मैरीड या अनमैरिड (भाग -3) Vaidehi Vaishnav द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मैरीड या अनमैरिड (भाग -3)

अगली सुबह ही मैंने अपने बॉस को मेल किया औऱ एक सप्ताह की छुट्टी सेंशन करवा ली।

मुझें सबसे ज़्यादा फिक्र बॉलकनी में रखे अपने पौधों की थीं जो मुझें अपनी जान से ज़्यादा प्यारे हैं । मैंने सभी गमलों में ड्रिप इरिगेशन मैथड अप्लाई कर दी ताकि सप्ताहभर गमलों की मिट्टी में नमी बनीं रहें ।

इसके बाद मैंने अपनी पैकिंग शुरू कर दी । कार्ड्स , मोबाईल चार्जर , मेडिसिन किट औऱ मेरी पसन्द के आउटफिट्स सारे ज़रूरी सामान रखने के बाद मैं नहाने चली गईं । सारा दिन मैंने ख़ुद के कामो में ही बिताया। रोजमर्रा के ऑफिसियल लूक़ को बदलकर मैं फिर से वहीं मालिनी बन जाना चाहतीं थीं जैसी मैं 19 - 20 बरस में हुआ करतीं थीं।

शाम सात बजे मेरी फ्लाइट थीं । मैंने घड़ी पर नज़र डाली। 6 बजकर 15 मिनट हो रहें थे । अपने शहर जाने की बेताबी से धड़कते हुए मेरे दिल की धड़कनें घड़ी की सुईयों की टिकटिक के साथ चल रहीं थीं। मैंने एक बार अपने आप को आईने में देखा फिर आदतन अपने बैग को एक बार फिर से चैक किया । सभी जरूरी सामान जस का तस रखा हुआ था । फ्लैट को लॉक करके मैं लिफ़्ट की औऱ बढ़ गईं । G बटन को प्रेस करतें ही लिफ़्ट ग्राउंड फ्लोर पर आ गई । मैंने एयरपोर्ट जाने के लिए कैब बुक कर ली थीं । लगभग 25 मिनट के बाद मैं एयरपोर्ट पर थीं । बैगेज चेकिंग औऱ सिक्योरिटी चेक के बाद मैं अपनी सीट पर जाकर बैठ गईं ।

मेरी सीट के ठीक सामने वाली कतार में नवविवाहित कपल बैठा हुआ था। लगभग 26- 27 वर्षीय युवक किसी बात पर अपनी पत्नी को चिढ़ा रहा था औऱ उसकी पत्नी का मुहँ गुब्बारे की तरह फुला हुआ था। लड़के ने लड़की के कान में कुछ कहा , जिस पर चिढ़कर लड़की ने अपनी कोहनी मारते हुए उसकी बात का खण्डन कर दिया। औऱ वह उठकर मेरी तरफ़ आने लगीं । उसे अपनी तरफ़ आया देखकर मैंने अपनी नज़रे हैंडबैग पर टिका दी औऱ मैंने हैंडबैग की ज़िप खोलकर उसमे से कुछ तलाशने का नाटक किया।
वह मेरे क़रीब आकर बोली - " क्या मैं आपके पास बैठ सकती हूँ " ?

" मुझें तो कोई एतराज नहीं " - मैंने मुस्कुराते हुए कहा ।

वह मेरे पास आकर बैठी ही थीं कि सीट के असली दावेदार आ गए। लड़की ने उन्हें अपनी सीट पर बैठ जाने के लिए निवेदन किया औऱ वह सहजता से मान गए ।

मैं प्लेन की खिड़की की कनखनियो से बिखरे बादलों को देखने लगीं। सफ़ेद मुलायम बादल बिल्कुल रुई की तरह लग रहें थें। तभी मेरे बग़ल में बैठी वह लड़की बोली - हेलो ! माय नेम इज़ मालिनी , व्हाट इज योर गुड नेम ?

" स्ट्रेंज " - मेरा नाम भी मालिनी हैं ।

बातूनी अँखियों वाली उस लड़की ने अपनी आँखों में चमक लाते हुए मुझें पिंच कर दिया औऱ बोली - " सैम पिंच " ।

मुझें लड़की की इस हरकत पर हल्का सा गुस्सा आया पर मेरा गुस्सा जल्दी ही चाय के कप से निकली भांप की तरह उड़कर गायब हो गया।

मुझें देखकर मेरी वास्तविक उम्र का पता कर पाना लगभग सभी के लिए मुश्किल था। वह लड़की भी मुझें उसका हमउम्र समझ बैठी थीं । मेरे बिना कोई प्रश्न किये ही वह अपने बारे में बताने लगीं थीं । वैसे मैं सफ़र में अक्सर मैगज़ीन पढ़ना पसंद करतीं हुँ पर यह पहली बार हुआ जब मुझें कहानियां ऑडियो वर्सन में सुनने को मिल रहीं थीं । लड़की को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था कि उसकी बातों में मेरी दिलचस्पी हैं भी या नहीं ?

अपनी आँखों को मटकाते हुये वह रोचक ढंग से अपनी कहानी मुझें सुना रहीं थीं । हवाई सफ़र ही मेरा सपना हुआ करता था। मैं एयरहोस्टेस बनना चाहतीं थीं । मुझें सपनों की उड़ान भरकर पूरा विश्व देखना था। लेक़िन किस्मत में कुछ औऱ ही लिखा था। पापा माने नही औऱ अपने दोस्त के बेटे से मेरी शादी कर दी। मेरे पति भोपाल में नोकरी करतें हैं। वो मुझें कबसे इसी बात के लिए छेड़ रहें थे कि अब तो आपके पँख काट दिए गए हैं औऱ मुझ जैसे लड़के के साथ खूंटे से बांध दी गई हो जो तुम्हारे सपनों को चाहकर भी पूरा नहीं कर सकेगा।

उस लड़की की बात सुनकर मैं विचारों की दुनिया में खो गई। मेरा दिमाग गर्व से मुझसें कहने लगा - देखा , ये होता हैं वैवाहिक जीवन। इस पर दिल ने कहा - ये तो सिक्के का एक ही पहलू हैं , दूसरा पहलू तो ये हैं कि इस लड़की को प्यार करने वाला एक अच्छा जीवनसाथी भी मिला हैं।

लड़की मुझें झकझोरते हुए बोली - " अरे आप कहाँ खो गई " ?

" कही नहीं " - मैंने शांतभाव से कहा ।

वह मुझसे मेरे बारे में पूछने लगीं। मैंने उसे संक्षेप में अपने बारे में बताया। मेरी बात को सुनकर वह अपनी आँखों को बड़ा करते हुए बोली - इतनी कम उम्र में इतनी सफलता अर्जित कर ली आपने ? औऱ एक मैं हुँ ।

मैंने उसे अपनी वास्तविक उम्र बताई तो वह मानने को तैयार ही नहीं हुई। वह बोली - लाइफ हो तो ऐसी । आप अब भी 24 - 25 की दिखती हैं । सफलता जिसके क़दमो को चूम ले उसके लिए तो एक से एक लड़को की लाइन लग जाए शादी के लिए। आपकी शादी तो बिना आपकी मर्ज़ी के तय कर पाना सम्भव ही नहीं होगा न ? उसने कातर निग़ाहों से मेरी तरफ़ इस कदर देखा मानो वह कोई हलाल कर दिया गया बकरा हो।

उसके प्रश्नों की झड़ी से मैं बस मुस्कुरा दी। वह अचानक चुप हो गई । जैसे उसके भीतर विचारों का मंथन हो रहा हो। मैंने भी मैगजीन उठाई औऱ पेज पलटने लगीं । तभी मेरी नज़र उस लड़की के पति पर पड़ी जो दूर से ही इशारों में लड़की को चिड़ा रहा था। जब उस लड़के ने मेरी औऱ देखा तो वह झेंप गया औऱ हड़बड़ी में मैग्जीन उठा कर पढ़ने लगा।

इन दो अजनबी लोगों ने कई दिनों से मेरे अंतर्मन में चल रहें द्वंद को खत्म कर दिया। मुझें अपने कई सवालों का जवाब सहजता से हीं मिल गया था। मैं अपनी ज़िंदगी से अब बेहद खुश थीं औऱ मुझें यकीन हो गया था कि कही कोई राजकुमार मेरा इंतज़ार कर रहा होगा। जो मेरी ही तरह सफ़ल होगा , जिसके आचार - विचार मेरी तरह होंगे। जिसके साथ होने से मैं यह महसूस नहीं करूँगी की मुझें किसी खूंटे से बांध दिया गया हैं । हम दोनों का एक छोटा सा संसार होगा जहां अकेलापन दूर - दूर तक नहीं होगा। अनंत आकाश की तरह हमारे आसमानी सपने होंगें , जहाँ सिर्फ प्रेम होगा।

शेष अगले भाग में.....