मैरीड या अनमैरिड (भाग-2) Vaidehi Vaishnav द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मैरीड या अनमैरिड (भाग-2)

नई सुबह अपने साथ कितना कुछ लेकर आती हैं।
नया दिन , नया उत्साह , नई उमंग , नई ताज़गी औऱ ख़ूब सारी सकारात्मक ऊर्जा !

मेरी बॉलकनी से पेड़ों की झुरमुट से झाँकता हुआ सुर्ख लाल सूरज ऐसा लग रहा था मानो मुझसे कह रहा हो - गुड़ मॉर्निंग मालिनी ! मैं फिर आ गया अपना जादू का पिटारा लेकर । वाक़ई सूरज किसी जादूगर से कम नहीं होता हैं । एक तिलिस्म हैं सूरज के उगने औऱ ढलने में । सुबह का सूरज ऐसा होता हैं मानो कोई युवा अपने तेज़ से पूरे विश्व को जला देगा । औऱ शाम को वहीं सूरज ऐसा लगता हैं जैसे कोई वृद्ध अपने अनुभव सुना रहा हो।

मैंने बॉलकनी में अपनी पसन्द के पौधे लगा रखें थे जिन्हें मैं सुबह ही पानी औऱ खाद दे दिया करतीं हुँ। दफ्तर जाने के बाद मेरा घर में प्रवेश रात 8 या 9 बजे हुआ करता।

आज मैं रोज़ के मुकाबले कुछ ज़्यादा ही ख़ुश थीं। प्रमोशन के बाद मेरा पहला प्रजेंटेशन जो था। मैं नियत समय पर ऑफ़िस पहुँची। सामने से बॉस आते दिखे। मुझें देखकर बॉस ने कहा - गुड मॉर्निंग मालिनी ! आर यू रेडी फ़ॉर योर प्रजेंटेशन ?

" वैरी गुड मॉर्निंग सर ! यस सर आई ऍम रेडी " - मैंने पूरे जोश के साथ कहा ।

" गुड ! ऑल द बेस्ट " - कहकर बॉस वहाँ से चले गए औऱ मेरे कदम भी मीटिंग हॉल की औऱ बढ़ गए ।

पूरे तीस मिनट तक मेरा प्रेजेंटेशन चला । प्रेजेंटेशन की समाप्ति के बाद मीटिंग हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा । मीटिंग में इंटर्न भी थे। मीटिंग हॉल से बाहर निकलते समय मुझें पीछे से किसी लड़की ने आवाज़ दी। मैंने मुड़कर देखा तो बीस - बाईस उम्र की लड़की दौड़कर मेरी औऱ आ रहीं थीं जो इंटर्न थीं । मेरे नजदीक आकर लेटर पेड मेरी औऱ बढ़ाकर वह बोली - " मेम ऑटोग्राफ प्लीज "

" ऑटोग्राफ " ?? मैंने आश्चर्यभरी निगाहों से उसकी औऱ देखा । उसकी आँखों में तैरते हुए सपनों को मैं साफ़ देख पा रहीं थीं ।

वह मुझसें बोली - मेम मुझें भी बिल्कुल आपकी तरह बनना हैं ।

मैं मुस्कुरा दी। उसके हाथ से लेटर पेड लेकर मैंने अपने हस्ताक्षर कर दिए। औऱ साथ में एक नोट लिख दिया - " यू आर द बेस्ट व्हॅन यु आर जस्ट लाइक यु "

लड़की खुश होकर लेटर पेड को देखती रहीं ।
मैं अपने कैबिन में आ गई औऱ चाय ऑर्डर कर दी। मेरी आँखों के आगे अब भी उस लड़की का चेहरा घूम रहा था। उसे देखकर बीती बातें मेरे जेहन में दौड़ने लगीं । मैं भी कभी उस लड़की की तरह ही थीं । बीस बरस की उम्र में बस यहीं चिंता सताए रहतीं थीं - ' करियर की गोते खाती नाव डूबेगी या मंजिल के पार पहुँचेगी ' ?

बीस की उम्र कब गुज़र गई औऱ तीस की उम्र ने कब दस्तक दे दी पता ही न चला । तभी केबिन के दरवाजे के खटखटाने की आवाज़ से मेरे विचारों की तन्द्रा टूटी । हाथ में ट्रे लिए मोहन भैया खड़े थे । चाय मेरी टेबल पर रखतें हुए वो बोले - मेम आप कहे तो स्नेक्स भी ले आऊं ?

" नो थेंक्स " कहकर मैंने चाय का प्याला उठा लिया ।

आज का दिन थकावट भरा रहा । दफ्तर में नई जिम्मेदारीया मुझें प्रमोशन के साथ उपहार स्वरूप मिल गई थीं।

आज तो डूबते सूरज को अलविदा कहने का भी समय नहीं मिला। न ही घर जाते पंछियों के कलरव ने मुझ पर कोई तंज कसा । व्यस्तता मुझें इसीलिए पसन्द थीं । क्योंकि व्यस्त रहने पर समय का पता ही नहीं चलता है। मुट्ठी से फ़िसलती रेत की तरह समय भी जल्दी गुज़र जाता हैं ।

रात करीब 9 बजे मैं अपने फ्लैट पर पहुँची । बैग को सोफ़े पर रखकर मैं भी वहीं निढ़ाल होकर बैठ गईं । अपने दोनों पैर मैंने टी टेबल पर रख दिये थें । कुछ देर आँखे बंद किये हुए मैं शांत मन से लेटी रहीं । तभी मोबाइल वाइब्रेशन साउंड सुनाई दिया। मुझें याद आया आज मैंने फ़ोन को वाइब्रेट मॉड पर रख दिया था। मैंने तुरंत बैग से मोबाइल निकाला । 20 मिस्ड कॉल थे। जिनमे 5 मिस्ड कॉल तो मम्मी के ही थे। मैंने मम्मी के नम्बर डायल कर दिए । मम्मी ने पहली रिंग पर ही कॉल रिसीव कर लिया। वह चिंतित होकर बोली - "क्या बात हैं कॉल रिसीव क्यों नहीं किये " ?

मैंने हसँकर मम्मी से कहा - " 20 % सेलेरी यूँ ही थोड़े बढ़ाई होंगी उसके ऐवज में काम भी तो 20 % बढ़ाया होगा न "

मम्मी - " ओफ्फो तेरी ये ऑफिस की बातें "
ख़ैर ! तूने जिन लड़को के फ़ोटो मुझें सेंड किये थे उनमें से मुझें तीन पसन्द आये हैं। एक तो अपनी रिंकी के रिश्ते में ही लगता हैं। मैंने उसके माता - पिता से बात कर ली हैं। वो लोग अगले सप्ताह ही आने का कह रहें हैं। तो सप्ताह भर की छुट्टी ले औऱ घर आ जा।

मम्मी का तुगलकी फरमान सुनकर मैंने कहा - " पर मम्मी मेरा हाल ही में प्रमोशन हुआ हैं , मुझें इतने दिनों की छुट्टी नहीं मिल पाएंगी ।

वैसे छुट्टी मिलना मेरे बाएं हाथ का खेल था पर मैंने टालने के लिए मम्मी से झुठ कह दिया। पर मम्मी भी सीबीआई से कम न थीं । मेरे झूठे बहाने औऱ दलीलें उनके सामने विफ़ल हो गए।

मुझें याद आया कि स्कूल रीयूनियन की पार्टी भी तो अगले सप्ताह ही हैं । इसी बहाने पुराने दोस्तों से मिलना भी हो जाएगा। मैंने बेंगलुरु टू भोपाल की फ्लाइट की टिकिट बुक करवा ली।

शेष अगले भाग में.....