नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 4 Sunita Bishnolia द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 4

"मुझे छोड़ गए बालम..! "
विरह-वेदना की तड़प, उनके कंठों से निकले इस गीत में करूण पुकार खुद सुना जाती दास्तान प्रियतम के धोखे की ।
वो तड़प, वो सिसकियाँ सुनकर मोहल्ले भर की औरतें उस ओर खिंची चली आती। उनके गीतों में डूबकर वो भूल जाती कि वो काकी के दुख तकलीफ को बांटने आईं हैं और सभी महिलाएं काकी का संबल बनने की बजाय बैठ जाती उनके चारों ओर गीत सुनने । औरतें ही नहीं वरन मोहल्ले भर की लडकियाँ भी मंत्रमुग्ध हो सुनती थी काकी के गीत।
आसपास बैठी औरतों की उपस्थिति से अनजान दीवार पर टंगी शोहर की श्वेत श्याम तस्वीर को देखकर गाते-गाते फफक पड़ती -‘‘छिप गया कोई रे दूर से पुकार के दर्द अनोखे हाय! दे गया प्यार के!’’
पति की सूरत देखकर आँखों से गंगाजल बहाती माली काकी को देखकर कोई नहीं कह सकता कि ये भावुक प्रेयसी वही है जो दिनभर मर्दों की दुनिया में बड़े रौब से रहती है।
यह भी बता दूँ वो सिर्फ रौब से रहती ही नहीं बल्कि अपने आचरण और व्यवहार से कस्बे में ऐसी इज्जत और सम्मान कमाया कि कोई उनकी ओर आँख उठाकर देख भी नहीं सकता।
पुरूषों के समान ही मेहनत करती तथा अपना और अपने बेटे का पेट भरती है। वो भी ऐसा काम जिसे महिलाओं के लिए उस समय क्या आज भी अच्छा नहीं मानते।
और इस काम में कमाई भी क्या थी शायद कमाई से ज्यादा तो खर्चा ही था क्योंकि इन दो प्राणियों से ज्यादा खर्च इनके लाडले 'बन्ने खां' पर ही हो जाता था ।
मेरे मन में कई बार आता था कि मै ही पूछ लूँ कि आप तांगा क्यों चलाती हैं। अगर इसके अलावा कोई दूसरा काम करें तो भी अपना और अपने बेटे का पेट भर सकती है। पर उनकी आँखों में बेटे की ही तरह बन्ने खां के लिए बरसती ममता मुझे कुछ भी पूछने से रोक देती।
मोहल्ले भर की औरतें मंत्रमुग्ध हो काकी के गीत और उनके किस्से सुना करती थी।. हम लड़कियाँ ये इंतज़ार करती कि कब सारी औरतें जाएं और कब काकी हमें अपनी पूरी कहानी सुनाए। उनकी बातें उनके किस्से सुनते-सुनते समय का पता ही नहीं चलता था। हम खोए रहते उनके किस्सों में पर अंत तक जाने से पहले ही घर से कोई ना कोई बुलाने आ जाया करता और अगले दिन पूरी बात बताने का वादा कर काकी भी हमें भेज कर दरवाजा बंद कर लेती।
काकी की बातें सुनकर उनके बारे में हर एक बात जानने की जिज्ञासा में पूरी रात नींद नहीं आती थी। वो चाहे कितनी ही थकी हुई हो हम लोगों को देखकर उनको गुस्सा नहीं आता बल्कि ऎसा लगता था जैसे हमें देखकर उनको और ऊर्जा मिलती है।
हमारी जिज्ञासा का मुख्य कारण दीवार पर टंगी फोटो में काका का राजसी कपड़ों में होना था। तथा एक फोटो में काका और काकी दोनों एक राजसी बग्गी के पास खड़े दिख रहे थे। दीवार पर बाबू भैया और रुख़सार दीदी की साथ में लगी एक बहुत ही सुंदर फोटो भी मन में कई प्रश्न खड़े करती थी।
काकी से जब भी काका के बारे कुछ पूछते तो उनके चेहरे पर गुलाबी रंगत छा जाती थी....

क्रमशः...
सुनीता बिश्नोलिया