मेरे घर आना ज़िंदगी - 2 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मेरे घर आना ज़िंदगी - 2


(2)

मकरंद वॉशरूम में फ्रेश हो रहा था। नंदिता बिस्तर पर बैठी सोच रही थी कि बात शुरू कैसे करे। वॉशरूम का दरवाज़ा खुला। मकरंद बाहर आते हुए बोला,
"आज अपने मकान मालिक का फोन आया था।"
नंदिता ने कहा,
"क्या कह रहे थे ?"
मकरंद बिस्तर पर बैठकर बोला,
"अगले महीने एग्रीमेंट का पीरियड खत्म हो रहा है। कह रहे थे कि या तो शर्त के हिसाब से दस परसेंट किराया बढ़ाओ नहीं तो फ्लैट समय पर खाली कर देना।"
यह सुनकर नंदिता भी परेशान हो गई। मकरंद ने कहा,
"नया फ्लैट ढूंढ़ने में तो कठिनाई आएगी। मैंने कह दिया कि बढ़े हुए किराए के साथ फिर से एग्रीमेंट कर लीजिएगा।"
नंदिता ने सोचते हुए कहा,
"सही किया। कहीं और फ्लैट लेने का मतलब शिफ्टिंग में बेवजह खर्च करना होता। फिर हम दोनों के ऑफिस इस जगह से नज़दीक हैं।"
यह कहकर वह मकरंद की तरफ देखने लगी। सोच रही थी कि कुछ रुककर अपनी बात कहे। मकरंद किसी सोच में था। वह बोला,
"सब प्लान के मुताबिक हो जाता तो कितना अच्छा होता। नया एग्रीमेंट करने की जगह हम लोग अपने फ्लैट में शिफ्ट हो जाते। लेकिन वहाँ तो कंस्ट्रक्शन ही ठप हो गया। ना जाने झगड़ा कब सुलझेगा। तब तक दोहरी मार है। बैंक लोन की किश्त दो और फ्लैट का किराया भी दो।"
उसने नंदिता की तरफ देखकर कहा,
"अपनी शादी से पहले फ्लैट बुक करा लिया था। सब सही चलता तो अब फ्लैट की रजिस्ट्री करने की बात हो रही होती। लेकिन कंपनी और ज़मीन के मालिक के झगड़े ने सब गड़बड़ कर दी।"
मकरंद ने निराशा से सामने की दीवार की तरफ देखकर कहा,
"भगवान क्यों हमारे साथ ऐसा करते हैं।"
नंदिता मन में सोच रही थी कि जो बात वह बताने वाली है वह तो और अधिक विस्फोटक है। उसे सुनकर मकरंद बहुत अधिक परेशान हो जाएगा। उसने भूमिका बनाते हुए कहा,
"हर बात प्लान के हिसाब से हो यह ज़रूरी तो नहीं है। ज़िंदगी में बहुत कुछ ऐसा होता है जिस पर हमारा बस नहीं चलता है। इसलिए जो सामने है उस पर ध्यान देना ही ठीक है।"
"ऐसा नहीं है नंदिता। मैंने बहुत से लोगों को देखा है। उनकी ज़िंदगी उसी तरह चलती है जैसा वह चाहते हैं। एक मेरे साथ ही ऐसा होता है कि पासा हमेशा उल्टा गिरता है। चलो अब जो है उससे निपटना ही पड़ेगा। पर अब और कुछ ना हो। नहीं तो बहुत मुश्किल हो जाएगी।"
यह कहकर मकरंद लेट गया। उसने करवट लेते हुए कहा,
"लाइट ऑफ कर दो नंदिता।"
नंदिता की हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि उसे अभी कुछ बताए। उसने उठकर बेडरूम की लाइट बंद कर दी।
मकरंद करवट किए हुए लेटा था। समझ नहीं आ रहा था कि वह सोया हुआ है या जागा है। नंदिता उसके बगल मे बैठी हुई थी। वह अब और अधिक उलझन में थी। मकरंद ने कहा था कि अब कुछ और ना हो। लेकिन वह नावाकिफ था कि जो सच उसके सामने आने वाला है वह पासा ही नहीं पूरी बिसात पलट देगा। बच्चे के आने से उनकी ज़िम्मेदारियां बहुत अधिक बढ़ जाने वाली थीं। बच्चे को जन्म देने और उसे संभालने के लिए उसे लंबी छुट्टी लेनी पड़ती। अभी उसकी नौकरी को बहुत अधिक समय नहीं हुआ था। ऐसे में उसकी नौकरी छूट जाने का खतरा अधिक था।
वह खुद भी चाहती थी कि मकरंद ने जो कुछ सोचा है उसे पूरा करने में उसकी सहायक बने। लेकिन अगर उसकी नौकरी चली जाएगी तो सब अकेले मकरंद पर आ जाने वाला था। यह सोचकर वह बेचैन हो रही थी। उसे नींद नहीं आ रही थी। वह धीरे से बिस्तर से उतरी और बेडरूम की बालकनी में जाकर खड़ी हो गई। नशेमन सोसाइटी के अधिकांश फ्लैट्स की लाइट बंद हो चुकी थीं। दिनभर की भागदौड़ से थके लोग अपनी परेशानियों के साथ नींद के आगोश में समा गए थे।
बालकनी में खड़े हुए नंदिता ने तय किया कि वह पहले खुद इस समस्या का कोई समाधान खोजने की कोशिश करेगी। अपनी खास सहेली भावना से इस बारे में चर्चा करेगी। यह सोचकर वह बिस्तर पर आकर लेट गई।

ऑफिस में लंच करते हुए नंदिता ने भावना को सारी बात बताई। सब जानकर भावना विचारमग्न हो गई। उसने कहा,
"मेरी सलाह तो यही है कि पहले किसी गाइनाकोलॉजिस्ट से मिलो। सही तरीके से जांच कराओ। उसके बाद उन्हीं से पूछना कि क्या करना चाहिए।"
नंदिता ने कहा,
"तुम कोई गाइनाकोलॉजिस्ट सजेस्ट कर सकती हो। मैं जल्दी से जल्दी इस समस्या का कोई समाधान चाहती हूँ।"
"डॉ. नगमा सिद्दीकी....अपने ऑफिस के पास ही है उनका क्लीनिक। बहुत अच्छी हैं। मेरी भाभी ने अपनी प्रेग्नेंसी के समय उन्हें ही दिखाया था।"
"मैं सोच रही थी कि आज ऑफिस से जल्दी निकल कर उनसे मिल लूँ।"
भावना ने उसकी बात का समर्थन किया। नंदिता ने फैसला कर लिया कि आज डॉ. नगमा सिद्दीकी से मिलेगी। ऑफिस से जल्दी निकल कर नंदिता डॉ. नगमा सिद्दीकी के क्लीनिक पर गई। अपनी जांच कराई।

रिपोर्ट पॉज़िटिव आई थी। डॉ. नगमा सिद्दीकी ने नंदिता को बधाई दी। नंदिता परेशान दिख रही थी। उसकी परेशानी देखकर डॉ. नगमा सिद्दीकी ने पूछा ,
"क्या बात है ? आप खुश नहीं लग रही हैं।"
नंदिता ने कहा,
"दरअसल अभी मैं और मेरे पति बच्चे की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं हैं।"
डॉ. नगमा सिद्दीकी ने नंदिता को देखकर कहा,
"ऐसा था तो आप दोनों को सावधानी रखनी चाहिए थी। इतने उपाय हैं।"
नंदिता ने अपनी नज़रें झुका लीं। वह बोली,
"हमसे चूक हो गई। पर क्या अब प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट नहीं किया जा सकता है।"
डॉ. नगमा सिद्दीकी ने गंभीर आवाज़ में कहा,
"अबॉर्शन की इजाज़त कुछ खास सूरतों में ही है। बच्चे को जन्म देने पर औरत की जान को खतरा हो या जांच में आए कि बच्चे को कोई गंभीर समस्या है, जिससे जन्म लेने के बाद वह सामान्य जीवन जीने के योग्य ना हो। इसके अलावा अगर औरत के साथ बलात्कार होता है जिसके कारण वह गर्भवती हो जाती है। चौथा कारण भी है। यदि आपने गर्भ निरोध के उपाय किए होते और फिर भी आप गर्भवती हो जातीं। लेकिन आपने खुद कहा कि आप दोनों से लापरवाही हुई है।"
नंदिता चुप बैठी थी। डॉ. नगमा सिद्दीकी ने कहा,
"आप स्वस्थ हैं।‌ बच्चे को जन्म देने में सक्षम हैं। आगे चलकर अगर बच्चे को कोई गंभीर समस्या मालूम पड़ती है तो मैं अबॉर्शन की सलाह दूँगी। नहीं तो मेरी सलाह यही है कि आप और आपके पति खुद को बच्चे की परवरिश के लिए तैयार करें।"
डॉ. नगमा सिद्दीकी ने जो बातें बताई थीं उनके अनुसार बच्चे को जन्म देना ही एक रास्ता था। नंदिता ने उन्हें धन्यवाद दिया और अपने घर चली गई।

नंदिता सोसाइटी के गेट पर पहुँची तो उसने योगेश को ई रिक्शा से अकेले उतरते देखा। उसने अपनी स्कूटी उनके पास रोककर पूछा,
"अंकल कहाँ गए थे ? आंटी साथ नहीं हैं।"
योगेश ने कहा,
"ज़रूरी काम था बेटा। सुदर्शन को उर्मिला के पास छोड़कर गया था।"
योगेश यह कहकर आगे बढ़ गए। नंदिता को उनके हाथ में एक फाइल दिखाई पड़ी थी। उस पर एक हॉस्पिटल का नाम था। योगेश के हावभाव से भी लग रहा था कि मामला गंभीर है। उसे एकबार फिर उनके लिए बुरा लगा। उसने स्कूटी स्टार्ट की और सोसाइटी के अंदर चली गई।

योगेश अपने घर पहुँचे। उन्होंने सबसे पहले उर्मिला का हाल पूछा। सुदर्शन ने बताया कि वह इतनी देर अपने कमरे में आराम से बैठी रहीं। योगेश ने सुदर्शन का धन्यवाद करते हुए कहा,
"बेटा ज़रूरत पड़ने पर काम आ जाते हो। तुम्हारे अलावा और कोई है भी नहीं जिससे मदद मांग सकूँ।"
"अंकल आपने मेरे लिए जो कुछ किया है उसके आगे मैं कुछ भी नहीं कर पा रहा हूँ। आपको जब भी ज़रूरत हो तो मुझे बुला लिया करिए। इसी तरह कुछ कर्ज़ उतार सकूँगा। वैसे डॉक्टर ने क्या कहा अंकल ?"
"घबराने वाली कोई बात नहीं है। सब ठीक है।"
सुदर्शन किचन से उनके लिए एक गिलास पानी ले आया। योगेश ने पानी पी लिया तो उसने पूछा,
"चाय बना दूँ अंकल।"
'नहीं बेटा इतनी मदद बहुत है। तुम्हें काम होगा। अब तुम जाओ।"
सुदर्शन चला गया। योगेश कुछ देर आँखें मूंदे सोफे पर बैठे रहे। इस समय उनका मन बहुत परेशान था। सबकुछ उन्हें अकेले ही संभालना पड़ता था। सुदर्शन को छोड़कर कोई और नहीं था जिससे मदद मांग सकते। उससे भी बहुत आवश्यक होने पर ही कहते थे। उन्हें संकोच होता था कि कहीं कोई यह ना सोचे कि जो मदद की उसका बदला इस तरह ले रहे हैं। योगेश के ऑफिस में काम करने वाले एक फोर्थ क्लास कर्मचारी का बेटा था सुदर्शन। जब वह दस साल का था तब उसके पिता का देहांत हो गया था। योगेश ने उसकी बारहवीं तक की शिक्षा का खर्च उठाया था। अब सुदर्शन कॉलेज में था। खुद ही अपनी व्यवस्था कर लेता था।
किचन में कुछ आवाज़ सुनी तो योगेश ने आँखें खोलीं। किचन में जाकर देखा तो उर्मिला कैबिनेट खोलकर कुछ देख रही थीं। उन्होंने पूछा,
"क्या कर रही हो उर्मिला ?"
उर्मिला ने उनकी तरफ देखा जैसे कुछ याद कर रही हों। लेकिन उन्हें कुछ याद नहीं आ रहा था। योगेश ने उनका हाथ पकड़ा और कमरे में ले गए। उन्हें बिस्तर पर बैठा दिया। उर्मिला अभी भी कुछ परेशान लग रही थीं। योगेश ने उनके सर पर हाथ फेरा। उनकी आँखों से आंसू बह रहे थे। उनके मुंह से निकला,
"मेरे बाद क्या होगा तुम्हारा...."
उनके सवाल से बेखबर उर्मिला इधर उधर देख रही थीं।