आंसु पश्चाताप के - भाग 4 Deepak Singh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आंसु पश्चाताप के - भाग 4

आंसु पश्चाताप के, भाग 4



नहीं पापा प्रकाश मेरा सब कुछ है ,
मैं उससे अलग रहकर खुश नहीं रह सकती मैं प्रकाश से बहुत प्यार करती हूँ ।
ठीक है , अगर तुम्हारी यही ख्वाहिश है तो मैं तुम्हारी शादी प्रकाश से कर दूंगा , परन्तु आगे कुछ हुआ तो मुझे दोष मत देना ।

ज्योती अपने बीते लम्हों में खो गई उसकी अन्तरात्मा में प्रकाश के प्रति नफरत की आग धधकने लगी , अपनी उलझी गुत्थी को सुलझाने का जितना प्रयत्न करती उतना ही उलझने लगी , जिससे बाहर आने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था , वह खिन्न और उदास हो गई ।
काश मुझे पहले पता होता कि तुम इतने घटिया निकलोगे तो तुम्हारे प्यार के चक्कर में कभी नहीं पड़ती ।
बहु - अपनी सास की आवाज सुनकर उसकी खोई चेतना टूट गई ।
क्या हुआ बहु , तुम किस सोच में डूबी हो ?
कुछ नहीं , आज से पहले इतनी उदासी तुम्हारे चेहरे पर कभी नहीं देखी , तुम्हारी तबीयत तो ठीक . . .
लेकिन ज्योती प्रति उत्तर में खामोश रही , उनकी बात सुनकर ज्योती चुपचाप अपने कमरे में चली गई ।
उसका यह बर्ताव देखकर प्रकाश की माँ को यह एहसास हो गया कि बहु गुस्से में है ।
रोज की भांति जब प्रकाश अपने घर वापस आया तो उसे घर का माहौल कुछ अजीब लग रहा था ।

चन्द समय बाद उसकी माँ अपने हाथ में चाय का प्याला लिए उसके पास पहुंची माँ ज्योती कहाँ है - आज चाय लेकर तुम आई हो ।
बेटा बहू अपने कमरे में सो रही है ।
क्यों उसकी तबीयत तो ठीक है ?
चाय पीने के बाद तुम खुद ही देख लेना ।
यह सुनकर प्रकाश अपने हाथ में चाय का प्याला पकड़े हुए ज्योती के रूम में प्रवेश किया , लेकिन उसे बेड पर औंधे मुंह लेटे देखकर हैरानी में पड़ गया और संभलते हुए बोला ।
क्या हुआ ज्योती तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ?
मेरी तबीयत से तुम्हें क्या लेना ।
तुम मेरी पत्नपनी बकवास बन्दे करो , अगर मै तुम्हारी पत्नी हूँ , तो वह कौन है जो बनारस सागर में मिलती है ।
ज्योती एक ऊंची आवाज में बोलकर वह शान्त हो गया ।
मैं सोच भी नहीं सकती कि तुम इतने गिरे हुए इंसान हो ।
तुम जो मेरे बारे में सोच रही हो वह सत्य से परे हैं , ऐसी कोई बात नहीं है , अपना मन को शांत करो , इन्ही शब्दों के साथ उसकी नरम कलाई को पकड़कर उसे बिस्तर से उठाने का प्रयत्न करने लगा ।
खबरदार प्रकाश अगर तुमने मेरे हाथ को स्पर्श किया तो ।
मुझे इतना जलील मत करो ज्योती , बताओ मैंने क्या किया कि तुम इतनी खफा हो ।
अगर तुमने कुछ नहीं किया तो कल्पना तुम्हारी क्या लगती है ?
कल्पना मेरी बहन जैसी है ।
क्या भाई बहन एकान्त में मिलते हैं ?
हाँ भाई बहन कहीं भी मिल सकते है , प्रकाश के मुह से यह सुनकर ज्योती तिलमिला गई ।
तुम यहाँ से चले जाओ वरना मैं वह कर लूंगी जिसकी तुमने कल्पना भी नहीं किया है ।
वह मायूस होकर ड्राइंग रूम में वापस चला आया ।

अगले दिन प्रकाश नित्य की भांति अपने काम पर चला गया ,
जब वह घर वापस आया तो ज्योती मायूसी की हालत में घर का काम कर रही थी , समय गुजरता गया , दिन बितते गये , पति पत्नी के बीच कटुता बढने लगी ।


भाई बहन का अनोखा त्यौहार रक्षाबंधन आया ।
प्रकाश असमंजस में था ,
बड़े स्नेह और प्यार के साथ कल्पना अपनी बेटी को लेकर प्रकाश के हाथों में राखी बांधने उसके घर पहुंची ।

वह दरवाजे पर खड़ी प्रकाश की माँ के पैरों में नतमस्तक हो गई , साथ में निकी भी उनके पैरों को छूकर खड़ी हो गई ,
खुश रहो बेटी मम्मी मामा कहाँ है ?
यह क्या बोल रही है ?
प्रकाश भैया को पूछ रही है ।
तेरा मामा थोड़ी देर में आयेगा , आओ मेरे साथ अंदर चलो इसे अपना ही घर समझना ,,
वह उनको अपने साथ लेकर अन्दर ड्राईगं रूम में लेकर आई ।
माँ भाभी जी कहाँ है ?
बहु अन्दर है वह ज्योती के बेडरूम की तरफ इसारा करके बोली जाओ जाकर मिल लो ।
कल्पना ज्योती के बेडरूम में प्रवेश की . . .
नमस्ते भाभी जी - जी नमस्ते , और भाभी जी कैसी हो ?
समझो एक एक कर दिन बिता रही हूँ ।
नहीं भाभी ऐसा मत कहो , क्योंकी जिंदगी के दिन तो मेरी जैसी अभागिन काटती है , आप तो प्रकाश भैया की प्राण हो जो आपकी याद में दिन रात गुनगुनाते है ।
तुम्हे कैसे पता कि वह मेरी याद में दिन रात गुनगुनाते हैं ?
भाभी मुझे नहीं मालूम होगा तो किसे मालूम होगा ?
बहुत खूब और क्या जानती हो उनके बारे में ?
यही कि वह एक आदर्श पति के साथ साथ एक नेक इंसान भी हैं , जो अपना फर्ज ईमानदारी और निष्ठा के साथ निभाते हैं , ऐसे लोग समाज में बहुत कम है ।
" बहुत खूब,
और क्या मेरे लिए तो वह देवता समान है मैं उनकी भावनाओं की पूजा करती हूँ ।
कल्पना की निश्चल वाणी ज्योती के जेहन में कौतुहल मचाने लगी , उसके दिल में नफरत की ज्वाला भड़क गई । वहाँ खड़ी कल्पना उसको नागिन की तरह दिखने लगी , उसको कातर दृष्टि से निहारती हुई बोली . . .
तुम जिसको देवता बना रखी हो , वह किसी और का देवता है उसे प्रसन्न कर अपना इष्ट बनाने की कोशिश मत करो समझी ?
हाँ भाभी अब मैं सब कुछ समझ गई . . . .
काश मुझे पहले पता होता तो मैं आपके घर नहीं आती ।
तुम जैसी औरत को किसी के घर आना शोभा नहीं देता , खासकर किसी शुभ मौके पर . . .
भाभी मुझे इतना जलील मत करो , कल्पना के मुंह से एक ऊंची चीख निकलते निकलते गले में फस कर रह गई , वह चाह कर भी प्रति उत्तर में चुप रही ।
माफ करना भाभी मैं जा रही हूँ , आज के बाद दोबारा कभी इस घर में कदम नहीं रखूगी . . .
जाओ जाओ फिर कभी यहाँ आने की कोशिश मत करना ।
इतना सुनने के बाद कल्पना की आंखें आंसुओं से भर गई और आंखों से आंसु टूट टूट कर उसके गालों पर भी करने लगे ।
अपनी माँ को रोते देखकर निकी भी रोने लगी ,
नहीं बेटी चुप हो जाओ रोते नहीं है चलो हम अपने घर चलते है . . .
कल्पना अपनी बेटी को लेकर घर जाने लगी . . .
उसी समय वहाँ प्रकाश की माँ आ गई , उनको सब मालूम हो गया ।
नहीं कल्पना मै तुमको ईस तरह नहीं जाने दूंगी . . .
नहीं माँ जी प्लीज मुझे जाने दीजीये , इतना कहकर कल्पना वहाँ से चली गई ।

उसके चले जाने के बाद वह ज्योती के पास पहुंची . . .
ज्योती यह तुमने क्या किया ? तुम्हें कोई हक नहीं कि तुम घर आये मेहमान से इस तरह बात करो , तुम तो जानती हो प्रकाश उसे अपनी बहन मानता है ।
बस करीये माँ जी - बहुत हो गया , अब मुझे आपकी बक वास नहीं सुनना है , चुपचाप आप यहाँ से चली जाओ ।
प्रकाश की माँ उलटे पाव वहाँ से चली गई ।
ज्योती का यह भयावह रूप देखकर उन्हें एहसास हो गया कि उनके घर में अब शांति नहीं रहेगी ।
वह मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगी , हे भगवान मेरे घर को टूटने से बचा लो ।

कुछ समय बाद प्रकाश घर वापस आया तो उसे घर का माहौल कुछ अजीब सा लगने लगा . . .
फिर उसकी माँ उसे अच्छी तरह समझाई , प्रकाश समझदार था , इसलिये शान्त रहकर समझदारी से काम लिया ।