मैरीड या अनमैरिड (भाग-5) Vaidehi Vaishnav द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मैरीड या अनमैरिड (भाग-5)

सुदर्शन अपने बारे में बता रहा था औऱ मैं अपने रूम की खिड़की से पश्चिम दिशा की औऱ सरकते सूरज को देख रहीं थीं।

सुदर्शन के साथ हुई बातचीत से मुझें समझ आ गया था कि यह मेरे सपनों का राजकुमार नहीं हैं ।

सुदर्शन ने मेरे हाथ में सोने के कंगन को देखकर मुहँ को सिकोड़ते हुए कहा - " यू लाइक गोल्ड " ?

मैंने कहा - " हाँ " पर ये कंगन मम्मी के हैं।

हाऊ ओल्ड फ़ैशन ? इस बार तो सुदर्शन ने ऐसा मुहँ बनाया जैसे सोने के कंगन नहीं कोई बहुत ही बुरी सी चीज़ हों । वह बोला - मुझें तो प्लेटिनम पसन्द हैं। तुम्हें भी प्लेटिनम पहनना चाहिए। औऱ इस शूट की बजाय तुम बॉडी हगिंग ड्रेस पहनती तो औऱ भी खूबसूरत लगतीं । स्लिम फिगर हो इसलिए तुम हाई नेक औऱ पफ़ी शोल्डर वाला फ्लोर लेंथ गाउन पहन सकती थीं । अच्छा लगता तुम पर ।

सुदर्शन ख़ुद को ट्रेंडी बताने के लिए मुझें अपनी पहनी हर चीज़ के बारे में बताने लगा। ये जो घड़ी हैं न मोवाडो अल्ट्रा स्लिम ये 70 हज़ार की हैं । औऱ ये शूज़ शायद मालदीव से लिए थे प्योर लैदर 50 हजार के हैं । परफ्यूम तो मुझें फॉरेन के ही पसन्द हैं ।

सुदर्शन की बातें सुनकर मुझें लग रहा था जैसे मैं किसी शॉपिंग मॉल में हुँ औऱ सेल्समेन मुझें सामान दिखा रहा हैं उनकी कीमतों के साथ ।

मैं सुदर्शन की बातें अनमने मन से सुनती रहीं । औऱ कोई चारा भी तो नहीं था मेरे पास। आज अस्ताचल की औऱ बढ़ते सूरज की गति भी मुझें बहुत धीमी लग रहीं थीं। लगता हैं सूरज भी मेरी सगाई पक्की करके ही चेन की सांस लेगा। अभी तो 4 ही बजे हैं। सूरज तो अपने समय पर ही ढलेगा न ? मेरे मन ने मुझसे बड़ी मासूमियत से कहा ।

कमरे में मम्मी ने प्रवेश किया। ट्रे में चाय लेकर प्रफुल्लित मन से मम्मी अपने कदम ऐसे बड़ा रहीं थीं मानो सुदर्शन नहीं साक्षात विष्णुजी ही आज हमारे घर आ गए हो।

मम्मी के आने से मैंने राहत की सांस ली। मम्मी सुदर्शन से बात करने लगीं औऱ मैं चाय की चुस्कियों में खो गई। चाय खत्म करके हम लोग हॉल में आ गए।

15 - 20 मिनट बात करने के बाद उन लोगों ने हमसे विदा लीं। उनकी तरफ से रिश्ता पक्का था।
मम्मी - पापा उन्हें गेट तक छोड़ने गए। मैं सोफ़े पर बैठी रहीं।

अब सिर्फ मेरे हाँ कहने भर की देरी थीं औऱ चट मंगनी पट ब्याह हो जाता। मैंने मम्मी- पापा से स्पष्ट शब्दों में कह दिया - " यह मेरे जीवन से जुड़ा फैसला हैं। मैं जल्दबाज़ी में कुछ भी नहीं कहूँगी। मुझें थोड़ा वक़्त चाहिए "

यह कहकर मैं अपने रूम में आ गई । मन माफ़िक़ कोई काम या चर्चा न हो तो उसमें शामिल होंने पर हम बिना किसी श्रम के भी बहुत थक जाते है । आज की दिनचर्या ने मुझें भी थका दिया था। मैं ड्रेस चेंज करने के बाद सो गई।

शाम के 6 बजे मेरी नींद मंदिर की घण्टी बजने से खुली। मैं हाथ-मुहँ धोकर नीचे हॉल में गई । मम्मी दियाबत्ती कर रहे थे औऱ पापा टीवी देख रहे थे जिसमें राम कथा का प्रसारण चल रहा था। कितना सुखद पल था ये। बैंगलोर में तो इस समय मैं ऑफिस में रहतीं औऱ वहाँ कहाँ सुनाई देतीं हैं मंदिर की घण्टियाँ ? वहाँ तो बस फ़ोन की रिंगटोन , ऑफिस की टेबल पर रखी बेल की ट्रिन- ट्रिन , गाडियों के बजते हॉर्न ही इन कानो को नसीब हुआ करते हैं।

मैं भी सोफ़े पर बैठकर राम कथा सुनने लगीं । थोड़ी देर बाद ही मम्मी चाय लेकर आई ? मुझें चाय का कप थमाते समय मैंने मम्मी की आँखों मे कई प्रश्नों का सैलाब देखा। मानो मुझसे उनकी आँखे पूछ रहीं हों - क्या हुआ , कुछ सोचा ?

मेरा अनुमान बिल्कुल ठीक निकला। मम्मी ने सोफ़े पर बैठते हुए मुझसें वहीं प्रश्न किया जिसकी मुझें उम्मीद थीं। मैं कुछ कहती उसके पहले ही राम कथा में कथावाचक ने भजन गाना शुरू कर दिया जो बिल्कुल मेरी स्थिति से मेल खा रहा था।

" सोने की लंका न मिले माँ ....अवधपुरी की धूल मिले "

भजन ने मेरे मनोबल को इस क़दर बढ़ा दिया कि मैंने हिम्मत करके सच कह दिया ।

" मुझें सुदर्शन पसन्द नहीं हैं मम्मी " - कहकर मैंने अपनी गर्दन नीचे कर ली औऱ चुपचाप चाय पीने लगीं ।

ज़ाहिर सी बात हैं मम्मी - पापा मेरे इस जवाब से उदास हुए होंगे । शायद दोनों ने उदास नज़रों से एक- दूसरे की औऱ देखा भी होगा। मैं गर्दन नीचे किए हुए ही चाय के घुट पीती रहीं । अब लग रहा था कि जीवनभर दुःख के घुट पीने से मैं बच गई ।

चाय का प्याला किनारे रखकर मैं उठी औऱ मम्मी की औऱ अपने कदम बढ़ा दिए। मम्मी चुपचाप टीवी पर आँखे गड़ाये हुए थे पर उनके चेहरे को देखकर लग रहा था मानो उनके मन मे विचारों का तूफ़ान चल रहा हों। मैंने मम्मी के घुटनो पर हाथ रखें औऱ फर्श पर बैठते हुए मैंने मम्मी से पूछा -

" आप मेरे मन मुताबिक लड़के से शादी करके मुझें खुश देखना चाहते हैं ? या अपने मन मुताबिक लड़के से शादी करवा कर अपनी ख़ुशी चाहते हैं ? "

मम्मी ने प्यारभरी निगाहों से मेरी औऱ देखा औऱ मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा - बेटा तेरी खुशी मायने रखतीं हैं ।

" क्या मैं अभी ख़ुश नहीं हूँ " ? मैंने मम्मी से अगला प्रश्न किया ।

मैंने मम्मी को यक़ीन दिलाते हुए कहा - मुझें भी आजीवन अकेले नहीं रहना हैं। मैं भी चाहती हूँ मेरी शादी हो ,मेरा परिवार हो , मैं भी पर्दे औऱ कुशन खरीदूं । पर मुझें सिर्फ़ किसी रस्म औऱ रिवाज़ की तरह शादी नहीं करना हैं । चंद मिनटों में किसी अजनबी से हुई बात के आधार पर अपनी पूरी जिंदगी का फैसला नहीं कर सकती।

मैंने हमेशा आप दोनों की हर बात मानी। क़भी ऐसा कुछ नहीं किया जिसकी वजह से आपकी नजरें नीची हों । फिर आप सिर्फ लोग क्या कहेंगे ? यह सोचकर मुझें किसी के भी साथ बांध देना चाहते हो तो मैं कभी ख़ुश नहीं रहूँगी। सुदर्शन अच्छा लड़का हैं पर मेरे लिए नहीं बना हैं।

मम्मी - पापा दोनों पहली बार मुझसे सहमत दिखाई दिए। दोनों की आंखों में एक चमक थीं । शायद उन्हें गर्व था कि उनकी बेटी अपने पैरों पर खड़ी हुई हैं जिसके लिए उसके जैसा ही कोई राजकुमार आएगा।

शेष अगले भाग में.....