई. पू.) के अनुसार यदि कोई सेनापति परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को बदलने के सिद्धांत से अनभिज्ञ है तो उसे आधिकारिक पद नहीं सौंपा जाना चाहिए। काम लेने में निपुण व्यक्ति बुद्धिमान, साहसी, लालची और तो और मूर्ख व्यक्ति तक से भी काम करवा लेता है। बुद्धिमान अपनी बुद्धिमत्ता दिखाता है और अपनी योग्यता सिद्ध करता है, बहादुर व्यक्ति अपनी बहादुरी दिखाता है, लालची व्यक्ति सदैव अवसर की तलाश में रहता है तथा मूर्ख व्यक्ति मौत से नहीं डरता।

जब सेना अशांत हो तथा उसमें विश्वास की कमी हो तो आस-पास के राजाओं की तरफ से मुसीबत का आना निश्चित है। इससे सेना में अराजकता फैलती है तथा विजयश्री आपके हाथों से फिसलकर दूर चली जाती है। अतः जीत के लिए निम्न पांच बातों का पता होना हमारे लिए अति आवश्यक है।
1. वह जीतेगा जो जानता है कि कब युद्ध करना है और कब नहीं।

यदि वह युद्ध करने में सक्षम है तो आगे बढ़कर वह आक्रमण करेगा, यदि नहीं तो प्रतिरक्षात्मक होकर पीछे हट जाएगा। जो यह जानता है वह अवश्य ही विजयी होगा।

2. वह जीतेगा जो जानता है कि अपनी शक्ति का उपयोग कहाँ और कैसे करना है।

युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए सेनापति द्वारा सैनिकों की सही संख्या का अनुमान लगाने की योग्यता ही पर्याप्त नही है बल्कि युद्ध कला को जानकर एक छोटी सेना भी बड़ी सेना पर विजय प्राप्त कर सकती है। अपना ध्यान युद्ध में पैदा होने वाले अवसरों का लाभ उठाने पर जमाए रहें। यदि सेना शक्तिशाली है तो युद्ध भूमि में बने रहें अन्यथा युद्ध क्षेत्र में मुश्किलें खड़ी कर दें।

3. वह जीतेगा जिसकी सेना एक ही लक्ष्य से प्रेरित है।
4. वह जीतेगा जो पहले से तैयार होकर दुश्मन की सेना की प्रतिक्षा करता है।
5. वह जीतेगा जिसके पास पर्याप्त सैन्य क्षमता है और शासक उसके काम में दखल नहीं देता।

बड़े-बड़े आदेश देना सरकार का कार्य होता है परंतु सेना के लिए निर्णय लेने का अधिकार सेनापति के कार्य क्षेत्र में आता है। सेना के कामों में अनावश्यक दखलंदाजी से होने वाले दुष्परिणामों की व्याख्या करने की यहां आवश्यकता नहीं है। परंतु सभी जानते हैं कि नेपोलियन को मिली असाधारण सफलता का श्रेय इसी बात को जाता है कि उसकी फौज में किसी केंद्रीय सत्ता के द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया गया था।

यदि आप अपने दुश्मन को जानते हैं और स्वयं से भी अच्छी
तरह परिचित हैं तो आपको सौ बार आक्रमण करने से भी घबराने की आवश्यकता नहीं है। यदि आप स्वयं को तो जानते हैं लेकिन दुश्मन को नहींं। तो हर विजय के बाद आपको एक पराजय का सामना करना पड़ेगा। परंतु यदि आप न तो स्वयं के और न ही दुश्मन के विषय में जानते हैं तो हर युद्ध में आपकी पराजय निश्चित है।

यदि आप अपने दुश्मन को जानते हैं तो आप आक्रामक प्रणाली अपना सकते हैं, तथा स्वयं को जानने का लाभ यह है कि समय रहते आप प्रतिरक्षात्मक कदम उठा सकते हैं। आक्रमण प्रतिरक्षा का भेद है तथा प्रतिरक्षा आक्रमण से पूर्व की तैयारी।