रेहाना के घर के ठीक पीछे एक मकान था ,जिसमें उन दिनों बतौर किराएदार एक गरीब हिन्दू परिवार रहता था|उस परिवार में नौवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक किशोरी भी थी| अलग बाथरूम न होने के कारण पीछे बने छोटे से आँगन में ,जहां हैंडपाइप था –वह परिवार नहाया करता था |आँगन ऊपर से खुला था|अगल-बगल की छतों से वह आँगन साफ दिखता था|सुबह स्कूल जाने से पहले वह किशोरी आँगन में निश्चिंत होकर नहाती थी |उस समय आस-पास की छतों पर कोई नहीं होता था |वह इस बात से बेखबर थी कि दो जोड़ी अधेड़ आँखें उसे रोज निहारती हैं|रेहाना को भी यह बात पता नहीं थी ,पर वह देखती थी कि सुबह होते ही अनीस हाथ में ब्रश लेकर छत पर चले जाते हैं |वह घर के काम में लगी रहती थी |मन में कोई शक भी नहीं था| एक दिन रमेश ने फोन पर उससे पूछा –"आपके घर के पीछे कोई 'माल' रहता है,उसे देखने आना है |"
वह चौक पड़ी–"माल ..!नहीं तो ...|"
"रहता है जानदार माल !..हर सुबह दो सूरज उगते है वहाँ ...|उसका जलवा आह !"
"क्या बक रहे हो ?मेरे घर के पीछे तो एक बच्ची अपने परिवार के साथ रहती है |फिर तुम तो कभी मेरी छत पर गए नहीं,फिर कैसे जानते हो?"
"वही तो..... बूझिए ...आपके पति रस ले-लेकर छत से देखे गए रसलीला की बातें आफिस में सबसे बताते फिर रहे हैं|एक दिन खुद देख लीजिए|इतनी भोली बनकर धोखा खाएँगी |अपने आदर्श पति के तथाकथित माल के दर्शन तो कर लीजिए|"
'-देखो,पहली बात मुझे 'माल' शब्द से चिढ़ है |लड़की को माल कहने वालों को मैं माफ नहीं कर सकती| दूसरी बात पीछे बेहद गरीब नौवीं में पढ़ने वाली हिन्दू बच्ची रहती है, कोई बड़ी लड़की नहीं ..|"
हिन्दू शब्द सुनकर रमेश का स्वर गंभीर हो गया|उसे शायद बुरा लगा था|अभी तक मुस्लिम परिवार की लड़की समझकर वह भी मजे ले रहा था ।अब वही बात उसे अनैतिक लगने लगी थी| कितने गहरे होते हैं ये धर्म के संस्कार!पर कोई भी धर्म मानवता से बड़ा तो नहीं हो सकता| गलत चीज तो हर हाल में गलत होती है ,धर्म के कारण बदल कैसे सकती है ?पर धर्म के उन्माद में लोग मानवता भूल जाते हैं तभी तो हर दंगे-फसाद ,युद्ध या आपदा में एक कौम दूसरी कौम की स्त्रियों के साथ बुरा सलूक करती है,जबकि स्त्री तो हमेशा शांति चाहती है| मर्द ही अपनी महत्वाकांक्षा के कारण युद्ध ठानते हैं पर यातना सहती हैं स्त्रियाँ |
रेहाना ने अनीस को रमेश से हुई बातचीत के संबंध में कुछ नहीं बताया| दूसरे दिन सुबह जब वे छत पर गए तो दबे पाँव चुपके से वह भी वहाँ जा पहुंची|छत का दृश्य देखकर तो उसे मानो काठ मार गया|छत की कच्ची बाउंड्री की एक ईंट निकालकर मोका बनाया गया था, जिससे पीछे के आँगन में देखा जा सके |बाद में उसमें ईंट लगा दी जाती थी ताकि उसे पता न चले| छत पर खड़े होकर देखने से आँगन में नहा रहा व्यक्ति जान लेता की कौन झांक रहा है, फिर विवाद हो सकता था ,इसलिए उसका प्रगतिशील, नारी अधिकारों का पक्षधर पति छत पर उकड़ूँ बैठा मोके से झांक रहा था |उसने आँगन में देखा तो बच्ची मात्र चड्ढी में नहा रही थी| गोरे कमसीन शरीर पर बिजली के ताजे खिले फूल पानी की बूंदों से धुलकर और भी धवल आभा से चमचमा रहे थे|
उसकी आहट पाकर अनीस के होश उड़ गए|उसने पूछा-"ऐसे उकड़ू क्यों बैठे हुए हैं ?कहाँ झांक रहे हैं ?"
वे घबराकर उठ खड़े हुए –"कुछ नहीं बस ऐसे ही व्यायाम कर रहा था|"
"हाथों में ब्रश लेकर मोके से झांकना भी व्यायाम है क्या !ये व्यायाम आँखों का है या फिर ... |आप रोज इसी व्यायाम के लिए छत पर आते हैं |"
'‘तुम मेरी जासूसी कर रही हो ..?-'
"मुझे पहले से पता था पर खुद देखना चाहती थी|'
'‘अच्छा! पर तुम कैसे जानती थी ?"
"सारी दुनिया को आप अपनी बहादुरी के कारनामे बताते हैं तो कैसे नहीं जानती ?‘'
"ओह,समझ गया जरूर उस रमेश ने चुगली की होगी |एक कमीना है|"
"और आप कैसे हैं ?बेटी की उम्र की बच्ची को नहाते हुए देखते हैं और रस ले-लेकर उसके अंग-प्रत्यंगों का बखान करते हैं |कितनी भूख है आपको देह की ?वैसे तो बड़ी-बड़ी प्रगतिशील बातें करते हैं|"
"क्या हो गया ?लोग ब्लू फिल्म भी तो देखते हैं |देखने वाली चीज को तो देखेंगे ही|"
"शर्म नहीं आती आपको,अगर वह आपकी बेटी होती तो..|"
"चलकर उस साले की खबर लेता हूँ ।मेरे घर में आग लगाता है |"
यह कहते हुए अनीस बिना किसी ग्लानि के नीचे उतर आए |वह उनकी इस बेहयाई पर अवाक रह गयी|...तो... रमेश ठीक कहता है इनके बारे में|
ये तब की बात थी ,जब रमेश से उसके रिश्ते प्रगाढ़ नहीं हुए थे ।उससे बस सामान्य -सा परिचय था| शादी के बाद अनीस के आफिस वालों ने उन्हें पार्टी देने पर ज़ोर दिया तो उसके घर पर एक छोटी -सी पार्टी हुई थी| पहली बार रमेश ने उसे वहीं देखा था|उसने तो उस पर ध्यान नहीं दिया ,पर वह उसे पसंद करने लगा था| फिर आफिस से अनीस के सामने ही फोन करने लगा |अनीस ने भी उसे कभी मना नहीं किया |तब वह उनसे काफी क्लोज था|
आफिस में सबसे कम उम्र का होते हुए भी वह काम-काज में कुशल था ,इसी कारण सभी का चहेता बन गया था| सभी को उससे काम पड़ता था |मैनेजमेंट तक उसकी पहुँच थी|उससे परिचय होने के बाद वह अनीस की हर बात उससे बताने लगा| विशेषकर वे बातें जो आफिस या और कहीं भी वे उसके बारे में कहते थे |उसे बुरा लगता था कि कोई अपनी पत्नी का जिक्र सिर्फ देह रूप में कैसे कर सकता है ?कितनी तरह की काम-कलाएं और कितनी बार अनीस के प्रिय विषय बन गए थे |रमेश उससे कहता –'‘मुझे अच्छा नहीं लगता उनका आफिस में बिस्तर की बातें शेयर करना |कोई और शख्स तो नहीं करता इस तरह की बातें ,वो भी पत्नी के संबंध में|मुझे तो लगता है वे आपको पत्नी ही नहीं मानते|"
रेहाना को बुरा लगता पर उसे पता था कि अनीस इस तरह की बातें कर सकते हैं |घर पर उसके सामने ही फोन पर अपने मित्रों से वे इस प्रकार की नग्न भाषा का प्रयोग करते कि वह कट कर रह जाती पर क्या करती ?यह उनके स्वभाव का जैसे एक अंग ही था| प्रारम्भ से ही वे ऐसे लोगों के बीच उठते-बैठते रहे थे ,जो खुलेपन व नंगेपन को ही प्रगतिशीलता समझते हैं| सामाजिक अनुशासन जिनके लिए पिछड़ापन है और सभ्य भाषा, सभ्य आचरण सामंतवाद |वे तो अपनी समलैंगिकता के किस्से भी यूं बता जाते ,गोया इसमें अस्वाभाविक कुछ नहीं| अपने मामूजान से भी उनके ऐसे रिश्ते रहे और कईयों से भी| यह खुद उन्होंने ही उसे बताया था| उनके पास कोई भी लड़का चैन से नहीं सो सकता था |एक बार उनका रिश्ते का भतीजा घर आया था| कमरा एक ही था इसलिए उसने दोनों को एक साथ सोने को कहा और खुद छत पर जाकर सो गयी |सुबह भतीजे की लाल आँखें देखकर उसने कारण पूछा ,तो वह शर्माते हुए बोला-"आंटी अंकल नींद में रात- भर परेशान करते हैं।"
उसने सोचा- शायद 40 की उम्र तक स्त्री -सुख से वंचित रहने के कारण ये यौन-कुंठित हो गए हैं| बेचारे बदसूरत और खाली जेब होने के कारण किसी लड़की को तो नहीं पटा पाए होंगे या फिर शायद यह भी उनके प्रगतिशील होने का प्रमाण हो |
एक बार वह और शर्मिंदा हुई ,जब उसके एक मित्र कामता प्रसाद ने उससे उनकी शिकायत की |मित्र की पत्नी इन्हें राखी बांधती थी| इस नाते उसकी किशोर बेटियाँ इन्हें मामा कहकर पैर छूती थीं| मित्र का आरोप था कि झुककर पैर छूने वाली बेटियों को वे बाहों के बगल से पकड़कर उठाते हैं| समय-कुसमय कभी -भी घर आ टपकते हैं और सीधे बड़ी बेटी के कमरे मे चले जाते हैं |उसके बिस्तर पर लेट जाते हैं ।उसकी रज़ाई में घुस जाते हैं |उसे छू-छूकर बात करते हैं |उनके या दूसरे कमरों में नहीं बैठते |संकोच की वजह से उनकी पत्नी उन्हें कुछ कह नहीं पातीं|आप उन्हें मना कर दीजिए |बच्चों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है |