देह की दहलीज़ - अंतिम भाग  prashant sharma ashk द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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देह की दहलीज़ - अंतिम भाग 

समाज के लोगों की नजर और अपनी मजबूरियों के कारण जिस दलदल में रोशनी उतरी थी, वो उससे निजात पाना चाहती थी, उसे अपनी हर सांस इतनी बोझिल लगने लगी थी, जिससे वो आजाद हो जाता चाहती थी, परंतु निरंजन के बच्चों की जिम्मेदारी उसे अब तक बांधे हुए थी। जिम्मेदारी और मजबूरियों के धागे से बंधी रोशनी बच्चों के भविष्य के लिए हर समझौता किए जा रही थी। वक्त बीतता गया और एक वक्त ऐसा भी आया जब दीपू घर की जिम्मेदारी उठाने के काबिल हो गया था। रोशनी को उम्मीद थी कि दीपू अब घर की जिम्मेदारी उठाएगा तो उसे उस दलदल में हर रोज नहीं जाना होगा। पर एक दिन ऐसा भी आया जब उसे न सिर्फ खुद से नफरत होने लगी थी, बल्कि अपने हर समझौते पर उसे आत्मग्लानी हो रही थी कि क्या आखिर इस दिन की जिंदगी के लिए वह हर रोज मरती रही है, घुटती रही है और कभी खुद को आजाद नहीं कर सकी है। क्योंकि आज दीपू अपने घर की जिम्मेदारी को उठाने के बजाय घर छोड़कर जा रहा था किसी और शहर में। उसका जाना रोशनी को अखर नहीं रहा था, बल्कि अखर रही थी उसकी वो बात जो उसने घर छोड़ने का कारण बताई थी। 

दीपू- मैं आज यह घर छोड़कर जा रहा हूं। मैंने दूसरे शहर में अपना तबादला करा लिया है। 

रोशनी- पर दीपू अचानक ये फैसला तुमने क्यों किया है ? 

दीपू- मैं इसका जवाब देना जरूरी नहीं समझता। 

रोशनी- पर बेटा आज इस घर को जब सबसे ज्यादा तुम्हारी जरूरत है तब तुम हमें ऐसे छोड़कर जा रहे हो, आखिर क्यों। 

दीपू- इस क्यों का जवाब आप खुद से क्यों नहीं मांगती ? 

रोशनी- मुझसे, तुम कहना क्या चाहते हो ?

दीपू- मैं जो कहना चाहता हूं शायद वो आप समझ रही है। 

रोशनी- साफ कहो क्या कहना चाहते हो ?

दीपू- मुझे सुनील अंकल मिले थे और उन्होंने मुझे सब बता दिया है। 

रोशनी- सुनील कौन सुनील ? 

दीपू- पापा के दोस्त, जिन्हें आप सोनू के नाम से जानती है। 

रोशनी- क्या बता दिया उसने ऐसा कि तुम्हें घर छोड़ना पड़ रहा है ? 

दीपू- यही कि आप हमारी मां नहीं हो। आप... आप... एक वेश्या हो। 

रोशनी- दीपू......

दीपू- क्यों सच पसंद नहीं आया। मेरे पापा आपको कोठे से लेकर आए थे। पर सच तो यह है कि आप वो काम कभी छोड़ ही नहीं पाई। मुझे तो सोचकर भी घिन आती है कि मैं कैसे आज तक आपको मां कहता रहा। ये काम करने से पहले आपने एक बार भी पापा और हमारे बारे में नहीं सोचा। 

रोशनी- दीपू शायद तुम पूरा सच नहीं जानते हो। 

दीपू- मैं जो जान गया हूं बस वहीं सच है, इसके अलावा और कोई सच हो ही नहीं सकता। सुनिल अंकल ने बताया कि पापा आपको समाज में एक स्थान दिलाना चाहते थे, पर आप... आपने पापा की भावनाओं को समझा ही नही। आपको तो शायद वहीं काम पसंद था, जहां से पापा आपको लेकर आए थे। यही सब करना था तो पापा को धोखा क्यों दिया। मै। यहां नहीं रह सकता, अगर रहा तो शायद घुटन से मर जाउंगा। 

रोशनी दीपू को सच बताने की कोशिश करती है, पर वो रोशनी की बात सुने बिना ही घर से बाहर निकल जाता है। रोशनी जो निंरजन के जाने के बाद दीपू और मीनू को अपनी ताकत मानकर चल रही थी, जिनमें वो अपनी खुशियों को देखा करती थी, वहीं उसे एक पल में पराया कर गया था। रोशनी को अब ऐसा लग रहा था कि खुद को संवार कर जैसे ही वो किसी आइने के सामने गई थी और किसी ने उस आईने का चूर-चूर कर दिया था।

हजारों अक्सों में बंटकर रह गई थी रोशनी और खुद को जोड़ने की लाख कोशिशों के बाद भी वो खुद का समेट नहीं पा रही थी। रोशनी को दीपू के जाने का गम चुभ गया था, पर अब भी उसे मीनू की चिंता थी। कुछ महीनों बाद ही मीनू के तेवर भी अचानक से रोशनी केलिए बदल गए और उसने भी रोशनी से नाता तोड़कर किसी लड़के से शादी कर अपना घर बसा लिया था। उस घर में अब रोशनी और उसकी तन्हाई और इंतजार करती आंखों के सिवाय कोई नहीं था। उसे इंतजार था कि किसी तरह से दीपू और मीनू को उसके सच का पता चले और वो एक बार उससे आकर मिल ले। एक दिन रोशनी से मिलने के लिए सोनू आता है। 

सोनू- रोशनी कैसी हो ? 

रोशनी- तुम यहां क्यों आए हो ? अब क्या बचा है यहां जिसे तुम ले जाना चाहते हो ? 

सोनू- बचा तो अब भी बहुत कुछ है। खासकर तुम यहां हो। अभी इतनी भी बुढ़ी नहीं हुई हो कि कोई तुम्हारा हाथ न थाम सके। तुम कहो तो मैं तुम्हारा हाथ थामने को तैयार हूं। 

रोशनी- तुम जानते हो कि मैं तुम्हारे दोस्त की पत्नी हूं। 

सोनू- जब दोस्त ही नहीं रहा तो पत्नी कैसे हो सकती है। और फिर क्या मैं जानता नहीं हूं कि मेरे दोस्त के जाने के बाद तुमने क्या किया है। 

रोशनी- वो मजबूरी में उठाया हुआ कदम था। यही बात कहकर तुमने मेरे दोनों बच्चों को मुझसे दूर कर दिया। 

सोनू- मैंने तो सिर्फ उन्हें सच से रूबरू कराया था, वो खुद ही तुमसे दूर हो गए। 

रोशनी- पर आधा सच। 

सोनू- मुझे आधे और पूरे से मतलब नहीं है। मुझे तुमसे मतलब है। अब भी मेरा हाथ पकड़ लो तुम्हारे बच्चे फिर से तुम्हारे पास आ जाएंगे। 

रोशनी- तुम्हारा हाथ मैं कभी नहीं पकडूंगी। मैं खुद ही अपने बच्चों को समझाकर वापस ले आउंगी। 

सोनू- जब उन्होंने तुम्हारी बात उस वक्त नहीं सुनी तो आज कैसे सुनेंगे। 

रोशनी- तुमने ऐसा क्यों किया सोनू। आखिर क्या दुश्मनी थी तुम्हारी मुझसे। 

सोनू- मैं तुम्हें पाना चाहता था, पर निरंजन तुम्हें अपनी बीवी बनाकर घर ले आया। मैंने तो उसे भी कहा पर वो माना नहीं और फिर देखो क्या हो गया। 

रोशनी- मतलब तुमने सोनू को..... ?

सोनू- मैंने कुछ नहीं किया, मैंने तो बस उसका एक ऑर्डर कैसिंल कराया था, उसे सदमा लग गया और फिर एक दिन गाड़ी के नीचे आ गया। मेरी बात मान लेता तो शायद यह सब नहीं होता और तुम्हें भी यह सब फिर से नहीं करना पड़ता। 

रोशनी- तुम इतने गिरे हुए इंसान हो मैं सोच भी नहीं सकती थी। 

सोनू- गिरा हुआ कौन नहीं है रोशनी, कोई दिख जाता है और किसी को देखकर अनदेखा कर दिया जाता है। तुम्हें क्या लगता है ये जितने बड़े लोग है, क्या कभी इन्होंने कोई गिरा हुआ काम नहीं किया होगा। बस इनका जाहिर नहीं हुआ इसलिए इन्हें गालियां नहीं पड़ रही है, इनकी इज्जत की जा रही हैं। इनमें से कई तो ऐसे भी होंगे जो अभी ऐसा कर रहे होंगे, बस उसका पता नहीं चल पाता। तुम्हें तो इस बात का अच्छे से पता होना चाहिए कि रात के अंधेरे में कैसे सफेद काॅलर के लोग तुम्हारे पास आते थे। 

रोशनी- मुझे बाकि लोगों से कोई मतलब नहीं है, पर तुमने जो किया उसने मेरी जिंदगी को फिर से नर्क में धकेल दिया है। 

सोनू- ये उपदेश किसी और के लिए रखो। मेरा ऑफर अब भी खुला है, तुम जब चाहो तक आ सकती हो। तुम जिस दिन आ जाओगी, उस दिन तुम्हारे बच्चे भी तुम्हारे पास लौट आएंगे।

रोशनी- यह कभी नहीं होगा कि मैं तुम्हारे पास आउं, पर मेरे बच्चे मेरे पास जरूर आएंगे। 

सोनू- मैं भी देखता हूं कि कैसे आते हैं ?

इसके बाद सोनू चला जाता है और रोशनी अपनी मजबूरी के कारण फिर से रोने लगती है। उसे समझ नहीं रहा था कि उसे अब क्या करना चाहिए। वो अपने दोनों बच्चों को फोन करती है, पर पहले दोनों फोन नहीं उठाते हैं और फिर बाद में फोन उठाकर कह देते हैं कि उन्हें उससे कोई मतलब नहीं है। जो हमारे पापा की नहीं हो सकी, वो हमारी कैसे हो सकती है और मां तो कभी नहीं हो सकती है। दीपू और मीनू की कही ये बात रोशनी के लिए किसी जलजले से कम नहीं थी। उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी ने उस पर लावा फेंक दिया है। चंद मिनटों में ही उसकी आंखों में सामने निंरजन के बाद की जिंदगी गुजर गई थी। फिर वो टेबल पर बैठी और कुछ लिखने लगी। लिखने के बाद वो उसी टेबल पर सिर रखकर बैठ गई थी।

उसने एक खत लिखा था दीपू और मीनू के नाम, जिसमें उसने निरंजन के जाने के बाद की हर बात को लिखा था। हवा के झोंके से वो खत रोशनी के हाथों के नीचे दबा फड़फड़ा रहा था। थोड़ी देर बाद घर के पास रहने वाली शांता रोशनी के पास आई और उसने रोशनी को आवाज लगाई, पर रोशनी अब कोई जवाब नहीं दे सकती थी, क्योंकि एक दिन उसने बच्चों की खातिर देह की दहलीज को लांघा था और आज बच्चों से जुदा होने के गम में वो अपनी देह को ही त्याग कर गई थी। वैश्या के रूप में अपनी जिंदगी को शुरू करने वाली रोशनी के त्याग को किसी ने नहीं देखा।

जब वैश्या थी तब भी त्याग कर रही थी, जब पत्नी बनी तब भी त्याग कर रही थी, जब मां रही तब भी त्याग कर रही थी। वो सबकुछ कर रही थी क्योंकि वो एक औरत थी। उसकी जिंदगी बस एक निरंजन ही ऐसा था, जो उसे समझ सका था। काश की आंटी ने उसे उस दिन इस दलदल में ना धकेला होता, काश कि उस दिन उसने निंरजन के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया होता, काश कि उस दिन वो बच्चों की भूख को देखकर ना पिछली होती और फिर से उसी दलदल में ना उतरी होती, ऐसे कई काश रोशनी अपने पीछे छोड़ गई थी। उसके जाने के बाद एक काश और भी था, जिसे अब दीपू और मीनू कह रहे थे कि काश, मां हमने आपकी बात को एक बार सुन लिया होता। काश....