नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 8 Sunita Bishnolia द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 8

'‘जुबैदा! आपका नाम है जुबैदा... वो तो आपके तांगे पर लिखा है तो क्या ये वही तांगा है।’’ ये जानकर हमारे आश्चर्य और जिज्ञासा की सीमा न रही। तो काकी भी जैसे अपनी हर दास्तां सुनाने के लिए तैयार थी। वो बिना रुके बोली -‘‘निकाह के साल भर बाद ही अल्लाह के फ़ज़ल से बेटी रुखसार गोद में आ गई और रुखसार के सालभर का होते -होते तुम्हारे भाई बाबू हमारी कोख में आ गए।’’
काकी की आँखों में छाई उदासी और बैचेनी हमें कुछ भी बोलने या पूछने से रोक देती इसलिए हम लड़कियाँ चुपचाप काकी के बोलने का इंतजार करती रहती।
आगे की कहानी बताती हुई काकी कहती- मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि तुम्हारे काका कभी मुझे धोखा दे सकते हैं या उनकी ज़िंदगी में कोई और है। बेटी होने के बाद घर के कामों के साथ ही मैं उसको पालने में इतनी मशगूल हो गई कि ये जानने की कोशिश ही नहीं की कि ये इतनी-इतनी देर से घर क्यों आते हैं।
कभी-कभी शाम को राजमहल से आकर तुम्हारे काका घोड़ागाड़ी लेकर ऐसे निकलते कि रातभर घर ही नहीं आते थे। कभी आधी रात को घर आते तो बड़े गुमसुम और और मायूस से। उनकी आँखों में मेरे लिए प्यार की कमी नहीं दिखती थी पर बेचारगी और मायूसी जरूर उनकी नजरों में दिखाई देती थी।
मैंने कई बार उनसे पूछा पर उन्होंने कभी कुछ नहीं बताया बल्कि उल्टी-सीधी बातें करते, कभी बिना ही बात मुझसे माफी माँगते कभी कहते अगर मुझे कुछ हो गया तो बच्चों का ध्यान रखना।
ऐसी बातें करने पर मैं उनसे बहुत झगड़ती, बहुत गुस्सा होती। पर वो ना जाने क्यों दिन-दिन पीले पड़ते जा रहे थे। एक दिन तो हद ही हो गई। तुम्हारे काका ने मुझे कहा तुम सलवार कमीज मत पहना करो, तुम पर पोशाक ही जचती है। रानी साहिबा की दी हुई पोशाकें और सारा सामान अपने अब्बू के घर ले जाओ। तुम्हारे काका कहते रहे मैं उनका मुँह देखती रही।
वो फिर कहते है - ‘‘देखो जुबैदा किसी पर बोझ मत बनना, मेरी बेटी और मेरे होने वाले बच्चे को अम्मी ओर अब्बू दोनों का प्यार देना। ये घोड़ागाड़ी तुम्हारी है इसी से अपना और अपने बच्चों का पेट भरना।’’
ये बात बताते हुए माली काकी की आँखें आँसुओं से भर जाती है पर वो बात को जारी रखते हुए आगे बताती है कि- तुम्हारे काका का ऐसी बातें करना मुझे नागवार गुजरा पहले तो मैं उनसे नाराज हो गई पर बाद में सिर पर हाथ लगाया तो देखा तबीयत तो ठीक है, बस बातें ही बहकी बहकी कर रहे है।
मैंने रात को ही सोच लिया था कि सुबह तुम्हारे काका को हमारे पड़ोस में रहने वाले भँवर काको सा को दिखाकर लाऊँगी। वो बहुत बड़े वैद्य थे उनके पास हर मर्ज़ की दवा है वो राशिद को भी ज़रूर ठीक कर देंगे।
सुबह उठी तो देखा तुम्हारे काका ने मेरा सामान दो-तीन थैलों में भरकर रखा हुआ है और मेरे बाहर आते ही देखा कि एक बानो एक बच्चे को गोद में लिए बैठी है। तुम्हारे काका ने मुझे बानो से मिलाते हुए कहा - " जुबैदा बानो को तो जानती हो ना तुम!"
क्रमशः...
सुनीता बिश्नोलिया