ममता की परीक्षा - 118 राज कुमार कांदु द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ममता की परीक्षा - 118



रामसिंह के जाते ही दरोगा विजय फिर से उनसे मुखातिब हुआ, "हाँ.. तो मैं आप लोगों को बता रहा था कि इस बार बसंती के शव परीक्षण के समय मैंने अपनी समझ के अनुसार सावधानी बरती और उसका नतीजा मेरे हिसाब से बहुत अच्छा आया जिसे मैंने फाइल में मृतका का नाम डालकर और मजबूत कर लिया और सुरक्षित रख लिया। मैं चाहकर भी खुद से कोई कार्रवाई नहीं कर सकता था क्योंकि मुझे भी अपने बालबच्चों के भविष्य की फिक्र होती है। कहा भी गया है कि पानी में रहकर मगरमच्छ से वैर ठीक नहीं सो सब कुछ नियति के हवाले कर मैं शांत बैठ गया।... लेकिन मन में कहीं न कहीं टीस तो थी ही और साथ ही यह विश्वास भी कि कभी न कभी, कोई न कोई अवश्य आएगा इस केस की सुधि लेने के लिए ..और देखो, आज मेरा विश्वास जीत गया। आज वह शुभ घड़ी आ ही गई है जब आप लोग उस केस की चर्चा कर रहे हैं।
आप लोग जिस तरह से बातें कर रहे थे, बुरा नहीं मानियेगा यह सही तरीका नहीं है किसी केस को खुलवाने का.. लेकिन मैं आप लोगों की भावनाएं समझ रहा हूँ और उन्हें महसूस करते हुए आप लोगों की पूरी मदद करूँगा। बस, मैं जो कहता हूँ करते जाओ। ईश्वर चाहेगा और सब ठीक रहा तो उस मासूम को इंसाफ जरूर मिलेगा और तब मुझे भी शांति मिलेगी।"

अभी वह चुप हुआ ही था कि अमर बोल पड़ा, सही कह रहे हैं आप! अब कृपा करके यह भी बता दीजिए कि हमें क्या करना होगा दुबारा इस फ़ाइल को खुलवाने के लिए।"

खुश होता हुआ दरोगा बोल पड़ा, "हाँ, ये सही है। अब मैं आप लोगों की पूरी मदद करूँगा।"
"बहुत बहुत धन्यवाद आपका साहब !" अमर ने कहा, "लेकिन क्या मैं जान सकता हूँ कि उस रिपोर्ट से हमें कैसे मदद मिलनेवाली है ? पहले की रिपोर्ट को कैसे झुठलाया जा सकता है ?"

"ये पुलिसिया दाँवपेंच है, जो आप सबकी समझ में जल्दी नहीं आएगा।" कहते हुए दरोगा विजय ने हल्का सा कहकहा लगाया और फिर एक पल रुककर बोला, "आप सब तो आम खाओ आम, पेड़ मत गिनो। जितना कहा है उतना ही करो और मुझपर भरोसा रखो। मैं दिल से उस मासूम को इंसाफ दिलाना चाहता हूँ।"

"मेरी तो मंशा ये थी कि क्यों न आपसे आपकी योजना पर सार्थक विचार किया जाय ! अब हमारी मंशा एक ही है न, कि उस मासूम को इंसाफ मिले, .. फिर हमसे क्या पर्दा ? हो सकता है बात करते हुए हम कोई ऐसी बात कर जाएं जिससे योजना में हो रही कोई गलती समय से पहले हमें पता चल जाए और हम समय रहते उसे सुधार लें।... सोच के देखिये।" अमर ने उसकी बात खत्म होते ही अपना विचार उसके सामने रख दिया। दरअसल वह जानना चाहता था कि उस नई रिपोर्ट में ऐसा क्या लिखा था जिसकी वजह से दरोगा इतना आश्वस्त था कि अपराधियों को सजा अवश्य मिलेगी।

उसकी बात सुनकर दरोगा हाथ में थमा काँच का पेपरवेट मेज पर घूमाते हुए कुछ पल तक खामोश होकर सोचता रहा और फिर अमर से बोला, "कह तो तुम ठीक रहे हो बरखुरदार ! बात में दम है।"

अभी वह कुछ बोलने जा ही रहा था कि तभी सिपाही रामसिंह ने कमरे में प्रवेश किया। इस बार उसने सैल्यूट नहीं किया। उसके हाथों में लाल झीने से कपड़े में बंधी एक फाइल थी जिसपर आगे की तरफ कुछ लिखा हुआ था। दरोगा के सामने पहुँचकर उसने वह फाइल दरोगा के बढ़े हुए हाथों में थमा दिया। फाइल हाथ में लेने के बाद दरोगा ने सिपाही को कुछ इशारा किया और अगले ही पल वह उसे सलाम कर कमरे से बाहर निकल गया। उसके जाते ही दरोगा विजय ने वह फाइल अपनी तरफ खींचा और उसपर बँधी रस्सी खोलकर फाइल के पन्ने पलटने लगा।

कई पन्ने पलटने के बाद एक पन्ने पर उसकी निगाह जम गई। फाइल मेज की दूसरी तरफ बैठे हुए सेठ जमनादास की तरफ सरकाते हुए दरोगा विजय ने कहा, "देख लीजिए सेठजी ! ये है वो पोस्टमार्टम की रिपोर्ट जो उसी डॉक्टर ने बनाया है जिस डॉक्टर ने इससे तीन दिन पहले इसी लड़की के बलात्कार का रिपोर्ट भी बनाया था। इस रिपोर्ट में डॉक्टर ने साफ साफ लिखा है कि लड़की की मौत पानी में दम घूटने से हुई है। लड़की के गालों, उरोजों व शरीर के अन्य हिस्सों पर नाखूनों के निशान भी मिले हैं। लड़की के शरीर के नाजुक अंगों पर भी जख्म के निशान मिले हैं जिनसे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि अभी हाल ही में उसके साथ दो या दो से अधिक लोगों द्वारा दरिंदगी को अंजाम दिया गया है। विस्तृत जानकारी के लिए हम लड़की के विसरा जाँच की संस्तुति करते हैं।"
कहने के बाद विजय एक पल के लिए रुका और फिर फाइल के पन्ने पलटकर दूसरे पन्ने पर निगाहें जमाये हुए बोला, "...और ये रहा इसके सात दिन बाद मिला हुआ उस लड़की के विसरा जाँच की रिपोर्ट, जिसमें यह स्पष्ट लिखा है कि मृतका के अंदरूनी अंग में अलग अलग तीन पुरुषों के वीर्य पाए गए हैं जो निम्न तरह से हैं ...." कहते हुए दरोगा विजय ने उनकी तरफ देखते हुए बताया, "समझ रहे हैं न आप हम क्या कह रहे हैं ? उन तीनों दरिंदों के वीर्य के सैंपल लेकर हम इस रिपोर्ट में लिखे गए वीर्य के नमूने से मिलान करके बड़ी आसानी से उनका गुनाह साबित कर सकते हैं।"

जमनादास की धीर गंभीर आवाज गूँजी, "तुम ठीक कह रहे हो अफसर ! इस रिपोर्ट की बीना पर तो हम आसानी से उन दरिंदों को उनके गुनाहों की सजा दिला सकते हैं, फिर ये समझ में नहीं आ रहा कि तुम इतने पुख्ता सबूत होने के बावजूद इतने दिन तक खामोश क्यों रहे ? क्यों नहीं तुमने कोई कार्रवाई की उन शहरी लड़कों के खिलाफ ?"
एक गहरी लंबी साँस लेकर अपनी कुर्सी से उठकर चहलकदमी करते हुए दरोगा विजय ने कहना शुरू किया, "अच्छा सवाल किया है आपने सेठ जी ! ये सवाल आपके ही नहीं किसी भी संवेदन शील इंसान के मन में उठ सकता है कि आखिर इतने सबूत होने के बावजूद मैंने उन दरिंदों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की ?... लेकिन मेरे पास उतनी ही स्पष्टता से इसका जवाब भी मौजूद है। जैसा कि आप पहले से जानते हैं वो शहरी लड़के कोई आम या साधारण लड़के नहीं थे। सेठ गोपालदास जी की श्रीमती सुशीला देवी के पुत्र का मामला था जिसे बचाने के लिए नामी वकीलों की फौज के अलावा हमारे कमिश्नर साहब व हमारे माननीय मंत्री जी भी विशेष रुचि दिखा रहे थे। इन माननीयों की सक्रियता की वजह से ही उस डॉक्टर पर दबाव डालकर रिपोर्ट गलत बनवाई गई और सरकारी वकील को भी धमकी दिलवाई गई जिसकी वजह से उसने सरकार का पक्ष उस असरदार तरीके से नहीं रखा जिससे कि लड़कों का गुनाह साबित हो। मुझे तो लगता है कि जज साहब तक भी उनकी पहुँच रही होगी क्योंकि मैंने ऐसे मामलों में अक्सर बेगुनाहों को भी हवालात में घिसटते हुए देखा है लेकिन यहाँ जिस तत्परता से इन गुनाहगारों को क्लीन चिट दी गई उससे कहीं न कहीं यह आशंका प्रबल होती है कि जज साहब भी अवश्य उनके प्रभाव में रहे होंगे। नहीं तो इतनी जल्दी फैसला कहाँ होता है ? और आप चाहते हैं कि जहाँ इतनी बड़ी बड़ी शक्तियाँ जिसे बचाने के लिए लगी हों, वहाँ मैं अकेला कुछ कर सकता था तो ये आपकी नासमझी ही है सेठजी, और कुछ नहीं !"
कहने के बाद दरोगा विजय कुछ पल के लिए रुका, दरवाजे की तरफ बढ़ा और पान की पिक थूककर उल्टे हाथों से होठों को पोंछते हुए वापस अपनी कुर्सी की तरफ बढ़ते हुए बोला, "हाँ, एक बात और.....!"

क्रमशः