मेरे घर आना ज़िंदगी - 37 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मेरे घर आना ज़िंदगी - 37



(37)

नंदिता का नौवां महीना शुरू हो गया था। डॉ. नगमा सिद्दीकी ने उसकी डिलीवरी की डेट दे दी थी। उनका कहना था कि सब सही है। बच्चे की पैदाइश में कोई दिक्कत नहीं आएगी। नंदिता की मम्मी अब उसका हर पल खयाल रखती थीं। मकरंद ने सारी व्यवस्था कर ली थी। सबको बच्चे के आने का इंतज़ार था। सबसे अधिक उत्साहित पापा थे। वह अक्सर आने वाले बच्चे के बारे में तरह तरह की बातें करते थे। नेट से उन्होंने लड़की और लड़के के कई अच्छे नाम चुनकर एक डायरी में लिख लिए थे। उनका कहना था कि बच्चे के होने के बाद इनमें से ही एक नाम रखा जाएगा।
नंदिता के रहने की व्यवस्था नीचे के पोर्शन में ही हो गई थी। मम्मी नहीं चाहती थीं कि इस हालत में वह सीढ़ियां चढ़े उतरे। उसकी मम्मी सारा समय उसके साथ रहती थीं। रात में वह नंदिता के कमरे में ही सोती थीं। जो कुक पहले ऊपर खाना बनाती थी वह अब सबके लिए खाना बनाती थी। कुछ समय पहले ही मम्मी ने नंदिता को दूध पीने के लिए दिया था। वह दूध पीने में आनाकानी कर रही थी। इस पर मम्मी ने उसे डांटते हुए कहा,
"खुद माँ बनने वाली हो और बच्चियों की तरह नखरे कर रही हो। चुपचाप पिओ।"
नंदिता ने मुंह बनाते हुए कहा,
"मम्मी कुछ देर पहले तो नाश्ता किया था। अब यह दूध....बिल्कुल भी मन नहीं है।"
"नाश्ता किए एक घंटे से ज्यादा हो गया है। बच्चा स्वस्थ रहे इसके लिए ज़रूरी है कि तुम मजबूत रहो। अब बिना नखरे के पी जाओ।"
नंदिता जानती थी कि मम्मी दूध पिलाए बिना मानेंगी नहीं। उसने दूध के गिलास को देखा। फिर गटगट करके पी गई। गिलास रखते हुए बोली,
"मम्मी अब लंच के लिए जल्दी मत कीजिएगा।"
उसी समय उसके पापा कमरे में आए। वह बहुत उत्साहित लग रहे थे। उन्होंने आते ही कहा,
"मैं यूं ही टहलते हुए निकल गया था। रास्ते में चौहान साहब मिल गए। उनके साथ उनकी दो साल की पोती थी। उसका नाम काशवी है। बहुत प्यारा नाम है ना। मैंने तो तय कर लिया है कि अगर लड़की होगी तो उसका नाम काशवी ही रखेंगे।"
मम्मी ने कहा,
"नाम तो अच्छा है और नया भी है। पर आप हमेशा लड़की की बात करते हैं। नातिन की जगह नाती भी तो हो सकता है।"
"अब यह तो भगवान पर है कि क्या देते हैं। पर सच कहूँ तो मुझे मेरी नंदिता जैसी बेटी पाने की इच्छा है।"
मम्मी ने कहा,
"अगर मकरंद जैसा नाती हो गया तो क्या बुरा है।"
"कुछ बुरा नहीं है। मैं तो अपनी इच्छा बता रहा था। बाकी जो भी हो हम दोनों का मन उसी में लगा रहेगा।"
दोनों पति पत्नी बच्चे के बारे में बात कर रहे थे। नंदिता ध्यान से उनके चेहरे की चमक को देख रही थी। वह खुश थी कि उसके बच्चे को इतना प्यार करने वाले नाना नानी मिलेंगे। पर यह सोचते हुए उसके मन में आया कि जब वह और मकरंद बच्चे को लेकर अपने फ्लैट में चले जाएंगे तो क्या होगा। फ्लैट का पज़ेशन जल्दी मिलने की संभावना थी। वह जानती थी कि मकरंद ने इस घड़ी का बहुत इंतज़ार किया है। उसकी इच्छा अपने फ्लैट में जाकर रहने की है। उसका मन कुछ उदास हो गया। पापा की नज़र उस पर पड़ी तो उन्होंने कहा,
"क्या हुआ नंदिता ? कोई तकलीफ है ?"
नंदिता ने खुद को संभाला और मुस्कुरा कर बोली,
"कोई दिक्कत नहीं है पापा। मैं सोच रही थी कि नाना नानी तो खुद बच्चों की तरह नोंकझोंक करते हैं। बच्चा क्या सोचेगा ?"
मम्मी ने कहा,
"बच्चों के साथ बच्चा बनकर ही रहना पड़ता है। तुम छोटी थी तो तुम्हारे साथ भी ऐसे ही खेलते थे। अब उसके साथ खेलेंगे।"
यह सुनकर पापा बोले,
"बिल्कुल उसके पहले दोस्त तो हम दोनों होंगे। हम उसके साथ बच्चों की तरह ही खेलेंगे।"
उसके बाद दोनों फिर बच्चे के बारे में बात करने लगे। नंदिता उनकी बातें सुन रही थी। कभी खुश‌ होती थी तो कभी उदास हो जाती थी।

मकरंद ऑफिस से लौटकर नंदिता के पास बैठा था। मम्मी उसे चाय देकर चली गई थीं। चाय पीते हुए वह नंदिता के हाल चाल पूछ रहा था। नंदिता ने बात छेड़ने के इरादे से कहा,
"फ्लैट के बारे में कोई नई खबर ?"
"हाँ सुनने में आया है कि महीने के आखिरी तक फ्लैट का काम पूरा हो जाएगा। उसके बाद रजिस्ट्री का काम शुरू होगा।"
नंदिता कुछ सोच में पड़ गई। मकरंद ने महसूस किया कि वह कुछ कहना चाहती है। उसने पूछा,
"कोई बात है क्या ? मुझे लग रहा है कि तुम कुछ कहना चाहती हो।"
नंदिता ने कुछ संकोच के साथ कहा,
"हम फ्लैट में जाएंगे इस बात की मुझे भी बहुत खुशी है। पर...."
कहते हुए नंदिता चुप हो गई। मकरंद ने कहा,
"तुम जो कहना चाहती हो वह‌ मैं समझ रहा हूँ।‌ मेरे मन में भी यह बात आई है। जब हम चले जाएंगे तो मम्मी पापा को बुरा लगेगा। बच्चे को लेकर दोनों बहुत अधिक उत्साहित हैं।‌ ऐसे में हमारा चले जाना उनके जीवन में एक खालीपन लेकर आएगा।"
मकरंद की बात सुनकर नंदिता खुश थी कि वह भी उसकी तरह ही सोच रहा है। लेकिन वह मकरंद की अपने फ्लैट में जाने की इच्छा का भी सम्मान करती थी। उसने कहा,
"मैं जानती हूँ कि तुम्हारी इच्छा हमारे फ्लैट में जाने की है। मैं भी यही चाहती हूँ। बस मम्मी पापा के बारे में सोचकर परेशान हो जाती हूँ।"
"तुम परेशान मत‌ हो नंदिता। मैंने उन्हें अपने मम्मी पापा की जगह दी है। उनका दिल नहीं दुखाऊँगा। धीरे धीरे हम दोनों मिलकर उन्हें समझा लेंगे।"
मकरंद ने जितनी समझदारी के साथ इस समस्या का हल बताया था वह सुनकर नंदिता को उस पर गर्व हो रहा था। उसने मकरंद की अनदेखी की थी इस बात का उसे दुख भी हुआ। उसने कहा,
"थैंक्यू मकरंद तुमने मेरी बहुत बड़ी चिंता दूर कर दी। मैं तो यह सोचकर परेशान थी‌ कि मम्मी पापा से सब कैसे कहूँगी।"
मकरंद ने उठकर उसका माथा चूम लिया वह बोला,
"तुम किसी भी बात को लेकर परेशान मत‌ हो। सब ठीक होगा। यह‌ सही है कि अपने फ्लैट में जाने की मेरी इच्छा है। लेकिन जब भी हम यहाँ से जाएंगे मम्मी पापा भी खुशी से उसे स्वीकार करेंगे।"
नंदिता के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। उसी समय उसने बच्चे की‌ हलचल महसूस की। ऐसा लगा जैसे कि वह भी सब सुनकर बहुत खुश हुआ है।

नंदिता की सहेली भावना उससे मिलने के लिए आई थी।‌ बहुत दिनों के बाद अपनी सहेली से मिलकर नंदिता को बहुत ‌अच्छा लग रहा था। वह उससे ऑफिस के हालचाल ले रही थी। उसकी बातों का जवाब देते हुए भावना गौर कर रही थी कि नंदिता की मम्मी उसकी हर बात का खयाल रख रही हैं। उसने नंदिता से कहा,
"तुम तो बहुत लकी हो। तुम्हारी मम्मी कितना खयाल रख रही हैं तुम्हारा।"
नंदिता ने कहा,
"हाँ मम्मी पापा दोनों ही मेरा बहुत ध्यान रखते हैं। बच्चे का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार है दोनों को।"
"जो भी आएगा वह किस्मत वाला होगा। उसका ध्यान रखने वाले इतने सारे लोग जो होंगे।"
"वह तो है। मम्मी पापा ने तो अभी से बहुत सी तैयारियां कर ली हैं।"
भावना बहुत देर तक नंदिता के पास रही। वह उसकी मम्मी से कहकर गई थी कि जैसे ही नंदिता के अस्पताल जाने का समय आए उसे बता दें।‌ उससे जो भी मदद हो सकेगी करेगी।

खाना खाकर दोपहर को नंदिता और मम्मी आराम कर रही थीं। पापा बाहर के कमरे में बैठे टीवी देख रहे थे। अचानक नंदिता को दर्द होने लगा। मम्मी ने फौरन पापा को बताया कि लगता है नंदिता को अस्पताल ले जाने का वक्त आ गया है।‌ पापा ने फौरन अस्पताल ले जाने की व्यवस्था की। दोनों नंदिता को अस्पताल ले गए। रास्ते में मम्मी ने मकरंद को फोन करके कहा कि वह फौरन अस्पताल पहुँचे।
नंदिता ने उसी रात एक बेटी को जन्म दिया। बेटी होने की खबर सुनकर मकरंद बहुत खुश हुआ। जब उसने पहली बार अपनी बेटी को अपने हाथों में लिया तो उसकी आँखों में आंसू आ गए। बच्ची ने आकर उस परिवार का सपना पूरा कर दिया था जिसके लिए वह तरसता था। बच्ची के नाना नानी की खुशी का ठिकाना नहीं था।
जैसा पापा ने सोचा था बच्ची का नाम काशवी रखा गया।
कुछ दिन अस्पताल में रहने के बाद नंदिता काशवी के साथ घर आ गई। नाना नानी ने काशवी का बड़ी धूमधाम से स्वागत किया। मकरंद काशवी के लिए एक सुंदर सा पालना लेकर आया था।
कुछ देर पहले ही नंदिता ने काशवी को दूध पिलाकर सुलाया था। मकरंद सोई हुई काशवी को बहुत प्यार से देख रहा था। नंदिता ने कहा,
"क्या सोच रहे हो ?"
"सोच रहा था कि तुम्हारी प्रेगनेंसी की खबर सुनकर मैं कितना अपसेट हो गया था। तब क्या पता था कि मुझे इतनी बड़ी खुशी मिलने वाली है। अब लगता है कि तुम सही कहती थी कि कुछ चीज़ें वक्त पर छोड़ देनी चाहिए। कुछ ना कुछ अच्छा होता है।"
नंदिता भी काशवी को देखकर सोच रही थी कि नौ महीनों में मुझे कितनी भी मुश्किल हुई हो। पर काशवी के रूप में वक्त ने सारी मुश्किलों का बहुत अच्छा उपहार दिया है।