एक रूह की आत्मकथा - 13 Ranjana Jaiswal द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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एक रूह की आत्मकथा - 13

मैं नहीं जानती थी कि देह की भूख इतनी प्रबल होती है।यह पेट की भूख से भी ज्यादा खतरनाक होती है।पेट का भूखा भक्ष्य-अभक्ष्य का ख्याल नहीं रख पाता।कई दिन का भूखा खाने में अपनी रूचि और स्वाद को भी किनारे रख देता है।कच्चा-पक्का,गन्दा -साफ,जात- कुजात,धर्म -सम्प्रदाय कुछ भी उसे नहीं दिखता।ये सब पेट -भरे का शग़ल है।भूखे को पेट भरने को कुछ चाहिए।जहाँ और जैसे मिले या जिससे मिले।ये छोटा- सा पेट इंसान पर इतना हावी हो जाता है कि एक समय के बाद इंसान इंसान से जानवर या राक्षस हो जाता है। इसी पेट के लिए लोग जीवन भर दौड़ते हैं..हाड़तोड़ काम करते हैं।झूठ -झूठाई,पाप -पुण्य,चोरी- चकारी ही नहीं स्मगलिंग से हत्या तक कर बैठते हैं।इसी पेट के कारण अनगिनत औरतें चकलों की शोभा हैं।वे पेट के लिए देह बेचती हैं।पेट वह खाई है जो कभी नहीं भरती ।भरने के कुछ देर बाद ही खाली हो जाती है और फिर उसकी चिंता करनी पड़ती है।हर गृहिणी यही शिकायत करती है कि सुबह से देर रात तक वह रसोई में ही बिता देती है ताकि घर के सदस्यों का पेट भर सके।हर मर्द का यही दर्द है कि वह दिन- रात अपने परिवार का पेट भरने के लिए दौड़ता रहता है। मजदूर से मालिक तक पेट की चिंता में हलकान हैं ।प्रकृति ने मनुष्यों के पेट भरने के लिए बहुत कुछ दिया है फिर भी मनुष्य का पेट नहीं भरता।वह कमजोर जीव -जंतुओं को मारकर खा जाता है।जल -थल -आकाश में उड़ने- विचरने वाले जीवों को देखकर उसके मुँह में पानी आ जाता है।ये उसके स्वाद की भूख होती है पेट की नहीं ।पेट भरने के लिए धरती इतना कुछ देती है कि कोई भी इंसान भूखा न रहे पर बहुत से लोग भूखे रहते हैं उसका कारण है-भोज्य का आसमान वितरण।दबंग लोग भोज्य- सामग्री को अपने गोदामों में भरकर रख लेते हैं जिसके कारण जरूरतमंदों को उनका हक नहीं मिल पाता।दबंग जरूरतमंदों को गुलाम बनाकर उनसे श्रम लेते हैं उनका शोषण करते हैं तब उन्हें पेट भरने भर की सामग्री देते हैं। वो भी इतनी कम मात्रा में कि वे उनके आजीवन बंधक बने रहें।आज शिक्षा,रोजगार के साधन बढ़ने से लोग जागरूक हुए हैं पर कितने लोग!शोषण आज भी बदस्तूर जारी है।

हाँ,तो मैं देह की भूख की बात कर रही थी।समीर के साथ गोवा -प्रवास के कुछ दिनों ने मेरे भीतर सो रही कामिनी को यूँ जगा दिया था जैसे किसी ने ज्वालामुखी के ऊपर जमी राख की परत को हटा दिया हो।मुझे नहीं पता था था कि मेरे भीतर एक ऐसी भूखी -प्यासी स्त्री बैठी हैं।रौनक की मृत्यु के बाद मुझे अवसर ही कहाँ मिला था कि अपने या अपनी चाहत के बारे में कुछ सोच सकूँ?वैसे भी मैं शरीर में जीने वाली स्त्री नहीं थी।रौनक भी बहुत ज्यादा शरीर -आग्रही नहीं था पर मनीषी सच कहते हैं कि इंसान खुद को भी अच्छी तरह नहीं जानता।उसके भीतर एक नहीं कई -कई इंसान रहते हैं।कई रूप होते हैं उसके।वह विभक्त व्यक्तित्व का मालिक होता है।कब कौन -सा रूप उसके ऊपर हावी हो जाए ,वह नहीं जानता।
मेरे भीतर की कामुक स्त्री को समर ने जगा दिया था।अब मुझे रात- दिन समर का ही ध्यान रहता था।किसी भी काम में मन नहीं लगता था।मैं बेचैन रहने लगी थी।बस यही इच्छा होती थी कि समर हर क्षण आँखों के सामने रहे।उसका स्पर्श.….. उसका प्यार मुझे मिलता रहे।किसी की स्मृति में दिन तब कटते हैं,जब वह इंसान नहीं रहता।जीते -जी अपने प्रिय से दूरी बर्दास्त करना बहुत जानलेवा होता है।
एयरपोर्ट से ही हम दोनों अपनी -अपनी कार से अपने- अपने घर गए थे।उद्देश्य यही था कि कोई जान न पाए कि हम साथ गए थे और साथ ही लौटे हैं ।पहले ऐसा नहीं था।हम एक साथ कहीं भी आते -जाते थे।वह शायद इसलिए था कि तब हम इतने करीब नहीं थे इसलिए मन में न कोई शक -शुबहा थी ,न कोई डर या झिझक।हम दो अच्छे मित्रों की तरह थे ।हमें दुनिया की कोई परवाह नहीं थी पर अब हम खुद सशंकित थे कि कहीं कोई हमारे रिश्ते के बारे में जान न जाए।
इधर एक सप्ताह हो गए थे और समर मेरे पास नहीं आया था।हाँ,एक- दो बार उसका औपचारिक कॉल जरूर आया था।मैं जब भी फोन करती,वह बिजी मिलता।रात को मैं उसे फोन नहीं करती थी कि पता नहीं इस समय घर में उसके पास कौन बैठा हो?मुझे उसकी पत्नी से ईर्ष्या हो रही थी कि उसे उसके साथ ज्यादा समय बिताने का मौका मिलता है।हालांकि समर ने उसे बताया था कि वर्षों से उन दोनों में पति- पत्नी जैसी निकटता नहीं।दोनों एक घर, एक कमरे में ज़रूर रहते हैं पर अलग -अलग।बस बहुत जरूरी काम हो ,तभी दोनों में बातचीत होती है विशेषकर बच्चों के सम्बंध में कोई फैसला लेना हो ,तब। या फिर जब घर में कोई मित्र या रिश्तेदार आएं,तब।दुनिया के सामने दोनों अपने बीच मधुर- सम्बन्ध होने का दिखावा करते हैं।

बूँद से प्यास नहीं बुझती है।यह कहावत मुझे सौ प्रतिशत सही लग रही थी।अब मुझे हर वक्त समर चाहिए पर वह दो -एक बात करके ही फोन रख देता है।कहीं वह मुझसे कट तो नहीं रहा?कहीं उसका मुझसे मन तो नहीं भर गया ?कहीं मुझे पा लेने का उसका उद्देश्य तो पूरा नहीं हो गया?कहीं वह किसी दूसरी औरत से तो इन्वाल्व नहीं हो रहा?कहीं अपनी पत्नी के साथ उसने अपने रिश्ते तो नहीं सुधार लिए?ऐसे ही जाने कितने अनर्गल प्रश्न मुझे परेशान कर रहे थे।जिस समर पर मैं इतना विश्वास करती थी,उसी पर संदेह कर रही थी।शायद मैं इनसिक्योर हो रही थी।शायद मुझे खुद में किसी हीनता का आभास हो रहा था या शायद मैं मोहग्रस्त हो रही थी ।देह की निकटता इंसान को इतना बदल देता है क्या?
पर वह आ क्यों नहीं रहा?किस बात का डर है उसे?
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उधर समर भी परेशान था।उसे भी कामिनी की बहुत याद आ रही थी।उसके साथ पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था।कई स्त्रियों से उसके सम्बन्ध रहे थे पर 'वन नाईट' या 'टू नाईट' तक ही।उसके बाद उसने पलट कर भी उनकी तरफ नहीं देखा था ।वैसे भी जो स्त्रियाँ उसे आसानी से उपलब्ध हो जाती थीं,उनके लिए उसके मन में कोई इज्जत नहीं होती थी,प्यार तो दूर की बात है।
पर कामिनी की बात अलग है ।वह सबसे अलग है।वह बहुत ही सरल,सीधी और प्यारी है ।वह उसकी इज्जत तो करता ही है ,उससे लगाव भी बहुत है।अब तो उसे पा लेने के बाद वह उसका दीवाना हुआ जा रहा है।उसमें इतनी कशिश है कि वह उसकी तरफ खिंचा जा रहा है।हर पल उसका ख्याल आता है।
अपने भीतर छिपे इस प्रेमी पुरूष से वह डर गया है।वह किसी का पति है,पिता है।एक बृहद समाज का हिस्सा है।कामिनी के साथ उसके रिश्ते को लोग किस रूप में लेंगे?वह उसे खुलेआम स्वीकार भी तो नहीं कर सकता।सामाजिक,नैतिक,कानूनी हर दृष्टि से उनके बीच का रिश्ता अवैध है ...नाजायज है।