देह की दहलीज़ - भाग 4 prashant sharma ashk द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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देह की दहलीज़ - भाग 4

नई जिंदगी को शुरू करते हुए रोशनी काफी खुश नजर आ रही थी। वो मन ही मन एहसानमंद थी निरंजन की जिसने उसे कोठे की जिंदगी से आजादी दिलाकर समाज में एक नई जगह देने की पहल की थी। हालांकि जिस शहर में निंरजन और रोशनी रहते थे वहां कोई भी उनके खासकर रोशनी के अतीत के बारे में नहीं जानता था, इसलिए रोशनी यहां अपनी जिंदगी आसानी से बसर कर सकती थी। कुछ ही समय में रोशनी ने घर को अच्छे से संभाल लिया था। वह ना सिर्फ एक पत्नी की भूमिका अच्छे से निर्वहन कर रही थी, बल्कि एक अच्छी मां भी साबित हो रही थी। इसके साथ ही वह निरंजन के कहे अनुसार अपनी पढ़ाई भी शुरू कर चुकी थी। समय के साथ सबकुछ बहुत अच्छे से चल रहा था। इधर निंरजन का काम भी अब जमने लग गया था। देखते ही देखते तीन साल बीत गए और रोशनी ने अपना ग्रेज्यूएशन भी पूरा कर लिया था। दीपू अब आठ साल का हो गया था और मीनू ने अब कुछ बड़ी हो गई थी। 


कहते है कि वक्त जब शह देता है तो उसकी कोई काट नहीं होती है। रोशनी की सुखी जिंदगी में एक भूचाल आने वाला था, जो शायद उसकी दुनियां को ही उजाड़ जाने वाला था। इसका अंदाजा ना तो अभी निरंजन को था और ना ही रोशनी को था। अचानक ही निरंजन को उसके काम में काफी नुकसान हो जाता है और वह कर्ज में डूब जाता है और तनाव में रहने लगता है। निरंजन के कर्ज का असर अब घर पर भी पड़ने लगता है। हालांकि रोशनी निरंजन से कहती है कि अगर निरंजन कहे तो वह जाॅब कर सकती है, पर निंरजन उसे कहता है कि हम दोनों ही बाहर रहेंगे तो बच्चों के लिए मुश्किल हो सकती है। इस कारण रोशनी जाॅब करने का विचार छोड़ देती है। रोशनी की परीक्षा की शुरूआत शायद यही से होना थी। एक दिन देर रात तक निंरजन घर नहीं लौटता है। अगले दिन सुबह उसे खबर मिलती है कि निरंजन का रात को एक्सीडेंट हो गया था और अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई है। यह पल रोशनी के लिए ऐसा था कि जैसे किसी उड़ते परिंदे को किसी ने पकड़कर अचानक से किसी पिंजरे में बंद कर दिया हो।

रोशनी के पास अब सिसकारियों के अलावा कुछ नहीं बचा था। निरंजन उसकी ताकत था और आज वो भी उससे छिन गई थी। दो छोटे बच्चे, उनकी जिंदगी की जिम्मेदारी अब रोशनी को किसी पहाड़ से कम नजर नहीं आ रही थी। रोशनी ने खुद को कमजोर न होने देने का फैसला किया और निकल पड़ी थी वह अपनी और मीनू और दीपू की जिंदगी को सुधारने की पहल करने के लिए। कई जगह उसने नौकरी के लिए इंटरव्यू दिए थे, पर कहीं भी उसे सफलता हाथ नहीं लग रही थी। इसलिए ही आज वो उदास बैठी हुई थी। हालांकि यहां से तो उसका संघर्ष शुरू हुआ था, अभी उसे अपनी जिंदगी की कीमत चुकाना बाकि था। 

एक नए दिन के साथ रोशनी फिर चल पड़ी थी नई राहों पर। इन राहों पर भी उसे सफलता नहीं मिल पा रही थी। हर दिन वो एक नई उम्मीद लेकर संघर्ष पर राह पर चलती थी पर उसे मंजिल नसीब नहीं हो रही थी। अब तक तीन महीने बीत चुके थे और अब घर में रोटी का संकट भी खड़ा हो चला था। उसके मन में बार-बार ख्याल आ रहा था कि वो एक बाद आंटी को फोन करे और उनसे कुछ मदद मांगे पर उसका जमीर अब उसे इस बात के लिए गवारा नहीं कर रहा था। बच्चों की भूख उसे लाचार बना रही थी। अब उसके सामने एक परेशानी और आकर खड़ी हो रही थी और वह थी एक अकेली औरत होने की। कहीं भी आते-जाते उसे अब फब्तियां सुनने को मिलती थी और वह हर रोज लोगों की आंखों से खुद का बलात्कार होते हुए महसूस कर रही थी। ये सब उसे एक बार फिर उसके अतीत की याद दिलाता था, जहां उसके चारों सिर्फ हवस के भेड़िए ही हुआ करते थे। आज उसे आंटी कि वो बात भी याद आ रही है कि बेटी तू जितनी सुरक्षित यहां है उतनी सुरक्षित तू बाहर की दुनियां में नहीं रह सकती है।

एक ओर खुद को सुरक्षित रखने की जद्दोजहद थी, तो दूसरी ओर बच्चों की भूख रोशनी का कलेजा छलनी किए जा रही थी। उसने एक बार को सोचा कि वो फिर से उसी दलदल में उतर जाए पर फिर उसे निरंजन का ख्याल आया, जो उसे समाज में एक स्थान दिलाने के लिए अपने साथ उसे ले आया था। कपड़ों की सिलाई, लोगों के घरों झाडू पोंछाकर रोशनी बच्चों की भूख मिटाती है। अपने घर और बच्चों के लिए रोशनी हर वो काम करती है जो उसने कभी सोचा भी नहीं था। बहुत संघर्षों के साथ वह बच्चों को बड़ा करती है। इस दौरान कई बार उसे पुराने काम की बात याद आती है कि वह फिर से उसी काम को करें तो उसे ज्यादा रूपए मिल जाएंगे और बच्चों को वो अच्छा जीवन भी दे सकेगी। पर कई बार सोचने के बाद भी उसके दिमाग में निरंजन और अपनी मां चारू का चेहरा याद आ जाता था। उसे चारू की बात याद आती है, जो चारू ने शादी से दो दिन पहले रोशनी से कही थी। 

चारू ने रोशनी से कहा था कि बेटी हम औरतें के लिए तीन दहलीज होती है। किसी भी दहलीज को अगर कोई भी औरत लांघती है तो उसके परिणाम कई बार बहुत घातक होते है। पहली दहलीज होती है पिता के घर की दहलीज। यह दहलीज कोई भी लड़की शादी के समय ही लांघे तो बहुत अच्छा माना जाता है, पर उसके पहले दहलीज लांघने वाली लड़की को बाहर की दुनियां जीने नहीं देती है। दूसरी दहलीज होती है उसके पति के घर की दहलीज। इस दहलीज से ना सिर्फ पति का मान-सम्मान जुड़ा होता है, बल्कि लड़की खुद भी जुड़ी होती है। एक दहलीज होती है हमारी देह की दहलीज। इस दहलीज को लांघने वाली औरत कभी फिर किसी दहलीज को लांघने के लायक नहीं होती है। मजबूरी में हम सभी ने इस देह की दहलीज को लांघ दिया है। आज तुझे मौका मिला है कि देह की दहलीज को लांघने के बाद भी तुझे पति के घर की दहलीज को लांघने का। इसलिए किसी भी हाल में अब कोशिश करना कि पति की दहलीज को लांघने के बाद तुझे फिर कभी देह की दहलीज को लांघना ना पड़े। क्योंकि हमारा अतीत हमारी परछाई की तरह हमारे साथ ही रहेगा पर तुझे इस परछाई को खुद पर हावी नहीं होने देना है। तुझ पर अब तीनों दहलीज का सम्मान बनाए रखने की बड़ी जिम्मेदारी होगी और वो तुझे हर हाल में निभाना है। 

पर वक्त और परिस्थतियां हर मोढ़ पर रोशनी को जर्रा-जर्रा बिखेर रहे थे। कहते हैं कि एक अकेली औरत बाहरी दुनियां के लिए एक मांस का टुकड़ा होती है, जिसे हर कोई खा जाना चाहता है, ऐसा अब रोशनी हर कदम पर महसूस कर रही थी। लाख कोशिशों के बाद भी उसे कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल रही थी। एक दिन किराए के मकान को भी उसे खाली करना पड़ गया और एक बहुत छोटे मकान में उसे आसरा लेना पड़ा। हालांकि यहां भी उसे चिंता थी कि वक्त पर किराए का भुगतान न करने पर उसे यहां से भी जाना पड़ सकता है। कुछ लोगों से छोटी मदद लेकर उसने घर पर सिलाई का काम शुरू किया और फिर कुछ लोगों के घर साफ-सफाई का जिम्मा भी ले लिया था। हालांकि इसमें सिर्फ इतनी आमदनी हो पाती थी कि मीनू, दीपू और वो खुद दो टाइम का खाना खा सके और कमरे का किराया दे सके। फिर भी रोशनी बच्चों की परवरिश के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाह रही थी।

अब वो रात भर जागती और कपड़ों की सिलाई करती, ताकि दोनों बच्चों को स्कूल भेज सके। दिन उगने से रात होने तक उसकी जिंदगी से जद्दोजहद चलती ही रहती थी। दिनभर काम में लगे रहने के कारण उसकी थकान उस पर हावी होने लगी थी और धीरे-धीरे उसका काम भी कम होने लगा था। एक बार फिर से रोशनी आर्थिक तंगी से गुजरने लगी थी। खाने के लिए उधार मिलने वाला राशन भी अब बंद हो गया था। अब रोशनी के पास कोई चारा नहीं था कि अब बच्चों की परवरिश के लिए उसे फिर से जिस्म का सौदा करना ही होगा। राशन की दुकान चलाने वाला और कमरे का किराया लेने वाला कई बार बातों बातों में उसे इस बात की ओर इशारा कर चुके थे। 

मजबूरी और बच्चों की भूख और उनके भविष्य के लिए रोशनी ने मां चारू की बताई देह की दहलीज को लांघने का फैसला कर लिया था। भूख से बिलखते बच्चों को आखिर जब नींद लग गई तब गहराती रात में बहुत भारी कदमों के साथ रोशनी ने पहले अपने घर की दहलीज लांघी थी और फिर देह की दहलीज को लांघने को मजबूर होना पड़ा था। सुबह जब वो घर आई तो उसके हाथों में राशन था और उसके बदन को ढंकने वाली साड़ी में कुछ रुपए बंधे थे। उसने आते ही बच्चों के लिए खाना बनाया और खिलाया और फिर उन्हें स्कूल ले गई। वहां से आने के बाद वो निंरजन की तस्वीर के सामने खड़ी थी कि उसके अपराध के लिए निरंजन उसे माफ कर दे। वो ग्लानी से भर उठी थी और उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे और निंरजन से कह रहे थे कि उसकी मजबूरी ने उसे फिर वो करने को मजबूर कर दिया, जहां से आप मुझे निकाल कर लाए थे।

हालांकि रोशनी को पता था कि अगर वो फिर उस काम को नहीं करती तो शायद वो अपने बच्चों को भी खो देती। क्योंकि भूख उन्हें खा जाती। देह की दहलीज लांघने के बाद रोशनी की आर्थिक स्थिति कुछ बेहतर जरूर हुई थी, पर उसका यह फैसला उसके मन को इतना भारी कर रहा था कि वो बस हमेशा खुद को धिक्कार देती रहती थी। हालांकि एक सच यह भी था कि उसकी मजबूरी के अलावा समाज की एक सोच ने भी उसे उस दलदल में धकेला था, जहां उसकी मद के बदले हमेशा उसके जिस्म की मांग होती थी। नौकरी की तलाश में भटकने से लेकर बच्चों की भूख मिटाने तक की कीमत उसका जिस्म ही लगाई जाती थी। इंसानों की दुनियां में रहकर भी रोशनी को कोई इंसान नहीं मिला था। उसे देखने के बाद लोगों की आंखों में दिखने वाली वासना उसे खुद से घृणा करने पर मजबूर करती थी, पर बच्चों के चेहरे और उनकी भूख ने रोशनी को एक बार फिर उसी राह पर लाकर खड़ा कर दिया था, जिस राह से निरंजन उसे हाथ पकड़कर वापस लाया था।