तमाचा - 20 (इलेक्शन) नन्दलाल सुथार राही द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तमाचा - 20 (इलेक्शन)

दिव्या जब अपने पार्टी ऑफिस पहुँचती है, तो देखती है कि कॉलेज में जो विद्यार्थी उसका भाषण सुनकर उस पर तालियां बजा रहे थे। उनमें से अधिकतर अभी सामने विपक्षी पार्टी के कार्यालय में बैठे थे। दिव्या का अभी राजनीति में पहला - पहला कदम था और वह राजनीतिक दांवपेंचो से अनभिज्ञ थी। वो यह दृश्य देखकर अचंभित रह गयी।
"क्या बात है दिव्या जी? बड़ी परेशान नज़र आ रही हो? अचानक राकेश कुछ व्यक्तियों के बीच में से उसके पास आकर बोलता है।
"अरे ! आओ। नहीं तो बस ऐसे ही । सोच रही थी कि ये जो सामने विपक्षी पार्टी के कार्यालय में इतनी भीड़ है ,इनमें से अधिकतर तो कॉलेज में हमारे साथ खड़े थे। इतनी जल्दी क्या जादू कर दिया उसने की सब उधर चले गए।" दिव्या ऑफिस में जाते-जाते बोली।
"हा हा हा .. अरे ! आप इनकी टेंशन ले रहे हो। ये बेचारे तो केवल खाने के पीछे यहाँ आये है। अभी उनके खाना है तो उधर खड़े है, कल हम रखेंगे तब यहाँ आ जाएँगे।"राकेश ने अपने चेहरे पर हँसी की हल्की सी रेखाएं लाते हुए बोला।

ऑफिस के मीटिंग हॉल में एक बड़ी टेबल के पास एक कुर्सी पर दिव्या बैठती है और राकेश को बैठने का संकेत करते हुए कहती है।"अच्छा तुम्हें कैसे पता ये सब ? तुम भी तो मेरी तरफ़ अभी फर्स्ट ईयर में ही हो ना?"

"हाँ , फर्स्ट ईयर में तो हूँ पर खाना खाने तो हम ट्वेल्थ में पढ़ते थे , तभी आ जाते थे।" राकेश अब थोड़े आत्मविश्वास के साथ बोलता है।
तभी इनके पास पार्टी का एक वरिष्ठ सदस्य और फाइनल का छात्र तेज सिंह ,जिसको उम्मीद थी कि इस बार कॉलेज में अध्यक्ष पद के लिए पार्टी से टिकट उसी को मिलेगी , पर दिव्या विधायक की बेटी जो रही ,उसकी उम्मीद पर पानी फिर गया। आकर बैठ गया। लेकिन उसको इस बात से भी ज्यादा दुःख इस बात का हो रहा था कि दिव्या उस जैसे अनुभवी के बजाय उस नए लड़के राकेश को तवज्जों दे रही थी।
तेज सिंह ने दिव्या से बात करने का प्रयास करना चाहा लेकिन वह राकेश से बातचीत करने में व्यस्त हो गयी। तेजसिंह का मन क्रोधाग्नि से जलने लगा । अब तो उसको दिव्या से बात करना भी स्वयं को अपमानित होने जैसा लगा।

"ये तो सरासर ग़लत हो रहा है भाई आपके साथ।" तेज सिंह का एक मित्र दीपक उसकी क्रोधग्नि में घृत डालते हुए बोला। तेज सिंह जो एक मोडिफाई की हुई थार गाड़ी में ड्राइवर के पास वाली सीट पर बैठा हुआ था। उसका परम् मित्र दीपक जिसको गाड़ी चलाने का बहुत शौक था। वो गाड़ी चला रहा था। दो मित्र राजू और हनीफ़ पीछे वाली सीट पर बैठे थे।
"हाँ भाई, इस बार तो अध्यक्ष आपको ही बनना चाहिए था। वो कहाँ से बीच में आ गयी आपके। वैसे भी वो तो अभी फर्स्ट ईयर में है। उसके पास तो बहुत मौके है , पर आपका ये लास्ट ही चांस है।" पीछे बैठा हनीफ़ उनकी ओर मुँह करते हुए बोला।
" वो सब तो ठीक है , हम देख लेंगे पर पहले ये पता लगाओ कि उसके पास वो लड़का कौन था ?जिसे वह बार -बार बातें कर रही थी। उस साले के कारण आज मैं खुद को बेइज्जत महसूस कर रहा हूँ।" तेज सिंह अपने मन में उठे तूफान को भीतर से बाहर की ओर धकेलते हुए बोला।
"भाई, अभी पता लगाता हूँ उसका , आप बस ऑर्डर दो। उसको आज ही सीधा कर लेंगे। ऐसी अवस्था करेंगे कि दिव्या से तो क्या किसी से बात करने लायक नहीं बचेगा।" हनीफ़ अपनी आवाज में थोड़ा भार देते हुए बोला।
"हाँ भाई , इसका कुछ तो करना पड़ेगा।" दीपक ने हनीफ़ के सुर में सुर मिलाते हुए कहा।
"ए..ए , रुक -रुक वो देख वही लड़का था ना वो?" राजू ने गाड़ी रुकवाते हुए उधर इशारा किया जहाँ, राकेश अपने घर में प्रवेश कर रहा था। गाड़ी मानसरोवर के उस वरुण पथ में राकेश के घर की ठीक आगे आकर रुक गयी।

क्रमशः.....