आंसु पश्चाताप के - भाग 6 Deepak Singh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • जंगल - भाग 10

    बात खत्म नहीं हुई थी। कौन कहता है, ज़िन्दगी कितने नुकिले सिरे...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 53

    अब आगे रूही ने रूद्र को शर्ट उतारते हुए देखा उसने अपनी नजर र...

  • बैरी पिया.... - 56

    अब तक : सीमा " पता नही मैम... । कई बार बेचारे को मारा पीटा भ...

  • साथिया - 127

    नेहा और आनंद के जाने  के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई...

  • अंगद - एक योद्धा। - 9

    अब अंगद के जीवन में एक नई यात्रा की शुरुआत हुई। यह आरंभ था न...

श्रेणी
शेयर करे

आंसु पश्चाताप के - भाग 6

आंसु पश्चाताप के, भाग 6




हाँ भाभी मैं सदर हॉस्पिटल के डॉक्टर आनंद से इलाज करवा रही हूँ , डाक्टर आनंद सदर हॉस्पिटल के फेमस डॉक्टर हैं , उन्होंने कल्पना की बच्ची को मरने से बचाया ।
क्या कल्पना की बच्ची ?
हाँ भाभी आपको नहीं पता उसकी बच्ची सीढ़ियों से गिर गई थी , बहुत गंभीर चोट लगी थी उसको बचाने के लिये प्रकाश भैया ने अपना खून भी दिया नहीं तो उसका बचाना मुस्किल था , क्या प्रकाश भैया आपसे नहीं बताये . . .
नहीं मुझे नहीं पता ,
हाँ भाभी कल्पना के साथ साथ प्रकाश भैया भी वहाँ मौजूद थे , मैंने उनको ब्लड देते हुए अपनी आंखों से देखा , भाभी उनके खानपान पर थोड़ा विशेष ध्यान रखना . . .

ज्योती के कटे पर नमक डालकर मोना अपने घर चली गई . . . ज्योती को लगा जैसे किसी ने उसके पुराने जख्मों को कुरेद दिया हो , वह अन्दर ही अन्दर तड़पने लगी ।

ढलती शाम की रोशनी में किरन रोज की भांति छत के ऊपर झूले पर बैठी थी , उसी पल किरन अपने मोबाइल को अपने कानों से स्पर्श करके बोली - हैलो
नमस्ते दीदी ,
खुश रहो ज्योती कैसी हो ?
क्या बताऊं दीदी गिन गिन कर दिन काट रही हूँ ,
तुम इतनी गमगीन होकर क्यों बोल रही हो तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ,
हाँ दीदी तबीयत ठीक है आप एक दिन जीजा जी के साथ मेरे यहाँ आओ . . .
ज्योती मैं इन दिनों नहीं आ सकती परन्तु तुम्हारे जीजा जी को कल ही तुम्हारे यहाँ भेज दूंगी ।

अगले दिन नग्न ज्योती के घर पहुंचा , अपने जीजा को अपने दरवाजे पर देखकर वह प्रसन्न हो गई , नमस्ते अभिवादन करती हुई उसको अपने साथ लेकर ड्राइंग रूम में दाखिल हुई , फिर अपने जीजा को बैठने का संकेत कि उसका संकेत मिलते ही नग्न सोफा पर बैठ गया ।
चन्द समय बाद अपने हाथ में कुछ खाने पीने की चीज और एक कप कॉफी लेकर आई , वाह मेरे लिए गरमा गरम कॉफी , जी हाँ मुझे मालूम है मेरे जीजा जी को काफी बहुत पसन्द है ,
वह प्याला अपने हाथों में लेकर बोला ,
बैठो ज्योती प्रकाश कहाँ है ?
कहीं बाहर गये हैं ,
कब तक आयेगा ,
बता नहीं सकती ,
खैर जब भी आये अब तुम बताओ इतनी मायूस क्यों हो क्या बात है ?
क्या बताऊं जीजा जी जब कमी अपनों में ही है ,
हर समस्या का कोई न कोई समाधान होता है , अब तक तो कोई शिकायत नहीं थी इनसे अब क्या हो गया है , वही प्रकाश है और वही तुम हो ,
हमने प्रकाश को प्रकाश समझा लेकिन प्रकाश कुछ और ही निकले ,
नहीं ज्योती तुमको कोई गलतफहमी हुई है ,
प्रकाश कहीं भटकने वाला नहीं है ,
वह सभ्य व्यक्ति है मुझे विश्वास नहीं हो रहा . . .
विश्वास तो मुझे भी नहीं था लेकिन जब से किसी गैर के तरफ अपना कदम बढ़ाने लगे हैं , उसी समय से मेरे दिल में उनके प्रति नफरत होने लगी है ,
तुम दोनों के बीच यह बाहरी कौन टपक पड़ा . . .
एक कल्पना नाम की विधवा औरत जो सेक्टर 12 में रहती है . . .
" छी छी - छी छी, यह तुम क्या कर रही हो ?
मैं सच कह रही हूँ ,
कुछ देर खामोश रहने के बाद नग्न बोला घर आने दो प्रकाश को मैं अच्छी तरह समझाऊंगा . . .
पिताजी बहुत समझा कर गए परन्तु उनकी एक भी बात यह अमल नहीं किये ,
जीजा जी इनको अच्छी तरह समझाना होगा ।
नग्न कुछ और ही सोचने लगा , अगर ज्योती प्रकाश से किसी तरह रिश्ता तोड़ लेगी , धर्मदास की सारी संपत्ति किरन की हो जायेगी , उसके खिलाफ पाप का अंकुर नग्न के हृदय में उत्पन्न होने लगा । जिसको वह समझ नहीं सकी . . .
नग्न झूठ फरेब और छल प्रवृत्ति का इंसान था , वह ज्योती को अपने जाल में फंसाने की तरकीब सोचने लगा . . .
इसी बीच प्रकाश आ गया ,
नमस्ते भाई साहब - नमस्ते
नमस्ते आवो प्रकाश तुम्हारी ही बात हो रही थी . . .
चन्द समय बाद दो कप कॉफी उनके सामने रखकर ज्योती अन्दर चली गई ,
काफी का एक घुट लगाने के बाद नग्न प्रकाश की तरफ देखकर बोला ,
प्रकाश चलो थोड़ा बाहर घूमते हैं , दोनों घर के बाहर आकर लान में खड़े हुवे ,
चन्द समय बाद नग्न प्रकाश से पूछा प्रकाश यह कल्पना कौन है ?
नग्न की बात सुनकर प्रकाश को समझते देर नहीं लगी और वह मुस्कुराते हुवे बोला ,
मुझे नहीं मालूम लेकिन आपको कल्पना से क्या लेना है ?
बस ऐसे ही कल्पना के बारे में ज्योती कुछ बता रही थी . . .
मैंने साफ - साफ कह दिया तुम अपना बेवजह भेजा खराब कर रही हो प्रकाश ऐसा नहीं है , लेकिन कल्पना के बारे में मैं तुमसे जानना चाहता हूँ . . .
मैं आप को क्या बोलू आप मेरे साथ चलिये आप खुद जान जायेंगे ,
नग्न और प्रकाश दोनों कल्पना से मिलने चल दिये . . .
जब वह कल्पना के घर पहुंचे तो कल्पना के घर का दरवाजा अन्दर से बंद था . . .
दरवाजे पर लगी घंटी को प्रकाश ने पुश किया घंटी की आवाज सुनते ही कल्पना दरवाजा खोल दी,
भैया आप - हाँ कल्पना यह ज्योती के जीजा जी है ,
नमस्ते भाई साहब - जी नमस्ते ,
कल्पना उन दोनों को ड्राइंग रूम में बैठने का संकेत करके किचन में चली गई ,
कुछ क्षण बाद वह दोनों के लिए गरमा गरम चाय का प्याला लेकर आई और उनके सामने रखदी , प्रकाश कल्पना से पूछा निकी कहाँ है ,
वह सो रही है ,
बहुत जल्दी हाँ भैया आज जल्दी सो गई . . .
कल्पना रात में नाईटी पहनी थी , उन कपड़ों में उसके छरहरे बदन और आकर्षक चेहरे को नग्न अपनी फटी फटी आंखों से निहारने लगा , कल्पना तुम तो चौदही की चांद हो. . . प्रकाश क्या तुम पर तो बड़े - बड़े स्यमी का स्यम टूट जायेगा . . . कुदरत ने तुम्हारे साथ न्याय अन्याय किया है जो तुम्हारी हरी भरी जवानी में ही तुम्हें विधवा बना दिया. . .
भाई साहब आप किस ख्वाब में डूब गये हैं आपकी चाय ठंडी हो जायेगी . . .
कल्पना की गरम स्पर्शी आवाज सुनते ही नग्न की खोई चेतना टूट गई ,
वह चाय का प्याला अपने होठों से स्पर्श कर घुट लगाया ,
यह बिजनेस मैंन है हमेशा कुछ न कुछ सोचते रहते है ,
नहीं कल्पना जी आप प्रकाश की बातों को सच मत मानीये . . .
" ही ही - ही ही , कल्पना हंसने लगी कल्पना की हंसी नग्न को ऐसा लगा जैसे उसके ऊपर गुलाब की ढेर सारी पंखुड़ियों की वर्षा हुई हो . . . वह आनंद से भर गया ।
मैं आप लोगों के लिए खाना बना रही हूँ ,
नहीं नहीं हम अपने घर जाकर खाना खायेगे क्योंकि ज्योती खाना खाने के लिये हमारा इन्तजार कर रही हैं ।
भईया आप तो आते रहेंगे पर नग्न जी हमारे घर पहली बार आये है , बिना खाना खिलाये नहीं जाने दूंगी . . .
बराबरा हम कभी और आ जायेंगे आज रहने दीजिये ।
वह उनको छोड़ने के लिए बाहर तक आयी ।

नग्न और प्रकाश दोनों घर वापस आ गये ।
रात का खाना खाकर प्रकाश सो गया लेकिन नग्न की आंखों में नींद नहीं थी , उसका मन काफी बेचैन था, कल्पना का खूबसूरत जिस्म उसके शैतानी भावनाओं को उकसाता रहा , वह पूरी रात करवटें बदलता रहा , रात गुजरने के बाद सुबह नग्न की आंखो में खुमार था ।

नित्य की तरह प्रकाश अपने काम पर चला गया , प्रकाश के चले जाने के बाद नग्न ड्राइंग रूम में बैठा था , तभी ज्योती वहा आ गयी . . .
ज्योती तुम ठीक कर रही हो , दोनों के हाव भाव से लगा कि उनके बिच जरूर कुछ दाल में काला है , प्रकाश उसकी खूबसूरती पर फिदा है , वह प्रकाश को अपना टारगेट बना चुकी है . . . मैं कल्पना से मिलकर एक बार अच्छी तरह समझा दूंगा की प्रकाश और तुम्हारी जिंदगी में वह दीवार नही बने . . .
जीजा जी आज रविवार है , वह घर में ही होगी , फिर तो मैं वहां थोड़ी देर में जा रहा हूँ और वहाँ से वापस आकर घर जाऊंगा , मैं खाना अभी नहीं खाऊंगा - ठीक है . . .
आप उससे मिल कर आइये ,
नग्न अपनी कार में बैठकर कल्पना के दरवाजे पर पहुंच गया ,
गाड़ी से निकलकर वह कल्पना के दरवाजे की घंटी को बजाने लगा ,
अन्दर से कल्पना दरवाजा खोली दरवाजा खुलते ही नग्न उसे देखकर दंग रह गया , उसे लगा रात का चांद दिन के उजाले में धरती पर आ गया हो . . .
नमस्ते भाई साहब - जी नमस्त,
सोचा घर जाने से पहले एक बार आपसे मिल कर जाऊ . . .
क्यों नहीं आइये दरवाजा बिना बंद किये कल्पना उसके साथ ड्राइंग रूम में आकर बैठ गई ,
वह सोफे पर बैठ गया ।
कहिये आप क्या लेना चाहेंगे चाय या काफी ?
आपकी जो इच्छा हो ,
कल्पना वहाँ से चली गई कुछ देर बाद वह एक कप कॉफी लेकर आयी , और नग्न के सामने रख दी ,
नग्न एक घूंट लगाने के बाद अंगणा कर बोला , पूरी रात मुझे नींद नहीं आई . . . किसी की चाहत में मेरा मन बेचैन था , नग्न की नजर कल्पना के जिस्म में गड़ती जा रही थी , उसके मन में अजीब सा कौतुहल मचने लगा . . . वह अपना धीरज तोड़ते हुवे बोला , काश कल्पना तुम मेरे मन की बेचैनी को समझने की कोशिश करती . . .
यह आप क्या बक रहे हैं ?
आप एक पढ़े लिखे समझदार आदमी है ,
समझदार तो प्रकाश भी है ,
प्रकाश मेरा बड़ा भाई है ,
आपकी तरह गिरा हुआ इंसान नहीं ,
आपको शर्म आनी चाहिये . . .
पलक झपकते ही नग्न उसकी नर्म कलाई को पकड़ लिया, आज मैं अपनी मन की मुराद पूरा करके जाऊंगा . . . काम पीड़ित नग्न तेजी से कल्पना को अपनी बाहों में जकड़ लिया ।
वह कसमसा कर उसके गिरफ्त से छूटने का प्रयास करने लगी , नग्न उसके ऊपर भूखे भेड़िये की तरह टूट पड़ा . . . बचाओ बचाओ की चीख कल्पना के होठों से निकलकर घर के अन्दर गुजने लगी और वह अपने अस्त व्यस्त कपडों से अपने तन बदन को छुपाने लगी, वह असहाय हो गई . . . नग्न अपने मकसद में कामयाब होने वाला था परन्तु उसी क्षण नग्न को किसी मजबूत हाथों ने पकड़कर कल्पना से अलग कर दिया ।
तुम्हें कुछ नहीं होगा कल्पना और नग्न के मुंह पर एक जोरदार मुक्का मारा , हरामजादे क्या सोचकर यहाँ आया था साले तु इंसान नहीं भेड़िया है , प्रकाश नग्न को बुरी तरह पीटने लगा . .
नहीं प्रकाश नहीं मुझे छोड़ दो ,
भाग जाओ बेशर्म तुम मानव नहीं दानव हो . . .
नग्न उसी समय कल्पना के घर से बाहर निकला और अपनी कार में बैठकर ज्योती के पास पहुंचा ।

प्रकाश अगर आज तुम समय से नहीं आये होते तो मैं किसी को अपना मुंह दिखाने लायक नहीं रहती , कल्पना प्रकाश के सीने से लग कर रोने लगी . . .
कल्पना रोना बंद करो मारने वाले से बचाने वाले का बड़ा हाथ होता है , तेरा भाई जब तक जिंदा रहेगा कोई आंच तुम्हारे तक नहीं आयेगी ।

इधर नग्न को कल्पना के घर से वापस आये देखकर ज्योती उत्सुक मन के साथ कुछ पूछने के लिए उसके करीब पहुंची लेकिन नग्न के चेहरे पर खून के धब्बे देखकर चौंक गई ।
जीजा जी आपके होंठ कैसे कटे और यह पूरे चेहरे पर खून के धब्बे कहां से आये , आपके कपड़े भी फटे हैं ।
तुम मेरा बैग लाओ अब मैं एक पल भी यहां नहीं ठहरूंगा ।
पहले यह तो बताइये यह कैसे हुआ ?
क्या बताऊं , तुम्हें बताने में भी शर्म आ रही है,
नहीं जीजा जी आपको मेरी कसम अगर आप बिना बताये चले गये तो ठीक नहीं होगा,
ज्योती मुझे तुम्हारी बातों पर यकीन नहीं था , लेकिन आज जो मैं अपनी आंखों से देखकर आ रहा हूँ ।
क्या देखा आपने ?
यही कि प्रकाश इतना नीचे गिर सकता है ,
जो तुम जैसी औरत को छोड़कर उस कल्पना रूपी वेश्या का दीवाना बन जायेगा ,
आप यह क्या कह रहे हैं ?
हाँ मेरे पहुंचने से पहले प्रकाश वहाँ मौजूद था , उसके घर का दरवाजा खुला देखकर मैं अन्दर गया , तो ड्राइंग रूम में TV ऑन थी लेकिन वहाँ कोई नहीं था , फिर मैं बगल वाले कमरे में गया तो उनका अभद्र कार्य देखकर मेरा सर शर्म से झुक गया . . . और वह दोनों भी मुझे देखकर सन हो गये । बेशर्मी की भी कोई कोई हद होती है , कल्पना को तो कोई लज्जा नहीं है , लेकिन प्रकाश को कम से कम दरवाजा बंद कर लेना चाहिये , चलो आज मैं था परन्तु आज मेरी जगह कोई और होता तो तुम्हारी इज्जत का क्या होता ? अपनी गलती छुपाने के लिये वे दोनों मेरे ऊपर आग की तरह भड़क गये और बात विवाद में प्रकाश ने मेरा यह हाल कर दिया , मैं चुपचाप वहाँ से निकल कर यहाँ चला आया, करता भी क्या जब वह दोनों एक हो गये हैं, तुम जैसी औरत है तो इस घर में टिकी ही है वरना तुम्हारी जगह कोई और होती तो यहाँ एक पल भी नहीं रहती ।
जीजा जी बर्दास की भी एक हद होती है , अब मैं भी यहाँ नहीं रह सकती . . . मैं भी आपके साथ चलूंगी . . .
बहु यह तुम क्या कह रही हो किसी और के कहने से अपना घर छोड़ कर चली जाओगी , नहीं ऐसा मत करो प्रकाश को आने दो . . .
चुप रहिये प्रकाश प्रकाश प्रकाश बहुत हो गया नाटक , अब मैं एक पल भी नहीं रुकुंगी नहीं तो इस घर की चारदीवारी में घुट घुटकर पागल हो जाऊंगी , ठहरीये जीजा जी . . .
इतना कहने के बाद वह अपने कमरे में गई और एक बैग में कुछ कपड़े रखकर बाहर निकली , चलिये जीजा जी मैं भी आपके साथ चलूंगी . . .
उसी क्षण प्रकाश घर वापस आ गया और ज्योती के हाथों में बैग देखकर पूछा ।
ज्योती इनके साथ तुम कहाँ जा रही हो ?
कहीं भी जाऊं तुम कौन होते हो मुझे रोकने वाले ?
मैं तुम्हारा पति हूँ . . .
वाह रे पति वाह . . .
तुम्हें नहीं पता ज्योती यह कितना बेशर्म आदमी है ,
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे - सब कुछ करने के बाद अपना इल्जाम मेरे सर लगा रहे हो ।