नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 7 Sunita Bishnolia द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 7

बड़ी बहनों के बारे में बताने के बाद काकी अपने बारे में बताते हुए कहती हैं -
" मैं अब्बू के साथ दुकान पर बैठती थी इसलिए कभी-कभी पहाड़ी वाले मंदिर पर फूल पहुँचाने जाती थी। वहाँ भजन और आरती सुनती तो मैं भी गुनगुनाने लगती थी वहाँ सभी मेरी आवाज़ की तारीफ करते थे ।
वापसी में रास्ते में आते हुए रेडियो पर बजने वाले गीत सुनती और उनमें डूब कर खुद गाने लगती थी। अब्बू मेरी आवाज की बहुत तारीफ करते और अलग-अलग गीत सुनाने की फरमाइश करते।
अब्बू कहते मैं मीरा बाई के भजन बहुत ही अच्छे गाती हूँ उनको मेरी आवाज में दर्द का अहसास होता था।
मेरा छोटी बहनों को स्कूल छोड़ने जाने के टेम पर तुम्हारे काका रोज हमारी दुकान के सामने से अपनी शाही बग्घी ले जाते थे क्योंकि रानी साहिबा पहाड़ी वाले मंदिर में रोज दर्शन करने जाती थी। अब ऎसे ही किसी दिन तुम्हारे काका ने कभी मुझे गाते हुए सुन लिया और उसी दिन से वो मेरे दीवाने हो गए।
कहते-कहते म्माली काकी शर्म से लाल हो जाती है और हम उनसे पूछते -‘‘और आप! ’’ तो माली काकी शरमाते हुए जवाब देती -‘‘तुम्हारे काका की हरकतें ही ऐसी थी कि कोई भी उनसे प्यार करने लगे।’’
‘‘अच्छा.... क्या करते थे ऐसा काका।’’
बहुत खुशमिज़ाज के थे वो, रानी साहिबा उनके अलावा किसी को अपनी बग्घी नहीं चलाने देती थी। बड़े बातूनी थे तुम्हारे काका, रानी साहिबा किसी की बात का उत्तर ना दे पर तुम्हारे काका की बात का जवाब जरूर देती। मजाल है उनकी बग्घी राजमहल ओर मंदिर के बीच में कहीं रूक जाए। पर.... तुम्हारे काका कभी-भी बहाना करके हमारी दुकान से फूल लेने के बहाने रूक जाते।
एक दिन जब मैं दुकान पर बैठकर पड़ौस में रहने वाले भँवर बाबो सा को मीरा का भजन सुना रही थी। तो तुम्हारे काका ने दुकान के सामने बग्घी रोक ली। तभी रानी साहिबा ने मेरा भजन सुना और अपने पास बुलाकर मेरे सिर पर हाथ रखा और आशीर्वाद दिया। उस दिन तो हमारे मोहल्ले भर में यह खबर फैल गई और सभी अब्बा को बधाई देने आने लगे। उसी दिन शाम को तुम्हारे काका खुद अपनी आपा के साथ हमारे घर रिश्ता लेकर आए।
उस समय घर पर कई पड़ोसी आए हुए थे, सभी की रजामंदी से अब्बा ने खुशी-खुशी मेरा रिश्ता तुम्हारे काका से कर दिया।
‘‘काकी और शादी कितने दिनों बाद हुई आपकी।’’ -हमने काकी से पूछा और निर्मला ने काकी की पहनी हुई राजपूती पोशाक को हाथ लगाते हुए पूछा- ‘‘काकी क्या आप शुरू से ही राजपूती पोशाक पहनती हो या बाद मे पहनने लगीं।’’
हमारे प्रश्नों का उत्तर देते हुए काकी कहती- ‘‘मेरा रिश्ता होने के दो महीने बाद मेरा निकाह हो गया। तुम्हे पता है रानी साहिबा मुझसे इतना खुश थी कि मेरे निकाह में राजमहल से पाँच राजपूती पोशाकें , चाँदी के बर्तन सोने का सैट और एक घोड़ा गाड़ी उपहार में भेजी ।
मैंने अब्बू और आपा से राजमहल से आया सामान रखने को कहा था पर अब्बू ने उसमें से कुछ नहीं रखा बल्कि अब्बू ने घोडा गाड़ी पर मेरा नाम ‘जुबैदा’ लिखवा दिया और उसी घोड़ागाडी में मेरी विदाई हुई।’’
क्रमशः...
सुनीता बिश्नोलिया