श्राप एक रहस्य - 27 Deva Sonkar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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श्राप एक रहस्य - 27

"तुम्हें कहा मिली ये गुड़िया...?"
लिली ने चौंककर थोड़ी ऊंची आवाज़ में पूछा था ये सवाल।

सवाल सुनकर प्राची थोड़ी घबरा गयी थी। किसी तरह शब्दों को जोड़कर उसने कहा।

"देखिए मेरी बात पर शायद आपलोग यक़ीन नहीं कर पाएंगे, ये गुड़िया मेरी बड़ी बहन की है,उसने अपने मरने के बाद इसे तैयार किया था। इस गुड़िया ने ही कभी मेरी जान बचाई थी। लेकिन अब शायद इसकी जरूरत मेरी बहन को है। ....देखिए मैं भी भूत प्रेतों पर यक़ीन नहीं करती,लेकिन ये सब मेरी मां ने मुझे बताया है। उन्होंने ही इस गुड़िया को मुझे दिया था, जब मैं बहुत छोटी थी। उन्होंने कहा था ये गुड़िया हमेशा मेरा ख़्याल रखेगी। फ़िर बाद में इसे लेकर मैं होस्टल चली गयी थी। मेरी माँ भी भूल गयी थी कि ये गुड़िया मेरे पास है। इसलिये तो जैसे ही में होस्टल से वापस आयी और मेरे सामानों में जब मां को ये गुड़िया दिखी तो उन्होंने तुरंत मुझे यहां भेज दिया, उनकी तबियत थोड़ी ख़राब है इस वक़्त इसलिए वे ख़ुद नहीं आ पाई। मैं बस इसे इस घर के भीतर रखकर चली जाऊंगी।" ( उसने एक आपराधिक भाव से कहा। )

"और अपनी बहन से नहीं मिलोगी..?" लिली ने मुस्कुराते हुए प्राची से पूछा।

"जी मैं समझी नहीं".....

"चलो भीतर" ( फ़िर सभी वापस उस खंडहरनुमा घर के भीतर चल गए।

दूसरी तरफ़ :- सुबह की पहली किरण के साथ ही अखिलेश बर्मन अपने वीले से निकल गए थे। किसी को कोई ख़बर नहीं थी कि वे कहाँ गए है....उन्होंने अपने साथ किसी ड्राइवर को भी नहीं लिया था। उन्होंने कल रात भी सोमनाथ चट्टोपाध्याय जी से कोई बात नहीं कि थी और आज सुबह भी उनका यू बग़ैर कुछ बोलें ही चले जाना सोमनाथ चट्टोपाध्याय को अजीब तो लगा ही था, और अब तो प्रज्ञा के बदौलत वे इन सब की वजह भी जान गए थे।

वो कोई पुराना ब्रिज था। वहां किसी ज़माने में एक लंबी चौड़ी नदी हुआ करती होगी, तभी तो वहां पुल बनाया गया था। लेकिन अब कोई नदी नहीं थी। बस बचा था एक टूटा हुआ पुल। अखिलेश बर्मन वहां तीन लोगों के साथ थे, उनमें से एक उनका पर्सनल वक़ील था दूसरा चंदन मित्तल कम्पनी के मैनेजर थे और तीसरा उनके कंपनी का लॉयर था।

चारो में ज़ोरदार बहस चल रही थी। दरसल अपने नाम पर सारी दौलत चंदन मित्तल से मौत के ठीक पहले लिखवाने के बाद अखिलेश बर्मन अब उनके मैनेजर से मिलकर सबकुछ जल्द ही ख़ुद हड़पना चाहते थे। वे चाहते थे ये सारे कागज़ात उनके मैनेजर ही लोगों के सामने ले आये ताकि उनपर किसी का शक नहीं जाए। इसके लिए वे मैनेजर को एक अच्छी रकम देने को तैयार थे....लेकिन :-

उन्हें तो झटका तब लगा जब चंदन मित्तल के मैनेजर ने अखिलेश जी को उनके कंपनी के वकील से बात करने की सलाह दी। दरसल जिन कागज़ातों के बलबूते उन्हें लग रहा था कि वे चंदन मित्तल की सारी प्रोपटी को हथिया सकते है,उनका अब कोई मोल नही था। चंदन मित्तल ने काफ़ी पहले ही अपना वसीयतनामा तैयार कर लिया था। अपनी आधी दौलत उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों में बांटा था, वहीं आधी दौलत उन्होंने एक क्रिश्चियन स्कूल को डोनेट किया था बतौर ट्रस्ट में उनका नाम उस स्कूल के लीडरबोर्ड में सबसे पहले था। ये यहीं स्कूल था जिसमें उन्होंने कभी बग़ैर फ़ीस दिए पढ़ाई की थी, वो स्कूल उनके लिए उदारता का मिसाल था। ये तो हुई पहली बात लेकिन अखिलेश बर्मन के जिन कागजों में उन्होंने अपना सिग्नेचर दिया था वो भी नकली था। हड़बड़ाहट में वे देख ही नहीं पाए थे चंदन मित्तल ने अपने नाम का सिग्नेचर किया ही नहीं था। कह सकते है उन्होंने बस कलम चलाई थी। शायद इसलिए उन्होंने कोई विरोध नही किया था।

जीती हुई बाजी हार गए थे अखिलेश बर्मन। इसलिए तो बेवजह ही बौखला गए थे वे मित्तल के मैनेजर और वकील पर। उन्हें लग रहा था वे दोनों मिलकर कोई जादू करें और बस वो सब उनका हो जाएं, जिसके लिए उन्होंने मित्तल को मौत के घाट उतारा था। लेकिन उनके प्रोपटी के आधे कागज़ इस वक़्त भी स्कूल में ही थे। बहस काफ़ी देर तक चलती रही बाद में अखिलेश बर्मन के वकील ही उन्हें किसी तरह समझाकर वहां से ले गए।

लिली,प्राची और सोमनाथ बर्मन अब एक साथ थे। वे तीनों सकुन्तला जी से मिलने उनके घर आये हुए थे। वे इन दिनों अपने माँ के घर रह रही थी। यहां भी ज्यादातर लोग उन्हें पागल ही समझते है। ख़ैर वो एक बड़ा सफ़ेद दीवारों वाला, साफ़ सुथरा कमरा था। कमरे में जरूरत से कम लाइट्स थे, कह सकते है कमरे में रौशनी से अधिक अंधेरा पसरा हुआ था। फ़िर भी एक कोने में बैठी उन्हें वो दिखी। वो सकुन्तला जी ही थी जो अब तक अपने बच्चे के मौत, और पति की दग़ाबाज़ी से बाहर निकल नहीं पाई थी। उन्होंने अपनी आँखों से देखा था अखिलेश बर्मन ने कुणाल को सीढियों से निचे धक्का दिया था। लेकिन ये बात कोई नहीं यक़ीन करता, उल्टा सब उन्हें ही पागल बनाने पर तुले हुए है।

उनके घर का माहौल भी उनके प्रति थोड़ा रूखा ही था, मतलब वहां भी लोगों को लग रहा था कि उन्होंने अपने पागलपन की वजह से ही अपने बच्चे को खोया था और अब वे अपने पति को भी मारना चाहती है। घर का एक नौकर सोमनाथ चट्टोपाध्याय,लिली, और प्राची को सकुन्तला जी के कमरे तक छोड़ने गया था और जब उसने उस अंधेरे कमरे में एक बड़ी लाइट जलाई तो वो चौक पड़ी। उनके हाथों में नन्हें कुणाल की एक जोड़ी कपडा था जो कि उनके ही आंसुओ से भीगा हुआ था। उन्होंने अपने कमरे में तीन तीन अनजान लोगो को देखकर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। जैसे उनके भीतर की सारी संवेदनाएं ख़त्म हो गयी है, जैसे उनकी चेतना शून्य में कहीं खो गयी है।

लेकिन वे सोमनाथ चट्टोपाध्याय थे। वे सिर्फ़ तारीखें ही नही लोगों का जटिल दिमाग़ भी पढ़ सकते थे। अपनी बातों से वो लोगों के हृदय को बदल सकते थे। और ऐसा ही हुआ, उस कमरे से बाहर आते वक्त सकुन्तला जी के चेहरे में गज़ब का तेज़ था। जैसे उन्हें जीने का मक़सद मिल गया था। हां अपने बच्चे को तो खो दिया लेकिन वो किसी और को अब मरने नहीं दे सकती।

क्रमश :-Deva sonkar