बद्री काका और केतकी का पापा डाक्टर साहब से मिलकर खुश थे । डाक्टर साहब की बड़ाई करते हुए ..बद्रीकाका बोला..विजय जी ! डाक्टर साहब बड़े नेक दिल इंसान हैं , उन्होंने हमारी तकलीफ को महसूस किया और हां कर दी । केतकी का पापा बोला भाईजी ! अब तो मै भी उतावला हो रहा हूँ ,मेरी बेटी को देखने के लिए । इसतरह आपस मे बात करते हुए दोनों घर पहुंच जाते हैं ...
उधर घर पर केतकी की मा घर के बाहर ही बैठी हुई थी, उसके साथ में बद्री काका की पत्नी भी बैठी थी । केतकी की मा लक्ष्मी से बात तो' कर रही थी ,किन्तु उसका ध्यान बार बार उस गली की ओर जाता था , जिधर से केतकी का पापा आने वाला था । केतकी की मा कह रही थी ...वहां क्या हो रहा होगा ? क्या वह डाक्टर साहब मान जायेगा ? अगले ही पल सोचती है ..वह क्योंकर मानेगा , इतने वर्षों तक उसे पालपोसकर बड़ा किया है । दूसरे ही पल सोचती है .. पालपोसकर बड़ा किया है पर उसको जन्म थोड़े ही दिया है । हो सकता है डाक्टर साहब मान जाये, पर उसकी पत्नी थोड़े ही राजी हो जायेगी । इस तरह केतकी की मा सोच रही थी और उस गली को देख रही थी । कोई भी गाड़ी उधर से आती दिखती..वह एकटक उसे देखने लग जाती .. सहसा उसे अपनी गाड़ी दिखाई दी ..उसकी हृदय की गति बढगयी ..उसके मुंह से निकला ..वे आगये !
केतकी का पापा जानता था कि संतोष अधीर हो रही होगी ..उसने संतोष को देखते ही अपनी मुट्ठी बंद कर उसे ऊपर उठाकर हिलाया ..
संतोष के मुख पर एक मुस्कान लौट आई..संतोष खड़ी हो गयी ..लेकिन अब भी उसके हृदय की धड़कन धक धक कर रही थी । केतकी का पापा संतोष को देखकर बोला ..अरे तुम बाहर ही इंतजार कर रही थी ? चलो चलो अंदर बैठकर बात करते हैं ..संतोष ने अपने पति की बांह पकड़कर पूछा ..वे मान गये क्या ? केतकी के पापा ने कहा ..हां मान गये । अंदर चलो सब बताता हूँ । संतोष की खुशी का ठिकाना नही .. उसकी आंखो में आंसू आगये ..केतकी का पापा बोला ..अब क्या हो गया ? एक दो दिन मे वह आजायेगी , मिल लेना उससे । सभी घर के अंदर बैठ गये बद्री काका और केतकी के पापा ने सारी बाते बतादी ।
बद्री काका बोला विजय जी ! रात बढ रही है अब हमे चलना चाहिए। केतकी का पापा बोला नही नही..अभी हम खाना साथ साथ खायेंगे । आज आप यहीं रूक जाइए । होटल कहां भागी जा रही है ..कल चले जाना ।
बद्री काका खड़ा हो गया और बोला ..नही नही विजयजी ! रूकेंगे तो होटल में ही ..वहां पर हमारा रोज़मर्रा का सामान भी रखा है । रही बात खाने की तो', यह खाना कभी ओर दिन खा लेंगे ।
उसी समय केतकी का भाई आता है ..सभी को उसने प्रणाम किया ..बद्री काका ने केतकी के पापा को प्रश्न वाचक दृष्टि से देखा ..केतकी के पापा ने कहा ..यह मेरा बेटा है ..आजकल फेक्ट्री यही देखता है ..ऐसा सुन बद्री काका ने उसकी पीठ थपथपाकर आशीर्वाद दिया ... केतकी के पापा ने कहा ..बेटा ये सीकर के हैं ..बेटे ने बद्री काका की तरफ देखा ..बद्री काका ने उसे अपनी बायी बगल में खींचकर चिपका लिया ..
और बोला .. बेटा शादी लायक हो गया है विजय जी ! लड़की देखना शुरू कर दो ।
बद्री काका अपनी पत्नी को चलने का इशारा करता है ..लक्ष्मी खड़ी होकर संतोष के गले लगकर इजाजत मांगती है .. केतकी मा बोली ठीक है .. आप जा रहे है पर सीकर जाओ तो मिलकर जरूर जाना .. लक्ष्मी ने हां में सिर हिलाया,और अपने पति के साथ रवाना हुई।
बद्री काका को छोड़ने सभी द्वार तक आये ...
बद्री काका ऑटो से होटल पहुंच जाता है । अपने रूम पर ही खाना लाने का आर्डर दे देता है । बद्री काका ने दामिनी को फोन किया और सारा घटनाक्रम बता दिया ... दामिनी उस समय अपने घर पर ही थी । उसका पति अभय भी पास ही बैठा था .. दामिनी बद्री काका की सारी बाते सुनकर कहती है ..काका मै थोड़ी देर बाद में आपसे बात करती हूँ । यह कहकर फोन कट कर दिया । दामिनी के मुंह से ऊफ!! निकलता है ..दामिनी चेयर पर बैठ जाती है ..अभय ने पूछा क्या हुआ ? दामिनी अभय की ओर देखते हुए थोड़ा झुंझलाहट से कहती है ..अभय ! केतकी ही नही, केतकी का पापा भी बड़ा शातिर है ...बद्री काका को भी उल्लू बना दिया उसने .. जुड़वा बहिन की कहानी घड़ ली ..बद्री काका को भी यकीन हो गया ... मै जानती हूँ केतकी ने पहले ही फोन कर दिया होगा अपने पापा को...केतकी के पापा ने फिर यह कहानी घड़ली होगी ।