मानव मन विचित्र होता है,इसको समझना सबके बस की बात नहीं ।
फ्रायड ने सबसे पहले मनोविश्लेषण को विज्ञान का रूप दिया था |वे मानव –मन के तीन स्तर मानते थे –चेतन,अर्धचेतन और अवचेतन |अवचेतन की खोज उनके मनोविश्लेषण का आधारभूत सिद्धान्त था |वे कहते थे कि मानव –मन का 3/4 भाग अवचेतन है |इसी अवचेतन के द्वारा मनुष्य के स्वभाव ,व्यवहार तथा विचारादि रूप पाते हैं |चेतन हमारे मन का वह भाग है जो सामाजिक जीवन में सक्रिय रहता है तथा जिसकी क्रियाओं का हमें ज्ञान रहता है |अवचेतन में होने वाली क्रियाओं का हमें ज्ञान नहीं होता |चेतन और अवचेतन दोनों का मध्यवर्ती स्तर अर्धचेतन है |हमारे विचार और प्रवृतियाँ अवचेतन से उत्पन्न होकर अर्धचेतन से होती हुईं चेतन तक पहुँच जाती हैं |समाज की दृष्टि से जो विचार तथा व्यवहार निंदनीय और शर्मनाक होते हैं ,उन्हें चेतन और अवचेतन के बीच में बैठा हुआ प्रहरी [censor]रोक देता है किन्तु वे दमित प्रवृतियाँ एकदम समाप्त नहीं हो जातीं |ये प्रवृतियाँ अपनी अभिव्यक्ति के लिए अवचेतन में गुप्त रूप से संघर्ष करती रहती हैं और स्वप्न में ,कला और साहित्य में प्रकट होकर अपना अस्तित्व सिद्ध करती हैं |आधुनिक मनोवैज्ञानिकों का ध्यान इन दमित प्रवृतियों के उदघाटन की ओर अधिक है |हमारा अवचेतन मन जिन दमित इच्छाओं का पुंज है ,वे मूलत: हमारी कामेच्छा का परिणाम होती हैं |फ्रायड ने इसको 'लिविडो' कहा है |हमारी सभी व्यक्तिगत तथा संष्टिगत क्रियाओं तथा चेष्टाओं में काम के सूक्ष्म अंतर्सूत्र विद्यमान रहते हैं |काम अथवा राग की माध्यम मनुष्य की सहज वृतियाँ होती हैं |फ्रायड के अनुसार इन सहज वृतियों का परितोष ही जीवन की सिद्धि है |यही फ्रायड का सिद्धान्त ‘प्लैजर प्रिंसिपल’ है वे इसी को जीवन का मूल सिद्धान्त मानते थे |यद्यपि बाद में उन्हें विवेक की महत्ता भी स्वीकार करनी पड़ी।
उमा की दमित प्रवृतियां उसकी कविताओं में प्रकट होकर अपना अस्तित्व सिद्ध कर रही थीं।उस पर नारीवादी होने का ठप्पा लग चुका था।उसकी कविताएं स्त्रियों में जागृति ला रही थीं,इसलिए वे पुरूष जो आज भी स्त्री को यथास्थिति में रखना चाहते थे,उसके घोर विरोधी हो गए थे।वे अपनी स्त्रियों को उसकी कविताओं को पढ़ने से रोकते थे।स्त्रियों की आवाज़ बनती जा रही उमा का सबसे बड़ा विरोधी तो उसका पति स्वतंत्र ही था।उमा अब उसकी बातों को महत्व ही नहीं देती थी।उन दोनों के बीच कटुता इतनी बढ़ चुकी थी कि उनमें पति पत्नी जैसा रिश्ता भी नहीं रहा था।बस अपनी बेटियों के कारण दोनों एक छत के नीचे रह रहे थे।उमा पर तिहरा दबाव था।पहला गृहस्थी का ,दूसरा अपनी नौकरी का और तीसरा दबाव पुरुष बर्चस्व वाले साहित्यिक समाज में अपनी जगह बनाने का।तीनों जगह अकारण ही उसके कई विरोधी पैदा हो गए थे।जो न सिर्फ उसकी आलोचना करते थे बल्कि उसकी जगह छीनने का यत्न भी करते थे। फिर भी वह लड़ रही थी।
अमृता को अपनी उमा मामी से विशेष लगाव था।वह अक्सर उससे मिलने आती रहती थी।कामिनी के बाद उमा ही ऐसी थी,जो उससे सच्चा प्यार करती थी।उमा की आर्थिक स्थिति वह जानती थी और उसकी मदद भी करना चाहती थी।उसका वश चलता तो उमा को अपने पास रख लेती,पर उसे अगले महीने ही लंदन जाना था।फिर कई वर्षों बाद अपनी शिक्षा पूरी करके ही उसे लौटना था। उसने सोच लिया था कि लंदन से लौटकर वह जरूर इस दिशा में प्रयास करेगी।
उसने समर अंकल से उमा के बारे में बात की थी कि किस तरह उनकी सहायता की जाए।वह जानती थी कि उमा स्वाभिमानिनी है।वह उसकी सहायता यूँ ही स्वीकार नहीं करेगी।समर ने उसे सुझाव दिया कि वह उसकी बेटियों को बोर्डिंग स्कूल में भेजने की दिशा में बात करे। उमा को 'कामिनी प्राइवेट लिमिटेड' में भी कोई पोस्ट दी जा सकती है।वह उसकी अनुपस्थिति में उसके बंगले में रह भी सकती है।
पर समर उमा से ये सब बातें नहीं कर सकता था।अमृता को ही इस दिशा में पहल करनी होगी।अमृता को समर का यह सुझाव अच्छा लगा।वह शाम को बच्चियों के लिए गिफ्ट लेकर उमा के पास पहुंच गई।
उसने अपनी नानी नन्दा देवी को नमस्कार किया तो उन्होंने अनमने भाव से उसे आशीष दिया। मामा स्वतंत्र तो नमस्ते का जवाब दिए बिना ही घर से बाहर चले गए।रूचि और सुरुचि ने जब उसे देखा तो दीदी ...दीदी कहती हुई आकर उससे लिपट गईं।अमृता ने उन्हें प्यार किया और उनको गिफ़्ट दिया तो वे खुशी से नाचने लगीं।तभी उमा मुस्कुराती हुई उसके लिए कॉफी लेकर आई।
"मामी मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी है।"
अमृता ने मुस्कुराते हुए कहा।
"कहो न बेटा,क्या कहना है?"
उमा सोफ़े पर उसके पास ही बैठ गई।
"मामी,आप तो जानती है अगले ही महीने में मुझे लंदन जाना है फिर कई वर्ष बाद ही लौटूँगी....।"अमृता ने भूमिका बाँधी।
"हाँ,पता है ।इसमें कोई समस्या तो नहीं।"
उमा चिंतित स्वर में बोली।
"नहीं मामी,समर अंकल के होते मुझे कोई समस्या हो सकती है क्या?बस एक बात की चिंता है।आपको पता है न मम्मी की कम्पनी के बारे में।मम्मी तो रही नहीं।अब समर अंकल अकेले पड़ गए हैं।उन्हें किसी सहयोगी की जरूरत है।सहयोगी भी ऐसा जो ईमानदार,परिश्रमी और विश्वस्त हो।जो कम्पनी को अपना समझकर काम करे।"
अमृता ने बात आगे बढ़ाई।
"तो विज्ञप्ति निकाल दें।सेलरी अच्छी होगी तो बहुत सारे उम्मीदवार आएंगे।"
उमा ने सलाह दी।
"सेलरी तो अच्छी ही है,पर उम्मीदवार का अच्छा होना जरूरी है न।"
अमृता एक कदम और आगे बढ़ी।
"मुझसे क्या चाहती हो?"
उमा ने बात को समझने की कोशिश की।
"मैं चाहती हूँ कि आप ये पद संभालें।"
अमृता अपने मुद्दे पर आ गई।
"म ... म ..मैं ... कैसे?"
उमा आश्चर्य से हकलाने लगी।
"क्यों,आप पढ़ी -लिखी हैं।इस पद के सर्वथा योग्य हैं।"
अमृता ने दृढ़ता से कहा।
"तुम्हारे मामा और नानी नहीं मानेंगे।क्यों नहीं अपने मामा को ...।"
उमा ने एतराज करने की कोशिश की।
"क्या आपको बताना पड़ेगा कि उन्हें क्यों नहीं?"
अमृता ने बात साफ की।
"समझती हूँ पर मेरी नौकरी ...।"
उमा ने कमजोर तर्क दिया।
"15 हजार की नौकरी का क्या फायदा।कम्पनी आपको हर माह पचास हजार देगी।साथ में आवास और वाहन शुल्क अलग।"
अमृता ने बात को और स्पष्ट किया।
"मगर मेरी बच्चियां.....।"
उमा ने आखिरी एतराज सामने रखा।
"उन्हें उसी बोर्डिंग स्कूल में डाल सकते हैं,जहाँ मैं पढ़ती थी।
मेरे लंदन से आने के बाद आप मेरे साथ मेरे बंगले पर ही रहेंगी।आपको मेरी माँ की जगह लेनी होगी मामी।"
अमृता ने उमा के उस एतराज का भी समाधान कर दिया।
अमृता की उम्र अभी पन्द्रह की है पर बुद्धि बहुत ही परिपक्व है।वह जानती है कि उमा को किस तरह अपनी तरफ मोड़ा जा सकता है।
"मुझे सोचने का थोड़ा मौका दो।तुम जानती हो कि इतना बड़ा फैसला लेना मेरे लिए आसान नहीं है।वो भी तब ,जब पति और सास दोनों मेरे खिलाफ़ हैं।"
उमा ने अपनी बात स्पष्ट कर दी।