"क्...कौन हो तुम ? और ये सब क्या है? " अचानक हुए इस प्रहार से मोहनचंद कुछ समझ नहीं पाया। उसकी पत्नी रेखा यह आवाज सुनकर अपनी दाल को वहीं रखकर तुरंत बाहर की ओर भागती है।
"अरे ! भाई साहब क्या बात है ! इनको नहीं पहचाना। ये है, हमारी कॉलेज के आन-बान-शान, इनके नाम से बड़े-बड़े है डरते, इनको तेजसिंह है कहते।" तेजसिंह का परिचय देते हुए दीपक जोश के साथ बोला।
"कौन है ये? और आपका चश्मा कैसे गिरा ?" रेखा टूटे हुए चश्मे को देखकर और कुछ डर के साथ बोली।
"अरे वाह! नमस्ते माताजी, आओ - आओ , आप भी आओ। भला हमारे अलावा ऐसा महान काम कौन कर सकता है।" हनीफ़ ने चश्मे के फ्रेम को अपने पैरों से रौंदते हुए कहा।
"ये क्या बदतमीजी है? हो कौन तुम और ये सब क्यों कर रहे हो?" मोहनचंद ने उनका प्रतिकार करते हुए कहा।
"हमारा छोड़ो, आप ये बताओ कि आपका वो लाड़ला कहाँ छुप गया। " तेजसिंह अपनी मूछो को ताव देते हुए बोला।
मोहनचंद ने सोचा जरूर राकेश ने कॉलेज में कुछ उल्टा-सुल्टा कर दिया होगा। वह बेटे के बचाव में डरते-डरते बोला। " वह तो अभी घर पर नहीं है, बताओ क्या बात है? क्या किया उसने?"
"अरे! अंकल जी इस उम्र में झूठ शोभा नहीं देता। है तो वो यहीं। हनीफ़ ज़रा देख आ, साहेब की थोड़ी खातिर दारी करनी है आज तो।" तेजसिंह ने कुर्सी से उठकर ,चारो ओर घूमते हुए कहा।
"क्या बात हो गई बेटा! उससे कुछ गलती हो गयी हो तो हम माफ़ी मांग लेते है। प्लीज आप उसके साथ कुछ ऐसा वैसा न कर देना।" रेखा ने डर से अपने बेटे के प्रति उत्पन्न चिंता के भाव से कहा।
"ना ना माताजी , आप भला क्यों फिक्र करती है, आपका लाडला है ।वो थोड़ी गलती कर सकता है। हाँ हम जरूर यहाँ गलती करने आये है और करके जाएंगे।" तेजसिंह के इस तरह कहने पर वह चारों दोस्त जोर जोर से हँसने लगते है। तभी उनकी आवाज सुनकर राकेश अपने रूम से बाहर आता है।
"ये देखो आ गए महाराजा। आओ आओ महाराजाधिराज। आपका ही इंतजार हो रहा था।" तेजसिंह ने व्यंग्यात्मक लहजे में बोला।
राकेश तेजसिंह को पहचान तो जाता है क्योंकि उसका पूरी कॉलेज पर बहुत प्रभाव था पर वो यहाँ किस वजह से आये थे । इस बात से वह पूरी तरह अनजान था।वह विस्मय से बोला । " आओ भैया जी। आप यहाँ! बताओ कैसे आना हुआ। "
"उफ्फ्फ देखो-देखो महाराज जी को तो जैसे कुछ खबर ही नहीं है। इनको ज़रा बताओ कि ये आजकल क्या कर रहे है।" तेजसिंह ने अपने मित्रों को बोला। तभी हनीफ़ उसके कॉलर को पकड़ने लगा और राजू और दीपक उस पर हाथ उठाने के इरादे से उसके पास जाते है। रेखा और मोहनचंद कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर बात क्या है । वे डर से कांपने लगे और अपने बेटे को बचाने के उद्देश्य से उसके पास जाने लगे। तभी तेजसिंह बोला,"रुको-रुको ज़रा। ऐसे नहीं । पहले प्यार की भाषा से समझाते है । क्या पता घी सीधी उंगली से ही निकल जाए।"
"सुन बे, तू जो विधायक की बेटी से यूँ चिपका-चिपका रहता है ना। वह छोड़ दे। और इलेक्शन के मामले में हमारे बीच में ज्यादा टांग न अड़ा। वरना हम क्या कर सकते है ,इसका तुझे अंदाजा भी नहीं है। आज केवल इन बुढों की वजह से तुझ पर तरस खा कर तुझे छोड़ रहे है,वरना सोच लेना अंजाम।" तेजसिंह धमकी देते हुए बोला और राकेश को सब माजरा समझ में आ गया। उसने शांत रहना ही उचित समझा और उन्हें चापलूसी के लहजे में बोला।
"अरे! भाई जी क्या बात करते हो। हम भला आपके काम में टांग क्यों अड़ाएंगे? वो तो सिर्फ मैडम के यह कहने पर ही मैं वहाँ था कि इस चुनाव में हमारे साथ रहना। बाकी अगर ऐसी कोई बात है तो मैं कभी मिलूँगा ही नहीं उनसे और जैसा आप कहोगे वैसा ही करूँगा।"
"साले, वो तो सबको ऐसे ही बोलेगी कि चुनाव में हमारी मदद करना , तो क्या उसकी गोद में जाकर बैठेगा। ध्यान रखना , आज के बाद उनके पास भी नहीं भटकना वरना देख लेना।" तेज सिंह ने उसका कॉलर पकड़कर उसे धमकी देते हुए कहा और अपने साथियों के साथ वहाँ से चला गया।
रेखा और मोहनचंद बड़े डर से खड़े थे। उनके जाने के बाद ही उन्होंने राहत की सांस ली। वे तेजसिंह के प्रति भले ही क्रोध न कर पाए पर अब वही क्रोध राकेश के प्रति स्थानांतरित होने वाला था । जिसका परिणाम राकेश से ज्यादा उनको खुद को भुगतना पड़ेगा।
क्रमशः .....