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तमाचा - 24 (जिज्ञासा)

"देख लो अपने लाडले की करतूत । हम है जो इसे पढ़ाने के लिए दिन-रात एक किये जा रहे है और ये लाटसाहब है ,इनको तो कुछ और ही पड़ी है। क्यों भला हमारे सब्र की परीक्षा ले रहे हो? तुम्हें पढ़ाई करनी है तो करो वरना मैं जिस दुकान में काम करता हूँ, मालिक से बोलकर तुम्हें भी उसमें लगा देता हूँ।" आज मोहनचंद ने अपने सब्र का बांध तोड़ते हुए कहा। राकेश अभी तक अपनी नजरें झुकाए हुए था। उसके पिता ने उसे क्या कहा, उसे कुछ ध्यान में नहीं पड़ा। वह अभी तक उसी क्षण में खोया हुआ था जो कुछ देर पहले घटित हुआ था।
"क्यों करते हो बेटा ऐसा कुछ? ऐसे लोगों से तो दूर ही रहा करो। तुम्हारे अलावा हमारा और है ही कौन ?" रेखा ने अपने डर को स्नेह के साथ लिपटाते हुए कहा।
मोहनचंद और रेखा के बार-बार इस तरह समझाने पर जब राकेश अपनी अर्धचेतन अवस्था से बाहर निकला तो उन पर झल्ला पड़ा।"अब बस भी करो। मैंने भला किया ही क्या है ऐसा? मुझसे किसी ने मदद माँगी और मैंने की। किसी से झगड़ा या गलत काम किया हो तो बोलना। आप भी बस पीछे ही पड़े हो मेरे। " यह कहकर राकेश घर से निकल कर अपने दोस्तों के पास चला गया। रेखा और मोहनचंद हमेशा की तरह अपने भविष्य को एक दूसरे की करुण आँखों में झाँकने लगे।

घर से थोड़ी दूर निकलकर राकेश अपने मित्र योगेश के घर के बाहर जाकर उसे आवाज लगाता है। योगेश दरवाजे के पास आकर बोलता है। "आजा भाई, अंदर आजा,बाहर क्यों खड़ा है?"
"नहीं , तू ही आजा बाहर। एक बात करनी है तुमसे।"
"चल रुक फिर, मैं जस्ट आया।" योगेश अपनी स्लीपर पहनकर तुरंत बाहर आया और राकेश से हाथ मिलाते हुए बोला। " और सुना भाई क्या हाल चाल है तेरे? क्या बात हो गयी आज ऐसे अचानक?"
"बताता हूँ भाई, रुक तो सही दो मिनिट। अभिषेक को भी बुला देते है।" राकेश ने योगेश की जिज्ञासा को इंतजार कराते हुए बोला।
"वो तो अभी स्टेशनरी होगा। उसके पापा आज बाहर गए है, तो उसको बिठाकर गए है।"
"अच्छा!"
"हाँ जी।"
"तो चलो फिर वहीं चलते है। फिर बात करते है।"
"चलो फिर।"
थोड़ी ही दूर चौराहे पर राकेश और योगेश दोनों अभिषेक की दुकान पर पहुँच जाते है।
"अरे वाह! आओ आओ। सही टाइम पर आए हो। मैं वैसे ही बैठा बैठा बोर हो रहा था। अब तुम दोनों आ गए , अब गप्पें लगाते है।" अभिषेक ने राकेश और योगेश को दुकान के अंदर बुलाते हुए कहा।
"अब तो बता दे यार, क्या बात हो गयी? उस दिव्या ने कुछ कर दिया क्या?" योगेश ने अपनी जिज्ञासा को शांत करने की आशा से पूछा।
"तेरे हमेशा किस बात की जल्दी रहती है। तनिक रुक तो सही । वह बात ही तो बताने जा रहा हूँ और अब तू बीच में मत बोलना प्लीज।" राकेश ने उसकी जिज्ञासा को और तड़पाते हुए थोड़े से ऊँचे स्वर मैं बोला।
"क्या बात हो गयी राकेश? सब ठीक तो है ना?" योगेश के कथन को सुनकर अभिषेक संदेह और आश्चर्य के मिले जुले स्वर में बोला।
" दरअसल बात ये है कि दिव्या जो कॉलेज इलेक्शन में प्रेसिडेंट पद हेतु खड़ी है। उसने मुझे अपने पार्टी ऑफिस में बुलाया..." राकेश बोल ही रहा था कि योगेश अपनी आदतानुसार फिर बीच में बोल पड़ा। " मैंने कहा था ना कि उस दिव्या का मैटर है। मुझे पता था तेरा।"
"अब तू चुप हो जा प्लीज् । मुझे बात पूरी करने देगा या नहीं।" राकेश झुंझलाते हुए बोला।
"हाँ.. सॉरी सॉरी करो बात।"
" वो दिव्या ने तो मुझसे कहा कि हमारा साथ रहना और मदद करना , पर वो कॉलेज का गुंडा है एक तेजसिंह , वो कुछ देर पहले अपने आदमियों के साथ मेरे घर आया था। मेरे पापा का चश्मा तोड़ दिया और मुझे कॉलर से पकड़ कर धमकी दे गया है कि दिव्या से दूर रहना और इलेक्शन में हमारे बीच टांग मत अड़ाना।" राकेश एक ही स्वास के साथ बोलता है।
"अच्छा! फिर तो भाई इन गुंडों से दूर ही रहना । क्या पता क्या कर ले? इनका कोई भरोसा थोड़ी है। " अभिषेक ने अपनी समझदारी दिखाते हुए बोला।
"पर भाई मैं तो उनकी पार्टी की ही मदद कर रहा था। उसने बुलाया इसीलिए ही तो गया था ,वरना भला क्यों जाता?" राकेश ने अपना तर्क देते हुए कहा।
" हाँ भाई बात तो तेरी सही है। पर अब तो उससे दूर ही रहना। क्या पता दिव्या पर उसकी नज़र हो और तुम उसके पास बैठे हो तो उसको पसंद न आया हो।" योगेश अपने चेहरे पर कुछ गंभीरता लाते हुए बोला।
"हाँ यार !अब क्या करूँ ? कुछ समझ नहीं आ रहा । दिव्या से जाकर उसकी शिकायत करूँ, पुलिस के पास जाऊँ या फिर छोड़ दूं।" राकेश असहाय होकर बोला।
"नहीं भाई, उन पागलों का कोई भरोसा थोड़ी है। पिछले इलेक्शन में कितनी मारपीट की थी इसने तुम्हे पता ही है। अब इस मैटर से दूर ही रहने में भलाई है।" अभिषेक ने उसे बोला और किसी दुकान पर आए किसी ग्राहक को सामान देने में व्यस्त हो गया।
राकेश ने मन में सोच लिया कि अभी हीरो बनने का टाइम नहीं है। इस झगड़े से दूर रहने में ही भलाई है।पर हम जो चाहते है अक्सर उसका उलटा ही हमारे साथ घटित हो जाता है और वही होने वाला था अब राकेश के साथ।



क्रमशः.....

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