मेरे घर आना ज़िंदगी - 1 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मेरे घर आना ज़िंदगी - 1


(1)

ऑफिस से लौटते हुए नंदिता ने एक जगह अपनी स्कूटी खड़ी की। सामने चार सीढ़ियां थीं। उन्हें चढ़कर वह मेडिकल शॉप के काउंटर पर पहुँची। पहले से मौजूद एक ग्राहक अपनी दवाओं के पैसे चुका रहा था। उसके जाने के बाद केमिस्ट ने कहा,
"पर्चा दिखाइए....."
नंदिता ने इधर उधर देखकर थोड़े संकोच से कहा,
"मुझे प्रेग्नेंसी टेस्ट किट चाहिए।"
केमिस्ट ने पास खड़े साथी की तरफ देखा। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। उसका साथी अंदर गया और किट लाकर काउंटर पर रख दी। नंदिता ने उसे उठाते हुए दाम पूछा। केमिस्ट ने बता दिया। दाम चुकाकर नंदिता पहली सीढ़ी उतरी थी कि उसके कानों में पड़ा,
"आजकल यह सब कॉमन हो गया है।"
नंदिता समझ गई कि केमिस्ट का इशारा किस तरफ है। लेकिन इस समय उसे किसी बात से मतलब नहीं था। वह तो घर पहुँच कर तसल्ली करना चाहती थी। वह अपनी स्कूटी के पास आई। अपना बैग सीट के नीचे रखा। हेलमेट पहना और निकल गई।

घर पहुँच कर सबसे पहले उसने निर्देश पढ़े। उन्हें समझने के बाद टेस्ट करने वॉशरूम में चली गई। वह मन ही मन प्रार्थना कर रही थी कि परिणाम निगेटिव आए। उसका शक गलत साबित हो। उसने निर्देशानुसार टेस्ट किया। परिणाम देखा तो पॉज़िटिव रिजल्ट देखकर वह परेशान हो गई। कुछ देर तक वॉशरूम में बैठी रही। इस समय एकसाथ कई सारी बातें उसके मन में चल रही थीं।
उसे होश आया कि मकरंद आने वाला होगा। वह वॉशरूम से बाहर आई। किट को डस्टबिन में डाला। अभी बैग पूरी तरह भरा नहीं था। लेकिन वह नहीं चाहती थी कि किट मकरंद की नज़र में आए। उसने कंटेनर से बैग निकाला। अपना मोबाइल लिया और निकल गई। नशेमन सोसाइटी में एक बड़ा सा गार्बेज कंटेनर था। लोग अपने घर का कूड़ा उसमें डाल देते थे। नंदिता ने जाकर बैग उस कंटेनर में डाल दिया।
वह लौट रही थी तभी उसकी निगाह एक छोटे से कुत्ते के पिल्ले पर पड़ी। सफेद रंग के पिल्ले के ऊपर काले धब्बे थे। वह चलते हुए किसी खिलौने की तरह लग रहा था। नंदिता खड़ी होकर उसे देखने लगी। वह बहुत चंचल था। इधर उधर उछल रहा था। नंदिता का दिल पिघला जा रहा था। वह अपने फोन से उसका वीडियो बनाने लगी। तभी किसी ने उसे टोंका,
"यहाँ क्या कर रही हो नंदिता ?"
आवाज़ उसके बगल के फ्लैट में रहने वाली अमृता की थी। नंदिता ने वीडियो बनाना बंद कर दिया। अमृता की तरफ देखकर बोली,
"कुछ नहीं....डस्ट बिन का बैग भर गया था तो डालने आई थी। लौटते हुए इस पपी पर नज़र पड़ गई।"
अमृता ने हंसकर कहा,
"तुम भी छोटी छोटी बातों में खुशियां तलाश लेती हो। अच्छा है। नहीं तो खुशियां मिल पाना आसान नहीं है।"
आखिरी बात कहते हुए अमृता के चेहरे पर उदासी आ गई। नंदिता ने पूछा,
"समीर कैसा है ?"
"ठीक है.....अगले महीने स्कूल जयपुर टूर पर ले जा रहा है। उसे लेकर बहुत उत्साहित है।"
"बहुत अच्छी बात है। घूमने जाएगा तो उसका मन बहल जाएगा।"
अमृता मुस्कुरा कर आगे बढ़ गई। उसके जाने के बाद नंदिता ने पिल्ले को उठाकर पुचकारा। उसके दिल में एक दर्द सा उठा। उसने पिल्ले को नीचे उतार दिया। उसका हाथ अपने पेट पर गया। वह सोच रही थी कि यह खबर मकरंद को कैसे देगी।
मकरंद और नंदिता की शादी को एक साल ही पूरा हुआ था। दोनों पहले अपनी गृहस्ती को मज़बूती प्रदान करना चाहते थे। इसलिए तय किया था कि आने वाले दो साल और परिवार नहीं बढ़ाएंगे । दोनों पूरी सावधानी बरत रहे थे। लेकिन एक संडे की शाम को भावनाओं में बहकर सावधान नहीं रह पाए। नंदिता ने जब अपना पीरियड मिस किया तो उसे डर लगा था कि शायद वह प्रेग्नेंट है। टेस्ट ने उसके शक को यकीन में बदल दिया था।
नंदिता के सामने समस्या सिर्फ इतनी ही नहीं थी कि वह मकरंद को इस बात की सूचना कैसे देगी। समस्या थी कि बात जानने के बाद मकरंद की प्रतिक्रिया कितनी उग्र होगी। वह जानती थी कि मकरंद यह सुनकर बिल्कुल भी खुश नहीं होगा। वह हर चीज़ को प्लान करके चलने का आदी था। उसके अगले दो साल के प्लान में बहुत कुछ था पर बच्चा नहीं था। बच्चे का आना बाकी सारे प्लान्स को बिगाड़ सकता था। यह बात मकरंद को बिल्कुल भी पसंद नहीं आने वाली थी।
अपनी परेशानी में उलझी नंदिता अभी अपने फ्लैट में घुसी ही थी कि उसके फोन की घंटी बज उठी। मकरंद का फोन था। उसने बताया कि उसके एक कुलीग ने पार्टी दी है। वह डिनर करके आएगा। इसलिए उसे आने में देर हो जाएगी।
मकरंद देर से खाकर आने वाला था। नंदिता का अपने लिए कुछ बनाने का मन नहीं था। उसका मन उलझन में था। वह बेडरूम में जाकर लेट गई।

अमृता ने डिनर तैयार कर लिया था। समीर अपने कमरे में था। अमृत ने उसके कमरे के दरवाज़े पर नॉक करके कहा,
"समीर डिनर करने आ जाओ।"
समीर अपने लैपटॉप पर कुछ पढ़ रहा था। उसने आवाज़ लगाकर कहा कि अभी आ रहा हूँ। स्क्रीन पर एक आर्टिकल था। उसने उसके एक हिस्से को कॉपी करके नोटपैड पर पेस्ट कर दिया। उसके बाद लैपटॉप बंद करके बाहर चला गया। अमृता ने खाना टेबल पर लगा दिया था। समीर चुपचाप आकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया। उसने हवा में खुशबू लेते हुए कहा,
"मॉम लगता है आज कुछ नया‌ बनाया है।"
अमृता ने प्लेट लगाते हुए कहा,
"बनाई तो आलू की सब्ज़ी ही है। लेकिन कुछ नए तरीके से। खाकर देखो।"
समीर अपनी कुर्सी पर बैठ गया। अमृता ने प्लेट उसके सामने रख दी। समीर ने एक कौर खाया। उसके बाद बोला,
"मॉम इट्स माइंड ब्लोइंग...."
अमृता तारीफ सुनकर खुश हुई। उसने भी एक कौर खाया। वह बोली,
"इंटरनेट पर देखा था। सोच रही थी कि पता नहीं कैसा बने। बट इट इज़ रियली गुड।"
समीर ने खाते हुए कहा,
"मॉम आप मुझे कुकिंग करना कब सिखाएंगी ?"
उसकी यह बात सुनकर अमृता परेशान हो गई। उसने कहा,
"तुम कुकिंग करोगे ?"
समीर ने कहा,
"तो क्या हुआ ? आप भी तो कुकिंग करती हैं।"
अमृता के मन में बसा डर जाग उठा। पर‌ उसने अपने डर को दबाकर उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा। उसने कहा,
"अचानक शेफ बनने का इरादा कर लिया है।"
"नहीं मॉम.....इरादा तो अभी भी फैशन डिज़ाइनर बनने का है। लेकिन कुकिंग भी मुझे सीखना है।"
समीर ने अमृता को देखकर कहा,
"इस संडे आप मुझे कुकिंग करना सिखाएंगी।"
अमृता ने धीरे से कहा,
"ठीक है....पर अभी तो खाना खाओ।"
समीर भी मुस्कुरा दिया। दोनों खाना खाने लगे। अमृता खाना खाते हुए समीर को ध्यान से देख रही थी। इन दिनों ‌उसने अपने बाल बढ़ा रखे थे। प्रिंसिपल ने स्कूल बुलाकर शिकायत की थी। एकबार फिर उसे अपनी बड़ी बहन की कही बात याद आई। उनका कहना था कि समीर लड़कियों जैसी बातें करता है। लेकिन उसने एकबार फिर उनकी बात को नकार कर अपने मन में उठ रहे डर को दबाने की कोशिश की। वह सोच रही थी कि एक लड़के का कुकिंग में दिलचस्पी दिखाना कोई असामान्य बात नहीं है। समीर एकदम ठीक है। वह लोगों की बात सुनकर परेशान क्यों हो रही है।

नंदिता की आँख लग गई थी। जब नींद खुली तो नौ बज रहे थे। उसने अपना फोन चेक किया। कोई कॉल नहीं आई थी। समय देखा तो नौ बजकर दस मिनट हुए थे। उसने मकरंद को फोन किया तो उसने कहा कि अभी घर लौटने में एक घंटा और लग जाएगा। नंदिता उठकर बाहर आई। थोड़ी भूख लग रही थी। उसने अपने लिए चाय चढ़ाई और फ्रिज से ब्रेड बटर निकाल कर ले आई। उसने चाय के साथ ब्रेड बटर खा लिया था। भूख मिट गई थी। लेकिन मन बेचैन था। वह जानती थी कि जब तक वह मकरंद को प्रेगनेंट होने के बारे में ना बता दे मन ऐसे ही बेचैन रहेगा। मकरंद को आने में समय था। उसने सोचा कि थोड़ी देर नीचे सोसाइटी के पार्क में टहल कर आती है।

योगेश उर्मिला का हाथ पकड़ कर बेंच पर बैठे थे। वह उर्मिला को प्यार करते थे। लेकिन हाथ पकड़ कर रखने का कारण सिर्फ प्यार नहीं था। उर्मिला को अल्ज़ाइमर्स की बीमारी थी। उन्हें अपने आसपास की दुनिया का होश नहीं रहता था। ज़रा सी चूक होने पर वह कहीं भी चली जाती थीं। दो बार ऐसा हो चुका था। उसके बाद से योगेश जब भी घर से बाहर निकलते थे तो उर्मिला का हाथ पकड़ कर रखते थे।
वह उर्मिला की तरफ देख रहे थे जो खोई खोई नज़रों से इधर उधर देख रही थीं। इधर उधर देखते हुए उर्मिला ने अपनी आँखें योगेश के चेहरे पर जमा दीं। योगेश की नज़रें उनकी आँखों में अपने लिए प्यार तलाश रही थीं। लेकिन उनमें सिर्फ अजनबीपन था। उनकी नज़रें आंसुओं से धुंधला गईं।
"हैलो अंकल....."
आवाज़ सुनकर योगेश ने फौरन आँखें पोछीं और पीछे मुड़कर देखा। नंदिता खड़ी थी। उन्होंने कहा,
"नंदिता....कैसी हो ?"
नंदिता उनके सामने आकर बोली,
"ठीक हूँ अंकल। आप कैसे हैं ?"
योगेश ने उर्मिला की तरफ देखकर कहा,
"मैं कैसा हूँ सोचना ही छोड़ दिया है बेटा। अब बस उर्मिला का ही खयाल रहता है।"
नंदिता उर्मिला की तरफ देखकर हल्के से मुस्कुरा दी। योगेश ने कहा,
"तुम बताओ कैसी हो ?"
"ठीक हूँ अंकल। मकरंद को कोई काम था इसलिए लौटा नहीं। मैंने सोचा कुछ देर नीचे टहल लूँ।"
योगेश उठकर खड़े हो गए। उर्मिला को उठाया और उनका हाथ पकड़े हुए लिफ्ट की तरफ बढ़ गए। उन्हें जाते हुए देखकर नंदिता सोच रही थी कि इस उम्र में अपने जीवनसाथी की एक बच्चे की तरह देखभाल करना कितना मुश्किल होता होगा। लेकिन योगेश पिछले कुछ सालों से यह काम कर रहे थे। उसके मन में उनके लिए सहानुभूति पैदा हुई।