The Author Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ फॉलो Current Read अंधेरा कोना - 20 - काला एहसास By Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ हिंदी डरावनी कहानी Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books कॉर्पोरेट जीवन: संघर्ष और समाधान - भाग 1 पात्र: परिचयसुबह का समय था, और एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी की... इंटरनेट वाला लव - 90 कर ये भाई आ गया में अब हैपी ना. नमस्ते पंडित जी. कैसे है आप... नज़रिया “माँ किधर जा रही हो” 38 साल के युवा ने अपनी 60 वर्षीय वृद्ध... मनस्वी - भाग 1 पुरोवाक्'मनस्वी' एक शोकगाथा है एक करुण उपन्यासिका (E... गोमती, तुम बहती रहना - 6 ज़िंदगी क्या है ? पानी का बुलबुला ?लेखक द्वा... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ द्वारा हिंदी डरावनी कहानी कुल प्रकरण : 20 शेयर करे अंधेरा कोना - 20 - काला एहसास (1) 1.1k 4.6k 1 मैं कार्तिक, मैं गुजरात के बड़ौदा शहर का रहने वाला हू लेकिन मुजे सिंहारपुर शहर मे कंप्युटर साइंटिस्ट्स की जॉब मिली थी जो बड़ौदा से 300 km दूर था, मेरी सैलरी बहुत अच्छी थी, और मुजे वहाँ अब एक अच्छा घर ढूंढना था l मेरी ऑफिस से कुछ दूरी पर एक छोटी सी कॉलोनी थी जिसमें मुजे कम किराए पर एक अच्छा सा मकान मिल गया था, लेकिन ये मकानो की पूरी कॉलोनी खाली थी, मेरे मकान मालिक का नाम मनोज था उसने मुजे चाबी भी दे दी थी l सिर्फ हम दो ही एसे घर थे जिनमे लोग रह रहे हो, मेरे घर से कुछ दूरी पर एक घर था जिसमें एक आदमी रहता था, पहले दिन उससे बात करने पर पता चला कि उसकी नाइट ड्यूटी रहती है और अगर नाइट ड्यूटी न हो तब भी वो रात को कहीं चला जाता है l जब मैं यहा रहने को आया तब का वो दिन मेरे लिए अच्छा था लेकिन रात उतनी ही भयानक थी, शाम को जब 8.30 बजे मैं जॉब पर से लौटा तब वहां अजीब तरह का सन्नाटा था, एक तो वैसे ही वो पूरी कॉलोनी खाली थी उसमे भी रात को 8.30 का समय हुआ तब वहां ओर भी शांति हो गई l लेकिन अजीब बात तब हुई, कि जब मैं बेग रखकर पानी पीने लिया तब मुजे कुछ अजीब दिखा, वो पानी पूरा का पूरा काला हो चुका था, मैंने जग के अंदर देखा तो पूरा जग काला पानी से भर्रा हुआ था, मैंने पूरा जग खाली कर दिया, और फिर मैंने RO सिस्टम वाला फिल्टर शुरू किया तो उसमे भी काला पानी आने लगा, मुजे अब अजीब लग रहा था, मैंने बाहर से ऑर्डर करके पानी मंगवाया, वो पानी जब मैंने देखा तो वो भी काला हो गया, मैंने पानी वाले से झगड़ा किया, तो भी उसने यही कहा कि पानी साफ ही था, एसे कैसे काला हो सकता है l फिर मैंने ध्यान से देखा तो मेरे आस पास की सारी चीजें धीरे धीरे काली पड़नी शुरू हो गई थी, यहा तक कि LED tube light भी थोड़ी थोड़ी काली हो गई थी, मैंने खाना बनाने के लिए फ्रिज खोला तो मैं हक्का बक्का रह गया, अंदर पडी सारी चीजे काली थी, यहा तक कि दूध भी काला पड़ गया था l मैंने ऑनलाइन फूड ऑर्डर करने का सोचा, मैंने एक होटल से कटका पाउ भाजी ऑर्डर की जब खाना आया तब मैंने घर पे खोलकर देखा तो वो भी काला पड़ चुका था, मैं समज नहीं पा रहा था कि क्या करू? फिर काली ही सही लेकिन मैने वो खाना शुरू किया उसका स्वाद भी अजीब था आधी खाने के बाद मैंने खाना फेंक दिया l फिर मैंने खुदको आईने मे देखा तो मैं डर गया, मेरी आंखे पूरी की पूरी काली पड गई थी, मैं कई मिनट तक अपने आपको आईने मे देखता रहा l अब मैं सोने के लिए बेड पर लेट गया, नींद नहीं आ रही थी, फिर भी लेट गया, अचानक मुजे अपनी छाती पर कुछ वजन महसूस हुआ l मैंने करवट ली तब भी मुजे अपनी शरीर पर वजन महसूस हुआ, मुजे नींद नहीं आ रही थी, अब मुजे विश्वास हो गया था कि कोई भूत प्रेत का साया है जो मेरे घर मे है l मैं खड़ा हुआ और घर से बाहर घूमने के लिए निकला, बाहर जाते ही मैंने आकाश देखा तो आकाश मे चांद भी काला पड़ गया था ग्रहण जैसा लग था था जब कि उस दिन पूनम थी l जब आगे गया तब वहां कुछ पेड़ दिखे, ध्यान से देखा तो वो पेड़ के पत्ते काले पड़ गए थे और वो पेड़ भी बे - जान हो गए थे, मैं आगे बढ़ रहा था, मेरी कोलोनि अब पीछे रह गई थी, वहां कुछ जमीन के टुकड़े थे जो बंजर से थे जिसपर फेसिंग लगाई गई थी, इससे आगे मैं जा रहा था, लेकिन अब मुजे शरीर में कुछ अच्छा महसूस हो रहा था, वहां आगे कुछ पेड़ थे जो नॉर्मल लग रहे थे अब मैंने देखा तो आकाश में चाँद बराबर दिख रहा था, फिर मैंने एक सेल्फी ली उसमे मेरी आँखे भी ठीक थी, और वहां आसपास की सारी चीजे भी ठीक थी और मुजे थोड़ी भूख भी लगी और नींद भी आ रही थी, लेकिन मुजे फिर से उसी सोसाइटी मे जाना था l मैं फिर से वापस जाने लगा, अब मुजे समज आया कि तकलीफ उस सोसाइटी मे ही है, मैं अब वापिस आ गया था, फिर से वही काली जगह थी जहा सब कुछ काला काला हो गया था l मैं घर मे गया और बेड पर लेट गया अब फिर से मुजे छाती पर वो वजन महसूस होने लगा, और वो वजन थोड़ी देर बाद बढ़ गया, मैं फिर से उठ खड़ा हुआ और अब मैंने फैसला कर लिया कि मैं इस घर छोड़कर भाग जाऊँगा और पूरी रात बाहर ही बिताऊंगा मैंने घर से पानी की बोतल ली जिसमें वो काला पानी था मैंने जान बूझकर वो पानी लिया ताकि मैं चेक कर सकू की वो पानी सोसाइटी से बाहर कैसा लगेगा l जब मैं सोसाइटी से बाहर चला गया तब बोतल खोलकर देखा तो वो घर से लिया हुआ काला पानी नॉर्मल दिख रहा था l मैंने देखा तो घड़ी मे 2.30 बजे थे उधर आगे एक पेड़ था जिसके नीचे चार सीमेंट की बनी हुई बेंच थी वहां जाके मैं बैठ गया और पूरी रात वही पर बैठा रहा l सुबह मैंने मकान मालिक मनोज को कॉल किया और सब कुछ सच बता दिया l मनोज (चौंक कर) : क्या मतलब तुम्हें भी वो एहसास हुआ?? मैं : मुजे भी का क्या मतलब है? आपने बताया क्यु नहीं की ये जगह भूतिया है मेरी आवाज में गुस्सा था, और मनोज शर्मिंदा हो रहा था, वो थोड़ी देर बाद मेरे घर पर आया और मुजे पैसे वापिस करने आया था, मैने सख्त होकर उनसे बात कि : मैं : जब आपको पता था कि यहा भूत प्रेत का साया है तो फिर मुजे भाड़े पर क्यु दिया? मुजे अगर कुछ हो जाता मैं अगर मर जाता तो मेरे घरवालो का क्या होता? मनोज : मुजे माफ कर दो कार्तिक मैं लालच मे आ गया था l मैं : वो सब तो ठीक है लेकिन यहा एसा क्या है जो सब कुछ काला पड़ जाता है, मुजे डिटेल मे बताइए l मनोज : दरअसल यहा आज से 17 साल पहले कौमी हुल्लड़ हुए थी जिसमें एक बहुत बड़ी गैंग ने पूरी सोसाइटी मे रहने वाले सभी लोगों को मार दिया था, पुलिस भी उन लोगों का पता नहीं लगा पाई थी, तब से ये सोसाइटी मे उन लोगों की प्रेतात्मा घूमती है, और यहा ये भी कहा जाता है कि कुछ लोगों को अपनी छाती पर वजन महसूस होता है, वो और कुछ नहीं ब्लकि वो प्रेतात्मा उसकी छाती पर बैठ जाती है और उसका वजन भी अनुभव करवाती है l वो आत्माए यहा किसको भी रहने नहीं देती है , दिन मे कुछ नहीं करते वो लोग लेकिन रात को चैन से रहने नहीं देंगे l मनोज अच्छा आदमी था उसने मुजे पैसे न देते हुए अपने दूसरे एरिया के एक फ्लैट भाड़े पर दे दिया और भाड़ा भी उतना ही रखा, भाड़ा लेते वक़्त उसने कहा कि, मनोज :मैं मेरी गलती सुधारना चाहता हू, तुम्हें जब भी ठीक लगे तब से मुजे ज्यादा किराया देना अभी मैं तुम से कम ही किराया लूँगा l मैं : जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया, मैं आपको 4 महीने बाद से पूरा किराया दे दिया करूंगा क्युकी अभी पैसों की कमी है इसलिए l लेकिन एक बात बताइए वो दूसरा घर जिसमें एक व्यक्ति रहता है वो रात को क्या करता होगा? मनोज : वो एक स्मगलर है और रात को ही वो अपना धंधा चलाता है l मनोज फिर वो फ्लेट से चला गया, वो फ्लैट अच्छा था, मैंने खाना बनाया और खाया भी, पड़ौसी भी अच्छे थे, लेकिन ये वक़्त था रात 11.00 बजे का, मैं बेड पर सो गया था फिर से मुजे अपनी छाती पर वजन महसूस हुआ, क्या वो सच था या मेरा भ्रम? ‹ पिछला प्रकरणअंधेरा कोना - 19 - झुला Download Our App