Junoon Se Bhara Ishq - 26 Payal द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

Junoon Se Bhara Ishq - 26

Fever Check





वही प्रिया बेड पर लेटी लेटी बोर हो रही थी। उसे समज नही आ रहा था की वो क्या करे। इसलिए उसने नौकरो से कह कर कुछ बुक्स लाने को कहा।



बुक्स आते ही वो पढने लगी। और कुछ ही देर मे उसे पढते पढते निंद लग गई।  कुछ घंटो बाद किसी की गहरी नजर और हाथो काटो उसे अपने गालो पर महसूस हुआ।  उसने आंख खोल कर देता तो अभय उसके गालो पर हाथ फेर रहा था।



अभय :- अब शायद बुखार नही है तुम्है। 

अब भी उसके हाथ रुके नही थे। बल्की लगातार उसके चेहरे पर चल रहे थे।  प्रिया को उसका ऐसे छूना अच्छा नही लग रहा था। और वो उसे मना करके गुस्सा नही करना चाहती थी।

इसलिए उसने बस हल्के से सर को हा मे हिला दिया।

प्रिया :- जी ! पहले से बेहतर फिल कर रही हू।

अभय :- गुड अपना ख्याल रखो।

प्रिया हैरान थी ये देख कर अभय उसकी केयर कर रहा था। पर वो इससे आगे कुछ सोच पाती उससे पहले अभय ने जो कहा जिसे सुन वो समज गई। की वोषिस इंसान के लिए खिलौने से बढ़कर कुछ नही है।

अभय :- तुम जानती हो ना तुम यहा क्यू हो। और ये भी की तुम्हारे साथ साथ तुम्हारे शरीर पर भी सिर्फ मेरा हक है।

तो मै नही चाहता की तुम आगे से बिमार पडो। समझी।

प्रिया गुस्से अपने दांत चबाने लगी । कितनी बडी गलत फहमी मे चली गई थी वो। की ये इंसान उसकी केयर करेगा। ये तो शायद केयर होता क्या है ये भी नही जानता था।

ये सिर्फ एक राक्षस है जो उसे टोचॅर करने आया है। उसकी जिंदगी मे। वही अभय अपनी बात खत्म कर प्रिया को गौर से देखने लगा। उसके चेहरे पर पहले के जैसे गुस्सा और एनजीॅ देख अभय के दिल को सूकून मिला।



जो कल उसके आंसु और बिमारी को देख कही खो गया था। अभय ने उससे अपनी नजर हटाई और अपनी शटॅ उतार ने लगा। प्रिया ये देख घबरा गई।

प्रिया :- ये . . . . . . ये क्या कर रहे है आप ? 

अभय ने लापरवाही से उसकी तरफ देखा।

अभय :- क्या कर रहा हू मतलब
अफकोसॅ ! सोने जा रहा हू और क्या ?

उसकी बात सुन प्रिया जल्दी से बेड के पीछे खिसक गई।

प्रिया मनमे :- हा , सोने का तो वक्त तो था। पर उससे पहले ये इंसान उसे फिर से टोचॅर करेगा। वो बिमार है और ऐसे मे ये . . . . . . .

अभय ने प्रिया के परेशान से चेहरे की तरफ देखा तो उसे समज आ गया की उसके दिल मे क्या चल रहा है।

अभय :- तुम मे दिमाग नही है क्या ? हा ! तुम्हे क्या लगता है। तुम इतने आराम से मेरा फायदा उठाओगी और मै कुछ नही करुगा।

" कसम से ! तुम एक नंबर की सनकी हो। "



प्रिया उसे आंखे फाड़े उसे देखने लगी।

प्रिया मनमे :- मै कब उसका फायदा उठा रही थी। और क्या कहा इसने। सनकी ! मतलब इसने मुझे सनकी कहा। बल्कि सनकी तो ये खुद है।

इसकी हिम्मत कैसे हुई मुझे सनकी कहने की।

प्रिया का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। वो मन ही मन उसे गालिया दिये जा रही थी। पर वो ये सब अपने मन मे ही कह सकती थी। क्यंकी उपर तो उसकी जुबान पर जैसे ताला लग जाता था।

और अगर कोशिश वो बोले भी तो ये सनकी इंसान नजाने क्या सजा देदे। अभय की बात उसे बिल्कुल भी अच्छा नही लग रहा था। फायदा वो क्यू उठायेगी बल्कि असली मायने मे तो उसका ही फायदा उठाया जा रहा था।

उसने अभय को बिना शटॅ के देख ब्लैंकेट से अपने आपको कवर कर लिया। पर अभय पहले ही अपनी शटॅ उतार बेड पर आ चुका था। और उसे पीछे से अपनी बाहो मे पकड कर लेट गया।

अभय के करीब आते ही अचानक प्रिया की धडकन बहुत तेज हो गई। अभय का एक हाथ उसके सर के नीचे था। तो दूसरे ने उसे कमर से घेरा हुआ था। प्रिया के चेहरे पर शमॅ साफ देखी जा सकती थी।





प्रिया मनमे :- हरकते इसकी सायको वाली, सोच उसकी गंदी और सनकी मुझे कह रहा है। कमीना इंसान।

वो उसे मनमे कोसने लगी। हालाकि अभय उसे पास रोज ही रहता था। और आज सबसे अलग जो चीज थी वो प्रिया को बेचेन कर रही थी। वो ये की अभय के होठ प्रिया के कानो के पास थे। जिसे वो उसकी हर एक सांस को अपने कानो मे जाती हुई महसूस कर रही थी। और यही वजह थी की वो बैचेन हो रही थी।




अभय :- तुम इतनी पतली क्यो हो ? खाना ठीक से नही खाती क्या ?

प्रिया ने उसक बात का कोई रिएक्शन नही दिया।

अभय :- ये मेरा ओडॅर है की तुम अच्छे से खाओगी। और थोडी हैल्दी होगी। और अगर तुमने ऐसा नही किया तो , तो जिम्मेदार भी आगे की सिचुयेशन के लिए भी तुम ही मानी जाओगी।

प्रिया अब भी चुप चाप लेटी रही। उसके लिए एक अनसुलझी हुई गुत्थी थी। जो कभी उसकी फिक्र करता था, तो कभी अगले ही पल उसे टोचॅर। तभी उसे जैसे कुछ याद आया हो। वो तुरंत हल्के से टेढी हो गई। और अभय की तरफ देखा।

प्रिया :- क्या अब भी आप मेरी फैमिली को पनिशमेन्ट करोगे। अब तो मै सब वही कर रही हू ना जैसा आपने कहा है।

प्रिया की आवाज मे अपने लिए नरमी और परिवार के लिए फिक्र मौजूद थी। अभय उसे देखने लगा।

 

क्या थी ये लडकी इस वक्त इस पे टॉपिक निकालने की क्या जरूरत थी। जब की वो उसके पास उसे महसूस करना चाहता था।

अभय :- ये तुम पर डिपेंड करता है। अगर तुम आगे से कोई भी ऐसी हरकत नही करोगी जो मुझे गुस्सा दिलाये तो मै भी तुम्हारे परीवार को कुछ नही करुगा।

अगर तुमने इतनी सी भी चुक की या मेरी किसी भी बात को अनदेखा किया तो तुम तो भुगतो ही साथ मे तुम्हारा परीवार भी सहेगा।

प्रिया ने जल्दी से अपना सर हा मे हिला दिया। अगर उसके अभय की बात मानने से मेहरा फैमिली सेफ रहेगी तो वो उनके लिए इतना तो कर ही सकती है।

क्या हुआ जो उसे उसके परिवार ने उसे अपना नही माना पर वो तो उन्हे आज भी अपना ही मानती है।

अभय :- अब ! इस छोटे से दिमाग को आराम दो और अपनी आंखे बंद कर लो।

अब न कोई आवाज आनी चाहिए और ना ही कोई हलचल।

सो जाओ।

प्रिया ने उसके कहते ही आंख तो बंद कर ली पर उसके दिमाग मे चर रहा था की वो चुप चाप अब इसकी बात मान लेगी। और उसे गुस्सा नही दिला येगी। यही सब सोचते उसकी कुछ वक्त बाद उसे निंद लग गई।

प्रिया को आराम से फैलकर सोने की आदत थी। क्यूकी वो शुरु से ही अकेले सोई थी। तो कोई था नही की उसे सोने का तरीका सिखा सके।

इसलिए आधी रात को जब प्रिया ने अपने पैर फैलाए तो वो पैर सीधे अभय को जाकर लग गया। और उसकी झटके से निंद खुल गई।

अगर आज प्रिया जाग रही होती तो नजाने अभय उसके साथ क्या करता। पर वो गहरी नींद मे थी। अभय ने प्रिया को गहरी नींद मे देगा। जिस वक्त उसके चेहरे पर छोटे बच्चे की सुकून था।

उसे देख अभय को गुस्सा नही आया। बल्कि उसके पास जाकर उसे फिर से कस कर पकड कर सो गया। ता की वो अब उसे मार न सके।

कुछ दिन बाद . . . . . . . . . .

रेस्ट के बाद उसे फायनली उसे कमरे के बहार जाने की परमिशन मिल गई थी। ये कुछ दिन उसके पहाड की तरह थे। कुछ दिन और वो बेड पर रहती तो शायद पागल ही जाती।

उसे दिन रात पडे रहना बिल्कुल भी पसंद नही था। वो आलसी नही थी। इसलिए वो ये दिन सबसे मुश्किल थे। और उस सनकी का ओडॅर था। जो की उसे हर हाल मे मानना थामना उसे दिक्कत हो सकती थी।

वो चाहती थी हक वो अभय से कहे की फोसॅ न करे पर बात वही आकर रुक जाती थी। की उसकी सुनने वाला हैही कौन यहा ?

घडी मे ठीक 6 बजते ही वो किचन मे चली गई। जब अंदर गई तो देखा कुछ नौकर वहा पहले से ही सर झुकाए खडे थे।



* * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * *