नीला स्कार्फ़ - अनु सिंह चौधरी राजीव तनेजा द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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नीला स्कार्फ़ - अनु सिंह चौधरी

कई बार हम जब किसी लेखक या लेखिका का लेखन पहली बार पढ़ते हैं तो पसन्द आने पर उसके लेखन के मुरीद हो जाने के साथ साथ ये भी सोचने लगते हैं जब भी इनका लिखा कुछ और पढ़ने को मिलेगा तो हम ज़रूर पढ़ेंगे। दोस्तों आज मैं अनु सिंह चौधरी के लेखन से सजे कहानी संकलन 'नीला स्कार्फ़' की बात करने जा रहा हूँ। दैनिक जागरण नीलसन बैस्टसैलर के खिताब से नवाज़े गए इस कहानी संग्रह की प्रसिद्धि का अंदाज़ा इसी बात से आसानी से लगाया जा सकता है कि 2014 से अब तक 4 बार रीप्रिंट एडिशन आ चुका है।

इसी संकलन की एक कहानी अलग अलग तहज़ीब..माहौल और मकसद से मुंबई आ कर एक ही कमरे में बतौर रूममेट रह रहीं उन चार लड़कियों की बात करती है। जिनमें से असीमा और लिली की ख्वाहिशें..ख्वाब..सपने..दुविधाएँ अलग अलग होने के बावजूद भी उन दोनों के बीच का लगाव अपने पूरे जुड़ाव के साथ तब भी बना रहता है जब असीमा मुंबई छोड़ कर दुबई और लिली दिल्ली जा कर बस जाती है।

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जहाँ भाग-भाग कर घर- बाहर के सब कामों को अपना समझ कर करने वाली उस खूबसूरत चंपाकली की बात करती है जिस पर घर की मालकिन और बड़ी बहू समेत सभी निर्भर हैं कि वही आ कर उनके छोटे-बड़े सब काम निबटाए। एक दिन चंपाकली उर्फ़ बिसेसर बो को काम करते देख उस पर घर का मालिक मोहित हो उठता है और उसके पति, बिसेसर को लालच दे कर उसे अपनी पत्नी को उसके पास रात गुज़ारने के लिए भेजने पर राज़ी कर तो लेता है मगर..

तो वहीं एक अन्य कहानी छोटे शहर से दिल्ली जैसे बड़े शहर में आ कर टीवी चैनल में नौकरी कर रही उस युवा लड़की की बात करती है जो पूरी तरह से इस महानगर के रंग में रंग चुकी है। वो जानबूझ कर अपने बॉयफ्रेंड को अपना ऐसा रूप दिखाती है कि वो खुद ही उसे ठुकरा कर वापिस अपने शहर..अपने माँ बाप के पास जा कर उनकी देखभाल कर सके।

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जहाँ एक तरफ़ गाँव के कठिन जीवन की अभ्यस्त हो चुकी उस चाची की बात करती दिखाई देती है जो अपनी बेटी का ब्याह दिल्ली जैसे बड़े शहर में रहने वाले लड़के से करना चाहती है कि उसकी बेटी को गाँव की दिक्कतों का सामना ना करना पड़े। क्या चाची के ये इच्छा पूरी हो पाएगी अथवा उसे मन मार गाँव के सहज..सरल जीवन में ही अपनी खुशी तलाशनी होगी? तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी एक गायनोक्लोजिस्ट और उसकी मरीज़ के माध्यम से उबाऊ हो चुकी ज़िन्दगी को नए सिरे..नए तरीके से जीने के लिए प्रेरित करती नज़र आती है।

इसी संकलन की एक अन्य कहानी एक तरफ़ उस वक्त इस बात की तस्दीक करती दिखाई देती है कि ईश्वर, बच्चों की नेमत किसी का अमीर या गरीब घर देख कर नहीं देता। जब रनिया की पाँच बच्चे जन चुकी माँ घर बाहर के सभी काम करते हुए एक और स्वस्थ बच्चे को जन्म देती है जबकि हर तरह की सेवा सृशा के बावजूद भी रनिया की मालकिन एक मरे हुए बच्चे को जन्म देती है। तो वहीं दूसरी तरफ़
एक अन्य कहानी रेल यात्रा के दौरान सफ़र में मिलने वाले उन अनजान सहयात्रियों की बात करती है जो सफ़र के दौरान तो आपस में खूब घुल मिल कर बात करते हैं लेकिन सफ़र के खत्म होते ही फ़िर से एकदम अनजान बन जाते हैं। साथ ही यही कहानी इस बात की भी तस्दीक करती दिखाई देती है कि किसी को महज़ देख कर उसकी तकलीफ़ को समझा नहीं जा सकता है।

इसी संकलन की एक अन्य कहानी जहाँ उस शांभवी की दुःख भरी व्यथा को व्यक्त करती नज़र आती है जिसकी खुद की मर्ज़ी ना होने के बावजूद भी उसे अपने पति अमितेष की ज़िद पर एबॉर्शन करवा अपना पहला बच्चा इसलिए गिरवाना पड़ा था कि शादी के महज़ तीन महीने बाद ही उसका प्रेग्नेंट हो जाना अमितेष के भावी सपनों के आड़े आ रहा था। खुद की लापरवाही और उदासीनता के चलते दोबारा भी सात महीने का मिसकैरेज होना पहले से दूर हो चुके इस जोड़े की दूरियों को और बढ़ा देता है। ऐसे में क्या शांभवी का तीन महीने की फैलोशिप पर विदेश जाने का फ़ैसला करना क्या उनके बीच के इस बचे खुचे रिश्ते को संभाल पाएगा अथवा..

इसी संकलन की एक अन्य कहानी आठवीं में पढ़ रही ढीठ और उद्दंड सुश्रुता और उसकी टीचर के बीच के आपसी संबंध में आए बदलाव की बात करती है कि किस तरह दोनों के बीच का तल्ख़ सा रिश्ता टीचर की एक छोटी सी पहल के बाद से सामान्य होता चला जाता है।

इसी संकलन की एक अन्य कहानी ब्लॉग ड्राफ्ट्स और व्हाट्सएप चैट के माध्यम से एक प्रेम कहानी के पनपने और फ़िर इससे उचाट होने की कहानी कहती है। जिसमें ट्रेन यात्रा के दौरान संयोग से मिले अवि और नैना की दोस्ती इस हद तक प्रगाढ़ हो उठती है कि जल्द ही नैना अपना होस्टल छोड़ कर अवि के घर लिव इन में रहने के लिए आ जाती है। अब देखना ये है कि फास्टफूड की तरह पनपे इस झटपट प्रेम का नतीजा सुखद होगा अथवा ये महज़ एक पानी के बुलबुले सा कुछ क्षणों के लिए ही बना जैसा साबित होगा।

तो वहीं एक अन्य कहानी में रिटायर हो चुके एयर कमांडर वी डी कश्यप का तमाम दुःख, वेदना और पश्चाताप के रूप में तब उभर कर आता है जब वे खुद बूढ़े हो चुके हैं कि अपने जवानी के दिनों मे उन्होंने अपनी पत्नी प्रमिला के स्नेह..त्याग और प्रेम की कोई कद्र नहीं की। अब जबकि अपनी अल्ज़ाइमर्स याने के भूलने की बीमारी की वजह से वो कुछ समझ नहीं सकती, तब वे उसे ये सब बता कर अपने अपराधबोध से मुक्त होना चाहते हैं।


इस कहानी संकलन में काफ़ी कुछ लेखिका ने सांकेतिक रूप से कह उसे पाठको की समझ एवं विवेक पर समझने के लिए छोड़ दिया है। यूँ तो इस संकलन की सभी कहानियाँ एक से बढ़ कर एक हैं मगर फ़िर भी कुछ कहानियाँ मुझे बेहद उम्दा लगीं। उनके नाम इस प्रकार हैं..

*रूममेट
*बिसेसर बो की प्रेमिका
*देखवकी
*मर्ज़ ज़िन्दगी इलाज ज़िन्दगी
*हाथ की लकीरें
*सहयात्री
*नीला स्कार्फ़
*कुछ यूँ होना उसका
*लिव इन
*मुक्ति

मर्म को छूती हुई कहानियों के प्रवाहमयी शैली में लिखे गए इस 160 पृष्ठीय उम्दा संकलन को छापा है हिन्दयुग्म ने यैलो रूट्स, इंडिया के साथ मिल कर और इसका मूल्य रखा गया है मात्र 120/- रुपए। बहुत ही कम दामों पर मज़ेदार कहानी संकलन लाने के लिए प्रकाशक द्वय बधाई के पात्र हैं। उज्जवल भविष्य के लिए लेखिका एवं प्रकाशकों को बहुत बहुत शुभकामनाएं।