सोई तकदीर की मलिकाएँ - 36 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • आखेट महल - 19

    उन्नीस   यह सूचना मिलते ही सारे शहर में हर्ष की लहर दौड़...

  • अपराध ही अपराध - भाग 22

    अध्याय 22   “क्या बोल रहे हैं?” “जिसक...

  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

श्रेणी
शेयर करे

सोई तकदीर की मलिकाएँ - 36

 

सोई तकदीर की मलिकाएँ 

 

36

 

सुभाष वहीं गली में खङा सोच में डूब उतरा रहा था कि रौंदू के कहने का मतलब क्या हुआ । ये जयकौर अचानक बङी सरदारनी कैसे बन गई । आज उसे गये कुल जमा छ दिन ही तो हुए है । तब तक तो परिवार में कहीं लङका देखने जाने की भी बात नहीं थी । दोनों भाइयों को जयकौर की चिंता है , ऐसा उनकी किसी बात से जाहिर नहीं हो रहा था । फिर अचानक वह बङी सरदारनी कैसे हो गयी  और अब ये रज्जी कह गयी कि उसे संदेश देने के लिए तो उसकी ससुराल जाना होगा ।

अब वह किससे बात करे । किससे पूछे कि सच क्या है । वह खुद भी उनके घर जा सकता था पर अगर उसकी किसी भाभी ने टोक दिया तो दोबारा वहाँ जाना कैसे हो पाएगा । और उसकी दोनों भाभियां तो दोनों एक से बढ कर खङूस है ही । अपनी भाभी से ही पूछा जाए । ज्यादा से ज्यादा क्या होगा , जी भर कर मजाक उङाएगी । उनका मजाक तो वह सह लेगा पर मन में उठ रहे सवालों का जवाब तो मिले । यह विचार मन में आते ही वह घर लौटा ।

घर में घुसते ही उसने पुकारा – भाभी , ओ भाभी ।

पर कहीं से कोई उत्तर नहीं मिला । चौके की दीवारों में मोरनियाँ काढी गयी थी । उनके पीछे चूल्हे पर दूध कढ रहा था । उसने कंधोल पर से झांका । भाभी वहाँ नहीं थी ।  बरांडा , संभात , कमरा कहीं भाभी नहीं थी । उसने फिर से अधीर होकर आवाज लगाई – भाभी कहाँ हो ।

आती हूँ भई , कुछ देर सबर कर । नहा रही हूँ । शरीर पर दो लोटे पानी तो डाल लेने दे । 

उफ , उसने आँगन के छोर पर टेढे रखे मंजे और उस पर फैला कर रखी चादर  को अब तक क्यों नहीं देखा । अब चुपचाप बैठ कर इंतजार करने के सिवा कोई चारा नहीं था । वह यहाँ से वहाँ टहलता रहा । एक एक पल काटना दूभर हो रहा था । यह भाभी भी आज पूरे साल की मैल उतारने की सोच कर नहाने बैठी है । कब से रगङने में लगी है । लगता है सारी चमङी घिस कर उतार लेगी ।

वह घायल शेर की तरह यहाँ से वहाँ टहलता रहा । बङबङाता रहा ।

आखिर उसका इंतजार पूरा हुआ । भाभी कपङे पहन कर बाहर आ गयी । उसने चारपाई दीवार के साथ लगाई । चादर तह की और परना लेकर बाल झटक झटक कर सुखाने लगी ।

सुभाष से अब और सब्र न हुआ – भाभी , ये शरण की बहन का ब्याह हो गया ।

हाँ रे , आज चार दिन हो गये । सोमवार को लावांफेरे हुए ।

भाभी ने चूल्हे से कढा हुआ दूध उतारा और तवा चढा दिया ।

ऐसे अचानक कैसे । जिस दिन माँ और मैं बुआ के घर गये थे , उस दिन तो शादी ब्याह की कोई बात तक नहीं थी ।

नहीं भाई . अचानक हुआ यह सब । छिंदर कौर अचानक बुलाने आई कि आज ही जयकौर का आनंद कारज होना है . तैयारी करनी है । जल्दी आओ । तो हम गये थे । सबकी रोटी बनी । घर में महाराज की बीङ साहब लेकर आए । भाई जी ने फेरे कराए । बङा सरदार अकेला ही ड्राइवर लेकर आया हुआ था । शाम को पाँच बजे जयकौर विदा हो गयी । सुना है संधवा का सबसे बङा जमींदार है वो । कई एकङ में तो जमीन है । बहुत बङी हवेली है । राज करेगी जयकौर । यहाँ तो कोई सुख नहीं मिला । माँ नहीं बाप नहीं । दोनों भाभियों की गुलामी कर रही थी बेचारी फिर भी सारा दिन गालियाँ मिलती रहती थी । सुबह से शाम तक काम में जुटी रहती । फिर भी भाइयों से एक लफ्ज हमदर्दी का न फूटता । परसों आई थी पगफेरे के लिए । सोने से पीली हुई पङी थी । एक घंटा मुश्किल से रुकी होगी फिर सरदार के साथ ही चली गयी । - भाभी बोलती जा रही थी पर सुभाष को कोई बात सुनाई ही नहीं दे रही थी ।

वह वहीं चारपाई पर बैठ गया । सिर दोनों हाथों से थाम लिया ।

बोलती बोलती भाभी की नजर बेहाल हुए सुभाष पर पङी । उसे यूँ पसीने से लथपथ और घबराया हुआ देख कर वह भी घबरा गयी ।

क्या हुआ ? क्या हुआ ?

कुछ नहीं हुआ भाभी । मैं बिल्कुल ठीक हूँ । आप चिंता न करो ।

ठीक तो नहीं लग रहे । ठहरो मैं नींबू पानी , शिकंजी बना कर लाती हूँ । थोङी पी लोगे तो ठीक लगेगा ।

दो मिनट में ही वह लोटे में शिकंजी लेकर आ गई ।

लो पकङो , पिओ ।

 शिंकंजी पीकर सुभाष को थोङी सांस सामान्य होती दिखी । वह लेट गया ।

भइया मैंने तवा चढाया हुआ है । एक आधा फुल्का खा लो ।

नहीं भाभी अभी मन नहीं है । थोङी देर में जब मन होगा , बता दूँगा । अभी आप अपना काम कर लो ।  

वह चादर ओढ कर लेट गया । चादर ने उसे परदा उढा दिया । आँसू उसकी आँखों से लगातार बहते रहे । पाँच दिनों में किसी की दुनिया यूं उजङ जाती है , ये तो उसने सपने में भी नहीं सोचा था । बुआ के घर जाना उसे इतना महंगा हो जाएगा , उसने अंदाज भी नहीं लगाया था ।

रानी स्कूल से लौट आई थी । उसने चारपाई के नीचे सुभाष के जूते पङे देखे तो खुशी से भर कर चिल्लाई – भाई , तू आ गया । तू कब आया ।

सुभाष ने अपनी आँखें मसल कर आँसू सुखाए और चादर सरका कर उठ कर बैठ गया । रानी दौङ कर उसकी छाती से लग गयी – भाई , कैसा है तू ? बुआ कैसी है ? माँ नहीं आई ? कब आएगी ?

अरे सांस तो ले । एक साथ इतने सारे सवाल करोगी तो जवाब कैसे दूँगा । बुआ ठीक है । थोङी कमजोरी है वह भी जल्दी ठीक हो जाएगी । माँ अगले हफ्ते आ जाएगी ।

भाई तुझे पता है । जयकौर बहन का ब्याह हो गया । उसका दूल्हा थोङा बूढा है पर बहुत अच्छा है । शादी में मेहंदी लगाने के सारी लङकियों को बिना मांगे ही पाँच पाँच सौ रुपए दिए । मुझे भी पाँच सौ रुपए मिले । सबको लड्डू भी खिलाए । खाने के लिए रसगुल्ले भी सबको मिले ।

जयकौर बहन तुझे पूछ रही थी । दो बार बुलाया मुझे । सुभाष कहाँ है । मैंने बता दिया – भाई तो माँ के साथ बुआ का हाल देखने गया है । बुआ अस्पताल में है ।

फिर ..

फिर तो कुछ नहीं । वह बस्ता फेंक कर बाहर सहेलियों के साथ खेलने भाग गई ।

सुभाष के दिमाग में उसका एक ही वाक्य गूंज रहा था – जयकौर तुझे पूछ रही थी ।

 

 

बाकी फिर ...