Mamta ki Pariksha - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

ममता की परीक्षा - 5



अमर से विदा लेकर आगे बढ़ रही रजनी की आँखों के सामने अमर का वह उदास मगर रूखापन लिए हुए चेहरा बार बार नजर आ रहा था। बहुत सोचने के बाद भी उसकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि अचानक ऐसा क्या हो गया जिसकी वजह से अमर उससे इस कदर अपरिचितों जैसा व्यवहार करने लगा था। उसने अमर की निगाहों में अपने लिए हमेशा दीवानगी की हद तक प्यार झलकते हुए देखा था। आज अमर का व्यवहार ठीक इसके विपरीत पाकर रजनी बेचैन हो गई थी।

विचारों के इसी उधेड़बुन में रजनी काऱ चलाते हुए अपने कॉलेज का गेट कब पीछे छोड़ आई उसे पता भी नहीं चला। सिग्नल पर खड़ी गाड़ियों की कतार में खड़ी रजनी को ध्यान आया कि वह तो अपना कॉलेज पीछे छोड़ आई है। सिग्नल पार करके उसने कार बाएं जानेवाली संकरी सड़क पर मोड़ दी। कुछ दूर जाने के बाद वह सड़क कच्ची पथरीली सड़क में तब्दील हो गई। यह रास्ता उसी झील की तरफ जाता था जहाँ अमर और रजनी कॉलेज बंक मारके अक्सर आते थे और साथ बैठकर समय बिताते थे, भविष्य के सुनहरे सपने बुनते थे।

अमर समय से अपने दफ्तर पहुँच गया था। अपनी केबिन में पहुँच कर उसने एक गहरी साँस ली और अपनी कुर्सी पर बैठ गया। कुर्सी की पुश्त से पीठ टिकाए आँखें बंद कर कुछ देर यूँ ही बैठा रहा और फिर दराज से एक कागज निकालकर उसपर कुछ लिखने लगा। इत्मीनान से वह कागज लिखकर उसने एक बार पुनः पढ़ा और फिर एक सफेद लिफाफे में उसे डालकर वह चल पड़ा जनरल मैनेजर गुप्ताजी के केबिन की ओर।
गुप्ता जी की केबिन के सामने पहुँचते ही केबिन के दरवाजे के ऊपर लगे छोटे से स्पीकर से आवाज आई " वेलकम मिस्टर अमर ! प्लीज कम इन !"

" थैंक यू सर् !" कहते हुए अमर ने केबिन के दरवाजे को हल्का सा धक्का दिया। बिना आवाज किये दरवाजा अंदर की तरफ खुलता चला गया। सम्मान से झुकते हुए अमर ने गुप्ताजी का अभिवादन किया। शानदार मेज के पीछे रिवाल्विंग कुर्सी पर बैठे हुए गुप्ता जी अधेड़ आयु के आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी थे। उनका बैठने का ईशारा पाते ही अमर उन्हें थैंक यू कहता हुआ सामने रखी कुर्सियों में से एक पर बैठ गया।
जेब में रखा सफेद लिफाफा गुप्ताजी की तरफ बढ़ाते हुए बोला , " सर् ये मेरा इस्तीफा है।"

" क्यों ?" चौंकते हुए गुप्ताजी ने लिफाफा थाम लिया और अमर की तरफ सवालिया निगाहों से देखने लगे।

उनके चेहरे पर उभर आये भावों को पढ़ते हुए अमर ने जवाब दिया, " सर् ! जीवन में कई बार ऐसे लम्हे आते हैं जब आपको न चाहते हुए भी वह करना पड़ता है जिसे आप कभी नहीं करना चाहते। समझ लीजिए मेरे लिए वह घड़ी आ गई है जब मुझे इतनी शानदार नौकरी की भी परवाह नहीं है। मेरे सामने और कोई चारा भी तो नहीं।"
" एक बार और सोच लो अमर ! इतनी शानदार नौकरी जिसमें तुम्हारा भविष्य पूरी तरह उज्जवल व शानदार है हर किसी को आसानी से नहीं मिल जाती। अगर तुम्हें कोई दिक्कत हो किसी मदद की जरूरत हो तो निस्संकोच कहो। हम तुम्हारी पूरी मदद करेंगे।" कहते हुए गुप्ताजी ने उसे समझाना चाहा था।

" नहीं सर् ! मुझे आपसे या कंपनी से कोई शिकायत नहीं है। मैं तो शुक्रगुजार हूँ, आपका और इस कंपनी का भी जो मुझे मेरी सेवाओं से कहीं बढ़कर पैकेज दे रही है। बस ये समझ लीजिए ये मेरी बदकिस्मती है !" निराश और थके हुए स्वर में अमर ने कहा।

"जैसी तुम्हारी मर्जी ! फिर भी अगर भविष्य में कभी हमारी जरूरत हो तो जरूर मिलना। आज काम देख लो, कल से तुम्हारी छुट्टी है, ओके मिस्टर अमर !" कहते हुए गुप्ताजी ने उसके इस्तीफे पर रिमार्क लिखते हुए उसे मेज की दराज में डाल दिया।

बुझे हुए चेहरे के साथ अमर गुप्ताजी का अभिवादन कर अपनी केबिन में वापस आ गया।

इधर रजनी झील के किनारे पहुँच गई थी। गर्मी के दिन शुरू हो गए थे इसलिए सुबह दस बजे ही ऐसा लग रहा था जैसे दोपहर हो गई हो। पूरा इलाका सूनसान था। नीरव शांति वातावरण में पसरी हुई थी। झील के किनारे एक पेड़ की छाँव में गाड़ी खड़ी करके रजनी झील की तरफ पैदल ही चल पड़ी जहाँ चारों तरफ झाड़ियों के अलावा दूर दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था। यह शहर से दूर प्रकृति की गोद में एक बेहद शांत इलाका था जहाँ शायद ही कोई आता हो। अमर ही उसको पहली बार यहाँ लेकर आया था। पहली बार आकर वह झील की खूबसूरती में खो सी गई थी और फिर उसके बाद तो यह झील उनके मिलन की साक्षी बन गई थी।

रजनी झील के किनारे पहुँच कर एक पेड़ के नीचे बैठ गई। उसके विचारों में फिर से अमर ने दस्तक दे दी थी। सुध बुध खोई सी वह बेध्यानी में नजदीक पसरे हुए छोटे छोटे कंकर उठाकर पानी में फेंकती रही। पानी की सतह पर कंकर के टकराते ही पानी की सतह पर दूर तक हलचल महसूस होती और फिर कुछ देर बाद सब शांत हो जाता। दूसरा गिरने वाला कंकर फिर से पानी के सतह की शांति भंग कर देता और फिर वही नीरव शांति। रजनी सोच रही थी अमर भी तो इसी कंकर के समान उसकी शांत जिंदगी में हलचल मचा चुका है लेकिन क्या उसके भी नसीब में इस पानी के सतह की तरह दुबारा शांति है ? विचारों के इसी उहापोह में वह इस कदर खोई हुई थी कि कब दबे पाँव तीन आवारा लड़के उसके पीछे आकर खड़े हो गए उसे पता भी नहीं चला।

तीनों लड़के लालच भरी निगाहों से उसकी तरफ देख रहे थे। बेख्याली में उसके अस्तव्यस्त कपड़ों से झाँकते उसके जिस्म का कुछ हिस्सा उन लड़कों की निगाहों के केंद्र में था। उनमें से एक ने उँगली होठों पर रखकर अपने साथियों को खामोश रहने का ईशारा किया। दूसरे ने पंजे के बल ऊँचे होकर दूर तक नजर दौड़ाई। दूर दूर तक कहीं कोई नहीं था, बस वीरान और सुनसान इलाका दृष्टिगोचर हो रहा था। तीनों लड़के वेशभूषा से पास ही किसी देहात से आये हुए देहाती जैसे दिख रहे थे और उनकी आयु रही होगी लगभग बीस से पच्चीस वर्ष के बीच।
उनमें से एक दबंग जैसा दिख रहा था और वही बाकी दोनों लड़कों को बराबर निर्देश दे रहा था और दोनों लड़के उसके निर्देश का बखूबी पालन भी कर रहे थे।

अपने गले में पड़े गमछे को उतारकर अपने हाथों में लेता हुआ वह युवक दोनों लड़कों को अपने पीछे आने का ईशारा करके दबे पाँव रजनी की तरफ बढ़ने लगा। दोनों लड़के भी उसका अनुसरण कर उसके पीछे दबे पाँव आगे बढ़े। रजनी के ठीक पीछे पहुँच कर उस युवक ने हाथ में पकड़ा हुआ गमछा तेजी से रजनी की आँखों पर कस कर लपेट दिया। रजनी कुछ समझ पाती कि तभी दूसरे दोनों लड़कों ने उसे दोनों तरफ से बाजुओं को पकड़कर ऊपर की तरफ खींच लिया। एक तरह से उसकी आँखों पर पट्टी बँध चुकी थी। दोनों लड़कों ने उसके हाथों व पैरों को जकड़ रखा था।

अचानक हुए हमले से वह घबरा गई और बेतहाशा चीखने लगी, यह समझते हुए भी कि यह निर्जन वीराना है। यहाँ कोई नहीं है आसपास जो उसकी चीख सुनकर उसकी मदद को दौड़ा चला आएगा। वहाँ कोई था तो वह थी और साथ थे वो तीन इंसानी दरिंदे जो उसकी बेबसी पर ठहाके लगाए जा रहे थे।

क्रमशः

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