First gift... books and stories free download online pdf in Hindi

पहला तोहफा...

सुल्भा!आज तुम्हारा जन्मदिन है ना!गौतम ने पूछा...
इसलिए मैं तुम्हारे लिए कुछ लाया हूँ,गौतम ने कहा..
क्या लाएं हो ?दिखाओ तो जरा!सुल्भा ने किलकते हुए पूछा...
पहले अपनी आँखें बंद करो,तब तुम्हें तुम्हारा तोहफा मिलेगा...गौतम बोला...
ओहो...तो ये लो ,कर लीं मैनें अपनी आँखें बंद,अब लाओ मेरा तोहफा,सुल्भा ने अपने दोनों हाथ आगें बढ़ाते हुए गौतम से कहा....
फिर गौतम ने सुल्भा के हाथ में एक पैकेट थमा दिया,पैकेट पाकर सुल्भा ने आँखें खोलीं और फौरन ही पैकेट के भीतर झाँककर देखा,उसने उस तोहफे को पैकेट के बाहर निकाला और खुशी से बोल पड़ी....
साड़ी....!तुम मेरे लिए साड़ी लाएं हो...
हाँ!तुमने मुझसे कहा था ना कि तुम्हें लाल बार्डर की सफेद साड़ी बहुत पसंद है,जैसी की बंगाली स्त्रियाँ पहनती है,ये वैसी ही है,गौतम बोला...
ओह....गौतम!मैं तुम्हें बता नहीं सकती कि मैं कितनी खुश हूँ आज,आज तुमने मुझे पहली बार कोई तोहफा दिया है,तुम्हारा दिया ये पहला तोहफा मैं हमेशा याद रखूँगी,सुल्भा बोली....
सुल्भा!ये बहुत ही मामूली सी सूती धोती है,मैं इतना अमीर नहीं कि तुम्हें महंँगा तोहफा दे सकूँ,तुम तो जानती ही हो कि मेरी गरीब माँ गाँव में रहती है,लोगों के खेतों में काम करके वो अपना गुजर बसर करती है और मैं यहाँ ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई और अपना खर्च निकालता हूँ,मेरी इतनी औकात नहीं कि मैं तुम्हें महंँगा तोहफा दे सकूँ,गौतम बोला...
ऐसा मत कहो गौतम!मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ और चाहे कैसी भी परिस्थिति हो मैं हमेशा तुमसे ऐसा ही प्यार करती रहूँगीं,बस तुम मुझे कभी धोखा मत देना,यूँ ही हमेशा मेरे संग रहना,तुम्हारी दी हुई ये सूती धोती मेरे लिए कोहिनूर हीरे के बराबर है,ये तुम्हारा पहला तोहफा जो है,सुल्भा बोली....
लेकिन सुल्भा तुम एक अमीर पिता की सन्तान हो,ऐसी मामूली धोती तो तुम्हारी नौकरानियाँ भी ना पहनती होगीं,तुमने मुझसे प्रेम किया ये मेरी खुशनसीबी है,मुझे नहीं लगता कि तुम्हारे पिताजी हम दोनों की शादी के लिए राजी होगें,गौतम बोला....
तुम ऐसी बातें क्यों करते हो गौतम?एक बार तुम्हारी नौकरी पक्की हो जाएं तो मैं अपने पिताजी को भी हम दोनों की शादी के लिए मना लूँगीं और अगर वें नहीं माने तो मैं तुमसे ही शादी करूँगी,चाहे इसके लिए मुझे उनके खिलाफ ही क्यों ना जाना पड़े.....,सुल्भा बोली....
सच!तुम मुझसे इतना प्यार करती हो,गौतम ने पूछा....
हाँ....गौतम...मैं तुम्हारे लिए अपनी जान भी दे सकती हूँ,सुल्भा बोली...
ओह....सुल्भा!मैं तुम्हारी इन्हीं अदाओं पर तो मर मिटा हूँ और इतना कहकर गौतम ने सुल्भा को अपने सीने से लगा लिया.....
इसी तरह दिन गुजरे सुल्भा और गौतम के काँलेज की पढ़ाई भी पूरी हो गई,लेकिन दोनों के प्यार में कोई कमी ना आई,दोनों वैसें ही एक दूसरे को दिल-ओ-जान से चाहते रह़े,लेकिन बहुत हाथ पैर मारने पर भी गौतम को नौकरी ना मिल सकी,वो अपना गुजारा ट्यूशन पढ़ाकर ही करता रहा,कहते हैं ना कि इश्क़ और मुश्क छुपाए नहीं छुपते आखिरकार सुल्भा के पिता देवराज नागर को दोनों की मौहब्बत के बारें में पता चल ही गया,उन्होंने इस बारें में सुल्भा से बात की और सुल्भा ने उनके सामने अपना जुर्म कूबूल कर लिया,सुल्भा की बात सुनकर देवराज नागर बोलें...
मैं तुम्हें तुम्हारी पसंद के लड़के से हर्गिज़ भी शादी नहीं करने दूँगा..
लेकिन पापा!मैं उससे प्यार करती हूँ,सुल्भा बोली...
ये हमारे खानदान की इज्जत का सवाल है नादान लड़की!,देवराज नागर गरजे...
पापा!मैं उसके बिना नहीं जी सकती,सुल्भा बोली...
क्या तुम्हें हमारी इज्जत का कोई भी ख्याल नहीं,हम इस शहर के इज्जतदार लोगों में गिने जाते हैं,इतनी पागल मत बनों,ये जवानी का भूत है यूँ ही चार दिनों में उतर जाएगा,यहाँ महल जैसे घर में रह रही हो ,ऐश कर रही हो,घूमने के लिए मोटर है और खाने के लिए छप्पन भोग और पहनने के लिए डिजाइनर पोशाकें,नौकरों का ताँता लगा रहता है खिदमत के लिए, जब उसके साथ रहने लगोगी ना तो नून तेल का भाव पता चल जाएगा,देवराज नागर दहाड़े...
मैं उसके साथ कहीं भी रह लूँगी और रूखी सूखी खाकर गुजर लूँगी,सुल्भा बोली...
बेवकूफ मत बनो,पागल लड़की!ये दुनिया पैसों से चलती है,बिना पैसों के यहाँ जीना मुमकिन नहीं,हम तुम्हारे लिए कोई उद्योगपति वर ढ़ूढ़ेगें,देवराज नागर फिर से चिल्लाएं...
मैं बिना पैसों के जीकर दिखाऊँगी,नहीं चाहिए मुझे पैसों वाला पति,सुल्भा बोली....
फिर थकहारकर देवराज नागर ने गौतम को अपने घर मिलने के लिए बुलाया और जब उन्हें पता चला कि गौतम बहुत ही गरीब है ,जैसे तैसे ट्यूशन पढ़ाकर अपना गुजारा करता है,तो उन्होंने गौतम से साफ साफ कह दिया कि वो उससे अपनी बेटी की शादी नहीं कर सकते लेकिन सुल्भा ना मानी और उसी वक्त वो गौतम की दी हुई पहले तोहफे की सूती धोती पहनकर उसके साथ अपने पिता के घर से चली आई,दोनों ने मंदिर में शादी कर ली,फिर शादी करके गौतम सुल्भा को अपने गाँव ले गया....
कुछ दिन तो दोनों के बहुत अच्छे गुजरे लेकिन फिर सुल्भा के इश्क़ की खुमारी धीरे धीरे उतरने लगी,क्योंकि गाँव में उसे हर चीज का अभाव होने लगा,कम पैसों में खर्चा चलाना मुश्किल होता,कुछ ही दिनों में गौतम की माता जी का भी स्वर्गवास हो गया,अब बाहर के भी सारे काम सुल्भा के माथे आ गए,सुल्भा को अब लगने लगा था कि वो कैसें चक्कर में फँस गई,उसके पिताजी सही कहते थे कि प्यार से नहीं ,दुनिया पैसों से चलती है,उसने कैसी बेवकूफी कर दी उनकी बात ना मानकर,वो दिनबदिन कुढ़ने लगी और गौतम से खिझीखिझी रहने लगी,अब दोनों के बीच का प्यार धीरे धीरे हवा होने लगा.....
सुल्भा ने ज्यों ही अपने पिताजी के पास वापस लौटने की सोची तो पता चला कि खुशखबरी है और उसे खबर ही नहीं रही कि इस बात को चार महीने बीत चुके हैं ,उसे चक्कर आया और वैद्य जी को बुलाया गया तो वें बोले कि बहू तो उम्मीद से है...
सुल्भा के दिन जैसे तैसे गुजरने लगे,कुछ महीनों बाद उसने एक बेटे को जन्मदिन दिया,गौतम बहुत खुश था लेकिन सुल्भा खुश ना थी क्योंकि उसके लिए वो अनचाही सन्तान थी,बच्चे की परवरिश करने के कारण सुल्भा दिनबदिन चिड़चिड़ी और कमजोर होती जा रही थी,उसके लिए अब प्यार के मायने ही बदल गए थे,वो सोच रही थी कि अगर वो किसी बड़े घर में ब्याही होती तो इस बच्चे की परवरिश भी किसी राजकुमार की तरह होती,वो अब मन ही मन गौतम से नफरत करने लगी थी और उससे दूर रहने के बहाने खोजा करती और आखिर उसने एक दिन आपने पिताजी को खत लिख ही दिया कि वो अपने किए पर पछता रही है और आपके पास आना चाहती है,आते समय वें तलाक के कागजात भी तैयार करवा कर लाएं........
देवराज नागर के तो मन की ही हो गई थी,वें इस सिलसिले में फौरन वकील से मिले और तलाक के कागजात तैयार करवा कर अपनी मोटर से फौरन ही अपनी दुखिया बेटी के पास आ पहुँचे,गौतम उन्हें वहाँ देखकर बहुत प्रसन्न हुआ लेकिन जब उसे उनके आने का कारण मालूम चला तो सन्न रह गया,सुल्भा ने तलाक के कागजात पर हस्ताक्षर किए और गौतम से भी बच्चे की कसम देकर हस्ताक्षर करवा लिए और अपनी दो चार सूती धोतियों की गठरी और बच्चे को गोद में लेकर अपने बाप की मोटर में बैठ गई,उसे गौतम से बिछड़ने का कोई दुख ना था,
मोटर चल रही थी और सुल्भा अपना सफर तय कर रही थी,अभी वो एकदम शांत थी,उसने मोटर की खिड़की खोल रखी थी और ताजी हवा का आनन्द लेते हुए जा रही थी,आज उसे लग रहा था कि वो साँस ले पा रही है, नहीं तो अब तक तो गौतम के पास उसका दम घुट रहा था,उसे अपने सात महीने के बच्चे की भी कोई चिन्ता ना थी,वो तो उस बन्धन से आजाद होकर आ गई थी,तभी एकाएक बच्चे ने गंदगी कर दी,वो गाँव में रहती थी इसलिए डाइपर वगैरह वो इस्तेमाल ना करती थी,अब दिक्कत आ गई कि बच्चे को कैसें साफ किया जाए?उनके पास केवल पीने लायक ही पानी था और वहाँ रास्तें में कोई पोखर तालाब भी नहीं दिख रहे थे कि वो बच्चे को साफ कर सकें....
तभी उसके दिमाग में एक विचार कौंधा उसने अपनी सूती धोतियों की पोटली से एक सूती धोती निकाली,ये वही धोती थी जो गौतम ने उसे पहले तोहफे में दी थी,उसने उस सूती धोती के अनगिनत टुकड़े किए और बच्चे की गंदगी पोछ पोछकर मोटर की खिड़की से उड़ाने लगी,उसे उस धोती का ऐसा इस्तेमाल करते कोई अफसोस नहीं हो रहा था,बल्कि मन को असीम शान्ति का आनन्द हो रहा , वो साड़ी दोनों के मिलन की साक्षी थी लेकिन अब वो सुल्भा के लिए मनहूस हो चुकी थी,आज गौतम के दिए पहले तोहफे और उसके प्यार की धज्जियाँ उड़ गई थीं.....

समाप्त......
सरोज वर्मा.....


अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED