The Author Miss Chhoti फॉलो Current Read सत्य ना प्रयोगों - भाग 1 By Miss Chhoti हिंदी आध्यात्मिक कथा Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books निलावंती ग्रंथ - एक श्रापित ग्रंथ... - 1 निलावंती एक श्रापित ग्रंथ की पूरी कहानी।निलावंती ग्रंथ Shadows Of Love - 12 अर्जुन ने अपने मन को कस लिया। उसके दिल की धड़कन तेज़ थी, लेक... BAGHA AUR BHARMALI - 9 Chapter 9 — मालदेव द्वारा राजकवि आशानंद को भेजनाबागा भारमाली... 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अंतिम पत्नी पुतलीबाई से एक कन्या और तीन पुत्र थे। उनमें से अंतिम मैं हूँ।पिता कुटुंब-प्रेमी, सत्यप्रिय, शूर, उदार किंतु क्रोधी थे। थोड़े विषयासक्त भी रहे होंगे। उनका आखिरी विवाह चालीसवें साल के बाद हुआ था। हमारे परिवार में और बाहर भी उनके विषय में यह धारणा थी कि वे रिश्वतखोरी से दूर भागते हैं और इसलिए शुद्ध न्याय करते है। राज्य के प्रति वे वफादार थे। एक बार प्रांत के किसी साहब ने राजकोट के ठाकुर साहब का अपमान किया था। पिताजी ने उसका विरोध किया। साहब नाराज हुए, कबा गांधी से माफी माँगने के लिए कहा। उन्होंने माफी माँगने से इनकार किया। फलस्वरूप कुछ घंटों के लिए उन्हें हवालात में भी रहना पड़ा। इस पर भी जब वे न डिगे तो अंत में साहब ने उन्हें छोड़ देने का हुकम दिया।पिताजी ने धन बटोरने का लोभ कभी नहीं किया। इस कारण हम भाइयों के लिए बहुत थोड़ी संपत्ति छोड़ गए थे।पिताजी की शिक्षा केवल अनुभव की थी। आजकल जिसे हम गुजराती की पाँचवीं किताब का ज्ञान कहते है, उतनी शिक्षा उन्हें मिली होगी। इतिहास-भूगोल का ज्ञान तो बिलकुल ही न था। फिर भी उनका व्यावहारिक ज्ञान इतने ऊँचे दरजे का था कि बारीक से बारीक सवालों को सुलझाने में अथवा हजार आदमियों से काम लेने में भी उन्हें कोई कठिनाई नहीं होती थी। धार्मिक शिक्षा नहीं के बराबर थी, पर मंदिरों में जाने से और कथा वगैरा सुनने से जो धर्मज्ञान असंख्य हिंदुओं को सहज भाव से मिलता है वह उनमें था। आखिर के साल में एक विद्वान ब्राह्मण की सलाह से, जो परिवार के मित्र थे, उन्होंने गीता-पाठ शुरू किया था और रोज पूजा के समय वे थोड़े बहुत ऊँचे स्वर से पाठ किया करते थे। मेरे मन पर यह छाप रही है कि माता साध्वी स्त्री थीं। वे बहुत श्रद्धालु थीं। बिना पूजा-पाठ के कभी भोजन न करतीं। हमेशा हवेली (वैष्णव-मंदिर) जातीं। जब से मैंने होश सँभाला तब से मुझे याद नहीं पड़ता कि उन्होंने कभी चातुर्मास का व्रत तोड़ा हो। वे कठिन से कठिन व्रत शुरू करतीं और उन्हें निर्विघ्न पूरा करतीं। लिए हुए व्रतों को बीमार होने पर भी कभी न छोड़तीं। ऐसे एक समय की मुझे याद है कि जब उन्होंने चांद्रायण का व्रत लिया था। व्रत के दिनों में वे बीमार पड़ीं, पर व्रत नहीं छोड़ा। चातुर्मास में एक बार खाना तो उनके लिए सामान्य बात थी। इतने से संतोष न करके एक चौमासे में उन्होंने तीसरे दिन भोजन करने का व्रत लिया था। लगातार दो-तीन उपवास तो उनके लिए मामूली बात थी। एक चातुर्मास में उन्होंने यह व्रत लिया था कि सूर्यनारायण के दर्शन करके ही भोजन करेंगी। उस चौमासे में हम बालक बादलों के सामने देखा करते कि कब सूरज के दर्शन हों और कब माँ भोजन करें। यह तो सब जानते है कि चौमासे में अक्सर सूर्य के दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं। मुझे ऐसे दिन याद हैं कि जब हम सूरज को देखते और कहते, 'माँ-माँ, सूरज दीखा' और माँ उतावली होकर आतीं इतने में सूरज छिप जाता और माँ यह कहती हुई लौट जातीं कि 'कोई बात नहीं, आज भाग्य में भोजन नहीं है' और अपने काम में डूब जातीं।माता व्यवहार-कुशल थीं। राज-दरबार की सब बातें वह जानती थी। रनिवास में उनकी बुद्धि की अच्छी कदर होती थी। मैं बालक था। कभी कभी माताजी मुझे भी अपने साथ दरबार गढ़ ले जाती थीं। 'बा-माँसाहब' के साथ होनेवाली बातों में से कुछ मुझे अभी तक याद हैं।इन माता-पिता के घर में संवत 1925 की भादों बदी बारस के दिन, अर्थात 2 अक्तूवर, 1869 को पोरबंदर अथवा सुदामापुरी में मेरा जन्म हुआ।बचपन मेरा पोरबंदर में ही बीता। याद पड़ता है कि मुझे किसी पाठशाला में भरती किया गया था। मुश्किल से थोड़े पहाड़े मैं सीखा था। मुझे सिर्फ इतना याद है कि मैं उस समय दूसरे लड़कों के साथ अपने शिक्षकों को गाली देना सीखा था। और कुछ याद नहीं पड़ता। इससे मैं अंदाज लगाता हूँ कि मेरी स्मरण शक्ति उन पंक्तियों के कच्चे पापड़-जैसी होगी, जिन्हे हम बालक गाया करते थे। वे पंक्तियाँ मुझे यहाँ देनी ही चाहिए :एकडे एक, पापड़ शेक;पापड़ कच्चो, --- मारो ---पहली खाली जगह में मास्टर का नाम होता था। उसे मैं अमर नहीं करना चाहता। दूसरी खाली जगह में छोड़ी हुई गाली रहती थी, जिसे भरने की आवश्यकता नहीं।- सत्य ना प्रयोगों › अगला प्रकरण सत्य ना प्रयोगों - भाग 2 Download Our App