Satya na Prayogo - 9 books and stories free download online pdf in Hindi सत्य ना प्रयोगों - भाग 9 (2) 1.1k 2.6k 1 आगे की कहानी विलायत की तैयारी... सन 1886 में मैंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। देश की और गांधी-कुटुंब की गरीबी ऐसी थी कि अहमदाबाद और बंबई-जैसे परीक्षा के दो केंद्र हों, तो वैसी स्थितिवाले काठियावाड़-निवासी नजदीक के और सस्ते अहमदाबाद को पसंद करते थे। वही मैंने किया। मैंने पहले-पहल राजकोट से अहमदाबाद की यात्रा अकेले की।बड़ों की इच्छा थी कि पास हो जाने पर मुझे आगे कॉलेज की पढ़ाई करनी चाहिए। कॉलेज बंबई में भी था और भावनगर में भी। भावनगर का खर्च कम था। इसलिए भावनगर के शामलदास कॉलेज में भरती होने का निश्चय किया। कॉलेज में मुझे कुछ आता न था। सब कुछ मुश्किल मालूम होता था। इसमें दोष अध्यापकों का नहीं, मेरी कमजोरी का ही था। उस समय के शामलदास कॉलेज के अध्यापक तो प्रथम पंक्ति के माने जाते थे। पहला सत्र पूरा करके मैं घर आया।कुटुंब के पुराने मित्र और सलाहकार एक विद्वान, व्यवहार-कुशल ब्राह्मण मावजी दवे थे। पिताजी के स्वर्गवास के बाद भी उन्होंने कुटुंब के साथ संबंध बनाए रखा था। वे छुट्टी के इन दिनों में घर आए। माताजी और बड़े भाई के साथ बातचीत करते हुए उन्होंने मेरी पढ़ाई के बारे में पूछताछ की। जब सुना कि मैं शामलदास कॉलेज में हूँ, तो बोले, 'जमाना बदल गया है। तुम भाइयों में से कोई कबा गांधी की गद्दी सँभालना चाहे तो बिना पढ़ाई के वह नहीं होगा। यह लड़का अभी पढ़ रहा है, इसलिए गद्दी सँभालने का बोझ इससे उठवाना चाहिए। इसे चार-पाँच साल तो अभी बी.ए. होने में लग जाएँगे, और इतना समय देने पर भी इसे 50-60 रुपए की मौकरी मिलेगी, दीवानगीरी नहीं। और अगर उसके बाद इसे मेरे लड़के की तरह वकील बनाएँ, तो थोड़े वर्ष और लग जाएँगे और तब तक तो दीवानगीरी के लिए वकील भी बहुत से तैयार हो चुकेंगे। आपको इसे विलायत भेजना चाहिए।केवलराम (भावजी दवे का लड़का) कहता है कि वहाँ की पढ़ाई सरल है। तीन साल में पढ़कर लौट आएगा। खर्च भी चार-पाँच हजार से अधिक नहीं होगा। नए आए हुए बारिस्टरों को देखो, वे कैसे ठाठ से रहते हैं! वे चाहें तो उन्हें दीवानगीरी आज मिल सकती है। मेरी तो सलाह है कि आप मोहनदास को इसी साल विलायत भेज दीजिए। विलायत में मेरे केवलराम के कई दोस्त हैं, वह उनके नाम सिफारिशी पत्र दे देगा, तो इसे वहाँ कोई कठिनाई नहीं होगी।' जोशीजी ने (मावजी दवे को हम इसी नाम से पुकारते थे) मेरी तरफ देखकर मुझसे ऐसे लहजे में पूछा, मानो उनकी सलाह के स्वीकृत होने में उन्हें कोई शंका ही न हो।'क्यों, तुझे विलायत जाना अच्छा लगेगा या यहीं पढ़ते रहना? ' मुझे जो भाता था वही वैद्य ने बता दिया। मैं कॉलेज की कठिनाइयों से डर तो गया ही था। मैंने कहा, 'मुझे विलायत भेजें, तो बहुत ही अच्छा है। मुझे नहीं लगता कि मैं कॉलेज में जल्दी-जल्दी पास हो सकूँगा। पर क्या मुझे डॉक्टरी सीखने के लिए नहीं भेजा जा सकता?'मेरे भाई बीच में बोले : 'पिताजी को यह पसंद न था। तेरी चर्चा निकलने पर वे यही कहते कि हम वैष्णव होकर हाड़-मांस की चीर-फाड़ का काम न करें। पिताजी तो मुझे वकील ही बनाना चाहते थे।'जोशीजी ने समर्थन किया : 'मुझे गांधीजी की तरह डॉक्टरी पेशे से अरुचि नहीं है। हमारे शास्त्र इस धंधे की निंदा नहीं करते। पर डॉक्टर बनकर तू दीवान नहीं बन सकेगा। मैं तो तेरे लिए दीवान-पद अथवा उससे भी अधिक चाहता हूँ। तभी तुम्हारे बड़े परिवार का निर्वाह हो सकेगा। जमाना बदलता जा रहा है और मुश्किल होता जाता है। इसलिए बारिस्टर बनने में ही बुद्धिमानी है।' माता जी की ओर मुड़कर उन्होंने कहा : 'आज तो मैं जाता हूँ। मेरी बात पर विचार करके देखिए। जब मैं लौटूँगा तो तैयारी के समाचार सुनने की आशा रखूँगा। कोई कठिनाई हो तो मुझसे कहिए गा। जोशीजी गए और मैं हवाई किले बनाने लगा।बड़े भाई सोच में पड़ गए। पैसा कहाँ से आएगा? और मेरे जैसे नौजवान को इतनी दूर कैसे भेजा जाए!माताजी को कुछ सूझ न पड़ा। वियोग की बात उन्हें जँची ही नहीं। पर पहले तो उन्होंने यही कहा : 'हमारे परिवार में अब बुजुर्ग तो चाचाजी ही रहे हैं। इसलिए पहले उनकी सलाह लेनी चाहिए। वे आज्ञा दें तो फिर हमें सोचना होगा।'बड़े भाई को दूसरा विचार सूझा : 'पोरबंदर राज्य पर हमारा हक है। लेली साहब एडमिनिस्ट्रेटर हैं। हमारे परिवार के बारे में उनका अच्छा खयाल है। चाचाजी पर उनकी खास मेहरबानी है। संभव है, वे राज्य की तरफ से तुझे थोड़ी बहुत मदद कर दें।'मुझे यह सब अच्छा लगा। मै पोरबंदर जाने के लिए तैयार हुआ। उन दिनों रेल नहीं थी। बैलगाड़ी का रास्ता था। पाँच दिन में पहुँचा जाता था। मैं कह चुका हूँ कि मैं खुद डरपोक था। पर इस बार मेरा डर भाग गया। विलायत जाने की इच्छा ने मुझे प्रभावित किया। मैंने धोराजी तक की बैलगाड़ी की। धोराजी से आगे, एक दिन पहले पहुँचने के विचार से, ऊँट किराए पर लिया। ऊँट की सवारी का भी मेरा यब पहला अनुभव था।मैं पोरबंदर पहुँचा। चाचाजी को साष्टांग प्रणाम किया। सारी बात सुनाई। उन्होंने सोचकर जवाब दिया : 'मैं नहीं जानता कि विलायत जाने पर हम धर्म की रक्षा कर सकते हैं या नहीं। जो बातें सुनता हूँ उससे तो शक पैदा होता है। मैं जब बड़े बारिस्टरों से मिलता हूँ, तो उनकी रहन-सहन में और साहबों की रहन-सहन में कोई भेद नहीं पाता। खाने-पीने का कोई बंधन उन्हें नहीं ही होता। सिगरेट तो कभी उनके मुँह से छूटती नहीं। पोशाक देखो तो वह भी नंगी। यह सब हमारे कुटुंब को शोभा न देगा। पर मैं तेरे साहस में बाधा नहीं डालना चाहता। मैं तो कुछ दिनों बाद यात्रा पर जानेवाला हूँ। अब मुझे कुछ ही साल जीना है। मृत्यु के किनारे बैठा हुआ मैं तुझे विलायत जाने की - समुद्र पार करने की इजाजत कैसे दूँ? लेकिन मैं बाधक नहीं बनूँगा। सच्ची इजाजत को तेरी माँ की है। अगर वह इजाजत दे दे तो तू खुशी-खुशी से जाना। इतना कहना कि मैं तुझे रोकूँगा नहीं। मेरा आशीर्वाद तो तुझे है ही।'मैंने कहा : 'इससे अधिक की आशा तो मैं आपसे रख नहीं सकता। अब तो मुझे अपनी माँ को राजी करना होगा। पर लेली साहब के नाम आप मुझे सिफारिशी पत्र तो देंगे न?' चाचाजी ने कहा : 'सो मैं कैसे दे सकता हूँ? लेकिन साहब सज्जन है, तू पत्र लिख। कुटुंब का परिचय देना। वे जरूर तुझे मिलने का समय देंगे, और उन्हें रुचेगा तो मदद भी करेंगे।'मैं नहीं जानता कि चाचाजी ने साहब के नाम सिफारिश का पत्र क्यों नहीं दिया। मुझे धुँधली-सी याद है कि विलायत जाने के धर्म-विरुद्ध कार्य में इस तरह सीधी मदद करने में उन्हें संकोच हुआ।मैंने लेली साहब को पत्र लिखा। उन्होंने अपने रहने के बँगले पर मुझे मिलने बुलाया। उस बँगले की सीढियों को चढ़ते वे मुझसे मिल गए, और मुझे यह कहकर चले गए : 'तू बी.ए. कर ले, फिर मुझसे मिलना। अभी कोई मदद नहीं दी जा सकेगी।' मैं बहुत तैयारी करके, कई वाक्य रटकर गया था। नीचे झुककर दोनों हाथों से मैंने सलाम किया था। पर मेरी सारी मेहनत बेकार हुई!मेरी दृष्टि पत्नी के गहनों पर गई। बड़े भाई के प्रति मेरी अपार श्रद्धा थी। उनकी उदारता की सीमा न थी। उनका प्रेम पिता के समान था।मैं पोरबंदर से बिदा हुआ। राजकोट आकर सारी बातें उन्हें सुनाई। जोशीजी के साथ सलाह की। उन्होंने कर्ज लेकर भी मुझे भेजने की सिफारिश की। मैंने अपनी पत्नी के हिस्से के गहने बेच डालने का सुझाव रखा। उनसे 2-3 हजार रुपए से अधिक नहीं मिल सकते थे। भाई ने, जैसे भी बने, रुपयों का प्रबंध करने का बीड़ा उठाया।माताजी कैसे समझतीं? उन्होंने सब तरफ की पूछताछ शुरू कर दी थी। कोई कहता, नौजवान विलायत जाकर बिगड़ जाते हैं; कोई कहता, वे मांसाहार करने लगते हैं; कोई कहता, वहाँ शराब के बिना तो चलता ही नहीं। माताजी ने मुझे ये सारी बाते सुनाई। मैंने कहा, 'पर तू मेरा विश्वास नहीं करेगी? मैं शपथपूर्वक कहता हूँ कि मैं इन तीनों चीजों से बचूँगा। अगर ऐसा खतरा होता तो जोशीजी क्यों जाने देते?' माताजी बोली, 'मुझे तेरा विश्वास है। पर दूर देश में क्या होगा? मेरी तो अकल काम नहीं करती। मैं बेचरजी स्वामी से पूछँगी।'बेचरजी स्वामी मोढ़ बनियों में से बने हुए एक जैन साधु थे। जोशीजी की तरह वे भी हमारे सलाहकार थे। उन्होंने मदद की। वे बोले : 'मैं इन तीनों चीजों के व्रत दिलाऊँगा। फिर इसे जाने देने में कोई हानि नहीं होगी।' उन्होंने प्रतिज्ञा लिवाई और मैंने मांस, मदिरा तथा स्त्री-संग से दूर रहने की प्रतिज्ञा की। माताजी ने आज्ञा दी।हाईस्कूल में सभा हुई। राजकोट का एक युवक विलायत जा रहा है, यह आश्चर्य का विषय बना। मैं जवाब के लिए कुछ लिखकर ले गया था। जवाब देते समय उसे मुश्किल से पढ़ पाया। मुझे इतना याद है कि मेरा सिर घूम रहा था और शरीर काँप रहा था।बड़ों के आशीर्वाद लेकर मैं बंबई के लिए रवाना हुआ। बंबई की यह मेरी पहली यात्रा थी। बड़े भाई साथ आए।पर अच्छे काम में सौ विघ्न आते हैं। बंबई का बंदरगाह जल्दी छूट न सका।_सत्य ना प्रयोगों ‹ पिछला प्रकरणसत्य ना प्रयोगों - भाग 8 › अगला प्रकरणसत्य ना प्रयोगों - भाग 10 Download Our App अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी Miss Chhoti फॉलो उपन्यास Miss Chhoti द्वारा हिंदी आध्यात्मिक कथा कुल प्रकरण : 13 शेयर करे आपको पसंद आएंगी सत्य ना प्रयोगों - भाग 1 द्वारा Miss Chhoti सत्य ना प्रयोगों - भाग 2 द्वारा Miss Chhoti सत्य ना प्रयोगों - भाग 3 द्वारा Miss Chhoti सत्य ना प्रयोगों - भाग 4 द्वारा Miss Chhoti सत्य ना प्रयोगों - भाग 5 द्वारा Miss Chhoti सत्य ना प्रयोगों - भाग 6 द्वारा Miss Chhoti सत्य ना प्रयोगों - भाग 7 द्वारा Miss Chhoti सत्य ना प्रयोगों - भाग 8 द्वारा Miss Chhoti सत्य ना प्रयोगों - भाग 10 द्वारा Miss Chhoti सत्य ना प्रयोगों - भाग 11 द्वारा Miss Chhoti NEW REALESED Motivational Stories सोने के कंगन - भाग - १ Ratna Pandey Love Stories इश्क़ होना ही था - 32 Kanha ni Meera Poems बुन्देली उजियारो ( बुन्देली काव्य संग्रह ) Manoj kumar shukla Love Stories पागल - भाग 24 कामिनी त्रिवेदी Love Stories द मिस्ड कॉल - 4 vinayak sharma Spiritual Stories मानव भेड़ियाँ और रोहिणी - 4 Sonali Rawat Poems में और मेरे अहसास - 101 Darshita Babubhai Shah Women Focused बिंदास जीने के मायने bhagirath Fiction Stories फादर्स डे - 58 Praful Shah Love Stories अधूरी कहानी Chandan Kumar Rajput