Tamacha - 19 books and stories free download online pdf in Hindi

तमाचा - 19 ( गलतफहमी )

अपनी प्लेट को बीच में ही छोड़कर बिंदु सीधे अपने घर आ गयी। आज जो उसने देखा था उसे अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि उसके पापा ऐसा कर सकते है।
कभी सोचती कितने गंदे है उनके पापा, जो ऐसा काम करते है। इसीलिए मुझे बाहर नहीं जाने देते ताकि उनकी पोल न खुल जाए। कभी सोचती; हो सकता है मम्मी के जाने के बाद बहुत अकेले हो गए हो और अपना एकाकीपन मिटाने के लिए ऐसा कर रहे हो। लेकिन फिर सोचती कि फिर मुझे भला क्यों कैदी जैसे रखते है। कभी बाहर नहीं निकलने देते। मेरा तो फ़ोन भी चेक करते रहते है ताकि मुझ पर नज़र रख सके और खुद ऐसे काम करते है।

सोचते-सोचते वो थक कर निस्तब्ध होकर बैठी रही । उसके मन में विचार बार-बार ऐसे आते ,जैसे समुद्र की लहरें बार-बार किनारे पर आकर किसी चट्टान से टकराती है और पुनः उसी में विलीन हो जाती है। जैसे किसी मकान को बनाने में सालों तक लग जाते है पर उसे ध्वस्त होने में कुछ देर नहीं लगती, वैसे ही उसके मन में पिता के प्रति जो इतना प्रगाढ़ प्रेम था, वह सब अचानक नफ़रत में बदल गया।

बिंदु की यह निस्तब्धता तब टूटती है जब नौ बजे के करीब विक्रम डोरबेल बजाता है। तभी बिंदु को आभास होता है कि वह करीब दो घण्टे से ऐसे ही बैठी है। वह उठकर दरवाज़ा खोलने जाती है पर उसके क़दम आज बहुत ही धीरे उठ रहे थे। उसकी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब कैसे वह पिता का सामना करेगी और उससे कैसे बात कर पायेगी, पिता का चेहरा ही मन में आने पर वह आक्रोश से भर गई। हिम्मत करके उसने दरवाज़ा खोला। विक्रम एक हाथ में सब्जी से भरा हुआ थैला लिए दरवाज़े से अंदर प्रवेश करते हुए बोलता है। " आज दरवाज़ा खोलने में बहुत टाइम लगा दिया बेटी। क्या बात है?"
"ऐसे ही..ज़रा आँख लग गयी थी।" बिंदु ने कुछ संभलते हुए कहा।
"अच्छा ! कोई बात नहीं बेटी। ये लो सब्जी फ्रिज में रख दो और खाना लगा दो मैं ज़रा हाथ मुँह धोकर आता हूँ।" विक्रम ने सब्जी का थैला बिंदु को पकड़ाते हुए बोला।
तभी अचानक बिंदु को कुछ होश आया कि उसने तो आज कुछ नहीं बनाया। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी पिता से उस बात को पूछने की। वह चुपचाप रसोई में जाकर , सब्जी फ्रीज में रखकर पोहा बनाने लगी। विक्रम हाथ मुँह धोकर फ्रीज से पानी की बोतल निकालने जाता है तभी देखता है बिंदु अभी खाना बनाने की तैयारी कर रही थी।
"क्या बात है बिंदु ? सब ठीक तो है ना? आज खाना भी नहीं बनाया और इस टाइम नींद भी आ गयी। तबियत तो ठीक है ना बेटी?" विक्रम ने मुखमंडल पर चिंता का भाव लाते हुए कहा।
" हाँ ठीक है , पापा। बस सिर में हल्का सा दर्द था ।" बिंदु ने अपनी मनः व्यथा को दमित करते हुए बोला।
" तो फिर मेरे को कॉल कर देती , हम डॉक्टर के पास चले जाते। अब ये छोड़ो तुम आराम करो मैं बना लूँगा और बाद में तुम टेबलेट ले के सो जाओ।"
"नहीं मैं कर लूँगी पापा। कुछ देर नींद ली थी तो अब कुछ ठीक है । आप बैठो बाहर में अभी बना देती हूँ।"
"तुमको बोलना चाहिए था ना , मैं बाहर से कुछ बना हुआ ही ले आता।" विक्रम बिंदु को कहता है तभी उसके फ़ोन की घंटी बजती है जो बाहर हॉल में चार्जिंग लगा हुआ था। वह जाकर फ़ोन अटेंड करता है । कॉल उसी महिला का था,जिसके साथ वह आज था। वह कॉल अटेंड करने के बाद बिंदु के पास आता है और बोलता है। " बिंदु , तुम खाना खा लेना मैं हॉटेल जा रहा हूँ । कोई अर्जेंट काम आ गया है और मैन डोर की चाबी मैं साथ ले जा रहा हूँ तुम अंदर से अच्छी तरह से बंद करके सो जाना, मुझे थोड़ी देरी हो सकती है आने में।"
बिंदु के मन में क्रोध की ज्वाला और भड़क उठी पर वह क्रोध अपने भीतर ही दबाए हुए थी। वह सोचने लगी इनको ये फिक्र नहीं है कि मैं घर में अकेली हूँ , मुझे कितना डर लगता है, बस इन्हें अपनी अय्यासी की पड़ी है।

बिंदु की इस मानसिकता से दूर विक्रम उस महिला को हॉटेल से पिकअप करके रेल्वे स्टेशन छोड़ने चला जाता है। डेल्ही से आई वह महिला मोनिका शर्मा जैसलमेर की सुंदरता और विक्रम के व्यवहार से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी । वह जाते - जाते विक्रम को हाथ मिलाना चाहती थी पर भगवान ने उसके दोनों हाथ एक एक्सीडेंट में पहले ही छीन लिए थे। विक्रम का निर्मल व्यवहार उसे बहुत पसंद आया और अपनी आँखों में उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट कर वह पुनः अपने घर की ओर चली गयी।

उसको छोड़ने के पश्चात विक्रम अपने घर जाने लगा । वह इस बात से बिल्कुल अनजान था कि उसकी बेटी को उसके प्रति कितनी बड़ी गलतफहमी हो गयी है और यह गलतफहमी उसके जीवन को किस हद तक प्रभावित करने वाली है।


क्रमशः ......

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED