मेरे घर आना ज़िंदगी - 11 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मेरे घर आना ज़िंदगी - 11


(11)

नंदिता ऑफिस जाने के लिए निकल रही थी जब उसने सुदर्शन को सोसाइटी के अंदर दाखिल होते देखा। उसने अपनी स्कूटी रोककर उसे आवाज़ लगाई। सुदर्शन और उसकी मुलाकात एकबार योगेश के सामने ही हुई थी। योगेश ने सुदर्शन का परिचय देते हुए कहा था कि यह लड़का मेरी बहुत मदद करता है। उसके बाद भी कई बार उसने योगेश के मुंह से सुदर्शन का नाम सुना था। सुदर्शन ने उसके पास आकर नमस्ते किया। नंदिता ने कहा,
"मुझे तो जानते हो। अंकल की बिल्डिंग में ही रहती हूँ।"
"जी जानता हूँ।"
"बहुत दिनों से अंकल और आंटी दिख नहीं रहे हैं। तुम तो जानते होगे कि क्या बात है ?"
सवाल सुनकर सुदर्शन कुछ संकोच में लगा। नंदिता ने कहा,
"मैं बस एक पड़ोसी होने के नाते से पूछ रही हूँ। अक्सर अंकल से मुलाकात हो जाती थी। बात होती थी। इधर कई दिनों से मिली नहीं इसलिए पूछ रही हूँ।"
सुदर्शन ने कुछ विचार किया फिर बोला,
"अंकल को ब्लाडर कैंसर है। उसके इलाज के लिए अस्पताल में हैं। कीमियोथैरेपी हुई है। बहुत कमज़ोर हो गए हैं। मैं उनका कुछ सामान लेने आया था।"
कैंसर की बात सुनकर नंदिता को दुख हुआ। उसने कहा,
"मुझे लग रहा था कि कोई बड़ी बात है। मैंने अंकल से पूछा तो उन्होंने टाल दिया।'
"मुझे भी तो तब बताया जब बताना ज़रूरी हो गया।"
नंदिता को उर्मिला का खयाल आया। उसने पूछा,
"आंटी को कौन संभालता है ?"
"अंकल ने उन्हें एक संस्था में भर्ती करवा दिया है। वहाँ उनके जैसे पेशेंट्स की‌ देखभाल होती है।"
नंदिता को योगेश और उर्मिला के बारे में जानकर बुरा लग रहा था। उसने सुदर्शन से योगेश के अस्पताल के बारे में पूछा। फिर ऑफिस के लिए निकल गई।

स्कूल बस से‌ उतर कर समीर अपने घर जा रहा था। सोसाइटी के गेट से अपनी बिल्डिंग तक उससे चला नहीं जा रहा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे वहीं कहीं बैठ जाए। लेकिन वह बैठना नहीं चाहता था। वह जानता था कि एकबार बैठ गया तो उठने की हिम्मत नहीं होगी। वह मुश्किल से पैर घसीटते हुए बढ़ रहा था।
घर पहुँचते ही वह सीधा अपने कमरे में गया। अपना बैग रखकर वह बिस्तर पर लेट गया। उसका बदन फिर बुरी तरह जल रहा था। उससे अधिक उसका मन अपने साथ हुए दुर्व्यवहार से दुखी था। मन की पीड़ा उससे सही‌ नहीं जा रही थी। वह बिस्तर पर लेटा रो रहा था।
स्कूल जाते समय मन में डर था कि हरीश और मंजीत कहीं उसके साथ कुछ करें ना। लेकिन रीसेस से ठीक पहले हरीश जब पढ़ाने के लिए क्लास में आया तो हमेशा की तरह उसकी अनदेखी करता रहा। क्लास खत्म होने के बाद रीसेस की घंटी बजी। हरीश क्लास से निकल गया। सब बच्चे अपना अपना टिफिन लेकर क्लास से बाहर निकल गए। समीर कुछ देर तक क्लास में अकेला बैठा रहा। फिर वह अपना टिफिन लेकर बाहर जाने के लिए निकल रहा था कि हरीश एकदम से सामने आ गया। वह घबरा गया। हरीश ने कहा,
"याद रखना जो कुछ हुआ था उसके बारे में किसी को मत बताना। नहीं तो तुम्हारी बहुत बदनामी होगी।"
यह कहकर वह फौरन क्लास से बाहर निकल गया। समीर डर गया। वह अपनी सीट पर सर रखकर बैठ गया। वह चुपचाप बैठा था। सोच रहा था कि जो हुआ वह उसे हमेशा के लिए अपने मन में दबा लेगा। तभी नमित एक लड़के के साथ क्लासरूम में आया। समीर उसे पहचानता था। वह लड़का टेंथ क्लास का था। उसका नाम चेतन था। नमित ने बाल पकड़ कर समीर का सर ऊपर उठाया। समीर ने दर्द से कराहते हुए कहा,
"क्या बदतमीज़ी है।"
नमित ने दांत निपोरते हुए कहा,
"हरीश सर कुछ ना बताने की बात कर रहे थे। क्या तुमने लॉज में जो हंगामा किया था उसके बारे में कह रहे थे।"
लॉज वाली बात सुनकर समीर और अधिक डर गया। नमित ने कहा,
"लौटते समय जब हम लोग ढाबे पर रुके थे तब मैंने हरीश सर और मंजीत सर को बात करते सुना था।‌ उन्होंने क्या किया था तुम्हारे साथ पता है।"
समीर परेशान सा नमित की तरफ देख रहा था। नमित के साथ आए हुए चेतन ने कहा,
"हमारे साथ आओ।"
समीर ने प्रश्न भरी नज़र से देखा। चेतन ने कहा,
"चुपचाप आओ। नहीं तो हम हरीश सर से कह देंगे कि तुमने सारी बात हमें बताई है। उसके बाद वह क्या करेंगे तुम जानते हो।"
समीर रोने लगा। उसने कहा,
"ऐसा मत करना प्लीज़....."
"नहीं करेंगे। पर हमारी बात मानो। नहीं तो अच्छा नहीं होगा।"
समीर घबराया हुआ था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह उन लोगों के साथ चला गया। वह लोग उसे टॉयलेट में ले गए। वहाँ उसके साथ आपत्तिजनक व्यवहार किया। फिर चलते हुए बोले,
"हमने जो किया वह भी किसी से मत कहना।"
दोनों हंसे और उसे रोता हुआ छोड़कर चले गए।

समीर उस अपमान को सह नहीं पा रहा था। हरीश के ज़हर बुझे शब्द एकबार फिर हथौड़े की तरह उसके दिमाग में चोट कर रहे थे,
"आदत डाल लो। अंत में तो यही करना है।"
अपना सारा वजूद उसे बहुत ही छोटा और घिनौना लग रहा था। बार बार उसके मन में आ रहा था कि जो वह सोच रहा था कभी नहीं होगा। उसे अब यही सब सहना होगा। वह इस तरह अपमान से भरा जीवन नहीं जी पाएगा। खुद के लिए शर्मिंदगी का भाव लिए वह बिस्तर पर पड़ा था।

ऑफिस में बैठी हुई अमृता का ध्यान इस बात पर जा रहा था कि आज समीर स्कूल गया है। कहीं वह लड़का उसके साथ फिर कुछ गलत ना करे। हलांकी समीर के कहने के बाद वह आश्वस्त हो गई थी कि उस लड़के को डांट पड़ गई है और उसने माफी मांग ली है। पर अभी अचानक उसके दिल में एक बेचैनी सी हो रही थी। उसने घड़ी देखी। समीर के घर लौटने का समय हो चुका था। वह सोच रही थी कि अब तक उसने चेंज करके खाना भी खा लिया होगा। उसने सोचा कि फोन करके एकबार उससे बात कर ले। उसने समीर का नंबर मिलाया। घंटी जाने लगी। हर बीतते क्षण के साथ अमृता की बैचैनी बढ़ रही थी। पूरी घंटी बजने के बाद मैसेज सुनाई पड़ा 'आप जिससे संपर्क करना चाहते हैं वह फोन नहीं उठा रहा है'। कुछ देर में अमृता ने फिर फोन मिलाया। इस बार भी वही अंजाम हुआ।
दो तीन बार ऐसा होने के बाद अमृता को यकीन हो गया कि कुछ गड़बड़ है। वह अपने बॉस के पास गई। उसने सारी बात बताकर कहा,
"सर ज़रूर कोई बात है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। पर आज‌ समीर फोन नहीं उठा रहा है। मेरा घर जाना ज़रूरी है।"
उसके बॉस ने उसे जाने की इजाज़त दे दी। वह फौरन घर के लिए निकल गई।

घबराई हुई सी अमृता घर पहुँची। उसने वक्त बर्बाद किए बिना अपनी चाभी से दरवाज़ा खोला और अंदर चली गई। वह सीधे समीर के कमरे में गई। दरवाज़ा खुला था। जो दृश्य सामने दिखाई पड़ा उसे देखकर वह कांप उठी। समीर का हाथ बिस्तर से नीचे लटक रहा था। उसकी कलाई कटी हुई थी। फर्श पर खून था। सब देखकर अमृता की आँखों के आगे अंधेरा छा गया। वह फर्श पर बैठ गई। लेकिन उसने अपने आप को संभाला। फौरन डॉ. संतोष त्रिवेदी को खबर दी। उन्होंने कहा कि वह एंबुलेंस भेज रहे हैं।
डॉ. संतोष त्रिवेदी ने समीर को अस्पताल में भर्ती करवा दिया। उसका इलाज शुरू हो गया। क्योंकी समीर ने कलाई की नस काटकर आत्महत्या करने की कोशिश की थी इसलिए पुलिस को भी सूचना दी गई। अमृता ने पुलिस को वह बात बताई जो समीर ने बताई थी। उसने नमित पर बदसलूकी का इल्ज़ाम लगाते हुए कहा कि समीर बहुत परेशान था। हो सकता है कि नमित ने स्कूल में फिर कुछ किया हो।
अमृता ने तो परेशानी में इस बात पर ध्यान नहीं दिया था कि समीर ने कोई नोट तो नहीं छोड़ा है। पुलिस उसके साथ घर आई। समीर के कमरे में देखा तो उसकी स्टडी टेबल पर उसकी लिखी एक चिट्ठी मिली। उस चिट्ठी में समीर ने अपने साथ टीचर्स द्वारा किए गए दुर्व्यवहार और नमित और उसके साथी चेतन द्वारा की गई हरकत का ज़िक्र किया था। अंत में उसने अमृता से माफी मांगते हुए लिखा था,
'मम्मी मैं अपनी स्थिति के कारण हमेशा आपके लिए शर्मिंदगी का कारण रहा। जो कुछ मेरे साथ हुआ उसके बाद लगता है कि मैं कुछ भी अच्छा करने के लायक नहीं हूँ। सब मेरे साथ ऐसा ही करेंगे। आपको शर्मिंदा होना पड़ेगा। इसलिए मैं अपनी नस काटकर आपको और खुद को इस शर्मिंदगी से मुक्त कर रहा हूँ।'
अमृता की आँखों से आंसू बह रहे थे। वह ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि किसी भी तरह से समीर बच जाए। वह पुलिस के साथ समीर के पास अस्पताल चली गई।

नंदिता योगोश से अस्पताल में मिलने के बाद घर लौटी थी। सोसाइटी के सिक्योरिटी गार्ड से उसे समीर के बारे में पता चला। उसे बहुत धक्का लगा। उसे लगा कि अमृता अकेली है। इस मुश्किल वक्त में उसका साथ देना चाहिए। अस्पताल का पता लेकर वह उससे मिलने चली गई। जब वह अस्पताल पहुँची तो एक अच्छी खबर मिली। समीर बच गया था। डॉक्टर का कहना था कि उसे सही समय पर अस्पताल ले आया गया। थोड़ी देर हो जाती तो बहुत मुश्किल हो जाती।

पुलिस ने समीर द्वारा लिखी गई चिट्ठी के आधार पर फौरन अपना काम शुरू कर दिया। हरीश और मंजीत को पूछताछ के लिए थाने लाया गया। नमित और चेतन से भी पूछताछ करके मामला दर्ज़ कर लिया गया।