मेरे घर आना ज़िंदगी - 5 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मेरे घर आना ज़िंदगी - 5


(5)

जो कुछ हुआ था उससे अमृता परेशान हो गई थी। वह अपने कमरे में जाकर लेट गई थी। अपनी तनावपूर्ण शादी में समीर का जन्म अमृता के लिए एक सुखद अनुभव था। उसके आने से एक उम्मीद बंधी थी कि शायद उसके पति के रुख में कोई बदलाव आ जाए। वह अपने आप को बदल दे। लेकिन अमृता की उम्मीद बेकार साबित हुई। उसके पति के रवैए में ज़रा भी फर्क नहीं आया। वह पहले की तरह ही बात बात पर उसका अपमान और तिरस्कार करता था। समीर के लिए भी उसके मन में कोई लगाव नहीं था।
समीर के जन्म के बाद दो साल और अमृता ने किसी तरह उस शादी में गुजारे। पर जब यह विश्वास हो गया कि उसका पति बदलने वाला नहीं है तो उसने अलग होने का फैसला किया। समीर को लेकर अपने मायके चली गई। उसके पति ने उसके बाद ना कभी उसकी सुध ली और ना ही समीर की। बड़ी कठिनाइयां सहकर आज वह खुद को उस मुकाम पर लेकर आई थी जहाँ समीर को अच्छी परवरिश दे सकती थी।
उसके सारे सपने समीर से ही जुड़े हुए थे। लेकिन समीर का अजीब बर्ताव उसे परेशान करता था। आरंभ में वह यह सोचकर खुद को तसल्ली देती थी कि अभी बच्चा है। इसलिए नासमझी में ऐसा करता है। हलांकी वह जानती थी कि यह महज़ खुद को बहलाने का बहाना है। छोटे छोटे बच्चे भी इस मामले में अपनी पहचान को समझते हैं। उसके अनुरूप ही व्यवहार करते हैं। वह समीर को समझाती थी। उसे उम्मीद थी कि किशोरावस्था में पहुँचने पर सब ठीक हो जाएगा। लेकिन समीर में कोई बदलाव नहीं आया। उसके बोलने, चलने, पसंद नापसंद हर एक चीज़ में स्त्रीत्व की झलक थी। कुछ लोग दबी जुबान बात करते थे। कुछ मुंह पर हंसने से भी नहीं चूकते थे। सिर्फ उसकी बड़ी बहन उसे खुलकर आगाह करती थीं कि समीर की हरकतों को संभालो नहीं तो बहुत पछताना पड़ेगा।
उन्होंने ही उसके बाल कटवाने की सलाह दी थी। एक दिन समीर लड़कियों की तरह क्लिप लगाकर स्कूल गया था। वहाँ बच्चों ने उसका खूब मज़ाक बनाया। प्रिंसिपल ने उसे स्कूल बुलाकर शिकायत की थी। उन्होंने कहा था कि समीर के बाल कटवाइए नहीं तो उसे स्कूल भेजना बंद कर दीजिए। इसलिए अमृता उसके पीछे पड़ी थी कि वह अपने बाल कटवाए।

समीर ने रोना बंद कर दिया था। पर मन अब भी अशांत था। उसकी मम्मी को उसकी वजह से लोगों का उपहास झेलना पड़ता है। यह‌ बात उसने कई मौकों पर महसूस की थी। इसलिए वह चाहता था कि एक सफल व्यक्ति बने। जिससे लोग उसे और उसकी मम्मी को इज्ज़त दें। उसे उम्मीद थी कि भले ही सब लोग उसका मज़ाक उड़ाएं लेकिन उसकी मम्मी हमेशा उसका साथ देंगी। यह बात उसे मनोबल प्रदान करती थी। वह सोचता था कि एक दिन वह‌ अपना सपना पूरा करेगा और अपनी मम्मी को वह सब देगा जो उन्हें कभी कभी नहीं मिला। पर अब उसे लग रहा था कि जैसे वह एकदम अकेला है। उसकी मम्मी भी उसी भीड़ का हिस्सा बन गई हैं जो ‌उसे सिर्फ मज़ाक के लायक समझती है।
वह भी अपनी मम्मी को बहुत चाहता था। उसे लग रहा था कि ‌अगर मम्मी को उसकी वजह से शर्मिंदा होना पड़ता है तो वह खुद को बदल लेगा। भले ही ऐसा करने में ‌उसे कितनी भी तकलीफ क्यों ना हो। चाहे उसे वह‌ बनकर रहना पड़े जैसा उसने कभी महसूस नहीं किया।
समीर उठा। वॉशरूम में जाकर चेहरा धोया। अपने गुल्लक से पैसे निकाले। उन्हें गिना, हेयरकट के लिए पर्याप्त थे। अपनी साइकिल की चाभी उठाई और चुपचाप घर से निकल गया।
जब हेयरकट के बाद समीर घर लौटकर आया तो उसकी मौसी घर आई हुई थीं। उसे देखकर उन्होंने कहा,
"बाल कटवा आए अच्छा किया। अब जाकर अपनी शक्ल आइने में देखो। कितने अच्छे लग रहे हो।"
समीर ने कुछ नहीं कहा। चुपचाप मौसी के पैर छुए और अपने कमरे में जाने लगा। उसकी मौसी ने टोंका,
'जा कहाँ रहे हो ? यहाँ बैठो।"
समीर वहाँ बैठ गया। उसकी मौसी ने कहा,
"तुम्हारी बर्थडे पर तो आ नहीं पाई थी। तुम्हारा गिफ्ट रह गया था। सोचा आज चलकर दे दूँ।"
उन्होंने रैप किया हुआ गिफ्ट उसे थमा दिया। समीर ने उसे लेकर थैंक्यू कहा। उसकी मौसी ने कहा,
"खोलकर देखो। बहुत सुंदर शर्ट है। मैंने सेलेक्ट की है।"
समीर का मन नहीं था। पर वह जानता था कि मना करने का मतलब बेवजह बात बढ़ाना होगा। उसने गिफ्ट खोला। नीले रंग की एक शर्ट थी। उसकी मौसी बोलीं,
"लड़कों का पसंदीदा कलर ब्लू होता है। मैंने सोचा तुम्हें भी अच्छा लगेगा।"
समीर को उनकी बात अच्छी नहीं लगी। इस बार उसने साफ साफ कह भी दिया,
"नीला रंग मुझे खास पसंद नहीं है। लेकिन आप लेकर आई हैं इसके लिए थैंक्यू। मैं हेयरकट करवा कर आया हूँ। नहाने जा रहा हूंँ।"
शर्ट वहीं रखकर वह अपने कमरे में चला गया।


उर्मिला सो रही थीं। योगेश उनके पास बिस्तर पर बैठे थे। वह सोती हुई उर्मिला को प्यार से निहार रहे थे। उन्हें देखते हुए योगोश अपने पुराने दिनों को याद करने लगे। वह दिन जो संघर्ष के थे। पर उन दिनों दिल खुशी से भरा रहता था। आगे बढ़ने का उत्साह सदा बना रहता था। क्योंकी उन दिनों में उनके पास वह दौलत थी जिसे आसानी से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। वह दौलत थी उर्मिला का प्यार। जो बिना किसी अपेक्षा के वह पूरी तरह उन पर लुटाती थीं।
उर्मिला के साथ जब उनकी शादी हुई थी तब वह‌ महज़ तेइस साल के थे। एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे। तनख्वाह बहुत कम थी। उर्मिला कभी पैसों की शिकायत नहीं करती थीं। जो भी था उसमें खुशी से घर चला लेती थीं। पैसे की कमी कभी उन दोनों को जीवन की छोटी छोटी खुशियों का मज़ा लेने से नहीं रोक पाती थी। दिन अच्छे गुज़र रहे थे। पर योगेश के दिल में एक बात थी। वह चाहते थे कि बैंक या किसी सरकारी संस्थान में नौकरी करें। जहाँ तनख्वाह भी अच्छी हो और नौकरी सुरक्षित भी हो। पर उन्हें लगता था कि शादी हो जाने के बाद नौकरी करते हुए सरकारी नौकरी के लिए होने वाली परिक्षाओं की तैयारी करना मुश्किल है।
जब यह बात उर्मिला को पता चली तो उन्होंने योगेश को परिक्षाओं की तैयारी करने के लिए प्रेरित किया। उनसे प्रेरणा पाकर योगेश में भी उत्साह जागा। उन्होंने विभिन्न परिक्षाओं की तैयारी आरंभ कर दी। दिन भर नौकरी करने के बाद जब घर आते तो थोड़ा आराम कर पढ़ाई में जुट जाते। उर्मिला इस बात का पूरा खयाल रखती थीं कि उन्हें पढ़ते समय कोई व्यवधान ना हो। योगेश देर रात तक पढ़ते थे। वह भी बीच बीच में उन्हें चाय बनाकर देती थीं जिससे उन्हें नींद ना आए।
घर के काम तो वह करती ही थीं। अब उन्होंने बाहर के कामों की ज़िम्मेदारी भी उठा ली थी। उनकी पूरी कोशिश रहती थी कि योगेश का समय केवल पढ़ाई में ही लगे। उनसे मिलने वाला सहयोग योगेश के लिए बहुत सहायक था। उन्होंने भी कोई कसर नहीं रखी। अंततः उन्होंने एक सरकारी विभाग में अकाउंटेंट के पद की परीक्षा पास कर ली। उनके दिन बदल गए। अब दोनों जीवन की दूसरी खुशियों की राह देखने लगे।
घर में सभी आवश्यक सुविधाएं थीं। सामाजिक दायरा भी बढ़ गया था। पर जिसका दोनों पति पत्नी को इंतज़ार था वह‌ नहीं हुआ था। शादी के छह साल हो गए थे पर उनके कोई संतान नहीं थी। योगेश भी संतान चाहते थे पर ना होने का उन्हें बहुत अधिक दुख नहीं था। पर उर्मिला संतान ना होने के कारण बहुत दुखी थीं। उनकी इच्छा पर योगेश ने शहर के माने हुए डॉक्टर को दिखाया। उन्होंने आश्वासन दिया कि इलाज से समस्या सुलझ जाएगी। डॉक्टर की बात सच निकली उनके घर एक बेटे का जन्म हुआ। उसका नाम उन्होंने विशाल रखा।
विशाल के जन्म ने घर की खुशियों के वृत्त को पूरा कर दिया। योगेश और उर्मिला का जीवन अब अपने बेटे के इर्दगिर्द ही घूमता था। उनके लाड़ प्यार के बीच विशाल बड़ा होने लगा। योगेश और उर्मिला उसकी हर एक बात मानते थे। वह जो भी इच्छा करता पूरी कर देते थे। उनकी खुशियां और उम्मीदें सब कुछ विशाल से जुड़ी हुई थीं।
समय के साथ विशाल अठ्ठारह साल का खूबसूरत नौजवान हो गया था। उसने बारहवीं की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास की थी। उसका दाखिला दिल्ली विश्वविद्यालय के माने हुए कॉलेज में हो गया था। वह कॉलेज जाने की तैयारी कर रहा था। उसके स्कूल के दोस्तों ने तय किया था कि अपने अपने कॉलेज के लिए निकलने से पहले क्यों ना पार्टी की जाए। विशाल अपने एक दोस्त के साथ उस रेस्टोरेंट में जा रहा था जहाँ पार्टी होनी थी। लेकिन बाइक का एक्सीडेंट हो गया। दोस्त को गंभीर चोटें आईं लेकिन वह बच गया। विशाल की उसी जगह पर मृत्यु हो गई।
जिस घर में विशाल के कारण खुशियां थीं। सुखद भविष्य के सपने थे। वहाँ अब उदासी और खामोशी ने डेरा बना लिया था। कई महीने लगे उन दोनों को अपने बेटे की मौत को स्वीकार करने में। उसके बाद ज़िंदगी पहले जैसी सामान्य नहीं हो पाई। उर्मिला की बहुत सी मन्नतों के बाद विशाल पैदा हुआ था। पर योगेश उसके जाने से बहुत अधिक आहत हुए थे। तब भी उर्मिला ने अपना दुख सीने में दबाकर योगेश को सहारा दिया। सुदर्शन की पढ़ाई की ज़िम्मेदारी उठाने की सलाह भी उर्मिला की थी।
अपनी पत्नी को सोते हुए देखकर योगेश सोच रहे थे कि जो इतने कठिन समय में भी मज़बूत बनी रही उसे आज अपना ही होश नहीं है। ऐसे में उसे अकेला छोड़कर तो वह मर भी नहीं पाएंगे।
पिछले कई दिनों से उन्हें समस्या हो रही थी। पेशाब करने में दिक्कत आती थी। वह अनदेखा करते रहे। पर जब पेशाब के साथ खून आना शुरू हुआ तो उन्हें मामला गंभीर मालूम पड़ा। उन्होंने डॉक्टर को दिखाया। कुछ मेडिकल टेस्ट हुए। सामने आया कि उन्हें ब्लाडर का कैंसर है। यह बात सामने आने के बाद से ही वह‌ अपने से अधिक उर्मिला को लेकर परेशान थे।