एक रूह की आत्मकथा - 7 Ranjana Jaiswal द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

एक रूह की आत्मकथा - 7

-देखो,यूँ चुपचाप घर में बैठे रहने से कुछ नहीं होगा।अब तुम स्वस्थ हो और गर्भ भी अभी ज्यादा उभार पर नहीं है।तुम विज्ञापनों में काम कर सकती हो।उसमें ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी।ज्यादा समय काम नहीं करोगी तो दो नुकसान होंगे ।पहला कि लोग तुम्हें भूल जाएंगे दूसरा कि तुम्हें खुद आलस आ जाएगा।
उस दिन समर ने आते ही मुझे समझाया। उसकी बात सच थी।मैं खुद घर में बैठकर बोर हो गई थी।डॉक्टर ने भी मुझे काम करते रहने की सलाह दी थी।इससे दो फायदे थे ।पहला घर से बाहर निकलकर खुद को साबित करने का मौका ,दूसरा डिप्रेशन से बचे रहने का।
'ठीक है तुम विज्ञापन दिलवाओ ।मैं काम करूंगी।' मैंने मुस्कुराकर समर की ओर देखा।वह निहाल हो गया।
-मैं चलता हूँ आज मुझे बहुत काम है।
अचानक समर उठ खड़ा हुआ।
'अरे, चाय तो पीकर जाओ।'
-नहीं फिर कभी।
समर ने अपना वादा निभाया ।एक महीने के भीतर ही मुझे कई विज्ञापनों का ऑफर मिला।मैं खुश थी पर ज्यों ही मेरी सास निर्मलादेवी को मेरे काम पर जाने की बात का पता चला वे दौड़ी हुई मेरे घर आईं।
'ये क्या सुन रही हूँ मैं,तुम विज्ञापनों में काम करोगी,वह भी इस अवस्था में।'
-माँ ,विज्ञापनों में हर उम्र और हर अवस्था के लोगों की जरूरत होती है।आप चिंता न करें ।
'चिंता क्यों न करूँ?मेरे बेटे का अंश तुम्हारी कोख में है।ज्यादा कूद -काद करोगी तो उसे नुकसान होगा।'
-ऐसा कुछ नहीं होगा माँ,मैं अपना और उसका पूरा ध्यान रखूँगी।
माँ समझ गईं कि मैं अपना फैसला नहीं बदलूँगी,तो उनका मुँह बन गया।अपने घर जाकर उन्होंने मेरी बहन के सामने समर को जी भरकर गालियाँ दीं।उन्हें पता चल गया था कि मेरे पुनरूत्थान के पीछे समर का बड़ा हाथ है।
मैं व्यस्त हो गई।सुबह की गई देर रात को घर आती।ज्यादातर तो समर के ही साथ आना -जाना होता पर जब समर अपनी शूटिग पर होता तो अपने विश्वस्त ड्राइवर के साथ।
मुझे अब अच्छा लगने लगा था।यूं कहूँ कि जीवन जीने लगी थी।मेरे पास काम था ...पैसा था ...लोकप्रियता थी और सबसे बड़ी बात कि मेरे गर्भ में रौनक का अंश पल रहा था।साथी की कमी समर पूरी ही कर देता था। फिर भी जब मैं रात को बिस्तर पर लेटती रौनक की कमी महसूस करती। कई बार तो लगता कि वह मेरी बगल में ही लेटा हुआ मुझसे प्यार कर रहा है।मैं आंखें खोलकर उसे देखना चाहती तो मेरी आँखें ही नहीं खुलतीं। जब खुलतीं तो रौनक वहां नहीं होता पर आश्चर्य कि वह जगह गर्म होती ,जहां वह लेटा होता ।
तो क्या रौनक की रूह उसके इर्द -गिर्द ही रहती है?सयाने लोग कहते भी हैं कि ज्यादा प्यार मृत्यु के बाद भी आत्मा को मुक्त नहीं होने देता।आत्मा प्रिय व्यक्ति के आस -पास ही बनी रहती है। यह क्रम तब तक चलता है,जब तक कि वह प्रिय व्यक्ति किसी और से उसी शिद्दत से नहीं जुड़ जाता।उसके अन्यत्र जुड़ते ही आत्मा का मोह -भंग हो जाता है और वह वापस चली जाती है।
पता नहीं सच क्या है?पर मैं रौनक को नहीं भूल सकती।समर रौनक की तरह ही मेरा ख्याल रखता है पर वह रौनक की जगह नहीं ले पाता।समर से शारीरिक सामिप्य की बात मेरी कल्पना में भी नहीं आती।समर मेरा अच्छा दोस्त है।यूं कहें कि दोस्त से कुछ ज्यादा है पर वह मेरा प्यार नहीं है।वह मेरा रौनक नहीं है।समर से रिश्ते को मैं कोई नाम नहीं दे सकती।
समय तेजी से बीत रहा था।ज्यों ही गर्भ सात महीने का हुआ मैंने अपने सारे तय विज्ञापन पूरे कर लिए ।अब मुझे आराम की जरूरत थी।अब कम से कम छह महीने मुझे काम नहीं करना था।
समर इन छह महीनों में मेरे और करीब होता गया।वह मेरा बहुत ध्यान रखता था।मेरी सेहत और सौंदर्य को लेकर चिंतित रहता था।वह डॉक्टर से सलाह लेता रहता था कि मेरे पेट पर गर्भ के स्थायी निशान न पड़ जाएं या मेरा शरीर बेडौल न हो जाए।मैं थोड़ी भी लापरवाही बरतती तो मुझे हक से डाँटता।वह जानता था कि मेरे शरीर की सुंदरता पर ही मेरा कैरियर टिका है।
बच्चा मेरी ज़िद थी तो मुझे पहले जैसा ही रखना समर की ज़िद।वह मेरी ज़िद पूरी कर रहा था तो मुझे उसकी ज़िद पूरी करनी ही थी।प्रत्यक्ष रूप से तो इसमें उसका कोई लाभ नहीं था।वह जाने क्यों मेरे लिए इतना कुछ कर रहा था?उसके इस अहसान को मेरी सासु माँ राजेश्वरी देवी और मेरी अपनी माँ भी संदेह की नजरों से देख रहे थे।
मेरी माँ से तो कई बार मेरी इस विषय पर बहस भी हो चुकी थी।
--कोई मर्द किसी औरत की बिना किसी स्वार्थ के मदद नहीं करता।वह किसी न किसी दिन तुमसे जरूर लाभ उठाएगा।हो सकता है कि उठा भी रहा हो।
"माँ,तुम भी न जाने क्या -क्या अनाप -शनाप सोचती रहती हो।समर उन मर्दों में नहीं है।उसे कमी ही क्या है?मशहूर है ...हैंडसम है ...सफ़ल है....धन-धान्य से भरपूर।मेरे जैसी कई कामिनियों से घिरा रहता है।"
--तुम नहीं समझ रही तो क्या बताऊँ?हो सकता है तुम्हें विज्ञापन दिलाने से उसको मोटा कमीशन मिलता हो।हो सकता है कि कभी तुम्हें कुछ खिला- पिलाकर तुम्हारी जायजाद पर कब्ज़ा जमा ले।हो सकता है कि किसी से तुम्हारा सौदा ही कर दे।कम से कम इतना तो कर ही सकता है कि जीवन भर के लिए तुम्हें रखैल बनाकर रख ले।
"माँ.......!चुप रहो.....।"मैं जोर से चीखी तो माँ सहम गई।
माँ के जाने के बाद मैं सोच में पड़ गई कि क्या माँ की बात में कोई सच्चाई हो सकती है?माँ ने दुनिया देखी है।देश -दुनिया की खबरें पढ़ती रहती है,इसलिए उसे शक करने की आदत पड़ गई है।मैं तो हमेशा अपनी दुनिया में ही मगन रही।सुरक्षा -कवच की तरह रौनक मेरे साथ रहा और उसके बाद समर।अब मैं समर से कैसे सावधान रहूँ?अगर समर को यह पता चल गया कि मैं उसके बारे में कुछ ऐसा -वैसा सोचती हूँ तो कहीं वह भी मुझसे दूर न चला जाएगा।उसने अब तक मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं किया है कि मैं उस पर शक कर सकूं।कभी -कभार हल्का -फुल्का मजाक कर लेता है बस ।ये सच है कि मैं उसकी आँखों में अपने लिए प्रशंसा और चाहत के भाव देखती हूँ।कभी -कभार मुग्ध भाव से वह देर तक मुझे ताकता रहता है पर उसने कभी मुझे गलत भाव से छूने का प्रयास नहीं किया।
मैं यह तो मान सकती है कि समर मुझे प्यार करता है पर यह नहीं मान सकती कि वह मेरा इस्तेमाल करता है या करना चाहता है।कम से कम अभी तक तो मुझे ऐसा नहीं लगा।भविष्य का नहीं जानती।इंसान बदल भी जाता है-सयाने कहते हैं ।