देह की दहलीज़ - भाग 2 prashant sharma ashk द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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देह की दहलीज़ - भाग 2

कुछ ही दिन बीते थे कि आंटी के कहने के बाद वो दिन भी आ गया जब रोशनी की नथ उतराई होनी थी। ये वो रस्म होती है, जिसमें कोई लड़की पहली बार किसी मर्द के साथ सोने के लिए जाती है। आज यह रस्म रोशनी के साथ निभाई जाने वाली थी। रोशनी ऐसे भी बहुत खूबसूरत थी फिर आज उसे काफी अच्छे से सजाया गया था। कोठे के कुछ निश्चित ग्राहकों के अलावा कुछ बड़े लोग भी आज कोठे पर आए थे। नथ उतारने से पहले यहां बोली लगाने का रिवाज है, जिसकी बोली सबसे ज्यादा बोली लगाने वाला इंसान लड़की के साथ पहली बार जिस्मानी संबंध बनाता है। रोशनी को ना चाहते हुए भी इस काम में उतरना पड़ रहा था।

एक और वह अंदर से दुखी थी और दूसरी ओर उसके मन में डर भी था। इस कशमकश के बीच आखिर उसकी बोली तय हो गई। उसकी खूबसूरती और उसकी उम्र को देखते हुए उसकी बोली 5 लाख पर खत्म हुई थी। आंटी बहुत खुश नजर आ रही थी। पूरी बोली के दौरान एक बार भी रोशनी ने अपनी गर्दन नही उठाई थी, पर जैसे ही बोली खत्म हुई उसने एक नजर बोली लगाने वाले को देखा। वो करीब 45 साल का आदमी था। उसके चेहरे पर ऐसे भाव नजर आ रहे थे कि जैसे उसने क्रिकेट का वर्ल्डकप जीत लिया हो। उस 45 साल के आदमी को देखकर रोशनी की आंखों में आंसू आ गए थे और वो बेचारी सी नजरों से चारू की ओर देख रही थी। चारू ने भी रोशनी को देखा पर नजरों के साथ-साथ उसने भी अपनी गर्दन झुका ली थी। उसकी मजबूरी भी उसके चेहरे पर साफ नजर आ रही थी, वहीं रोशनी भी अपनी किस्मत को कोस रही थी और बेबसी पर आंसू बहा रही थी। 


इसी बीच आंटी की आवाज गूंजी जाओ सेठ आज ये लड़की तुम्हारी है। ना चाहते हुए भी रोशनी को उस आदमी के साथ कमरे में जाना पड़ा। उस आदमी के साथ कमरे में जाते हुए रोशनी का हर कदम उसे इतना भारी लग रहा था कि जैसे उसे बहुत भारी वजन के साथ एक ऊंची पहाड़ी चढ़ने को कह दिया गया हो। खैर रोशनी के पास अपने हालातों से समझौता करने के सिवाय कोई चारा भी नहीं था तो वो उसे कमरे में दाखिल हो गई थी। उसके कमरे में आते ही उसे 45 साल के आदमी ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और फिर रात भर वो जैसे चाहे वैसे रोशनी के जिस्म के साथ खेलता रहा और पूरी रात रोशनी की आंखों से आंसू बहते रहे।

दूसरी और चारू भी पूरी रात सो नहीं सकी थी। सोती भी कैसे वो इन सब बातों का अहसास कर चुकी थी और उसे पता था कि पहली बार यह काम करने के दौरान कैसे मन खुद को धिक्कारता है और जिस्म को नुचने का अहसास क्या होता है। उसकी रात भी बैचेनी में कटी थी। आखिर सुबह हुई और वह आदमी अपने कपड़े ठीक करते हुए बाहर निकलने लगा। उसने रोशनी को देखा जो कि पलंग के एक कोने पर खुद को समेटे बैठी थी वह उसकी ओर गया और एक दस हजार रूपए उसके हाथ में रखे और मुस्कुराते हुए बोला कि सच में तेरे साथ बहुत मजा आया। इतना कहने के बाद वो आदमी बाहर निकल गया। 

उस आदमी के जाते ही चारू कमरे में आ गई। चारू को देखते ही रोशनी फफक पड़ी और उसकी आंखों से आंसूओं की धारा बह निकली, यही हाल चारू का भी था। हालांकि चारू उसे कहती जा रही थी कि मुझे माफ कर दे बेटी। तेरी मां भी तेरी तरह ही मजबूर है। दोनों बस एक-दूसरे से गले लगे रोती रही। कुछ देर में चारू ने रोशनी को उठाया और उसे बाथरूम में ले गई। उसके बाद रोशनी नहाकर बाहर निकली।

फिर चारू उसे हाॅल में लेकर आ गई। वहां आंटी पहले से बैठी हुई थी। आंटी ने रोशनी को अपने पास बुलाया और उसके माथे पर एक चुंबन अंकित किया और कहा कि मुझे तुझ पर नाज है बेटी। मैं जानती हूं कि अभी तेरे मन में उथल-पुथल चल रही है, पर हमारी किस्मत यही है बेटी। उसके बाद आंटी भी उसे 10 हजार रुपए देती है और कहती है कि अब अपने लिए सामान खरीद लाना। ये तेरी पहली कमाई है। हालांकि मैंने तेरी पहली कमाई पूरी तुझे नहीं दी है, तेरी कमाई का एक हिस्सा मैंने तेरे नाम से एकाउंट खुलवाकर उसमें जमा करा दिया है ताकि बाद में तेरे काम आएगा।

हालांकि आंटी लगातार बोल रही थी पर रोशनी के लिए बीती रात और आज का अब तक दिन ऐसा था जैसे कि उसे किसी भरपूर उजाले से किसी घनघोर अंधेरे में धकेल दिया हो। उसका मन कर रहा था कि वो चित्कार कर रोए, पर रोकर हासिल भी क्या होना था, जो होना था वो हो चुका था। इसके बाद चारू उसे अपने साथ फिर से कमरे में ले गई थी। मां और बेटी के होठों पर एक चिर खामोशी थी, पर फिर चारू के हाथ में रोशनी का हाथ था और वो बस एक सांत्वना भर था। कमरे में ठहरी हुई खामोशी शायद मां और बेटी से कहने का प्रयास कर रही थी कि शायद इसे ही मजबूरी कहते हैं। 

खैर वक्त की गति कभी कम नहीं होती है वह जिस तेजी से चलता है वह चलता ही रहता है। ऐसे ही यहां भी वक्त बीतता गया और धीरे-धीरे रोशनी भी सामान्य होती गई और इसी काम को अपनी किस्मत का लेखा मानकर करती रही। हालांकि कई बार उसके मन में एक कसक उठ जाती थी, पर फिर वो खुद को समझाती और फिर आंटी के निर्देशों को पालन करती रहती है। इसी तरह दो साल बीत गए थे और 19 साल की रोशनी अपनी इच्छाओं को मार चुकी थी। चारू भी अब रोशनी की इस अवस्था को समझ चुकी थी। 

एक दिन बहुत तेज बारिश हो रही थी। उस गली में बहुत कम लोग आ जा रहे थे। आंटी के कोठे पर भी कोई बहुत ज्यादा हलचल नहीं थी। तेज बारिश के कारण लोगों अपने घरों से बाहर हीं नहीं निकल रहे थे तो आंटी के यहां आता भी कौन। आंटी और सभी लड़कियां अपने काम में व्यस्त थी। चारू जहां अपने कमरे में लेटी हुई थी, वहीं आज रोशनी अपनी पुरानी किताबों के पन्ने पलट रही थी। तभी दो लड़के जो सिर से लेकर पैर तक पूरी तरह से भीगे हुए थे, आंटी के कमरे पर दस्तक देते हैं। एक लड़की उठकर दरवाजा खोलती है और आंटी दोनों लड़कों को आने और बैठने का इशारा करती है। उनमें से एक लड़का आंटी के पैर छूता है और फिर सामने रखी कुर्सी पर दोनों लड़के बैठ जाते हैं। 

आंटी- बहुत दिनों बाद इधर का चक्कर लगा तेरा सोनू। 

सोनू- आपकी याद आई तो आ गया आंटी। 

आंटी- आंटी की याद आई या आंटी की लड़कियों की। 

सोनू- एक ही बात है आंटी। आ तो गया ना। 

आंटी- कहां था इतने दिनों से ? 

सोनू- आजकल गाड़ियों का काम करता हूं आंटी तो अधिकतर समय गाड़ी पर ही रहता हूं। इस कारण यहां आना कम ही होता है। 

आंटी- ये कौन है ? 

सोनू- ये मेरा दोस्त है आंटी, निरंजन नाम है इसका। 

आंटी- इतना सीधा सा बंदा तेरा दोस्त कैसे हो गया ? 

सोनू- सीधा है इसलिए ही मेरा दोस्त हो गया आंटी। 

आंटी- हां, ये बात भी है। 

सोनू- वैसे इसके साथ बहुत बुरा हुआ है। ये भी मेरी तरह गाड़ियों पर ही रहता है। कुछ समय पहले इसके बीवी की मौत हो गई। एक लड़का और एक लड़की है। 

आंटी- यह तो सब वक्त का खेल है। इसमें आप और हम कुछ नहीं कर सकते हैं। तो तू इसको यहां क्यों ले आया ?

सोनू- मैं आ रहा था तो सोचा इसे भी साथ ले लूं। यहां कहां भटकेगा इधर-उधर। बारिश भी हो रही है। 

आंटी- तो क्या यह नहीं बैठेगा ? 

सोनू- पता नहीं पूछ लेता हूं। निरंजन तू बैठेगा यहां। 

निरंजन कुछ नहीं बोलता। 

सोनू- एक काम करो आंटी इसे तो बोतल दे दो। और किसी को कंपनी देने के लिए बोल दो। इसका काम तो उससे ही हो जाएगा। तब तक मैं आता हूं। 

आंटी- ठीक है जा।