अंधेरा कोना - 19 - झुला Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अंधेरा कोना - 19 - झुला

मेरा नाम विहान है, मैं गुजरात के कल्याणपुर का रहने वाला हू, मैं कनाडा में Anthropology की पढ़ाई कर रहा हू, ये बात आज से एक साल पहले की है, November 2021 में मैं visa के काम के लिए भारत आया था l मुजे देर रात को घर से बाहर घूमने जाने की आदत सी हो गई थी, मेरे पापा इस बात को जानते थे मगर मेरी माँ को ये आदत पसंद नहीं थी वो मुजे मना नहीं करती थी लेकिन उसे डर लगता था कि रात को सड़क सूमसाम होती है और कहीं चोर - चक्के ने लूट लिया तो? लेकिन मेरी माँ जल्दी सो जाती है, इसलिए उसके सो जाने के बाद मैं बाहर निकलता हू, मेरी पिता भी कभी कभी मेरे साथ घूमने बाहर आते है l एकदिन जब मेरी माँ सो गई फिर मैं बाहर घूमने के लिए निकला तब मैंने पापा से साथ आने के से पूछा लेकिन उन्हें सिर दर्द था इसलिए उन्होंने मना कर दिया, रात के 12.15 का टाइम था, हमारे घर के नजदीक ही एक गार्डन था जिसमें मैं कभी कबार जाता था, आज मुजे वहां अकेले बैठने की ईच्छा हुई इसलिए मैं अंदर गया, वहाँ बच्चों के झुलने के लिए कई झुले लगाए गए थे, मैंने ध्यान से उस जगह देखा तो मुजे थोड़ा सा अजीब लगा, उन वहां एक झुला अपने आप हिल रहा था, वो एसे हिल रहा था जैसे मानो उसपर कोई बैठा हो लेकिन जब पास आकर देखा तो मुजे थोड़ा सा डर लगने लगा क्युकी वो अपने आप हिल रहा था , मैंने थोड़ी सी हिम्मत जुटाई और उस झुले को रोकना चाहा, और वो रुक भी गया, मैं भूत प्रेत मे विश्वास नहीं रखता इसलिए मैं थोड़ी हिम्मत जुटाकर उस झुले पर बैठ गया l

उस पर बैठने के बाद मैं जुलने लगा लेकिन थोड़ी देर बाद मुजे अह्सास हुआ कि मेरे पीछे कोई खड़ा है, मैंने पीछे मुड़कर देखा तो वहां कोई नहीं था, फिर उस झुले पर कोई पीछे से धक्का देने लगा वहां आगे की ओर मुजे एक 5 साल की बच्ची दौड़ती हुई दिखी, उसके पीछे एक 35 साल का आदमी दौड़ रहा था, वो शायद उसके पिता थे, मेरी आंखे फटी की फटी रह गई क्युकी उस बच्ची का सिर फूटा हुआ था, खुन निकल रहा था और उसके कपड़े भी खून से सने हुए थे, और उस आदमी के पेट मे छुरी लगी हुई थी, वो भी आधी पेट के अंदर थी फिर भी वो लोग दौड़ रहे थे, फिर थोड़ी देर बाद इसी कई सारी बच्चियां दौड़ने लगी जिसकी एक ही शकल थी और उनके पीछे वो एक ही शकल वाले कई आदमी दौड़ रहे थे ये सब देखकर मुजे चक्कर आ रहे थे, मैं उठना चाह रहा था फिर भी उठ नहीं पा रहा था, अचानक वहां पीछे से जोर से किसीने झुले को धक्का दिया और झुला कई फिट उपर उछला ये देख मेरी आंखे बंद हो गई l

मेरी आंखे खुली तो सुबह के 7.00 बजे थे, सफाई कर्मचारी आए हुए थे, उन्होंने मुजे जगाया, मैंने उठकर देखा तो वो झुला वैसे का वैसा ही था और मुजे भी कुछ नहीं हुआ था, मैंने उस कर्मचारी जिनका रमेश नाम था उनको सारी बात बताई, तब उन्होंने कहा,

रमेश : यहा पांच साल पहले एक दिन शाम के वक़्त एक 6 साल की लड़की इसी झुले पर जुल रहीं थीं, उसका बाप फोन मे किसी से बात करते करते बाहर चला गया, पीछे से ये लड़की जोर जोर से झुला जुलने लगी कि इस कमबख्त झुले ने धोखा दे दिया, इसकी चेन टूट गई और वो बच्ची उपर हवा मे से नीचे पटक कर गिर गई, उसका सिर एक बड़े से पत्थर से टकरा गया और वो कुछ ही मिनिट मे मर गई, उसे हॉस्पिटल ले गए लेकिन वहाँ उसे मृत घोषित कर दिया गया l

रमेश : उसका बाप ये सदमा सह नहीं पाया और थोड़े दिन बाद उसने अपने आप को छुरी मारकर आत्महत्या कर ली l उसकी बीवी उस बच्ची को जन्म देते समय मर गई थी, उसका बाप ही उसकी देखभाल रखता था l

मैं : उस बच्ची का नाम क्या था?

रमेश : रूबी, और उसके पिता का नाम रोहन था l

मैं : वो कहा रहते थे? उसका घर है अभी भी?

रमेश : जी हाँ, उनका घर आज भी है, जिस पर रोहन के छोटे भाई का हक है अभी, लेकिन वो अभी बंद है l

मैंने रमेश का शुक्रिया अदा किया और वो अड्रेस ले लिया, मैंने घर पर ये बात बताई, मेरे पिता डर गए और मेरी माँ रोने लगी और वो मुज से नाराज भी थी, मैं उस बंद घर पर उस दिन सुबह को गया, उनके पड़ोसियो से पता चला कि रूबी की चेरी और स्ट्रॉबेरी बहुत पसंद थी, इसलिए मैं रात को 8.00 बजे उसके घर के बाहर आँगन के ओर 250 ग्राम चेरी और स्ट्रॉबेरी रखी और एक दीया भी जलाया उसको उधर रखते वक़्त मैंने कहा था
"श्राद्ध समज कर ग्रहण करना" और फिर वापस आ गया l अब वक़्त था रात के 12.30 का मुजे फिर से बाहर घूमने का मन हुआ, इस बार तो पापा भी मना कर रहे थे, लेकिन फिर उन्होंने मुजे स्कूटर लेकर जाने को कहा लेकिन उन्होंने खास चेतावनी दी कि उस पार्क में मत जाना, मैं स्कूटर लेकर बाहर गया, मुजे फिर से उसी पार्क मे जाने की ईच्छा हुई, उस पार्क मे मैं जैसे ही गया कि वहाँ मुजे किसी बच्ची की हंसने की आवाज आई और अचानक वो बच्ची और उसके पिता रोहन दोनों अंधेरे मे से आते हुए दिखे, उस बच्ची के हाथ में मेरे द्बारा उस घर पर रखी हुई स्ट्रॉबेरी और चेरी थी वो खा रहीं थीं, और वो मेरी और देखकर मुस्करा रही थी, उसके पिता रोहन के चेहरे पर भी मुस्कान थी, और रोहन ने कहा,

रोहन : मेरी बेटी को खुश करने के लिए, "शुक्रिया" l

ये सुनकर मेरी आंखे नम हो गई, मैंने सिर्फ हाँ मे सिर हिलाया, लेकिन कुछ बोल नहीं पाया, वो लोग अचानक पीछे अंधेरे कोने मे जाते जाते अदृश्य हो गए, फिर उस दिन के बाद वो झुला अपने आप हिलना बंद हो गया l कई दिन बाद मैं जब वो रोहन के भाई जिनका नाम सुभाष था वो आए तब उन्हें मैंने सब बताया, तब उन्होंने कहा कि,

सुभाष : उस दिन जब रूबी की मौत हुई तब भैया उसके लिए स्ट्रॉबेरी और चेरी लाए थे, लेकिन वो दे नहीं पाए, लेकिन तुमने ये काम कर दिया l