एक रूह की आत्मकथा - 31 Ranjana Jaiswal द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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एक रूह की आत्मकथा - 31

कुफ़री के जाखू हिल के शिखर पर जाखू मंदिर है। मंदिर तक पहुंचने का रास्ता बहुत खतरनाक है।उबड़-खाबड़,पतली खुरदरी पगडंडियां और उनके दोनों तरफ़ खाइयाँ।जरा- सा भी पैर फिसले तो फिर इंसान का पता भी न चले।सभी बच्चे खच्चरों पर सवार थे।एक खच्चर पर एक बच्चा बैठा था ।खच्चर पर लगी काठी से बच्चों को सुरक्षित बांध दिया गया था ताकि वे उछलकर गिर न सकें।खच्चर को चलाने वाले चालक उसका लगाम पकड़े पैदल ही चल रहे थे।अमृता को बहुत डर लग रहा था ।उस पतली पगडंडी पर एक ही खच्चर जा सकता था।सभी खच्चर पीछे से एक -दूसरे से बंधे थे और एक -एक करके आगे बढ़ रहे थे।अमृता के चालक ने पी रखी थी।वह अपने खच्चर को आगे भगाने के लिए चाबुक से मार रहा था।अमृता को डर लग रहा था कि कहीं खच्चर नाराज़ होकर इधर -उधर पैर न बढ़ा दे फिर तो उसकी हड्डियां भी ढूंढे नहीं मिलेगी।


"तुम इसे इतना क्यों मार रहे हो ?कहीं यह दौड़ पड़ा या इसका पैर इधर -उधर हो गया तो.....।"अमृता ने चालक को डांटा।


"अरे मेम साब,आप आराम से बैठो।ये सब ट्रेनिंग पाए हुए जानवर हैं।रोज़ कई- कई खेप आते- जाते हैं।वैसे मैडम अपने जान का डर तो इनको भी है न।ये एक भी गलत कदम नहीं उठाएंगे।"चालक ने हँसते हुए जोर से कहा।


अमृता के खच्चर के ठीक पीछे अमन का खच्चर था।चालक की बात सुनकर वह भी जोर से हँस पड़ा।अमृता को चालक के साथ ही अमन पर भी बहुत गुस्सा आया।


तभी उसने देखा की आगे की पगडंडी बहुत ऊंचाई की तरफ जा रही है।उसने डर के मारे आंखें बंद कर लीं और जोर -जोर से देवी चालीसा पढ़ने लगी।कई लड़कियां तो डर की वजह से चीख पड़ी थीं,पर लड़के खूब मज़े ले रहे थे।वे जोर -जोर से चिल्ला रहे थे।गाने गा रहे थे।


मंदिर के प्रवेश -द्वार से काफी पहले ही चालकों ने सभी बच्चों और साथ गएअध्यापक /अध्यापिकाओं को खच्चरों से उतार दिया।खच्चर चालकों ने वापसी के लिए उन्हें शाम के चार बजे का समय दिया।फिर वे अपने खच्चरों को दूसरी पारी वाले यात्रियों को लेने चले गए।यह उनका रोज़ाना का काम था।


खच्चर से उतरकर

अमृता की जान में जान आ गई थी।
अब वह वापसी के लिए डर रही थी।
जाखू मंदिर वास्तव में बहुत ही भव्य और सुंदर था।उसके हर भाग में एक मनमोहक आध्यात्मिकता थी। शायद इसी कारण वह आध्यात्मिक रूप से प्यासे आगंतुकों के बीच प्रसिद्ध है। मंदिर में भगवान हनुमान की एक मूर्ति थी, जो दुनिया की सबसे ऊंची मूर्तियों में से एक होने के लिए प्रसिद्ध है। लोग इस मंदिर में शांति और आत्म-खोज के लिए आते हैं।


सभी बच्चों ने उस मंदिर को श्रद्धाभाव से देखा।मंदिर के करीब ही एक सुंदर उद्यान था।उस उद्यान में नाना प्रकार के रंग -बिरंगे फूल खिले हुए थे।अमृता उस उद्यान की सुंदरता देखती रह गई।


बच्चे फागू भी जाना चाहते थे,पर वे फागू नहीं जा पाए ।फागू के बारे में उन्होंने पढ़ रखा था कि


फागू अथाह सुंदरता से सराबोर है पर वह गर्मियों में ही देखने योग्य होता है।वहां हमेशा कुहरा छाया रहता है और वह 2,450 मीटर की ऊंचाई तक फैला हुआ है।फागू दिल को रोमांच और विस्मय से भर देता है। जब ठंडी हवा चेहरे को गुदगुदाती है और बालों को चिकना करती है तो सबको बहुत खुशी महसूस होती है।


वह शिमला से तेरह किलोमीटर ऊपर है।


समर और अमृता ने दूसरे बच्चों के साथ इंद्रा राष्ट्रीय उद्यान भी देखा।यह स्मारक स्थल न केवल एक पर्यटक आकर्षण है। इसका नाम हमारे स्वर्गीय प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के नाम पर रखा गया था, जो शिमला समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए इस क्षेत्र में आई थीं। यह सबसे लोकप्रिय कुफरी पर्यटक आकर्षणों में से एक है।


अमन ने दूसरे बच्चों के साथ कुफ़री के मुख्य बाज़ार से कुछ खरीदारी भी की ।कुफरी का मुख्य बाजार एक ऐसी जगह है जहां सभी आवश्यक और सामान्य चीजें मिल जाती हैं।मुख्य बाजार की कई दुकानों में कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स, जूते, उपहार की दुकानें और स्ट्रीट फूड सब उपलब्ध थे।


अमृता के लिए सबसे मज़ेदार था कुफ़री का चिड़ियाघर।यह महानगर से काफी दूर था, पर था बहुत शानदार। इस चिड़ियाघर में विभिन्न वन्यजीवों के घर थे, जिनमें तीतर, रोगी पतंग, हिम तेंदुआ और असामान्य मृग शामिल थे। कई तरह के पक्षियों का घर भी था । इतना सुव्यवस्थित चिड़ियाघर अमृता ने पहले कभी नहीं देखा था । वह अपनी आंखों के सामने सुंदर प्रकृति को प्रकट होते देख रही थी। उसे यह अविश्वसनीय लग रहा था। इसे देखते हुए उसे समय का पता ही नही चला।


चिड़ियाघर के सौंदर्य को निहारते हुए दूसरे बच्चे दूर निकल गए थे।अमृता थक गई थी,इसलिए वह धीरे -धीरे चल रही थी।उसका साथ देने के लिए अमर ने भी अपनी गति धीमी कर ली थी।


"अमृता,जरा तेज़ चलो न,हम पीछे छूट जाएंगे।" अमन ने थोड़ा झुंझलाकर कहा।


"अरे,तुम क्यों मेरे पीछे चल रहे?आगे चले जाओ न।मैं थक गई हूं।ज्यादा तेज़ नहीं चल पाऊँगी।"


अमृता ने हाँफते हुए जवाब दिया।


"फिर नहीं आना था न!"


"कैसे न आती?मुझे प्रकृति से प्यार है।पहाड़,नदियाँ,झरने,सागर,सूरज चाँद,फूल,पौधे और ये खुली हवाएँ मुझे पसंद हैं।"


अमृता अपनी जगह पर रुक कर गोल- गोल घूम गई।


"अच्छा ...अच्छा पर आगे बढ़ती रहो ।सुनो ,हमारे टीचर हमें पुकार रहे हैं।"


अमन को अमृता के इस बचपने पर प्यार आ रहा था।


वह टूर का आखिरी दिन था।दोनों अब साथ चल रहे थे।सभी बच्चों को शाम के चार बजे तक निकास -द्वार के एक स्थान पर एकत्र होना था।वहाँ पर उनकी बस खड़ी थी।
सफ़ेद मोरों को नाचते देख अमृता के कदम रूक गए।वह उनका वीडियो बना रही थी।अमन उसे रूका देख कर किनारे के एक पत्थर पर बैठ गया।अमृता वीडियो बनाने में इतनी लीन थी कि उसने अमन को बैठे हुए नहीं देखा और उसके ऊपर गिर पड़ी।अमन उसे लिए- दिए घास पर गिर पड़ा।नीचे अमन था उसके ऊपर अमृता।दोनों की देह रोमांचित हो उठी।दोनों के लिए विपरीत साथ का यह नया अनुभव था।
किशोरावस्था देह और मन में अनगिनत बदलाव लाता है।यौन-इच्छाएं देह और मन में उमड़ने लगती हैं ।विपरीत लिंग का अहसास और साथ ख़ुशगवार लगने लगता है।उनमें पारस्परिक आकर्षण पनपने लगता है।यह आकर्षण कब प्यार में बदल जाए,पता नहीं होता।
अमृता और अमन एक -दूसरे को पसंद करते थे।एक -दूसरे को जानते -समझते थे।उनमें अच्छी दोस्ती थी।दोस्ती की एक वज़ह यह थी कि उनके मम्मी पापा भी दोस्त थे।दूसरे दोनों की रूचियाँ एक -दूसरे से बहुत मिलती- जुलती थी।अमन ग्यारहवीं कक्षा में था और अमृता नवीं में।बारहवीं के बाद अमन अपने शहर में ही पढ़ेगा,यह बात उसने अमृता को बताई थी।अमृता ने भी दसवीं के बाद ऐसा ही कुछ करने का इरादा किया है।अमन की बहन उसी की कक्षा में है।जाने उसका निर्णय क्या होगा?वैसे अमृता को विश्वास है कि अमन के बाद वह भी यह आवासीय विद्यालय छोड़ देगी।