आखिरी मौहब्बत... Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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आखिरी मौहब्बत...

मैं पिछले संडे चाँदनी चौक गया था,कुछ खरीदारी करने के बाद मैनें एक आँटो रूकवाया ,आँटो रूका और मैं जैसे ही बैठने को हुआ तो उसमें बैठी सवारी को देखकर मैं रूक गया और मैनें आँटो ड्राइवर से कहा....
क्यों मियाँ?जब ये मोहतरमा पहले से आपके आँटो में बैठीं थीं तो आपने मेरे लिए आँटो क्यों रोका?
तब वो आँटो ड्राइवर बोला....
जनाब!ये मेरी बेग़म है....
तो अपनी बेग़म को पहले घर छोड़ना था फिर सवारी बैठानी थी ना! मैनें कहा....
तब आँटो ड्राइवर बोला.....
जनाब! आप आँटो में बैठिए मैं आपको सब बताता हूँ,कुछ मजबूरी है....
मैं गैर मन से आँटो में बैठा तब वो आँटो ड्राइवर बोला...
जनाब! ये दिमागी तौर से बीमार हैं और मेरी ज़िंदगी का हर पल इसकी खुशामद में ही बीतता है,मैं रोज़ सुबह सूरज उगने के साथ ही उठता हूँ, अपनी बेग़म को नहलाता हूँ,उसके बाल बनाता हूँ,उसकी सुन्दर आँखों में सुरमा लगाता हूँ और तैयार करके अपने साथ ऑटो पर बिठाकर ले आता हूँ,मैं अपना और अपनी बीवी का पेट पालने के लिए ऑटो चलाता हूँ, लेकिन एक पल के लिए भी अपनी बेग़म को अपनी आँखों से ओझल नहीं कर सकता,
अब से तीस साल पहले मेरा निकाह सल्तनत से हुआ था,निकाह के बाद सल्तनत नौ बार गर्भवती हुईं लेकिन हर बार उसका गर्भपात हो गया,हर गर्भपात के साथ सल्तनत अपना दिमागी संतुलन खोती जा रही थी,इसलिए मैनें अपनी बेग़म का ज़्यादा से ज़्यादा ख्याल रखना शुरू कर दिया,धीरे-धीरे सल्तनत की हालत इतनी ख़राब हो गई कि मुझे अपना काम छोड़ना पड़ा, घर छोड़ना पड़ा,घरवालों ने भी बीमार बीवी और उसके निकम्मे शौहर को रखना मुनासिब नहीं समझा, मगर मैनें इस सबके बावजूद अपनी बेग़म का साथ नहीं छोड़ा,अब तो सल्तनत की हालत इतनी ख़राब हो चुकी है कि वो एक पल भी अकेले नहीं रह सकतीं,इसलिए इसे हमेशा साथ ले आता हूँ, दुख-सुख तो ज़िंदगी में आते ही रहते हैं, लेकिन ऐसा नहीं होता कि ज़रा सी तक़लीफ़ आई और बीवी को छोड़ दिया, बच्चों की वजह से इसने बहुत चिंता की, जब आखिरी बच्चा ख़राब हुआ तो वह पूरे नौ महीने चार दिन का होने के बाद ख़राब हुआ, उस बात से इसे बहुत बड़ा सदमा लगा और ये ऐसी हो गई....
जवानी में हमारे बीच मौहब्बत हुई फिर निकाह हुआ,सब ठीक चल रहा था,मैं खानदानी कपड़े की दुकान से सही कमा लेता था ,हम सभी भाई दुकान में लगें रहते थे ,लेकिन जब से ये बीमार हुईं तो भाइयों ने घर और दुकान दोनों से निकाल दिया,अब तो सारा दिन इसी का ख़्याल रखना पड़ता, कभी रोटी देनी है कभी दवाई देनी है, कभी तेल लगाना है, कंघा करना है, सुरमा लगाना है,कपड़े धोने हैं, खाना पकाना है,इसकी माँ बन गया मैं तो और ये मेरी बच्ची.... वो इस बात पर मुस्कुराया.....
अक्सर ऐसा होता था कि सगे सम्बंधी दूसरी शादी करने की सलाह देते हैं,लेकिन मैनें नहीं मानी,मैनें सबसे कहा अल्लाह ने मुझे लाखों में एक बीवी दी है,मैं दूसरा निकाह नहीं कर सकता,आज भी सल्तनत के साथ इश्क की लौ मेरी आँखों में चमक बनाए हुए है,
इसकी तबियत कब ख़राब हो जाए पता नहीं चलता,दौरे पड़ते हैं इसे इसलिए इसके साथ रहना मेरी मजबूरी भी है और साथ में रोज़गार भी चल रहा है,नाश्ता करने के बाद हम दोपहर ग्यारह-बारह बजे के आसपास निकलते हैं फिर होटल में एक प्लेट खाना लेते हैं और उसी में दोनों खा लेते हैं,अगर हमारा खर्चा पाँच सौ रुपए है तो हम सात सौ-आठ सौ कमाकर घर आ जाते हैं,सल्तनत मेरी पहली और आख़िरी मौहब्बत है,मैं दुनिया छोड़ सकता हूँ लेकिन इसे नहीं छोड़ सकता.....
उस आँटो ड्राइवर की बात सुनकर मुझे लगा कि कोई किसी से इतनी मौहब्बत कैसें कर सकता है,लेकिन फिर मैं उसी आँटो में बैठकर अपने गन्तव्य की ओर चल पड़ा.....

समाप्त.....
सरोज वर्मा....