The Author Miss Chhoti फॉलो Current Read सत्य ना प्रयोगों - भाग 10 By Miss Chhoti हिंदी आध्यात्मिक कथा Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books निलावंती ग्रंथ - एक श्रापित ग्रंथ... - 1 निलावंती एक श्रापित ग्रंथ की पूरी कहानी।निलावंती ग्रंथ द्वारावती - 84 84तीनों चलने लगे। चाँदनी मार्ग प्रशस्त करती रही। केशव सब को... बीते न रैना भाग - 1 --------------------- बीते न रैना ---------------- भूमिका ... एकांत ही सुख है Namste. Aasha he ki aap sab thik hoge aaj me aapni 2 story... नई दुल्हन ससुराल का पहला दिन नई दुल्हनगर्मियों की एक सुनहरी सुबह थी। गाँव के बड़े से आँगन... इश्क के रंग इश्क़ के रंगशाम ढल रही थी। सूरज के ढलते ही आसमान लाल, नारंगी... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास Miss Chhoti द्वारा हिंदी आध्यात्मिक कथा कुल प्रकरण : 13 शेयर करे सत्य ना प्रयोगों - भाग 10 (2) 1.7k 3.7k 1 आगे की कहानी जाति से बाहर... माताजी की आज्ञा और आशीर्वाद लेकर और पत्नी की गोद में कुछ महीनों का बालक छोड़कर मैं उमंगों के साथ बंबई पहुँचा। पहुँच तो गया, पर वहाँ मित्रों ने भाई को बताया कि जून-जूलाई में हिंद महासागर में तूफान आते है और मेरी यह पहली ही समुद्री यात्रा है, इसलिए मुझे दीवाली के बाद यानी नवंबर में रवाना करना चाहिए। और किसी ने तूफान में किसी अगनबोट के डूब जाने की बात भी कही। इससे बड़े भाई घबराए। उन्होंने ऐसा खतरा उठाकर मुझे तुरंत भेजने से इनकार किया और मुझको बंबई में अपने मित्र के घर छोडकर खुद वापस नौकरी पर हाजिर होने के लिए राजकोट चले गए। वे एक बहनोई के पास पैसे छोड़ गए और कुछ मित्रों से मेरी मदद करने की सिफारिश करते गयो।बंबई में मेरे लिए दिन काटना मुश्किल हो गया। मुझे विलायत के सपने आते ही रहते थे।इस बीच जाति में खलबली मची। जाति की सभा बुलाई गई। अभी तक कोई मोढ़ बनिया विलायत नहीं गया था। और मैं जा रहा हूँ, इसलिए मुझसे जवाब तलब किया जाना चाहिए। मुझे पंचायत में हाजिर रहने का हुक्म मिला। मैं गया। मैं नहीं जानता कि मुझ में अचानक हिम्मत कहाँ से आ गई। हाजिर रहने में मुझे न तो संकोच हुआ, न डर लगा। जाति के सरपंच के साथ दूर का रिश्ता भी था। पिताजी के साथ उनका संबंध अच्छा था। उन्होंने मुझसे कहा : 'जाति का खयाल है कि तूने विलायत जाने का जो विचार किया है वह ठीक नहीं है। हमारे धर्म में समुद्र पार करने की मनाही है, तिस पर यह भी सुना जाता है कि वहाँ पर धर्म की रक्षा नहीं हो पाती। वहाँ साहब लोगों के साथ खाना-पीना पड़ता है।' मैंने जवाब दिया, 'मुझे तो लगता है कि विलायत जाने में लेशमात्र भी अधर्म नहीं है। मुझे तो वहाँ जाकर विद्याध्ययन ही करना है। फिर जिन बातों का आपको डर है, उनसे दूर रहने की प्रतिज्ञा मैंने अपनी माताजी के सम्मुख ली है, इसलिए मैं उनसे दूर रह सकूँगा।'सरपंच बोले : 'पर हम तुझसे कहते हैं कि वहाँ धर्म की रक्षा नहीं हो ही नहीं सकती। तू जानता है कि तेरे पिताजी के साथ मेरा कैसा संबंध था। तुझे मेरी बात माननी चाहिए।'मैंने जवाब मे कहा, 'आपके साथ के संबंध को मैं जानता हूँ। आप मेरे पिता के समान है। पर इस बारे में मैं लाचार हूँ। विलायत जाने का अपना निश्चय मैं बदल नहीं सकता। जो विद्वान ब्राह्मण मेरे पिता के मित्र और सलाहकार है, वे मानते हैं कि मेरे विलायत जाने में कोई दोष नहीं है। मुझे अपनी माताजी और अपने भाई की अनुमति भी मिल चुकी है।''पर तू जाति का हुक्म नहीं मानेगा?''मैं लाचार हूँ। मेरा खयाल है कि इसमें जाति को दखल नहीं देना चाहिए।'इस जवाब से सरपंच गुस्सा हुए। मुझे दो-चार बाते सुनाईं। मैं स्वस्थ बैठा रहा। सरपंच ने आदेश दिया, 'यह लड़का आज से जातिच्युत माना जाएगा। जो कोई इसकी मदद करेगा अथवा इसे बिदा करने जाएगा, पंच उससे जवाब तलब करेगे और उससे सवा रुपया दंड का लिया जाएगा।' मुझ पर इस निर्णय का कोई असर नहीं हुआ। मैंने सरपंच से बिदा ली। अब सोचना यह था कि इस निर्णय का मेरे भाई पर क्या असर होगा। कहीं वे डर गए तो? सौभाग्य से वे दृढ़ रहे और मुझे लिख भेजा कि जाति के निर्णय के बावजूद वे मुझे विलायत जाने से नहीं रोकेंगे।इस घटना के बाद मैं अधिक बेचैन हो गया? दुसरा कोई विघ्न आ गया तो? इस चिंता में मैं अपने दिन बिता रहा था। इतने में खबर मिली कि 4 सितंबर को रवाना होनेवाले जहाज में जूनागढ़ के एक वकील बारिस्टरी के लिए विलायत जानेवाले है। बड़े भाई ने जिन के मित्रों से मेरे बारे में कह रखा था, उनसे मैं मिला। उन्होंने भी यह साथ न छोड़ने की सलाह दी। समय बहुत कम था। मैंने भाई को तार किया और जाने की इजाजत माँगी। उन्होंने इजाजत दे दी। मैंने बहनोई से पैसे माँगे। उन्होंने जाति के हुक्म की चर्चा की। जाति-च्युत होना उन्हें न पुसाता न था। मै अपने कुटुंब के एक मित्र के पास पहुँचा और उनसे विनती की कि वे मुझे किराए वगैरा के लिए आवश्यक रकम दे दे और बाद में भाई से ले लें। उन मित्र ने ऐसा करना कबूल किया, इतना ही नहीं, बल्कि मुझे हिम्मत भी बँधाई। मैंने उनका आभार माना, पैसे लिए और टिकट खरीदा।विलायत की यात्रा का सारा सामान तैयार करना था। दूसरे अनुभवी मित्र ने सामान तैयार करा दिया। मुझे सब अजीब सा लगा। कुछ रुचा, कुछ बिलकुल नहीं। जिस नेकटाई को मैं बाद में शौक से लगाने लगा, वह तो बिलकुल नहीं रुची। वास्कट नंगी पोशाक मालूम हुई।पर विलायत जाने के शौक की तुलना में यह अरुचि कोई चीज न थी। रास्ते में खाने का सामान भी पर्याप्त ले लिया था।_सत्य ना प्रयोगों ‹ पिछला प्रकरणसत्य ना प्रयोगों - भाग 9 › अगला प्रकरण सत्य ना प्रयोगों - भाग 11 Download Our App