एक रूह की आत्मकथा - 32 Ranjana Jaiswal द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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एक रूह की आत्मकथा - 32

अपने जीवन से अनीस और रमेश के जाने के बाद रेहाना ने फैसला कर लिया कि अब वह अकेली ही रहेगी।अब उसकी जिंदगी में दूसरा पुरूष नहीं आएगा।
पर वह नहीं जानती थी कि एक स्त्री का अकेला रहना इतना कठिन हो सकता है।
''तुम्हारा जीवन एक रोमांचक उपन्यास है |'' एक दिन लीला ने उससे कहा था ।कभी -कभी वह भी सोचती है कि लीला ने कितना सत्य कहा था |सचमुच उसका जीवन एक उपन्यास ही है| जिसके कई अध्याय हैं |हर अध्याय अपने आप में एक पूरा जीवन है |अध्याय के पात्र अलग हैं ।उनकी परिस्थितियाँ अलग हैं पर सभी अध्यायों की नायिका वही है |लगभग एक- सी पीड़ा की भोक्ता |एक-सी नियति की शिकार |वही अकेली लड़ती स्त्री |जब भी वह अपने अतीत की ओर देखती है ,देखती रह जाती है|क्या यह उसी का जीवन था ? एक जीवन में कितना जीवन जीती रही है वह !क्या उसने ही यह सब भोगा है ! एक जीवन से दूसरे जीवन में प्रवेश आसान तो नहीं होता |पुरानी देह छोड़नी पड़ती है और नयी देह में प्रवेश करना पड़ता है |हर जीवन से स्मृतियाँ जुड़ी होती हैं-खट्टी-मिट्ठी ,कड़वी- कषाय |जो अचेतन से चेतन में आकर तड़पाती हैं क्योंकि आत्मा तो वही रहती है ।देह बदलने से वह बदल थोड़े जाती है ! वह अपनी आत्मा पर कितने आघात झेलती रही है ! सब -कुछ लुटाकर भी वह कुछ न पा सकी |पाया भी तो अकेलापन। जीवन में कुछ तो नहीं मिला उसे |जो मिला भी उसका कहाँ रहा ? वह सबकी थी,पर उसका कोई नहीं हुआ |आज उसके जीवन से जुड़े हर शख्स के पास सब कुछ है पर उसके पास कुछ नहीं |दुनिया के सामने वह एक छ्द्म जीवन जीती है |सच को सच नहीं कह पाती |
अकेलेपन को भरने के लिए उसने क्या-क्या नहीं किया ,फिर भी अकेली रह गयी |जब भी उसने सामान्य जीवन की आकांक्षा की ,जरा भी असावधान हुई या विश्राम लिया ,वहीं फंसी,वहीं उसके जीवन में नए पन्ने जुड़े। शोषित हुई | कुछ और पीड़ा हिस्से में आई |
अब उम्र के इस पड़ाव पर उसे मान ही लेना चाहिए कि अकेलापन उसकी नियति है। पर देख रही है कि उसके उपन्यास का पृष्ठ बनने के लिए जाने कितने पन्ने फड़फड़ा रहे हैं ।क्या रोक पाएगी वह उन्हें जुड़ने से ? जीवन अभी शेष है तो उपन्यास पूरा कैसे हो सकता है ?
कामिनी की हत्या उसे जीवन की नश्वरता का बोध कराने लगी है |उसे अपने जीवन की समीक्षा के लिए उकसाने लगी है |वैसे भी उम्र के चालीसवें शिशिर में स्त्री वैराग्य की ओर मुड़ जाए तो क्या आश्चर्य ! क्या सच ही संसार से उसका मोह भंग हो रहा है !वह खुद को टटोलती है तो कोई संतोषजनक उत्तर नहीं पाती |इतना तो लगता है कि वह बदल गयी है |बहुत कुछ परिवर्तित हुआ है उसमें |देह-मन ,भावना सभी स्तरों पर पर यह अवसाद भी हो सकता है |कामिनी की हत्या ने उसे हिला दिया है |अब हर रात उसे अपनी मृत्यु का आभास होता है |एकाएक जैसे वह बूढ़ी हो गयी हो |कामिनी थी तो वह खुद में कितनी ऊर्जा ,शक्ति और यौवन पाती थी ,मृत्यु के बारे में तो कभी सोचती ही नहीं थी ,पर कामिनी अपने साथ उसकी सारी खुशी,सारी जिजीविषा लेकर चली गयी |अब तो वह जैसे मौत के साये में ज़िंदगी को जी रही है |काम करने की मजबूरी है ,इसलिए काम किए जा रही है |एक-सी दिनचर्या, एकरस- सी जिंदगी |इस समय अगर कोई उसके साथ होता ,तो शायद वह इतनी नीरस जिंदगी नहीं जीती, पर उसकी किस्मत में कहाँ किसी का साथ लिखा है ?शायद उसमें ही कोई कमी है कि वह अकेली रह गयी या शायद वह इस दुनिया के लिए बनी ही नहीं थी |वह जीवन भर किस्मत से लड़ती रही, पर कहाँ जीत पायी उससे ?पर हार भी तो नहीं मानी है |हार न मानना जीत से कम नहीं होता | अपने अस्तित्व के लिए, अपनी पहचान के लिए वह जीवन भर संघर्ष करती रही।लड़ती रही तो योद्धा तो हुई ही,पर उसे कौन योद्धा मानता है ?उसकी सारी खूबियों पर उसका पुरूष- प्रेम भारी पड़ गया।
रेहाना जानती है कि हमारे समाज में स्त्री अपनी देह की इच्छाओं,कामनाओं ,जरूरतों के बारे में नहीं सोचती ।वह पुरुष की इच्छा,कामना ,जरूरत के समक्ष आत्मसमर्पण करती रही है ।उसकी अस्मिता में अपनी अस्मिता मिलाती रही है ।उसके होने में अपना होना देखती रही है मगर पुरूष ने उसे कभी अपनी बराबरी का हक नहीं दिया।उसका सम्मान नहीं किया,उसकी इच्छाओं को महत्व नहीं दिया ।वह खुद को विशिष्ट मानता रहा।स्त्री उसकी इच्छा की पूर्ति का माध्यम बनती रहे ,उसकी वंश परम्परा को आगे बढ़ाती रहे।उसके घर को बनाती -सँवारती रहे ।पारिवारिक और सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करती रहे,यही तो स्त्री होना है।बदले में वह उसे सुरक्षा ,संरक्षण और अपना नाम देता है।वह सोचता है कि स्त्री को और क्या चाहिए?जो स्त्री अपने लिए अलग से कुछ चाहती है या पुरुष की तरह अधिकार चाहती है वह उसके लिए शरीफ़ स्त्री क्या, स्त्री कहलाने की भी अधिकारी नहीं ।
यह समाज स्त्री का खुलापन बर्दास्त नहीं करता |हर कोई इस ताक में रहता है कि स्त्री के खुलेपन पर चरित्रहीनता का ठप्पा लगा दे |
रेहाना के जीवन में जो भी प्रेमी या दोस्त आया।उसने प्रेम के नाम पर उसके जीवन के खालीपन को भरने का दावा किया।पर जब उसने कभी किसी के सामने उसका नाम ले लिया या उसे अपना लेने को कहा तो वह बौखला गया ।फिर उसने अपने को निर्दोष बताने के लिए या अपना पक्ष को मजबूत करने के लिए बेशर्मी से कह दिया कि 'वह गलत है ।उसी ने उसे गलत करने के लिए उकसाया ।जब पहले वह गुप्त रिश्ते के लिए सहमत थी तो बाद में अपनाने के लिए जिद क्यों कर रही ह?
कुछ ने तो यहाँ तक कह दिया कि भला ऐसी स्त्री को कौन अपनाना चाहेगा, जो बहत्तर घाट का पानी पी चुकी हो।
रेहाना को पहले इस बात से कष्ट होता था,पर फिर उसकी आदत हो गई।अब वह खुद इस्तेमाल नहीं होती बल्कि अपने पुरुष-मित्रों को इस्तेमाल करती है।उनसे स्थायी रिश्ते की उम्मीद नहीं रखती।
वह जानती है कि समाज में हर स्थिति के लिए स्त्री को जिम्मेदार ठहराने की प्रवृति आदिम समय से ही रही है और आज भी इतनी हावी है कि अन्य पहलुओं पर ध्यान ही नहीं दिया जाता |रेहाना का आक्रोश इसी व्यवस्था ,ऐसी ही मानसिकता के प्रति है।
पर सच्चे प्रेम की चाहत उसके मन में कसकती रहती है।वह लीला की दोस्त थी ,फिर भी कामिनी और समर के प्रेम से वह खुश थी।समर का साहस उसके मन को छू गया था।समर ने आगे बढ़कर पूरे संसार के सामने अपने प्रेम को स्वीकार किया था ,उसे अपनाया था।
काश,उसके जीवन में भी कोई समर होता।