एक रूह की आत्मकथा - 24 Ranjana Jaiswal द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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एक रूह की आत्मकथा - 24

कामता प्रसाद ने रेहाना को बताया कि अनीस को देखते ही उनके छोटे बच्चे मुस्कुराने लगते थे कि अब ये सीधे दीदी के कमरे में घुसेंगे|यह सब सुनना- कहना बहुत बुरा लगता है |आपके नाते ही उनसे रिश्ता जुड़ा था|आप ही उन्हें इस तरह समझा दीजिए कि उन्हें बुरा भी न लगे|
रेहाना ने उन्हें आश्वस्त किया पर खुद संकोच में पड़ गयी कि अनीस से इस तरह की घटिया बातें कैसे करे ?जब वे घर आए तो सहज भाव से उसने बस इतना ही कहा-"आप मेरे साथ ही कामता प्रसाद जी के घर जाया करें|"
उसके इतना कहते ही अनीस बमक उठे –"क्यों कुछ कह रहा था क्या ?ठीक कर दूँगा उसे|"
उसे आश्चर्य हुआ कि उसने अभी उन्हें कुछ बताया ही नहीं ,फिर भी !इसका अर्थ सूचना सही है|इसे ही कहते हैं 'चोर की दाढ़ी में तिनका'|वह तो अभी तक कामता प्रसाद की बातों को पूर्वाग्रह ही मान रही थी |अनीस पर इतना विश्वास तो था कि वे रिश्तों की कदर करेंगे| वे खुले विचारों के हैं ।उनकी नीयत में खोट नहीं |शायद इसीलिए बच्ची के कमरे में चले जाते होंगे| उसे छू-छूकर बात करते होंगे ,पर उनका नाराज होना कुछ और ही कह रहा था |उसके कुछ ही दिन बाद वह किशोरी वाली घटना हुई ,फिर तो जैसे अनीस की कलई ही उतरने लगी |वह गौर करने लगी कि उसके साथ होते हुए भी वे उससे आँखें बचाकर किशोरियों के उभरते यौवन को निहारा करते हैं |एक दिन तो हद हो गयी |वे कुछ नीली फिल्में ले आए और उसे भी साथ देखने का आग्रह करने लगे| वह थकी हुई थी ।दिन -भर की नौकरी की थकान उसे रात में जागने की इजाजत नहीं दे रही थी| उसके मना करने पर वे नाराजगी दिखाने लगे| उनका मन रखने के लिए उसने उड़ती नजर फिल्म पर डाली तो घोर वितृष्णा से उसका मन भर गया| फिल्म की ज्यादातर नायिकाएँ किशोरियाँ ही थीं ।किशोरियां क्या,बच्चियाँ कहना ज्यादा सही होगा| एक सहवास के दृश्य में चेहरा बच्ची का था| उसकी भाव-मुद्राएँ देखकर वह सहम गयी थी| पर जब कैमरा उसकी कमर के नीचे के जिस्म पर फोकस हुआ और सहवास दिखाया जाने लगा तो वह मुंह फेर कर लेट गयी| तभी उसने जो सुना ,उसे सुनकर लगा जैसे किसी ने पिघला शीशा उसकी कान में डाल दिया हो।अनीस कह रहे थे –"बेवकूफ बना रहे हैं ये नीली फिल्म बनाने वाले |चेहरा तो कमसीन लड़की का है पर कमर के नीचे का सब कुछ किसी अधेड़ औरत का है|"
स्त्री होकर भी स्त्री के गुप्त अंगों की पहचान वह इस तरह नहीं कर सकती थी|उस दिन उसे महसूस हो गया कि उसने गलत आदमी से विवाह कर लिया है|अनीस काफी खेले-खाए आदमी है|जरूर वेश्यागमन भी करते रहे होंगे| पैसे कम होने की वजह से सस्ती वेश्याएँ ही इन्हें उपलब्ध हुई होंगी ,इसीलिए इनके पास इस तरह के अनुभव और भाषा है|वह देखती है कि गरीब तबके की नौकरानियों व मज़दूरिनों को देखते समय इनकी आँखों में एक भूख चमकने लगती हैं|प्रेम- संबंध के लिए न वे कोई स्तर देखते है न किसी नैतिकता को मानते हैं |उनकी आँखों पर बस एक ही चश्मा है, जिससे हर स्त्री बस मादा नजर आती है |प्रगतिशीलता ,स्त्री स्वाधीनता ,स्त्री कल्याण की बड़ी-2 बातें तो वह चारा है ,जिससे प्रबुद्ध वर्ग की स्त्रियों का विश्वास हासिलकर उनका भी शिकार किया जा सके| उससे निकाह का कारण भी उन्होंने एक दिन बताया –"अगर निकाह नहीं करता तो पतित हो जाता|"
यानी यौन संतुष्टि मात्र के लिए उन्होंने उसे चुना था| इस चुनाव से हमेशा और हर समय के लिए उन्हें मुफ्त में एक सुंदर ,युवा देह उपलब्ध हो गयी थी|
पर वह सिर्फ देह नहीं थी,इसलिए धीरे-धीरे बागी होती गयी थी |ऐसे चरित्र वाले पति से वह अपेक्षा कर रही थी कि वे रमेश से उसके प्रेम को समझेंगे और उसे रमेश से मिलवा देंगे| लेकिन जिसने जीवन में कभी प्रेम ही नहीं किया हो,वह प्रेम को कैसे समझता? थोड़ी देर वे अपनत्व दिखाते रहे ....उसे समझाते रहे फिर बिफर पड़े –"सुंदर और जवान लौंडे को देखकर तुम्हारी नीयत खराब हो गयी| अपनी उम्र का भी ख्याल नहीं रहा| यह प्रेम नहीं लस्ट है| उस कमीने को भी फ्री में मजे मिल रहे हैं तो क्यों पीछे हटे ?"अनीस का यह रौद्र रूप देखकर वह सन्न रह गयी|अभी जरा देर पहले उसे कितने प्रेम से समझा रहे थे और अब ...|शायद यही उनका असली रूप है|वह कैसे भूल गयी थी कि लस्ट ही जिसका जीवन रहा है ,वह उसके जज़्बात नहीं समझ सकता|अभी तक उससे राज उगलवाने के लिए उन्होंने अच्छे पति का मुखौटा पहन रखा था| वह भी अपने दुख में डूबी सच बोल बैठी|अब रमेश की बात उसे याद आ रही थी –"हमेशा ध्यान रखना कि हमारे बीच के सम्बन्धों की भनक किसी को न लगे,वरना तुम्हारी छिछालेदर हो जाएगी| पुरूष प्रधान समाज स्त्री को स्वतंत्र प्रेम की इजाजत नहीं देता| पति व पर्दे की आड़ में चाहे वह कुछ भी करे |मर्द का कुछ नहीं बिगड़ता सारा खामियाजा स्त्री भोगती है|"
पर वह भी क्या करती ?किसी को धोखा देना उसका स्वभाव नहीं था |वह रमेश से प्रेम करती है ,इस सत्य को वह अनीस से छिपाना नहीं चाहती थी| यद्यपि वर्तमान में रमेश उससे दूर जा चुका था |फिर भी अनीस से वह सामान्य रिश्ते नहीं बना पा रही थी|उसे लग रहा था कि वह उसे सच न बता कर उसे धोखा दे रही है इसीलिए वह तड़प रही थी|अंत में उसने निर्णय किया था कि वह सच बता देगी फिर अनीस का जो निर्णय होगा ,उसे स्वीकार करेगी |अगर उसने गुनाह किया है ,तो उसकी सजा भुगतेगी |
अनीस उसे छोड़ भी देंगे तो एकाकी जीवन व्यतीत करेगी|कम से कम उसकी आत्मा पर कोई बोझ तो नहीं रहेगा| वह चाहती तो दोनों से अपने रिश्ते को निभा सकती थी,पर एक साथ दो नावों की सवारी उसकी आत्मा स्वीकार नहीं कर सकी थी|इस बीच अनीस का असली रूप भी सामने आ गया था| वह जान गयी थी कि उसमें उसके जैसा साहस नहीं है कि सच स्वीकार कर संसार के सामने उसे अपना ले| वह उससे आड़ में चोरी-छिपे रिश्ता रखना चाहता था|जबकि वह साफ-सुथरा रिश्ता चाहती थी|